संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
विवेक,बुरा मत मानना,तुम्हे विवेक कह रहा हूं।उम्र मे तुमसे बड़ा हूं इसलिए कह रहा हूं।मुझे जीवन मे बहुत कम लोग पसंद आए हैं उनमे से एक तुम हो।तुम अच्छे कवि,लेखक और पत्रकार से ज्यादा मुझे अच्छे इंसान लगे हो,इसलिए तुमसे रिक्वेस्ट कर रहा हूं तुम्हारी इस नेटदु की निया को और कम-से-कम मुझे बहुत ज़रूरत है।तुम्हारा इस तरह जाना मुझे पच नही रहा है,हो सके तो तुम इस पर पुनर्विचार कर लो। और हां हो सके तो अपना संपर्क नंबर मुझे ज़रूर दे देना।
ओ जाने वाले, हो सके तो लौट के आजा......... विवेक भाई, आज की दुनिया में सेंस आफ ह्यूमर कम हो रहा है। इसका मुझे भी अहसास हुआ। क्या आप जैसे बिलागर को फुरसतिया छोड सकेंगे। आ जाओ....उडन तश्तरी में बैठ कर...
ई का महाराज? कहाँ चल दिए? हम तो नहीं जाने देंगे.. अजी हम आप पर आरोप नहीं लगाये थे आज वाले पोस्ट पर.. :) जो आप भाग खड़े हुए.. कम से कम अपना नंबर तो हमें इ-मेल कर दीजिये.. ई-मेल पता आपको मेरे इस कमेन्ट के साथ मिल जायेगा.. मैं इंतजार कर रहा हूँ.. :)
टंकी पर चढ़ने की एक और धनुष टंकार ! हद है भाई ! मुझे करीब एक माह से लग रहा था कि विवेक भाई कुछ ऐडे बेडे चल रहे हो और आख़िर आज धनुहा धर ही दिया -इट्स मोस्ट अनलाईक ऑफ़ यू विवेक ! हाऊ कैन यू डू दिस टू अस ?? अब कोई मुआमला हो तो बोलो ना -हम हैं ना ! विवेक बी ब्रेव ! यू आर नाट ये चाइल्ड ! डोंट बी ये क्विटर ! अपना काम धाम भी निबटाये और उतना नियमित नहीं तो कम ही पर जाएँ न -वैसे भी बसंत शुरू होता है अब !
विवेक भाई , जाने अनजाने कोई बात लग गई हो तो चिंतन करो इतना बड़ा फ़ैसला लेने से पहले दो बार सोचो . या कुन्नु सिंह जैसा स्टंट है तो कोई बात नही . गुरु फ़िल्म मे डायलोग था जब कई लोग आदमी की बुराई करने लगे तो समझो वह तरक्की कर रहा है . और तुम तरक्की पर हो कहाँ यार चक्कर मे पड़ गए .मस्त रहो लिखते रहो चाहे कैसा भी लिखो .किसी की भी खटिया खडी करो .
विवेक जी, समय की कभी इतनी भी कमी नही होती की पूर्ण विराम लेना पड़े, अरे भाई ब्लॉग पर आना कुछ कर दो लेकिन यहाँ बने तो रहो ! ज्यादा नही तो सप्ताह में एक आध दिन ही सही ! आपकी कमी हमें तो हमेशा खलती रहेगी !
भई ये शोले के वीरु यानी अपने धर्मेन्दर पाजी वाला टोटका तो नहीं है । हम तो यही कहएंगे कि बेवजह की बात छोडिये और जुटे रहिए । ऎसा कौन सा काम आन पडा आपके सिर जो आप थोडा वक्त भी ना निकाल सकें । कहीं ओबामा के मंत्रिमंडल में शामिल होने का बुलावा तो नहीं आ गया ...? कोई बहाना नहीं ,कोई छुट्टी नहीं ...। लग जाइये काम पर । वैसे भी मंदी का दौर है ।
विवेक जी, ऐसा न करो.. हम सभी अपनी व्यस्ताओं की वजह से लिख नहीं पाते.. कभी मन नहीं होता, कभी कुछ लिखने के लिये विषय नहीं होते.. पर हम विराम की बात नहीं करते.. हाँ अगर आप कहें कि २ दिन बाद लिखुंगा.. या दो माह बाद लिखुंगा तो समझ आती है.. पर ... छुट्टी बिना समय लिखे.. ना जी ना... पुरी उम्मीद है आप एक दो दि्न में विराम खत्म करके आयेंगें.. और हाँ मुझे.. आपकी पोस्ट "मेरे पै जो डीजे होता...." बहुत पसंद आयी.. और अक्सर वो पंक्तिया याद करता हूँ..और अकेले में हँसता रहता हूँ... .. और एक बात अगर लिखोगें नहीं तो मेरे अर्ध शतक का क्या होगा??.:)
एक बात और अभी तक दस लोगों ने आपकी इस पोस्ट को पंसद किया है.. और २२ जन रुकने को बोल रहे है.. तो बहुमत किसका हुआ?? अच्छा किया अनुप जी ने आपकी अर्जी निरस्त कर दी..
