शनिवार, जनवरी 09, 2010

गलत वक्त क्यों बात कही

समझ न पाता चालबाजियाँ
सन्तू है कितना भोला
लगी धूप भी जब ठण्डी सी
तो सूरज से यूँ बोला


“सूरज दादा बात आपकी
अच्छी नहीं मुझे लगती
आप आजकल गायब मिलते
जब दुनिया सोकर जगती


गरमी में कंधे रगड़ाते
चाहे लाख कोई झिड़के
देर शाम को सोने जाते
और जाग जाते तड़के


सर्दी में क्यों दूर भागते
जब सब नजदीकी चाहें
कभी समय पर काम न आते
भरते रहें लोग आहें”


इतना सुनकर तुनके सूरज
कोहरे की चादर ओढ़ी
वह भी भागी साथ छोड़कर
धूप खिली थी जो थोड़ी


होता पश्चाताप सोचकर
गलत वक्त क्यों बात कही
कहता गरमी के मौसम में
तो पड़ता यह दाँव सही

17 टिप्‍पणियां:

  1. वाह भैया !
    कम समझे तो गागर नहीं तो पूरा सागर ..
    बतकही अर्थ-गर्भी लगी !
    .......... आभार ,,,

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  2. एक ऐसी कविता जो एक साथ बच्चों और बडों दोनो के लिए आनन्ददायी है।
    बहुत खूब !

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  3. लाख रूपये की बात.. ! ये होता है कवि.. .

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  4. इतना सुनकर तुनके सूरज
    कोहरे की चादर ओढ़ी
    वह भी भागी साथ छोड़कर
    धूप खिली थी जो थोड़ी
    बहुत खुब जी,
    धन्यवाद

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  5. सच है सही वक़्त पर सही बात करनी चाहिए ........
    अच्छी रचना है .......

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  6. "सर्दी में क्यों दूर भागते
    जब सब नजदीकी चाहें"

    सुना है सभी मर्दों को कहते
    सरका लो खटिया जाडा लगे :)

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  7. बहुत मजेदार, बच्चों के लिये तो बहुत ही अच्छी कविता.

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  8. बच्चों के लिए बहुत सुंदर तोहफा है।

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  9. बच्चों के लिए बहुत सुंदर तोहफा है।

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  10. वाह बहुत सुन्दर सीख देती कविता बधाई हम सही समय पर आये टिपियाने। शुभकामनायें

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  11. ‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि’ तो सुना था लेकिन आज तो रवि को धकियाकर ओझल कर देने वाले कवि के दर्शन हो गये। जय हो...!

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  12. कहता गरमी के मौसम में
    तो पड़ता यह दाँव सही
    इतनी बड़ी बात इतने आराम से कहना तो हमारे प्यारे विवेक भाई के बस की ही बात है।
    मालिक नज़रे-बद से बचाए आपको।

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  13. तो पड़ता यह दाँव सही
    मंगलकामनाएं
    क्योंकि पसंद आई

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  14. विवेक जी
    वाकई.....
    छोटे छोटे एहसासों से भीगी रचनाएँ.....पुरसुकून दे गयीं...बधाई

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  15. बहुत सुन्दर रचना
    बहुत बहुत आभार

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