छाये जब काले बादल ।
प्यास बुझी प्यासी धरती की,
पीकर बारिश का मृदु जल ॥
ठण्डी-ठण्डी हवा चली,
गरमी से छुटकारा पाया ।
ताल-तलैया भरे सभी,
सबको ऐसा मौसम भाया ॥
लगे नाचने मोर हर तरफ़,पक्षी कोलाहल करने ।
बच्चे, खेत बना गलियों में,
लगे नालियों से भरने ॥
आसमान पर देखो तो यह,
बना इन्द्र का धनुष भला ।
जोत बैल, ले हल अपना,
खेतों की ओर किसान चला ॥
मन भायी यह ऋतु वर्षा की,वापस अब जाये न कहीं ।
हाय कष्टकारक वह गरमी,
यहाँ लौट आये न कहीं ॥
वर्षा खूब लुभा रही है आपको । सहज आत्मीय़ कविता लिखी है आपने । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमन भायी यह ऋतु वर्षा की,
जवाब देंहटाएंवापस अब जाये न कहीं ।
हाय कष्टकारक वह गरमी,
यहाँ लौट आये न कहीं ॥
बहुत मुश्किल से आई है...
बहुत सही!!
थोड़ी यहां भी भेज दे, बहुत गर्मी है..
जवाब देंहटाएंवाह क्या कहने वर्षा ने आपको भी झुमा दिया............ महका दिया
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता!
जवाब देंहटाएंअभी इस मौसम की प्रतीक्षा है। एक पोस्ट हम भी लिख चुके हैं रीझ ही नहीं रही है।
बहुत सुंदर कविता, जब हम भारत मै थे तो इस बर्षा मै खुब नहाते थे, ओर खुब तला हुआ खाते थे, आज आप की इस कविता से फ़िर से झुमने पर मजवूर कर दिया
जवाब देंहटाएंसही बात है बारिश के लिए
जवाब देंहटाएंशानदार वर्षागीत। आनंदम् आनंदम्
जवाब देंहटाएं---------------------------
ताल तलैयों की नगरी में बादल छाए गरजे भी
जून गया भुलावे में पर अब जुलाई में बरसे भी
भोपाल पर मानसून रहे मेहरबान।
bahut hi sunder man bhawan rachana,badhai
जवाब देंहटाएंभाई पूरा मन तो भिगो दिया कविता से अब सच मे आजाये तो तन भी भिगो लें. बहुत सुंदर कविता रची आपने. शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुन्दर।सच मे वर्षा ॠतु त्योहार है।
जवाब देंहटाएंशानदार सुन्दर वर्षागीत.
जवाब देंहटाएंबादल तो आते हैं, पर तरसा कर रह जाते हैं।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरिमझिम बूंदें लगीं बरसने,
जवाब देंहटाएंछाये जब काले बादल ।
प्यास बुझी प्यासी धरती की,
पीकर बारिश का मृदु जल ॥
बहुत सुन्दर.......टिप्पणी करते समय भी यहाँ इस समय रिमझिम-रिमझिम बारिश की बून्दे बरस रही हैं।
सुंदर कविता.....
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं !!!
मुझे आपसे जलन हो रही है, मेरे यहां अभी तक क्यों झमाझम बारिश नहीं हुई.
जवाब देंहटाएंविवेक जी आपने सब के मन में बसने वाली कविता रच दी है...बारिश की कमी से त्राहि त्राहि कर रही भारत की जनता के मन पर मरहम का काम करेगी ये कविता...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
ये बरसा हो...... कहा रही है........हमारे यहाँ तो बहुत गर्मी है.
जवाब देंहटाएंपिछले साल की कविता इस साल ठेली गई! :-)
जवाब देंहटाएं@ ज्ञान जी,
जवाब देंहटाएंपिछले साल नहीं जी यह कविता सन २००१ से डायरी में पड़ी घुट रही थी .तब हमने यह सोचा भी न था कि कभी हम ब्लॉग नाम की कोई लत अपने गले डाल लेंगे .
पर आपने खूब पहचाना ! इसीलिए तो हम आपके भक्त हैं :)
सुन्दर कविता है. साल २००२ की वर्षा ऋतु ने जो कविता लिखवाई थी, उसे भी छापो. बरसात आई है तो भगवान् करें कि आराम से जम कर बैठे. बहुत ज़रुरत है धरती को पानी की.
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