vivek ji aisa kya ho gaya aap itna achha likhte hain aapki post pad kar is likhne ke boring kam me jara sa muskra lete hain betaji aapke liye ye theek nahi aisaa bhool kar bhi na karna vinati saveekaar karen
समय की माँग है कि अब विराम लूँ ! आप सब की याद मुझे आती रहेगी ! " ह्म्म्म्म ये समय कब से मांगने लगा जी...???? और जरा बताइए समय ने क्या बोल कर क्या माँगा....और रही बात याद आने की तो एक दम झूट.....वो यु की याद आती तो विराम की बात नही आती???? सोचो सोचो....और फ़िर अच्छा सा लिख डालो "
अभी तो वसंत आया था और पतझड़ कर के जा रहे है . अभी तो हम मिले थे और अभी आप आप जाने की बात कर रहें हैं . समय कहाँ है किसी के पास लेकिन आप अपनों को छोड़ के जा रहे है . एक बार विचार और कर लीजिये विवेक जी कही आप कुछ ग़लत तो नही करने जा रहे हैं.
............आप की प्रतीक्षा में....................
इसने तो ली सब कुछ देकर पर तुम इससे सस्ती ले लो ये त्रस्त चला इस बस्ती से थोड़ी लस्ती-पस्ती ले लो कौन टाइप के हो यार विवेक भाई-- अभी दो दिन पहले तो आप कह रहे थे कि- "खींचा तानी होती ऐसे ज्यों जल बीच लडे गज़ ग्राह" कहीं ऐसा तो नहीं के आपके इस ग्राह याने मगरमच्छ ने जल की ग़फ़्लत में थल में ही गज याने हाथी का पैर धरने की कोशिश कर ली हो और नतीजे में अपने मगरमच्छी आँसू बहा बहा कर आपको विचलित कर दिया हो। मत घबराओ यार हम हैं ना। और कल की पोस्ट आपने काहे वापस ले ली जिसमें दिलेरी से यह लिख आए थे कि-- अरे डबलपुर वासियों, हो जाओ होशियार । मिलकर बदनामी करें, सिर्फ आदमी चार ॥ सिर्फ आदमी चार शहर अपना बतलाएं । अपना स्वारथ साध शहर का नाम डुबाएं ॥ विवेक सिंह यों कहें, न भाए सीख भले की । देना उचित सलाह बना है फाँस गले की ॥ आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है और इस पर १० प्रतिक्रियाएं भी आ गई थीं फिर अचानक क्या हुआ भाई ? फ़ुर्सतिया जी ने तो नहीं न कुछ कह डाला हमारे प्रिय भाई विवेक को। अब लेकिन हम उनको भी का कर पाएंगे ऊ तो कह्तै हैं के कोई हमार का करिहै ? हा हा। चलो लौट आओ यार, हम बात करेंगे सबसे। जाओ तफ़री के लिए हमारा ब्ला॓ग घूम के आ जाओ। आपका दिल बहलाने के लिए ग़ज़ल का एहतेमाम है वहाँ। मन प्रसन्न हो जाएगा। नर्मदे हर।
भाई इतनी कम उम्र में क्यों संन्यास ले रहे हैं . ये अच्छी बात नही है . अब शब्द कम पड़ रहे हैं कि विषय . इसलिए कहा जाता है कि इतनी चीनी खाओ कि जिंदगी भर खाते रहो ऐसा न हो कि डायबिटीज़ हो जाए. फ़िर एकदम छोड़नी परे. लेखन तो फुर्सत के पल का काम है . फुर्सत से संन्यास . अरे भाई पहली बार सुना है . लगता है अभी मुझे ब्लोगगिरी के बहुत स्टंट सीखने पड़ेंगे .
भावनाओं की यहाँ कोई क़द्र नही है विवेक ! मगर मज़बूत लोग भागते नहीं, ऐसा करके आप उन लोगों को जीतने का मौका दे रहे हो जो किसी योग्य नही और सिर्फ़ योग्यता का ढिंढोरा पीटने में ही माहिर हैं ! हाँ कई बार लिखने का मन नही करता है तो कुछ समय न लिखो शांत रहो ! आशा है शीघ्र,अपने चाहने वालों को अनुकूल जवाब दोगे ! शुभकामनायें !
