रविवार, जनवरी 31, 2010

कर्ण की घोषणा

मैं कर्ण बल्द श्री अधिरथ, एतत् द्वारा घोषणा करता हूँ कि मेरी और दुर्योधन की मित्रता आज से समाप्त समझी जाय ।

मेरी तबियत अब कुछ ठीक नहीं रहती लिहाजा मैं महासचिव पद से इस्तीफ़ा देता हूँ और अंग का राज्य भी वापस करता हूँ । मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरे और दु:शासन के झगड़े में दुर्योधन द्वारा मेरा पक्ष न लिए जाने को लेकर मुझे भारी आघात पहुँचा जिसके कारण मेरी तबियत बिगड़ गयी ।

मुझे याद है, जब द्यूत-क्रीड़ा भवन में द्रौपदी जी को अपमानित किया जा रहा था तो मेरे भी मुख से कुछ अपशब्द निकल पड़े थे । यद्यपि उस घटना के लिए दुर्योधन और दु:शासन ही मुख्य अभियुक्त हैं तथापि मुझे अपने द्वारा कहे गए शब्दों का हमेशा पश्चाताप होता रहेगा । हो सके तो महारानी द्रौपदी मुझे माफ़ कर दें और कोई छोटा-मोटा पद देकर मुझे अपना सेवक स्वीकार करें । मैं प्रायश्चित करने को तैयार हूँ और पूर्ण निष्ठापूर्वक सेवा करते रहने का वचन देता हूँ ।

शनिवार, जनवरी 30, 2010

कहना होगा टर्र

यह कहानी उस कुएं की है जो काफी  पुराना था । कुएं में पानी की कोई कमी न थी । जितना पानी खींचा जाता उतना ही धरती उसमें भर देती । कुएं में मेंढक भी काफी संख्या में थे । कुछ मेंढक कभी कभार बाल्टी में बैठकर कुएं के बाहर की दुनिया देख लेते थे । बाकी टीवी और रेडियो पर देश दुनिया के समाचार देख-सुन लेते ।

कुएं की खोंतरों में कुछ चिड़ियों ने भी अपने बसेरे बना लिए थे । सब जीव-जन्तु बड़े मेलजोल के साथ रहते थे । किन्तु जब से कुएं में वोट की बीमारी ने प्रवेश किया तो कुछ मेंढक नेता बन गए । जहाँ नेता हों वहाँ नारा न हो यह भला कैसे हो सकता था । नारे की खोज की गयी ।  कुछ मेंढकों को सूझा कि कुआँ तो मेंढकों का है । यहाँ चिड़ियों का क्या काम ? यहाँ अगर चिड़ियों को रहना है तो उन्हें  टर्र टर्र करना आना चाहिए । लिहाजा उन्होंने नारा बनाया :

मेंढक, चिड़िया, साँप, छँछूदर, या हो कोई बर्र ।

इस कुएं में रहना हो तो, कहना होगा टर्र ॥

आगे की कहानी इतिहास है ।

शुक्रवार, जनवरी 29, 2010

तब मैं कहाँ था ?

कभी-कभी कुछ ऐसी बातें हो जाती हैं जो तत्काल शायद तुच्छ लगें लेकिन उन्हें हम जीवन भर भुला नहीं पाते । यह बातें यदि गावं की हों तो कहना ही क्या ।  रह रहकर वे हमारे मस्तिष्क-पटल पर उभरती हैं और  यादों को ताजा कर जाती हैं । हमें गुदगुदाती रहती हैं ।

ऐसी ही एक घटना है । गावं में एक बार हमारे पड़ौसी दादा जी अपनी बारात का कोई रोचक किस्सा बता रहे थे । अन्य लोगों के साथ  उनका पोता भी बैठा सब सुन रहा था जो अभी छोटा ही था । उसने पूछा, “ दादा जी तब मैं कहाँ था ?”

“तू तो तब पैदा भी नहीं हुआ था ।” दादा जी ने कहा ।

क्या मैं उस समय मम्मी के पेट में था ?”

दादा जी ने तनिक सोचा और कहा, “ नहीं । उस समय तो तू अपनी नानी के पेट में होगा ।”

सोमवार, जनवरी 18, 2010

शीत तुझे जाना ही होगा


शीत तुझे जाना ही होगा

आज समय की यही माँग है
बसंत को लाना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा

खुश होकर जा या कि रूठकर
चाहे रो ले फूट फूटकर
साथ रहेगा किन्तु छूटकर
विरह गीत गाना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा

कुहरा, पाला, सर्द हवाएं
जुकाम, खाँसी, और दवाएं
कितना ही चीखे चिल्लाएं
इनको विष खाना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा


आया पहन शरद का मुखड़ा
लेकिन मुझे ठण्ड में जकड़ा
और कहाँ तक रोऊँ दुखड़ा
छुटकारा पाना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा


तूने घमण्ड ऐसा ओढ़ा
वृक्षों को भी तो ना छोड़ा
मार उन्हें पतझड़ का कोड़ा
तुझको पछताना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा

छुप जा बसंत आते होंगे'
सब सुख मेरे माथे होंगे
बच्चे हँसते गाते होंगे
सबको मुस्काना ही होगा
शीत तुझे जाना ही होगा

शनिवार, जनवरी 09, 2010

गलत वक्त क्यों बात कही

समझ न पाता चालबाजियाँ
सन्तू है कितना भोला
लगी धूप भी जब ठण्डी सी
तो सूरज से यूँ बोला


