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शुक्रवार, अक्तूबर 10, 2008
दादा का सन्यास
बन्द हुए सब रास्ते, डिगा आत्मविश्वास । कन्दुक क्रीड़ा से हुआ, दादा का सन्यास । दादा का सन्यास, बडी घटना क्रिकेट की । मज़ेदार थी कथा, गेंद बल्ले विकेट की । विवेक सिंह यों कहें निराश न हों महाराजा । कभी न कभी तो बजता है सबका ही बाजा ॥
अच्छी तहरीर है...
जवाब देंहटाएंवाह! वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. कंदुक क्रीड़ा पढ़कर खूब हँसी आई 'शिष्य'....:-)
Vivekji, Kaka hathrasi ki yaad diladi. Laga vivek hathrasi ke hath (Kalam) ka ras koi kam nahi. wah saheb, maza aagaya.
जवाब देंहटाएंवाह विवेक जी
जवाब देंहटाएंत्वरित काव्य टिप्पणी पढ़ कर मजा आया
बहुत खूब. बाजा तो सब का बजना है एक न एक दिन, पर राजनीति के दादाओं का बाजा
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