ओह ! ये अचानक जाने की बात कहाँ से आ गई । क्या हो गया है ? अरे भाई ये सब तो चलता रहता है । इस ब्लॉग जगत में लोग आते अपनी मरजी से है पर जाते नही है । :) अब ये गुस्सा-वुस्सा छोडिये और अगली पोस्ट फटाफट लिखिए ।
३७ से बढ़ कर अब ४७ हो गई. इतनी जिद अच्छी नहीं होती. दो चार दिन कि छुट्टी तो सभी ले लेते हैं. आप एक दो हपते की ले लो. हम समूह गान में रत हैं: "आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं" कोई आभार नहीं.
आईला .तुम भी चढेला है......भाई उधर रात को बहुत अँधेरा रहता है ओर मछर भी काटते है...ऐसा पिछले बीमार लोगो ने कहा है.......तुम्हारी मौसी कहाँ है ?मौसी जी........!
भाई ५२ टिपणी हो गई. रात के १० बजकर ५० मिनट हो गये यार. अब उतर आओ, उपर टंकी पर मच्छर काट लेंगे, वाईरल बुखार का सीजन चल रहा है. दिन भर के भूखे प्यासे होगे. भतिजे , बस एक बार उतर आओ, खाना पीना करके फ़िर चढ जाना. वर्ना मैं लठ्ठ ले कर आरहा हूं उपर.
सूबह तक उतरने का समाचार मिल जाना चाहिये. अब बहुत हो चुका बस.
अले अले अले, क्या हुआ गपोलू को.. किछी ने कुथ कहा है क्या ? जा राजा बेटा, ब्लागिंग कर.. हम उछकी पिट्टी कलेंगे ! नईंतो तुम्हाली पिट्टी हो जायेगी । अच्छे बच्चे गुच्छा नईं कलते, हाँ ?
अरे यह कया हो रहा है भाई, मुझे तो इस खबर का पता भी नही चला हमारा बीरु ठर्रा पी कर टंकी पर चढ गया, अरे बीरु, भाई जल्दी से नीचे उतर आओ , नीचे भीड भी बडती जा रही है, ओए मोसी भी तेयार हो गई शादी के लिये, ओर भईया आज कल बन्द्रो ने भी खुब उतपात मचा रखा है,इस लिये भईय शाम होने से पहले उतर लो टंकी से कही कोई बंदर चिपट गया तो. ओर भाईया तुम्हारे बिना रोनक कोन लगायेगा, देखो सभी मना रहे है, किसी एक की गलती से तुम सब के दिल केसे तोड सकते हो, अरे जरा बच के भाई इस टंकी पर काई भी बहुत जमी है, कही फ़िसल बिसल गये तो... चलो नीचे आ जाओ , ओर हम सब की इज्जत रख लो. रखोगे ना सब की इज्जत.
तारीख बदल गई और मैं 57 वां हो गया। यदि सचमुच में कोई निजी कारण हैं तब तो कुछ नहीं कहना। किन्तु यदि 'किसी ने कुछ' कह दिया हो और आपका अहम् आहत हो गया हो तो सबकी ओर से मैं क्षमा याचना करता हूं। बोलना भले ही कुछ मत लेकिन महफिल में बने रहो। आपकी जगह मैं होता तो यह सब केवल इसलिए कतरा कि पता चल जाए कि मेरे जाने में कितने इंटरेस्टेड हैं और मेरे बने रहने में कितने।
मिले थे कभी हम इस अजनबी शहर में... चले हम संग -संग अनजाने सफ़र... पलकों में थे सपने,दिल में एक उमंग थी... रास्ता था मुश्किल,ख़ुद से हर पल एक नयी जंग थी... अब तो बस फिर यादें ही रह जाएँगी... कुछ बातें रह जाएगी,वो रातें रह जाएँगी... उन्ही रातों में फिर से सोने को जी चाहता है... आ जाओ लौट के ये दिल चाहता है ...
.............आप के आने के इंतजार में ................
कुल पांच दिनों बाद मैं पहुंचा हूं यहां. इतने दिन दूर रहा, फ़िर आया तो यह धमाका सुना. क्या बात हो गयी? हम तो आपकी ही कमेंट से, और आपके दिये गये हवालों से जाने पहचाने गये. सोच लो ना फ़िर से आप.
चिट्ठाचर्चा में पढ़ा था लेकिन पोस्ट आज ही देख पाया. क्या बात हुई है, ये मुझे पता नहीं. लेकिन भाई ऐसा निर्णय ठीक नहीं है. वापस आओ. और फ़िर बिना गुरु को बताये, ये करना ठीक नहीं है.
