बचपन के दिन भी क्या दिन थे, जोश भरा रहता था ।
कोई काम नहीं मुश्किल यूँ रोम-रोम कहता था ॥
चार बार खाना खाते थे, फ़िर भी हल्के फ़ुल्के ।
नज़र बचाकर भागे वे दिन, खूँटों से खुल खुल के ॥
तीस पारकर शुरू हो गया, किस्सा कैलोरी का ।
अब हिसाब रखना पड़ता है, एक-एक रोटी का ॥
पूड़ी और कचौड़ी तो बस, सपनों में मिलती हैं ।
जलेबियों से मुलाकात हो तो बाँछें खिलती हैं ॥
तीन किलोमीटर नित दौड़ें, खाना कम खाते हैं ।
किन्तु वजन बढ़ता जाता है, समझ नहीं पाते हैं ॥
वे-मशीन से वजन पूछने रोज पहुँच जाते हैं ।
पाकर वही जवाब टका सा, मन में झुँझलाते हैं ॥
वे-मशीन भी अपने मन में झुँझलाती तो होगी ।
कुछ पागल सा या सनकी सा, हमें समझती होगी ॥
शीत-युद्ध सा चलता रहता, मेरा भारीपन से ।
"मुझको विजय श्री का वर दें" माँग रहा भगवन से ॥
कोई काम नहीं मुश्किल यूँ रोम-रोम कहता था ॥
चार बार खाना खाते थे, फ़िर भी हल्के फ़ुल्के ।
नज़र बचाकर भागे वे दिन, खूँटों से खुल खुल के ॥
तीस पारकर शुरू हो गया, किस्सा कैलोरी का ।
अब हिसाब रखना पड़ता है, एक-एक रोटी का ॥
पूड़ी और कचौड़ी तो बस, सपनों में मिलती हैं ।
जलेबियों से मुलाकात हो तो बाँछें खिलती हैं ॥
तीन किलोमीटर नित दौड़ें, खाना कम खाते हैं ।
किन्तु वजन बढ़ता जाता है, समझ नहीं पाते हैं ॥
वे-मशीन से वजन पूछने रोज पहुँच जाते हैं ।
पाकर वही जवाब टका सा, मन में झुँझलाते हैं ॥
वे-मशीन भी अपने मन में झुँझलाती तो होगी ।
कुछ पागल सा या सनकी सा, हमें समझती होगी ॥
शीत-युद्ध सा चलता रहता, मेरा भारीपन से ।
"मुझको विजय श्री का वर दें" माँग रहा भगवन से ॥
जय हो। बचवा जय विजय करें। शानदार रचना। समीरलालजी के लिये लिखे हो लगता है बर्थडे गिफ़्ट!
जवाब देंहटाएंहे दैया अबहियें ई चिंता -अभी खाने मौजियाने का समय है भाई !
जवाब देंहटाएंkahi samir ji ki motape vali post ne to nahi dara diya aapko jo pahle se motape ke khilaf morchbandi karne me jut gaye hai |
जवाब देंहटाएंkhair bhagvan aapko vijay bhav ka aashirvad de |
कहीं समीर जी की मोटापे वाली पोस्ट ने तो नहीं डरा दिया आपको ? जो पहले से ही मोटापे के खिलाफ मोर्चाबंदी करने में जुट गए है |
जवाब देंहटाएंखैर ! भगवान् आपको विजय भव का आशीर्वाद दे यही शुभकामनाएँ है |
अच्छी कविता और एक कटु सत्य जो आजकल खासकर शहरो में अधिक देखने को मिलता है, या यूँ कहूँ की हर कोई पीड़ित है उससे !
जवाब देंहटाएंभाई साहब, मेरी कहानी आपको कैसे पता चली? कॉपीराइट का केस कर दूंगा, हाँ। :)
जवाब देंहटाएंखाओ पियो, न रहो पस्त
जवाब देंहटाएंमौ करो और रहो मस्त:)
मौ=मौज
जवाब देंहटाएंसमीर जी और अब आप भी! चलिये आप तो अभी काबू कर ही लेंगे. चर्बी को शरीर पर चढ़ने न देंगे.
जवाब देंहटाएंखमीर जी को छोड़ दीजिये प्रभु..
जवाब देंहटाएंवाह ! शानदार ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति बधाई ।
जवाब देंहटाएंसही है..
जवाब देंहटाएंअब तो कुछ न करो तो भी वजन बढ़ जाता है...
क्या खायें न खाये इसी में वक्त निकल जाता है..
जबरदस्त
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजियो! यशस्वी भव!
जवाब देंहटाएंवाह! वाह!
जवाब देंहटाएंशिष्यात्मक दृष्टिकोण डाला है. हम तो गुरुवात्मक दृष्टिकोण डालकर खुश हैं. इतना कुछ चिंता नहीं करते.
चालीस पार लोगों की नित्य प्रार्थना रच दी है आप ने।
जवाब देंहटाएंबिना खाए मरने से अच्छा है खा पी कर मरना .
जवाब देंहटाएंआप को तो इस सब की जरूरत नही लगती । अलबत्ता सही जा रहे हैं आप । कविता बढिया है ।
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