मंगलवार, अप्रैल 06, 2010

अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता

1759 ईसवी में मुगल बादशाह आलमगीर द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अलीगौहर शाह आलम द्वितीय के नाम से मुगल बादशाह बना । कहने को वह मुगल बादशाह था लेकिन पूरी ताकत उसके वज़ीर गाज़ीउद्दीन खान फ़िरोज़जंग तृतीय के हाथों में थी ।
वैसे शाह आलम शब्द का अर्थ अखिल विश्व का शासक होता है परन्तु स्थितियाँ ऐसी बन गयीं थी कि एक कहावत उस समय प्रचलित हो गयी 'शाह-ए-आलम, दिल्ली से पालम' क्योंकि उसका हुक्म दिल्ली से पालम तक ही बमुश्किल चलता था ।
बादशाह को अपनी स्थिति का ज्ञान था इसलिए वह शर्म के मारे दिल्ली से भाग गया । और मुगलों के खोए गौरव को फिर से प्राप्त करने की कोशिशों में लगा रहा ।

अब आज की स्थिति को देखिए । आज का शाह आलम जवानों की लाश पर भी बैठकर शासन करेगा, लेकिन गद्दी नहीं छोड़ेगा । उसे बस गद्दी चाहिए । अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता ।
जब देश में समानान्तर सरकारें चल रही हों तो कोई शासक कैसे चैन से बैठ सकता है । समझ से परे है ।
अब कुछ बयान दे दिए जाएंगे । कुछ कड़ी से कड़ी निन्दा होगी और कुछ कड़ी से कड़ी कार्यवाही । बाकी और जो मैडम का हुक्म !

5 टिप्‍पणियां:

  1. Jab kisi insan ka jamir aur antratma poori tarah mar jati hai tab wah prdhan mantri ki kursi par baitha ho ya shah a aalam ki kurshi par usse janta aur jwan ko koi ummid nahi karni chahiye.Kyoki wahi insan achchha kam kar sakta hai jiska jamir jinda ho.

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  2. अफ़सोस की बात है. हत्यारों पर लगाम लगनी ही चाहिए.

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  3. 'शाह-ए-आलम, दिल्ली से मादाम'
    मादाम फ़ेंच शव्द है, जिस का अर्थ है मेडम

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  4. जो स्थिति आज बना दी गयी है, भ्रष्ट अफसरो, कुटिल राजनीति बाजों और कानून को खिलौना बनाने वालों ने, वह धीरे-धीरे गृहयुद्ध की ओर ले जा रही है और थोड़े दिनों बाद यह उनके घर तक भी जरूर पहुंचेगी..

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  5. इनके लिए कितना बढ़िया सदाबहार वक्तव्य है " सरकार कड़ा कदम उठाएगी " पर वह कदम कभी उठता ही नहीं | बेचारा कदम उठे भी तो कैसे ?वोट बैंक के निचे दबा जो रहता है |

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