विवेक भाई क्या हो गया . कभी कभी लिखते लिखते आदमी थक जाता है . तो ठीक है आप थोड़ा सा आराम कर ले और फिर तैयार हो गएँ एक नए उर्जा के साथ . घर परिवार में सब ठीक तो है ना ?
मुझे पहले ही पता था कि अब आपका विकेट गिरने वाला है। जब सारी सारी रात कंपूटर पर बैठकर टाइप करेंगें तो मैडम तो नाराज होएंगी न। चलिए पैचअप कर लीजिए। एक समय बांध लीजिए और कंपूटर से नाता जोडे रहिए।
mujhe to kuch samajh hi nahi aa raha.....kya ho raha raha hai? aap ham logo ko yun nahi chod sakte....pleaseeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee
१) चले थे साथ मिलकर चलेगें साथ मिलकर तुम्हें लौटना पडेगा हम सब की आवाज सुनकर......! २)ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना....! ३)आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे तेरे मीत बुलाते हैं.....! ४)आजा रे...मैं तो कब से खडी टंकी के नीचे....! ५)आ....जा..तुझको पुकारे तेरे मीत आजा हम तो मिटे हैं तेरी चाह में......!
हा हा ...भाईयो और बहनो इस हकीर ने पाँच गीतों से बीच में भाँजी मार ली और वीरू टंकी से नीचे उतर आया है अभी उसकी थोडी दवा दारू चल रही है जल्द ही उन्होंने ब्लाग पर आने की बात की है लिजिए उन्हीं के शब्द सुनिए---
बालक को शर्मिन्दा न > करें . जल्द ही आदेश का > पालन होगा :)
विवेक जी, ये क्या कह रहे हो? मुझे तो अभी अभी पता चला है. और चार तारीख के बाद से लिखा भी नहीं. यार ऐसा मत करो, समय की कमी तो सभी को हो ही जाती है. मुझे देखो ना, कंपनी में नेट बंद कर दिया तो क्या मैंने ब्लोगिंग छोड़ दी? अब तो हप्ते भर में एक पोस्ट डालता हूँ. इसका मुझे जवाब मिलना चाहिए, नहीं तो मैं भी तुम्हारे रस्ते पर चल दूंगा. आखिर मुझे भी एक सपोर्टर मिल गया. जवाब मेल कर देना जल्दी से जल्दी.
दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे मेरे ब्लॉग पर जाकर देखें !!
वाह वाह विवेक जी आप कब आये मुझे पता ही नहीं चला कई बार आपके घर ताला देख कर लौट जाना पडा आज् किसी ब्लोग्गेर की गली मे आपको देख ही लिया बस झट से पहुँच गयी क्या कोई खुशखबरी ले कर आये हैं तो मुँह तो मीठा करवा दीजिये? शुभकामनायें एव बधाई
विवेक,बुरा मत मानना,तुम्हे विवेक कह रहा हूं।उम्र मे तुमसे बड़ा हूं इसलिए कह रहा हूं।मुझे जीवन मे बहुत कम लोग पसंद आए हैं उनमे से एक तुम हो।तुम अच्छे कवि,लेखक और पत्रकार से ज्यादा मुझे अच्छे इंसान लगे हो,इसलिए तुमसे रिक्वेस्ट कर रहा हूं तुम्हारी इस नेटदु की निया को और कम-से-कम मुझे बहुत ज़रूरत है।तुम्हारा इस तरह जाना मुझे पच नही रहा है,हो सके तो तुम इस पर पुनर्विचार कर लो। और हां हो सके तो अपना संपर्क नंबर मुझे ज़रूर दे देना।
जवाब देंहटाएं????????????????????????????????????????????
जवाब देंहटाएंक्या हो गया भई !!!! आपलोग क्या कर रहे हैं ? मेरी समझ में तो बिल्कुल नहीं आ रहा ।
जवाब देंहटाएंओ जाने वाले, हो सके तो लौट के आजा.........
जवाब देंहटाएंविवेक भाई, आज की दुनिया में सेंस आफ ह्यूमर कम हो रहा है। इसका मुझे भी अहसास हुआ। क्या आप जैसे बिलागर को फुरसतिया छोड सकेंगे। आ जाओ....उडन तश्तरी में बैठ कर...
ई का महाराज? कहाँ चल दिए?
