गुरुवार, सितंबर 03, 2009

मैना की अनंत कहानी



उस दिन नाइट शिफ्ट करने के बाद रिलीवर के छुट्टी मारने की वजह से पापा मॉर्निंग शिफ्ट में भी रुके हुए थे । लिहाजा अनन्त को स्कूल से उस दिन पैदल ही आना था । जब वह भारी भरकम बैग को कंधों पर लादे धूप में घर आ रहा था तो घर से कुछ दूरी पर उसे एक चिड़िया का बच्चा सड़क पर तड़पता हुआ दिखा । एक आंटी उसे देख रही थीं । अनन्त ने पशु-पक्षियों के प्रति स्वभावत: जिज्ञासु होने के कारण आंटी से मामला पूछा तो पता चला कि चिड़िया के ऊपर किसी का पैर पड़ गया है । अनंत ने उसे सड़क के किनारे घास में छुपा दिया ताकि कौए की दृष्टि उस पर न पड़ सके । उदास मन से घर आ गया । मम्मी को सारा मामला समझाकर चिड़िया के लिए भोजन-पानी पहुँचाने की अनुमति माँग रहा था । इतने में पापा भी ऑफ़िस से आ गए तो मामला उन्होंने अपने हाथ में ले लिया । वे एक गत्ते का डिब्बा लेकर घटनास्थल पर गए और चिड़िया को घर ले आए । चिड़िया के दोनों पैर ऊपर की ओर मुड़ गए थे और कदाचित उसे अंदरूनी चोट भी लगी थी । जिससे वह बार बार मल-त्याग कर रही थी । यह एक भारतीय मैना थी । जिसे गाँव में गलगलिया कहा जाता है । हालांकि उसके पंख पूर्ण विकसित हो चुके थे लेकिन शायद उसने अभी उड़ना नहीं सीखा था ।


अनंत तो चिड़िया को घर में अंदर रखे जाने का पक्षधर था पर घर छोटा होने के कारण चिड़िया के रहने व्यवस्था अंदर न हो सकती थी, लिहाजा उसे बाहर बालकनी में इस तरह रखा गया कि कौओं से बची रहे । फिर भी वह खतरों से अनजान, घिसट-घिसटकर और पंख फड़फड़ाकर बाहर खुले में जाने की कोशिश कर रही थी । उसे पानी पिलाया गया । रोटी के छोटे टुकड़े खिलाये गये जो उसने कम ही खाए ।


जब रात हुई तो अनंत ने फिर उसे घर के अंदर लाने का प्रस्ताव रखा । प्रस्ताव गिर गया । क्योंकि दो तिहाई मत इसके विरोध में थे । एक सदस्य सनत( अनंत का छोटा भाई) ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया । अनंत को समझाया गया कि चिड़िया की देखभाल करते समय उसे कम से कम छेड़ा जाय । आप चाहे कितने ही शुभ उद्देश्य से पक्षियों को छेड़िए किन्तु उन्हें तो स्वतंत्र रहने की आदत है । इसलिए उन्हें किसी की छेड़छाड़ अच्छी नहीं लगती ।


अनंत ने उसे डॉक्टर के पास ले जाने की भी माँग की । उसे समझाया गया कि पक्षी तो स्वयं ही ठीक हो जाते हैं । उनका डॉक्टर ईश्वर होता है । उसके सामने रहीम जी के इस दोहे का दोहे का भी अर्थ सहित पाठ किया गया :

रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छाँड़त साथ ।

खग-मृग बसत अरोग वन, हरि अनाथ के नाथ ॥

किसी तरह रात कट गई । सुबह देखा तो चिड़िया जैसी शाम को छोड़ी थी वैसी ही थी । पंख फड़फड़ाकर घर की चारदीवारी के पास पहुंच गयी थी । रात में कौए न होने के कारण सुरक्षित थी । अब अनंत को स्कूल जाना था । वह चला गया । चिड़िया को एक बड़ी जालीदार डलिया के नीचे रखा गया, ताकि वह संकट से दूर रह सके ।