“सूरज दादा बात आपकी
अच्छी नहीं मुझे लगती
आप आजकल गायब मिलते
जब दुनिया सोकर जगती


गरमी में कंधे रगड़ाते
चाहे लाख कोई झिड़के
देर शाम को सोने जाते
और जाग जाते तड़के


सर्दी में क्यों दूर भागते
जब सब नजदीकी चाहें
कभी समय पर काम न आते
भरते रहें लोग आहें”


इतना सुनकर तुनके सूरज
कोहरे की चादर ओढ़ी
वह भी भागी साथ छोड़कर
धूप खिली थी जो थोड़ी


होता पश्चाताप सोचकर
गलत वक्त क्यों बात कही
कहता गरमी के मौसम में
तो पड़ता यह दाँव सही

गुरुवार, जनवरी 07, 2010

ऐसे नेता और कहाँ

amar श्री अमर सिंह जी जैसे लोकप्रिय नेता किसी परिचय के मोहताज नहीं होते । वैसे तो उनके बारे में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने वाली बात होगी, लेकिन दु:ख की इस घड़ी में यदि मन की बात मन में ही रह गयी तो कहीं हृदय लोडग्रस्त न हो जाये । इसीलिए अपने विचार प्रकट करना अनिवार्य हो गया है ।

पहले हमें अलीगढ़ में पैदा होने पर कोई गर्व ही न होता था । किन्तु जब से पता चला है कि श्री अमर सिंह जी भी अलीगढ़ ही में जन्म लिए थे तब से गर्व की अनुभूति होती ही जा रही है ।

अल्प समय में ही भारतीय राजनीति के आकाश में सूरज की तरह चमकने वाले श्री अमर सिंह जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी और हँसमुख व्यक्तित्व के मालिक हैं । क्रोध तो मानो उन्हें छू तक नहीं गया है । मित्रता के मामले में भी वे सभी से हमेशा अव्वल ही रहे । जो व्यक्ति उनका मित्र बन गया उसे इतना प्यार मिला कि वह अपने सगे भाई को भी भूल गया । अभिताभ बच्चन हों, अनिल अम्बानी हों या फिर मुलायम सिंह यादव हों सभी अमर सिंह जी के गहरे मित्र हैं ।

विरोधी नेताओं के साथ भी उनके रिश्ते हमेशा प्रेमपूर्ण ही रहे । सांसदो और विधायकों में उनके प्रति एक विशेष प्रकार का आसंजक बल महसूस किया जाता रहा है । अब भी जब वे कपड़े बदलते समय अपने कुर्ते को उतारते होंगे तो निश्चित ही दो चार विधायक जेब से निकलकर गिर जाते होंगे । शांतिप्रिय श्री सिंह जी विवादों को सदैव दूर से ही सलाम करने के पक्षधर रहे हैं । उनका मानना है कि देश को आगे ले जाने के लिए नेताओं को विचारधारा पर आधारित राजनीति करनी चाहिए ।

स्वास्थ्य कारणों से उन्हें सक्रिय राजनीति से हटना पड़ा है । यह देश की राजनीति के लिए अपूर्णीय क्षति है और देश का दुर्भाग्य है । उनके राजनीति में न रहने से एक शून्य सा बन गया है । आज देशभर में कोई ऐसा नेता दिखाई नहीं देता जो उनकी जगह ले सके । मानो ईश्वर ने यह जगह केवल उन्हीं के लिये बनाई हो ।

उन्हें देश को आगे ले जाने की बड़ी चिन्ता लगी रहती थी । शायद यही कारण रहा कि उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और 54 वर्ष की अवस्था में जब अधिकांश नेता राजनीतिक जीवन की शुरूआत करते हैं उन्हें राजनीति को अलविदा कहना पड़ रहा है ।

उनके जैसे जनाधार वाले, बात के धनी और ईमानदार नेता सदी में दो चार ही जन्म लेते हैं । यदि उन्हें राजनीति से संन्यास न लेना पड़ता तो जनता के प्रेम की बदौलत वे एकदिन अवश्य ही प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचते और वह दिन भारत वर्ष के सौभाग्य का दिन होता । फिर कोई ताकत चाहे वह विदेशी हो या स्वदेशी, देश को विकसित राष्ट्र बनने से नहीं रोक सकती थी । हमारा विश्वास है कि अगर वे राजनीति करते रहते तो देश को जल्दी ही 22 वीं सदी में पहुँचा देते ।

किन्तु होनी को कौन टाल सका है ? ईश्वर की ऐसी ही इच्छा थी कि हमारा देश अभी कुछ दिन और विकसित राष्ट्र न बन सके । शायद इसी कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और उन्हें सक्रिय राजनीति से संन्यास लेना पड़ा ।

फिर भी हमें उम्मीद है कि जैसे सचिन तेंदुलकर भारतीय टीम के सबसे उम्रदराज खिलाड़ी होकर भी सबसे अच्छा खेल सकते हैं वैसे ही अमर सिंह जी भी सक्रिय राजनीति से दूर रहकर भी अन्य लल्लू-पंजू नेताओं से तो ज्यादा राजनीति कर ही लेंगे ।

श्री सिंह जी सदैव ही सही समय पर सही निर्णय लेने के लिये जाने जाते रहे हैं । उनका कोई निर्णय गलत होगा ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती । इसीलिए संकट के इस समय में हम उनके निर्णय का सम्मान करते हुए, चाहते हुए भी उन्हें राजनीति में वापस लौटने को न कहेंगे ।

हमारी ओर से उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं । धन्यवाद !

मित्रगण