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गुरुवार, सितंबर 23, 2010
देश की अस्मिता के लिए मातृभाषा की आवश्यकता
प्रस्तुत निबंध हमारी कम्पनी द्वारा आयोजित निबंध प्रतियोगिता में लिखकर दिया है । देने से पहले एक कॉपी करा ली ताकि और कुछ इनाम विनाम मिले या न मिले पर एक पोस्ट तो निकाल ही ली जाए अपनी इतनी मेहनत के बाद ।
हमने आपसे पढ़ने की उपेक्षा करने की ही अपेक्षा की थी । जिस पर आप खरे उतरे । जब हमने स्वयं एक बार लिखकर इसे दोबारा नहीं पढ़ा तो कैसे उम्मीद करें कि कोई इसे पढ़ेगा । जाँचने वालों से भी हमें उम्मीद नहीं है । इसीलिए थोड़ा कलम साधकर लिखा है ताकि देखकर ही अच्छा लग जाए । लेकिन आपने आठ पेज गिनकर हमें चौंका भी तो दिया है । अब हमें विश्वास हो चला है कि हिन्दी को पानी देने वाले लोग हैं अभी । हमने तो सोचा था साढ़े सात ही पेज लिखे हैं हमने :)
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen, हमने पुन: जाँच की तो पता चला है कि ये पंक्तियाँ श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने ही गणेश शंकर विद्यार्थी जी को उनके पत्र ’प्रताप’ के लिए लिखकर दी थीं । लिंक1 और लिंक2 पर भी देखें ।
प्रथम पुरस्कार की संस्तुति करनी चाहिये, इस सुन्दर निबन्ध के लिये।
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख
जवाब देंहटाएंवाकई पुरस्कार लायक
हमसे अपेक्षा है की हम ये ८ पेज पढ़े? बताइये.. बताइये...?
जवाब देंहटाएंआते है फिर से.. पढने के लिए..
@ रंजन,
जवाब देंहटाएंहमने आपसे पढ़ने की उपेक्षा करने की ही अपेक्षा की थी । जिस पर आप खरे उतरे । जब हमने स्वयं एक बार लिखकर इसे दोबारा नहीं पढ़ा तो कैसे उम्मीद करें कि कोई इसे पढ़ेगा । जाँचने वालों से भी हमें उम्मीद नहीं है । इसीलिए थोड़ा कलम साधकर लिखा है ताकि देखकर ही अच्छा लग जाए ।
लेकिन आपने आठ पेज गिनकर हमें चौंका भी तो दिया है । अब हमें विश्वास हो चला है कि हिन्दी को पानी देने वाले लोग हैं अभी ।
हमने तो सोचा था साढ़े सात ही पेज लिखे हैं हमने :)
बहुत बढ़िया है. सम्भवत: "जिसको न निज गौरव" पंक्तियां श्रीमन मैथिलीशरण गुप्त जी की हैं. आपको शत-प्रतिशत अंक...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया निबंध |
जवाब देंहटाएंप्रथम पुरुस्कार के लिए हम भी संस्तुति कर रहे है |
@ विवेक भाई.. साढ़े सात तो तब होते जब आधा खाली पेज भी फोटो में दिखाते...
जवाब देंहटाएंएक सांस में पढ़ डाला.. बहुत दमदार लिखा है.. प्रथम पुरस्कार पाने इ अग्रिम बधाई...
लेख अतिउत्तम है और हस्तलेख भी . शुद्ध हिन्दी का अति प्रयोग क्या नीर छीर विवेकीय निर्णायको को समझ आयेगा . यदि आ गया तो प्रथम स्थान निश्चित है .
जवाब देंहटाएंजरूर इस पर पुरुस्कार मिलेगा। सुन्दर प्रस्तुति। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ओर सत्य लिखा है, काश आम लोग इस पर अमल कर सके, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमौ...सी..ज्जी अगर इसको फस्ट इनाम नईं मिला तो मैं सुसाइड कर लूंगा.....सु....स्सा....ईड...
जवाब देंहटाएंbahut hi acha nibhand likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंek baat aur....aapki writing bahut achi hai
really nice....thanks Archana
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen,
जवाब देंहटाएंहमने पुन: जाँच की तो पता चला है कि ये पंक्तियाँ श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने ही गणेश शंकर विद्यार्थी जी को उनके पत्र ’प्रताप’ के लिए लिखकर दी थीं । लिंक1 और लिंक2 पर भी देखें ।
बढिया लिखा है। इनाम की सूचना भी दी जाये। निबंध तो जंच गया होगा अब तक!
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