दोपहर में पापा ऑफिस चले गए, अनंत स्कूल से आ गया और चिड़िया की जिम्मेदारी सँभाल ली । उसे पानी पिलाकर अनंत अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गया । कुछ देर बाद मम्मी ने उसे बुलाकर कहा कि चिड़िया की गरदन टेड़ी हो गई है । जाकर देखा तो वह गरदन टेढ़ी किए पंख फड़फड़ा रही थी । चोंच थोड़ी सी खुली थी । अनंत उसे प्यासी जानकर पानी लेने गया । लौटकर देखा तो चिड़िया शान्त पड़ी थी । अनंत ने मम्मी को बुलाकर पूछा कि क्या चिड़िया सो गई है ? " चिड़िया सोई नहीं, मर गई है । " मम्मी ने कहा ।


इन शब्दों ने बालमन को झकझोरकर रख दिया । सहसा उसे विश्वास नहीं हुआ कि अभी थोड़ी देर पहले तक जो चिड़िया जीवित थी वह मर गई है । वह ठंडा पानी उसके ऊपर छिड़कने लगा । उसे आशा थी कि चिड़िया बेहोश हो गयी होगी और ठंडा पानी छिड़कने से होश में आ जाएगी । पर मरे हुए को कौन जीवन दे सका है । अब अनंत को धीरे धीरे विश्वास होने लगा । जैसे जैसे विश्वास होता जाता बच्चे की सिसकियाँ बढ़ती जाती थीं । थोड़ी ही देर में वह दहाड़ मार मारकर रोने लगा । भागा भागा घर में ही बने छोटे मंदिर के सामने जाकर खड़ा हो गया । रोता जाता और कहता जाता कि, " भगवान ! चिड़िया को जीवित कर दो । " लेकिन भगवान का हृदय न पसीजा । अंत में बच्चा निराश होकर बेड पर गिर गया और कहने लगा कि, " भगवान ! आप बहुत बुरे हो , आपने चिड़िया को क्यों मारा ? मारना ही था तो उसके ऊपर पैर रखने वाले को मारते । "


अनंत को इतना भावुक होता देख मम्मी को भी चिन्ता हो रही थी । मम्मी भी रुआँसी हो रही थी और बच्चे को समझाने की असफल कोशिश कर रही थी । पर उसकी एक ही रट थी, " अब मैं कैसे जीऊँगा ? चिड़िया की जान मेरी वजह से गई है । न मैं उसे घर लेकर आता , न चिड़िया मरती ।" उसके मन में अपराधबोध घर कर रहा था । छोटा भाई चुपचाप यह माजरा देख रहा था । वह क्या समझ रहा था नहीं पता ।


स्थिति को गंभीर होता देख पापा को फोन किया गया और सारा मामला बताया गया । पापा को दुख तो हुआ पर चिड़िया के मरने का कम, बच्चे के परेशान होने का अधिक । उन्होंने अनंत से फोन पर चिड़िया की मृत्यु पर शोक प्रकट करना चाहा, पर वह रोए जा रहा था । अनंत भी अन्य बच्चों की ही तरह अपने पापा को सर्वज्ञ समझता है । पापा के ऊपर जैसे बन पड़ें वैसे सवाल दागने का उसे शौक है । पर आज शौक से नहीं शोक से उसने रोते हुए पूछा, " पापा चिड़िया क्यों मर गई ? उसे भगवान जी ने क्यों मारा ? मैं उसे न लाता तो शायद वह न मरती । "


पापा ने कहा, " उसे शायद अंदर चोट लगी होगी जो धीरे-धीरे उसकी मृत्यु का कारण बनी । तुमने लाकर उसे मारा नहीं बल्कि उसे आज तक जीवित रखा है, तुम उसे न लाते तो शायद कल ही कोई कुत्ता या कौआ उसे खा जाता , तुम्हें अभी पिछले सप्ताह साइकिल से गिरकर चोट लगी थी तो एक अंकल ने तुम्हारी सहायता की थी, इसी के बदले में तुमने चिड़िया की सहायता की समझ लो । "


" लेकिन भगवान तो उसे बचा सकते थे न ?" अनंत ने पूछा ।


" हाँ भगवान उसे बचा तो सकते थे, पर उन्होंने सोचा होगा कि इसके पैर तो टूट ही गए हैं , यह कब तक परेशान रहेगी , इससे अच्छा इसे दूसरा जन्म ही दे देता हूँ ।" पापा ने गीता के उन्हीं उपदेशों की याद दिलाई जो मृत्यु संबंधित जिज्ञासा के के उत्तर में उन्होंने अनंत को समझाए थे । पर आज ये उपदेश कोई प्रभाव न छोड़ सके ।