जवाब देंहटाएंहम तो नहीं जाने देंगे.. अजी हम आप पर आरोप नहीं लगाये थे आज वाले पोस्ट पर.. :) जो आप भाग खड़े हुए.. कम से कम अपना नंबर तो हमें इ-मेल कर दीजिये.. ई-मेल पता आपको मेरे इस कमेन्ट के साथ मिल जायेगा.. मैं इंतजार कर रहा हूँ.. :)
ये क्या है विवेक भाई? कुछ समझ नहीं आया| "समय की माँग है कि अब विराम लूँ !" मतलब? १ अप्रैल तो बहुत दूर है अभी|
जवाब देंहटाएंविवेक जी ज़रा गौर कीजिये , अनिल जी को कुछ लोग जीवन में बहुत कम पसंद आए हें, और उनमें से एक आपको हें!! जाते जाते आपको अब ये सब सुनना पड़ेगा??
जवाब देंहटाएंलगता है विवेक जी स्वप्नलोक की सैर पर निकले हैं| भाई आपके इस स्वप्न से हमें बड़ा डर लग रहा है|
जवाब देंहटाएंchal die
जवाब देंहटाएंkab aaoge lout ke ?
मिलते रहना बन्धु,
जवाब देंहटाएंहम ब्रह्मपुत्र तुम सिन्धु,
जब बाढ़ (विचारों की) आएगी तो हम हर किनारे तोड़ कर मिलने को आयेंगे.
Are...Ye kya baat huee ?
जवाब देंहटाएंVyast ho gaye achanak ya kuch aur baat hai ?
Aap likhte raheeye...jab bhee samay mile..
( sorry to comment in English I am away )
Warm regards,
- Lavanya
तू तो जा ही नहीं सकता यार...। क्यों खामखा़ सबको दुःखी करने का खेल खेल रहे हो भाई?
जवाब देंहटाएंमुझे तो बस यह देखना है कि पल्टी मारने में कितनी देर लगाते हैं विवेक। :)
शायद दो दिन लग जाएंगे। पक्का कह रहा हूँ। नो स्माइल प्लीज़ :D
ऐसा क्या हो गया? अचानक ऐसा निर्णय?
जवाब देंहटाएंएक बार फिर विचार करें निर्णय पर।
जल्दी ही विराम ले लो आराम भी बहुत जरुरी है. लगातार लिखाकत आदमी जल्दी थक जाता है न छोटे भाई ....
जवाब देंहटाएंटंकी पर चढ़ने की एक और धनुष टंकार ! हद है भाई ! मुझे करीब एक माह से लग रहा था कि विवेक भाई कुछ ऐडे बेडे चल रहे हो और आख़िर आज धनुहा धर ही दिया -इट्स मोस्ट अनलाईक ऑफ़ यू विवेक ! हाऊ कैन यू डू दिस टू अस ?? अब कोई मुआमला हो तो बोलो ना -हम हैं ना !
जवाब देंहटाएंविवेक बी ब्रेव ! यू आर नाट ये चाइल्ड ! डोंट बी ये क्विटर ! अपना काम धाम भी निबटाये और उतना नियमित नहीं तो कम ही पर जाएँ न -वैसे भी बसंत शुरू होता है अब !
विवेक भाई ,
जवाब देंहटाएंजाने अनजाने कोई बात लग गई हो तो चिंतन करो इतना बड़ा फ़ैसला लेने से पहले दो बार सोचो . या कुन्नु सिंह जैसा स्टंट है तो कोई बात नही . गुरु फ़िल्म मे डायलोग था जब कई लोग आदमी की बुराई करने लगे तो समझो वह तरक्की कर रहा है . और तुम तरक्की पर हो कहाँ यार चक्कर मे पड़ गए .मस्त रहो लिखते रहो चाहे कैसा भी लिखो .किसी की भी खटिया खडी करो .
अरे भैया, लिखते रहो!
जवाब देंहटाएंविवेक जी, समय की कभी इतनी भी कमी नही होती की पूर्ण विराम लेना पड़े, अरे भाई ब्लॉग पर आना कुछ कर दो लेकिन यहाँ बने तो रहो ! ज्यादा नही तो सप्ताह में एक आध दिन ही सही ! आपकी कमी हमें तो हमेशा खलती रहेगी !
जवाब देंहटाएंये तो बड़े लोगों के चोंचले हैं जी! तुम कहां इनके चक्कर में पड़ गये? विराम अर्जी निरस्त करी जाती है। अगली पोस्ट का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंभाई टंकिया पर चढे हो तो अब उतर आओ.
जवाब देंहटाएंदेखो फ़ुरसतिया जी से बिना पूछे टंकी पर चढना मना है. फ़िर अब तो उन्होने सार्वजनिक रुप से आपकी अर्जी भी निरस्त कर दी है.:)
रामराम.
