समझ न पाता चालबाजियाँ
सन्तू है कितना भोला
लगी धूप भी जब ठण्डी सी
तो सूरज से यूँ बोला
“सूरज दादा बात आपकी
अच्छी नहीं मुझे लगती
आप आजकल गायब मिलते
जब दुनिया सोकर जगती
गरमी में कंधे रगड़ाते
चाहे लाख कोई झिड़के
देर शाम को सोने जाते
और जाग जाते तड़के
सर्दी में क्यों दूर भागते
जब सब नजदीकी चाहें
कभी समय पर काम न आते
भरते रहें लोग आहें”
इतना सुनकर तुनके सूरज
कोहरे की चादर ओढ़ी
वह भी भागी साथ छोड़कर
धूप खिली थी जो थोड़ी
होता पश्चाताप सोचकर
गलत वक्त क्यों बात कही
कहता गरमी के मौसम में
तो पड़ता यह दाँव सही
वाह भैया !
जवाब देंहटाएंकम समझे तो गागर नहीं तो पूरा सागर ..
बतकही अर्थ-गर्भी लगी !
.......... आभार ,,,
एक ऐसी कविता जो एक साथ बच्चों और बडों दोनो के लिए आनन्ददायी है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
लाख रूपये की बात.. ! ये होता है कवि.. .
जवाब देंहटाएंइतना सुनकर तुनके सूरज
जवाब देंहटाएंकोहरे की चादर ओढ़ी
वह भी भागी साथ छोड़कर
धूप खिली थी जो थोड़ी
बहुत खुब जी,
धन्यवाद
सच है सही वक़्त पर सही बात करनी चाहिए ........
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है .......
"सर्दी में क्यों दूर भागते
जवाब देंहटाएंजब सब नजदीकी चाहें"
सुना है सभी मर्दों को कहते
सरका लो खटिया जाडा लगे :)
कमाल की रचना...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत मजेदार, बच्चों के लिये तो बहुत ही अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिए बहुत सुंदर तोहफा है।
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिए बहुत सुंदर तोहफा है।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर सीख देती कविता बधाई हम सही समय पर आये टिपियाने। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं‘जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि’ तो सुना था लेकिन आज तो रवि को धकियाकर ओझल कर देने वाले कवि के दर्शन हो गये। जय हो...!
जवाब देंहटाएंकहता गरमी के मौसम में
जवाब देंहटाएंतो पड़ता यह दाँव सही
इतनी बड़ी बात इतने आराम से कहना तो हमारे प्यारे विवेक भाई के बस की ही बात है।
मालिक नज़रे-बद से बचाए आपको।
बढिया है।
जवाब देंहटाएंतो पड़ता यह दाँव सही
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं
क्योंकि पसंद आई
विवेक जी
जवाब देंहटाएंवाकई.....
छोटे छोटे एहसासों से भीगी रचनाएँ.....पुरसुकून दे गयीं...बधाई
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार