शुक्रवार, अक्तूबर 17, 2008

करवाचौथ पर निन्दक-निन्दा

एक बार दो दादा और पोता घोड़ी पर जा रहे थे .घोड़ी जरा कमजोर सी थी फिर भी ले जा रही थी . पहले गाँव से होकर गुजरे तो लोगों ने देखा . टिप्पणी हुई : "इनको न शर्म है न दया . हट्टेकट्टे इतनी कमजोर घोड़ी पर लदे जा रहे हैं ." पोते ने सुन लिया तो दादा से बोला , दादा जी मैं पैदल चलूँगा आप घोड़ी पर चलो लोग अच्छा नहीं समझते ." दादा ने तो दुनिया देखी थी . बोला, "बेटा लोगों की जुबान नहीं पकड़ सकते ये तो कुछ न कुछ कहेंगे ही ." मगर पोता न माना नीचे उतर गया और पैदल चलने लगा . अगले गाँव में पहुँचे तो वहाँ भी टिप्पणियाँ हुईं : "इस आदमी को न शर्म है न दया खुद हट्टाकट्टा घोड़ी पर सवार है और बच्चे को पैदल घसीट रहा है ." अबकी बार दादा ने कहा," बेटा मैं पैदल चलूँगा तू घोड़ी पर चल ." तीसरे गाँव में पहुँचे तो भी टिप्पणी से न बच सके . लोगों ने देखा तो कहा ," देखो इस लड़के को न शर्म है न दया खुद हट्टाकट्टा घोड़ी पर चल रहा है और बुड्ढा बेचारा पैदल भाग रहा है ." अब क्या चारा था ? दोनों ने तय किया कि पैदल चलेंगे . अगले गाँव में पहुँचे तो भी टिप्पणी से न बच सके . टिप्पणी मिली : " देखो ये दोनों कितने मूर्ख हैं . घोड़ी होते हुए भी पैदल जा रहे हैं .

ऊपर वाली इतनी लम्बी कथा हमने अकारण ही नहीं कही . आज करवा चौथ है . सब तरफ प्रसन्नता का माहौल है .हम तो छुट्टी लेकर घर बैठे हैं ईवनिंग शिफ्ट में ड्युटी थी इस डर से नहीं गये कि कहीं रात वाला फँसा न दे . जो पति हैं वे इसलिए खुश हैं कि उनके लिए ऐसा मौका साल में एक ही बार आता है जब उनकी पूजा होती है . अन्यथा वे तो साल भर पूजक ही बने रहते हैं . पत्नियाँ खुश हैं क्योंकि इसे बड़ा प्रदर्शन का सुअवसर बार बार थोड़े ही आता है . पडौसिनों को दिखाने का यही तो अवसर है कि मेरे पास यह साड़ी इतने की है और फलाँ जेवर इतने में खरीदा . आखिर प्रदर्शन का कोई बहाना तो चाहिए . ऐस ही तो किसी के सामने जाकर अपना बखान नहीं कर सकते न . ऊपर से पतिदेव को भी भ्रम हो जाता है कि वे देवता हैं . इस अवसर पर देवता से लगे हाथ वह इच्छा भी पूरी कराई जा सकती है जो पूरे साल बज़ट से बाहर थी . बच्चे मम्मी पापा दोंनों को एक साथ खुश देखकर अति आनन्दित हैं . उनको समझ आ गया है कि आज कोई न कोई विशेष अवसर है . जरूर कुछ न कुछ या तो हो गया है या होने वाला है .पर बुरा हो इन घोर असामाजिक छिद्रान्वेषियों का . इनको हर बात में टाँग अड़ाने की आदत जो है . इन्हें कोई बात अच्छी नहीं लगती . किसी को खुश देखकर तो ये कदापि खुश नहीं रह सकते .ये हर जगह मिल जायेंगे .एक ढूंढो तो चार मिलेंगे . यहाँ ब्लॉगिंग पर भी ऐसे लोगो की कमी नहीं है .पत्नियों को भडकाने में लगे हैं . स्त्री शोषण हो रहा है . पुरुष क्यों व्रत नहीं रखता स्त्री के लिए .ये होना चाहिए वो होना चाहिए . मै होता तो कभी व्रत न रखता . ऐसा कहते और लिखते हुए पाए जाते हैं ये लोग .मेरी सभी करवाचौथ प्रेमियों/प्रेमिकाओं से विनम्र गुजारिश है कि ऐसे लोगों की बात कतई न सुनें . खुश रहें और खुशी मनाने का कोई मौका हाथ से न जाने दें . निंदक तो हर बात की निंदा करते ही रहेंगे . इन निंदकों की जितनी निंदा की जाय कम है .

8 टिप्‍पणियां:

  1. वही काम करो जिससे खुशी हो...मोरल ऑफ़ दी स्टोरी

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  2. दस लोग दस तरह की बातें . अतः वही करना चाहिए जो हमारे ज्ञान और अनुभव से हमें ठीक लगे . धन्यवाद .

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  3. करवा चौथ साल का एक दिन जब पत्नी पति के चरण स्पर्श करती है . ऐसा सयाने कहते है

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  4. हमें तो जी खुश रहने का बहाना चाहि‍ए, पत्‍नी कहे देवता, मैं उसे कहूँ देवी, और क्‍या।
    (काका हाथरसी की कुण्‍डलि‍या जबरदस्‍त थी, आप हाथ आजमाते रहें, पढकर आनंद आ जाता है,
    कुण्‍डलि‍या की शैली में ही हास्‍य-व्‍यंग्‍य की लज्‍जत मालूम पड़ती है।)

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  5. धीरू जी की टि‍प्‍पणी में एक शब्‍द जोड़ना चाहूँगा-

    ''करवा चौथ, साल का एक (ही) दिन, जब पत्नी पति के चरण स्पर्श करती है'' .
    बाकी दि‍न तो हम पति‍यों को ही चरण स्‍पर्श करना पड़ता है- (ऐसा हम जैसे सयाने कहते हैं)

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  6. मोरल ऑफ़ दी स्टोरी बिल्कुल सही है.. लगे रहिए विवेक भाई

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  7. आपकी खुशी ही हम सबकी खुशी है । रही बात लोगों की ,तो कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम कै कहना ।
    आपने छलनी के राज़ की बारीकियों को बिल्कुल वैसे ही समझा जैसा मैंने कहना चाहा । यही मेरे प्रयास की सफ़लता है ।

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