भई ये शोले के वीरु यानी अपने धर्मेन्दर पाजी वाला टोटका तो नहीं है । हम तो यही कहएंगे कि बेवजह की बात छोडिये और जुटे रहिए । ऎसा कौन सा काम आन पडा आपके सिर जो आप थोडा वक्त भी ना निकाल सकें । कहीं ओबामा के मंत्रिमंडल में शामिल होने का बुलावा तो नहीं आ गया ...? कोई बहाना नहीं ,कोई छुट्टी नहीं ...। लग जाइये काम पर । वैसे भी मंदी का दौर है ।
जवाब देंहटाएंविवेक जी,
जवाब देंहटाएंऐसा न करो.. हम सभी अपनी व्यस्ताओं की वजह से लिख नहीं पाते.. कभी मन नहीं होता, कभी कुछ लिखने के लिये विषय नहीं होते.. पर हम विराम की बात नहीं करते.. हाँ अगर आप कहें कि २ दिन बाद लिखुंगा.. या दो माह बाद लिखुंगा तो समझ आती है.. पर ... छुट्टी बिना समय लिखे.. ना जी ना... पुरी उम्मीद है आप एक दो दि्न में विराम खत्म करके आयेंगें.. और हाँ मुझे.. आपकी पोस्ट "मेरे पै जो डीजे होता...." बहुत पसंद आयी.. और अक्सर वो पंक्तिया याद करता हूँ..और अकेले में हँसता रहता हूँ... .. और एक बात अगर लिखोगें नहीं तो मेरे अर्ध शतक का क्या होगा??.:)
Enjoy... शुभकामनाऐं..
एक बात और अभी तक दस लोगों ने आपकी इस पोस्ट को पंसद किया है.. और २२ जन रुकने को बोल रहे है.. तो बहुमत किसका हुआ?? अच्छा किया अनुप जी ने आपकी अर्जी निरस्त कर दी..
जवाब देंहटाएंvivek ji aisa kya ho gaya aap itna achha likhte hain aapki post pad kar is likhne ke boring kam me jara sa muskra lete hain betaji aapke liye ye theek nahi aisaa bhool kar bhi na karna vinati saveekaar karen
जवाब देंहटाएंघबराओ मत ये विवेक हम सब से मजाक कर रहा है
जवाब देंहटाएंसमय की माँग है कि अब विराम लूँ !
जवाब देंहटाएंआप सब की याद मुझे आती रहेगी !
" ह्म्म्म्म ये समय कब से मांगने लगा जी...???? और जरा बताइए समय ने क्या बोल कर क्या माँगा....और रही बात याद आने की तो एक दम झूट.....वो यु की याद आती तो विराम की बात नही आती???? सोचो सोचो....और फ़िर अच्छा सा लिख डालो "
Regards
अविरल चलते जाना है नहीं है रुकना नहीं है मुड़ना यह हम सब की अभिलाषा है
जवाब देंहटाएंअब बने हो परफ़ेक्ट बिलॉगर... टिप्पणिया गिनते जाओ भाई..
जवाब देंहटाएंAAp ka blog mai humesha parti rahi hu per pata nahi ku kabhi comment nahi kiya.
जवाब देंहटाएंaaj apki ye post per ke bura lag raha hai isliye comment kar rahi hu....
चल दिए कहाँ ? जो यहाँ आए वह कहाँ जा पाये फ़िर ..आप भी यही रहेंगे
जवाब देंहटाएंभाई अभी तक टंकी से उतरे नही क्या? :) घणि देर हो गई यार अब तो.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अभी तो वसंत आया था और पतझड़ कर के जा रहे है .
जवाब देंहटाएंअभी तो हम मिले थे और अभी आप आप जाने की बात कर रहें हैं .
समय कहाँ है किसी के पास लेकिन आप अपनों को छोड़ के जा रहे है .
एक बार विचार और कर लीजिये विवेक जी कही आप कुछ ग़लत तो नही करने जा रहे हैं.
............आप की प्रतीक्षा में....................