"मैं उसके ऊपर पैर रखने वाले को ढूँढ़ निकालूँगा और उसे छोड़ूँगा नहीं ।" उसने नोमिता स्टाइल में कहा ।


इसके बाद उसने मम्मी को फोन दे दिया । मम्मी को पापा ने कहा कि इसे खुलकर रो लेने दिया जाय । इसके बाद अनंत लगभग डेढ़ घण्टे खुलकर रोया और रोते रोते ही सो गया । थोड़ी देर बाद ही उसकी निद्रा भंग हुई तो जागते ही रोने लगा । अब धीरे धीरे वह थकता जा रहा था ।


मम्मी ने चिड़िया को दफनाने को उसे मुश्किल से राजी किया । चिड़िया को घर के पास ही गंगाजल आदि छिड़ककर , दफनाकर उसके ऊपर एक नीम का पौधा यादगार के लिये लगाया गया । थोड़ी देर बाद ही उसने चिड़िया को उखाड़कर देखने की इच्छा प्रकट की । पर उसे समझा दिया गया ।


यह घटना अनंत के मस्तिष्क में एक अमिट छाप छोड़ गयी । पर समय सब घावों को भर देता है ।


सूचना : "अमीर धरती गरीब लोग" वाले श्री अनिल पुसदकर जी स्वप्नलोक पर टिप्पणियों का अर्धशतक लगाने में कामयाब रहे हैं । इन्हें बहुत-बहुत बधाइयाँ । इस अवसर पर हमें इनके बारे में इन्हीं की जुबानी रोचक जानकारी यहाँ दुहराने में प्रसन्नता हो रही है ।


अनिल पुसदकर : "राजनैतिक प्रभाव और आर्थिक दबाव में कलम को दम तोड़ते देख पत्रकारिता छोड़ ब्लॉग की दुनिया में कदम रखा है। रोज मरती खबरों को जिंदा रखने की कोशिश कर रहा हूँ। छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी के विधायकों के खरीद फरोख्त प्रकरण में राजनैतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल हो जाने के बाद लगा पत्रकार कठपुतली से ज्यादा कुछ नहीं है। लंबे अरसे तक प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम करने के बाद महसूस हुआ कि नौकरों की कलम आजाद नहीं रहती सो नोकरी छोड़ कलम को आजाद करा लिया है। पत्रकारिता के अलावा दस साल तक मंदबुध्दि बालक-बालिकाओं का आश्रम भी चलाया। इसके अलावा क्रिकेट और बास्केटबॉल संघ में भी महत्तवपूर्ण पदों पर काम किया। राजधानी के प्रेस क्लब का तीसरी बार अध्यक्ष चुना जाने वाला पहला पत्रकार और छत्तीसगढ़ पत्रकार महासंघ का प्रदेशाध्यक्ष भी हूँ"

23 टिप्‍पणियां:

  1. क्या कहे?.....हिला कर रख दिया आज आपने....

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  2. अद्भुत पोस्ट है, विवेक. वाह!

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  3. एक बार बचपन में मैंने भी तीन मैनों को बचाने के लिये कुछ ऐसा ही प्रयास किया था.. पापा उस समय विक्रमगंज में थे और वहां के हमारे क्वाटर में बहुत बड़ा हिस्सा जंगल का था.. उसी जंगल से पापा का चपरासी तीन मैना के बच्चों को पकर कर मुझे दिखाने लाया था.. मैं अनन्त जितना छोटा तो नहीं था मगर था बच्चा ही, 12-13 साल का.. मैंने उस चपरासी को खूब डांटा था और उस अधमरे मैना के बच्चों को डाक्टर तक से दिखलाया था.. मगर नहीं बचा वो.. रोया मैं भी खूब था..

    खैर जहां तक अनन्त की बात है, उसके उम्र में होने वाली घटनायें जीवन भर याद रहती है सो वह ये बात कभी भूलेगा तो नहीं.. मगर समय के साथ जब समझ आयेगी और समझेगा कि वह इससे अधिक और कुछ नहीं कर सकता था तब अपराधबोध धीरे धीरे खत्म हो जायेगा..

