ईश्वर का आविष्कार कब और किसने किया यह तो ठीक ठीक ज्ञात नहीं हो सका है पर इतना अवश्य देखने में आता है कि यह आविष्कार मानव के लिए किसी भी अन्य आविष्कार से उपयोगी सिद्ध हुआ है । एक तरह से यह मनुष्य के लिए वरदान है । ज्ञात इतिहास में तो खैर किसी न किसी रूप में ईश्वर का जिक्र मिल ही जाता है पर प्रागैतिहासिक काल में जब ईश्वर का आविष्कार नहीं हुआ होगा तब लोग अपने किसी प्रियजन की मृत्यु पर किसे दोषी ठहराते होंगे ? अनसुलझे रहस्यों का बोझ किसके सिर डालते होंगे ? क्या उस जमाने में लोग ज्यादा टेंशन लेते होंगे ? अगर ऐसा होता तो आज भी मनुष्य के अलावा अन्य प्राणियों को आदमी से ज्यादा टेंशन में रहना चाहिए । पर ऐसा दिखता तो है नहीं । तो क्या ईश्वर का आविष्कार निष्फल गया ? या अन्य प्राणियों ने हमारे ईश्वर से भी अच्छे किसी ईश्वर के बारे में जान लिया है ?
जो भी हो, यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में कोई भी कुछ भी धारणा बना सकता है । कोई कह देता है कि मैं ही ईश्वर हूँ । कोई कहता है कि मैं ईश्वर का पुत्र हूँ या कोई कहता है कि मैं ईश्वर का दूत हूँ । जिस ईश्वर का अभी तक पक्के तौर पर पता ही नहीं है उसकी निन्दा के अपराध में न जाने कितने व्यक्तियों को मौत की सजा अब तक मिल चुकी होगी । उस ईश्वर के नाम पर शपथ लेकर लोग देश पर राज किये जा रहे हैं । लूट भी रहे हैं देश को । यह ऐसा विषय है जिस पर बहुत सारे नए नए तरीकों से सोचा गया लेकिन मूल धारणा वही रही है । भक्ति आंदोलन, धर्मयुद्ध और भी न जाने क्या क्या होता जा रहा है ।
इसी तरह जब आज सुबह का अखबार देखा तो पत्नी ने उसमें २२ युवाओं के मरने की खबर पढ़ी जो गंगोत्री काँवड़ लेने गए थे । यह समाचार पढ़कर उसका प्रश्न था कि यदि भगवान है तो वह इस तरह के हादसों को रोकता क्यों नहीं है ? पहले तो मुझे उसे भगवान के होने पर संदेह करते हुए बड़ा आश्चर्य हुआ । वह जो हमारे मुख से भगवान के प्रति कोई संदेहास्पद बयान सुनते ही नाराज हो जाती है कैसे स्वयं उस पर संदेह कर रही है । फिर हमने भी मौका देखकर अपनी थियोरी सुना दी उसे : " हो सकता है कि मरने के बाद कोई बहुत अच्छी स्थिति होती हो । वहाँ जाकर व्यक्ति महसूस करता हो कि "अरे ! मैं कहाँ वहाँ फालतू के चक्कर में पड़ा था ? पहले क्यों नहीं मरा मैं ?" हो सकता है जीव को मरने से बचने का प्रयास करते देखकर ईश्वर को हँसी आ जाती हो कि देखो कैसा मूर्ख है ? इसको पता ही नहीं कि मरने के बाद कितना आनंद है ।"
यह सुनकर पत्नी का प्रश्न था कि फिर ईश्वर जीव को बता क्यों नहीं देते कि मरने से न डरो । मरने के बाद तो बहुत आनंद है ।
हमने समझाया कि यदि ऐसा हो जाय तो हो सकता है सभी मरने के लिए दौड़ पड़ें और सृष्टि का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाय । हो सकता है कि ईश्वर ने हमें इस शरीर में किसी अपराध में कैद करके रखा हो कि तुम्हें इतने साल की कैद है ।
पत्नी ने कहा, " तुम्हारी बात में दम तो है ।"
Dilko samjhane Galib khayal achha hai!
जवाब देंहटाएंतुम्हारी बात में दम तो है ।
जवाब देंहटाएंभाभी जी को अपनी बातों से अच्छा घुमा लेते हैं.. :)
जवाब देंहटाएंहंस रहा हू,,,
जवाब देंहटाएंआज तो वाकई आपकी बात में दम है ! हा....हा....हा....हा....
जवाब देंहटाएंमगर वाकई मरने जीने पर आपके विचारों ने दिमाग हिला कर रख दिया ! बढ़िया मस्त पोस्ट के लिए शुभकामनायें !
इतना गंभीर चिंतन .. बढिया !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया... एक गंभीर चिंतन के विषय को व्यंग के चोले में बड़ी खूबी से कह दिया आपने.
जवाब देंहटाएंहंसी तब और ज्यादा आती है जब पढ़ा-लिखर वर्ग ईश्वर की चाकरी में खुद को तृप्त महसूस करता है।
जवाब देंहटाएंजब मरुंगा तो आ कर बताऊंगा असल बात अभी मुझे नही पता.... तब तक भाभी जी की हां मै हां:)
जवाब देंहटाएंsahi hai viru
जवाब देंहटाएंभई दम तो है!
जवाब देंहटाएंपत्नी ने सही तो कहा, " तुम्हारी बात में दम तो है ।"
जवाब देंहटाएंDamdaar baat sir... :)
जवाब देंहटाएंबात में दम तो पक्का है. ईश्वर की कसम.
जवाब देंहटाएं"प्रागैतिहासिक काल में जब ईश्वर का आविष्कार नहीं हुआ होगा तब लोग अपने किसी प्रियजन की मृत्यु पर किसे दोषी ठहराते होंगे ?"
जवाब देंहटाएंयह तो खुदा जाने :)