इसने तो ली सब कुछ देकर पर तुम इससे सस्ती ले लो
जवाब देंहटाएंये त्रस्त चला इस बस्ती से थोड़ी लस्ती-पस्ती ले लो
कौन टाइप के हो यार विवेक भाई--
अभी दो दिन पहले तो आप कह रहे थे कि-
"खींचा तानी होती ऐसे ज्यों जल बीच लडे गज़ ग्राह"
कहीं ऐसा तो नहीं के आपके इस ग्राह याने मगरमच्छ ने जल की ग़फ़्लत में थल में ही गज याने हाथी का पैर धरने की कोशिश कर ली हो और नतीजे में अपने मगरमच्छी आँसू बहा बहा कर आपको विचलित कर दिया हो। मत घबराओ यार हम हैं ना। और कल की पोस्ट आपने काहे वापस ले ली जिसमें दिलेरी से यह लिख आए थे कि--
अरे डबलपुर वासियों, हो जाओ होशियार ।
मिलकर बदनामी करें, सिर्फ आदमी चार ॥
सिर्फ आदमी चार शहर अपना बतलाएं ।
अपना स्वारथ साध शहर का नाम डुबाएं ॥
विवेक सिंह यों कहें, न भाए सीख भले की ।
देना उचित सलाह बना है फाँस गले की ॥
आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है
और इस पर १० प्रतिक्रियाएं भी आ गई थीं फिर अचानक क्या हुआ भाई ? फ़ुर्सतिया जी ने तो नहीं न कुछ कह डाला हमारे प्रिय भाई विवेक को। अब लेकिन हम उनको भी का कर पाएंगे ऊ तो कह्तै हैं के कोई हमार का करिहै ? हा हा।
चलो लौट आओ यार, हम बात करेंगे सबसे। जाओ तफ़री के लिए हमारा ब्ला॓ग घूम के आ जाओ। आपका दिल बहलाने के लिए ग़ज़ल का एहतेमाम है वहाँ। मन प्रसन्न हो जाएगा। नर्मदे हर।
इसका क्या मतलब?
जवाब देंहटाएंह्म्म्म्म्म ....अब इस ब्लॉग से कुछ भी उड़ाया जा सकता है...:)
जवाब देंहटाएंमत जाओ विवेक...
जवाब देंहटाएं३७ टिप्पणियां हो गयीं, टंकी से उतरने को इतनी बड़ी सीढ़ी पर्याप्त होगी! लोग तो इससे कम पर ही उतर आते हैं!
जवाब देंहटाएंभाई इतनी कम उम्र में क्यों संन्यास ले रहे हैं . ये अच्छी बात नही है . अब शब्द कम पड़ रहे हैं कि विषय . इसलिए कहा जाता है कि इतनी चीनी खाओ कि जिंदगी भर खाते रहो ऐसा न हो कि डायबिटीज़ हो जाए. फ़िर एकदम छोड़नी परे. लेखन तो फुर्सत के पल का काम है . फुर्सत से संन्यास . अरे भाई पहली बार सुना है . लगता है अभी मुझे ब्लोगगिरी के बहुत स्टंट सीखने पड़ेंगे .
जवाब देंहटाएंक्या बात हो गई ????
जवाब देंहटाएंयह भी कोई व्यंग्य तो नही ????
या अपने प्रशंषकों कि प्रतिक्रिया जानने की युक्ति तो नही?????
भावनाओं की यहाँ कोई क़द्र नही है विवेक ! मगर मज़बूत लोग भागते नहीं, ऐसा करके आप उन लोगों को जीतने का मौका दे रहे हो जो किसी योग्य नही और सिर्फ़ योग्यता का ढिंढोरा पीटने में ही माहिर हैं ! हाँ कई बार लिखने का मन नही करता है तो कुछ समय न लिखो शांत रहो !
जवाब देंहटाएंआशा है शीघ्र,अपने चाहने वालों को अनुकूल जवाब दोगे !
शुभकामनायें !
सुनाने में आया है की ये पोस्ट बड़ी पसंद की जा रही है! का मतलब है इसका हम विश्लेषण में तनिक कमजोर है :-)
जवाब देंहटाएंअरे भाई ऐसे कैसे निकल लिए बिना कारण बताये?
ओह ! ये अचानक जाने की बात कहाँ से आ गई । क्या हो गया है ?
जवाब देंहटाएंअरे भाई ये सब तो चलता रहता है ।
इस ब्लॉग जगत में लोग आते अपनी मरजी से है पर जाते नही है । :)
अब ये गुस्सा-वुस्सा छोडिये और अगली पोस्ट फटाफट लिखिए ।
क्या बात है vivek भाई, अब इतने लोगों की बात मान लो, thook दो gusa, वापस आ jao .......
जवाब देंहटाएंअभी न जाओ दूर हमसे के इस अंतरजाल (ब्लोगिंग) में ग़म बोहत है
जवाब देंहटाएंतुम नही शामिल हमारी जिंदगी में अँधेरा बोहत है
जानते है हम के आप मोम की तरह पिघल जाओगे
एक उम्मीद सी बाकी है इस दिल में, आप के दिल में चाहत बोहत है .
अभी न जाओ दूर हमसे के इस अंतरजाल में आप की जरुरत बोहत है
आ जाओ लौट के आप की जरुरत बहोत है .
.............आप के इंतजार में ....................
कहाँ चल दिए...इधर तो आओ...सब के दिल को ना ठुकराओ...भोले विवेक जी मान भी जाओ...मान भी जाओ...
जवाब देंहटाएंमान भी जाओ....