    वैसे ये बात सही कहा आपने, हर बच्चे के लिये पापा सर्वज्ञानी ही होते हैं.. जैसे मुझे पता है कि कुछ विषयों में मेरा ज्ञान पापा से ज्यादा है, मगर जब कभी उन विषयों से संबंधित कोई समस्या आती है तो उन्हें ही फोन करता हूं.. समस्या का समाधान तो नहीं मिलता है लेकिन ढ़ाढ़स और आत्मबल तो जरूर मिलता है.. :)

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  4. पोस्ट इतनी संजीदा है की एक सांस में पढ़ पाना संभव नहीं हो पाया...आपकी कलम रुला भी सकती है ये आज ही जाना...
    नीरज

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  5. मैं इसे आज की अद्वितीय पोस्ट कहता लेकिन आज फुरसतिया पर भी ऐसी ही एक पोस्ट है और अभी दिन शेष है।

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  6. अनंत को रोता देख मन भावुक हो उठा और कुछ नम भी......पूरी कहानी पढ़ कर उस चिडिया पर दया भी आ रही है और अनंत के दुःख पर दुःख भी हो रहा है. काश वो चिडिया ठीक हो जाती और अनंत के नन्हे मन पर ये असर नहीं पडता .

    regards

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  7. अमिट छाप छोड़ने वाली पोस्ट! बच्चे की संवेदनशीलता दर्शाती अद्भुत पोस्ट!

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  8. काश, पुसदकर जी जैसे अन्य टिप्पणीकर्ता भी होते।
    ( Treasurer-S. T. )

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  9. क्या कहूँ विवेक जी,आपने तो रुला ही दिया....मन इतना बोझिल हो गया है कि प्रतिक्रिया को शब्द ढूंढें नहीं मिला रहा...

    मनुष्य से लेकर पशु पक्षी तक जो अपना दुःख बतलाकर किसी तरह की सहायता नहीं ले पाते,उनका दुःख मुझे अपने किसी भी कष्ट से बड़ा लगता है....

    आपके लेखन का यह रूप...... सच कहूँ, मेरे लिए बिलकुल ही अनपेक्षित तो है....पर बड़ा ही सुखद है..

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  10. बाल मन को कोन समझाये, बहुत सुंदर धन्यवाद

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  11. काश हम सभी पशु पक्षियों के प्रति अनंत जैसे ही भावुक हों !

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  12. मासूम मन की निष्कलुष संवेदना ने मन को छू लिया -मेरा बचपन याद आया जब एक तोते को अपने ऊंचे पैतृक निवास से टकरा कर मरने पर मैं बाबा जी को खूब कोसा था की आखिर इतना ऊंचा मकान उन्होंने बनवाया ही क्यों ?

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  13. भावुकता बाल सुभाव में होती ही है . अनंत कुछ ज्यादा ही भावुक है .

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  14. विवेक भाई वाह क्या खूब लिखा है आपने

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  15. संवेदनशीलता दर्शाती और दिल को छू लेने वाली पोस्ट.

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  16. सत्य कथा सी लगी आज की ये कहानी विवेक भाई
    हमारी प्यारी दिवंगत मैना रानी की आत्मा अवश्य प्रभू के पास पहुँच गयी होगी
    अनंत का मन निर्मल प्रेम से भरा है ..
    - लावण्या

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  17. भावुक कर देने वाली पोस्ट..बालमन बहुत स्पष्टता से उजागर किया है और संदेश-समय सब घावों को भर देता है ..सत्य वचन!!


    साधुवाद इस पोस्ट का. मैं जानता था तुम ऐसा भी लिख सकते हो!! बधाई.

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  18. बडी दर्द भरी पोस्ट ठेल दी। मुझे उस चील की घटना याद हो आई जिसे मेरे लड़के ने घायल स्थिति में लाया और दो दिन के दाना-पानी के बाद वह उड़ गई थी। बालक का मन प्रसन्न हुआ था।

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  19. भावुक कर गई आपकी ये कहानी | बहुत सुन्दर लिखा है |

    यार ढेर सारे व्यंगों के बिच दो-चार ऐसी मार्मिक और सार्थक कहानी .... क्या बात है !

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