छटवीं क्लास पास कर ली अब स्टूडेण्ट कहलाते हैं ।
सब विषय मुझे अच्छे लगते पर इंग्लिश से दहलाते हैं ।
इंग्लिश का घण्टा लगते ही दिल की धड़कन बढ जाती है ।
मास्टर जी के दर्शन कर नाड़ी धीमी पड़ जाती है ।
यदि मीनिंग याद हो जाए तो उच्चारण अति दुखदाई है ।
पूछो न हाल स्पेलिंग का सबकी दादी कहलाई है ।
भारत में इसके जो प्रेमी निशदिन इसके गुण गाते हैं ।
जाने देते हैं नहीं इसे बस मेरा प्राण सुखाते हैं ।
यही हाल हमारा गणित के लिये था। बढिया लिखा आपने,याद ताज़ा कर दी आपने बचपन की।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने...
जवाब देंहटाएंwaah....sahi...
जवाब देंहटाएंसमस्या तो है !
जवाब देंहटाएंहमको अंग्रेजी मे स्पेलींग तो हिन्दी मे मात्रा की समस्या है!!क्या करे?ऐसा ही चलेगा
जवाब देंहटाएंयही हाल हमारा भी था विवेक भाई !
जवाब देंहटाएंलगता है आपको हमारी जैसी मास्टरनी नहीं मिली कोई ....
जवाब देंहटाएंशेफ़ाली जी अब सीख लो जी अंग्रेजी।
जवाब देंहटाएं===========
जवाब देंहटाएंयही हाल हमारा गणित के लिये था। बढिया लिखा आपने,याद ताज़ा कर दी आपने बचपन की।
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अनिल पुसाडकर की टिप्प्णी में "गणित" के लिए "हिन्दी" लिखें तो यह हमारी टिप्पणी बन जाएगी।
इतने साल बाद आज भी कभी कभी लिखते समय परेशान हो जाता हूँ।
क्या करूँ। अहिन्दी भाषी हूँ। अंग्रेज़ी माध्यम में पढाई की थी। हिन्दी में लिंग भेद, का, के की की झंझट से हम परेशान होते थे। इन अंग्रेजी पाद्रियों के चलाए हुए स्कूल में हिन्दी का कोई महत्व नहीं था। केवल अनिवार्य विषय होने के कारण हमें पढाया जाता था। शिक्षक भी अच्छे नहीं मिलते थे। हर दो या तीन महीने बाद नौकरी छोडकर जाते थे और नया शिक्षक आ जाता था। उस स्कूल में वातावरण ही ऐसा था कि हिन्दी के शिक्षक ज्यादा दिन टिक नहीं पाते थे। बच्चों को अंगरेज़ी में ही बोलने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता था। हालत इतनी खराब थी कि हिन्दी भी हमें अंग्रेज़ी माध्यम से पढाया जाता था। व्याकरण और कोर्स की किताबें रट रट कर, हम परीक्षा पास करते थे।
आज जो कुछ भी जानता हूँ वह अपनी रुचि और मेहनत से सीखा हूँ।
इसमें हिन्दी फ़िल्में और हिन्दी फ़िल्म गीतों का बहुत बडा हाथ है।
हाँ एक बात कहना चाहूँगा। अच्छा हुआ कि हमारी कमजोरी हिन्दी में थी, अंग्रेज़ी में नहीं।
हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसमें, यदि हम ने मन लगाया तो बाद में प्रगति कर सकते हैं और सुधर सकते हैं। पर बचपन में यदि अंग्रेज़ी ठीक से किसीने नहीं सीखी तो यह कमजोरी सारी उम्र साथ रहती है।
विरले ही लोग हैं जो बचपन में अंग्रेजी में कमजोर थे पर अपने वयस्क जीवन में अंग्रेज़ी भाषा पर कब्ज़ा कर लिया।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