नीरज
ऐसा भी क्या नाराज़ होना।इतने लोग मना रहे है उन्का कुछ तो खयाल रखो भाई।
जवाब देंहटाएं३७ से बढ़ कर अब ४७ हो गई. इतनी जिद अच्छी नहीं होती. दो चार दिन कि छुट्टी तो सभी ले लेते हैं. आप एक दो हपते की ले लो. हम समूह गान में रत हैं: "आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं" कोई आभार नहीं.
जवाब देंहटाएंभाई दुःख हो रहा है आप जा रहे है पर जबलपुर के बलागर्स के ब्लॉग को फुरसत में देखते रहना .
जवाब देंहटाएंहा हा हा .......नर्मदे हर..... हर हर महादेव.....
आईला .तुम भी चढेला है......भाई उधर रात को बहुत अँधेरा रहता है ओर मछर भी काटते है...ऐसा पिछले बीमार लोगो ने कहा है.......तुम्हारी मौसी कहाँ है ?मौसी जी........!
जवाब देंहटाएंpachaasvi tippni -ab to na jaa ya vahan kaun hae tera musafir
जवाब देंहटाएंये क्या बड़े भाई कहाँ चल दिए ......
जवाब देंहटाएंऔर ये वक्त की मांग आप ने सुनी कैसे ...हम तो ये ही जानते हैं की समय बोलता ही नही ...
पर आप ने सुनी तो बधाई ....पर वापस आओ ....ये वक्त की नही हम सब बोलने वालों की आवाज है..
जै हो महाराज......... आपका भी जवाब नहीं......
जवाब देंहटाएंजब पहुंच जाओ विवेक
जवाब देंहटाएंनेट के पास नेटिस्तान के पार
तो एक फोन मुझे भी कर देना
या देना ईमेल भेज
मैं भी आ रहा हूं
साथ तेरा मैं न छड्डांगा
भाई ५२ टिपणी हो गई. रात के १० बजकर ५० मिनट हो गये यार. अब उतर आओ, उपर टंकी पर मच्छर काट लेंगे, वाईरल बुखार का सीजन चल रहा है. दिन भर के भूखे प्यासे होगे. भतिजे , बस एक बार उतर आओ, खाना पीना करके फ़िर चढ जाना. वर्ना मैं लठ्ठ ले कर आरहा हूं उपर.
जवाब देंहटाएंसूबह तक उतरने का समाचार मिल जाना चाहिये. अब बहुत हो चुका बस.
रामराम.
जवाब देंहटाएंअले अले अले,
क्या हुआ गपोलू को..
किछी ने कुथ कहा है क्या ?
जा राजा बेटा, ब्लागिंग कर.. हम उछकी पिट्टी कलेंगे !
नईंतो तुम्हाली पिट्टी हो जायेगी ।
अच्छे बच्चे गुच्छा नईं कलते, हाँ ?
अरे यह कया हो रहा है भाई, मुझे तो इस खबर का पता भी नही चला हमारा बीरु ठर्रा पी कर टंकी पर चढ गया, अरे बीरु, भाई जल्दी से नीचे उतर आओ , नीचे भीड भी बडती जा रही है, ओए मोसी भी तेयार हो गई शादी के लिये, ओर भईया आज कल बन्द्रो ने भी खुब उतपात मचा रखा है,इस लिये भईय शाम होने से पहले उतर लो टंकी से कही कोई बंदर चिपट गया तो.
जवाब देंहटाएंओर भाईया तुम्हारे बिना रोनक कोन लगायेगा, देखो सभी मना रहे है, किसी एक की गलती से तुम सब के दिल केसे तोड सकते हो, अरे जरा बच के भाई इस टंकी पर काई भी बहुत जमी है, कही फ़िसल बिसल गये तो... चलो नीचे आ जाओ , ओर हम सब की इज्जत रख लो.
रखोगे ना सब की इज्जत.
तारीख बदल गई और मैं 57 वां हो गया। यदि सचमुच में कोई निजी कारण हैं तब तो कुछ नहीं कहना। किन्तु यदि 'किसी ने कुछ' कह दिया हो और आपका अहम् आहत हो गया हो तो सबकी ओर से मैं क्षमा याचना करता हूं। बोलना भले ही कुछ मत लेकिन महफिल में बने रहो।
जवाब देंहटाएंआपकी जगह मैं होता तो यह सब केवल इसलिए कतरा कि पता चल जाए कि मेरे जाने में कितने इंटरेस्टेड हैं और मेरे बने रहने में कितने।
टिप्पणियों के सठियाने पहले, मैं भी आ पहुंचा!
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर शायद ही कभी टिप्पणी की हो, लेकिन इस बार रोक ना पाया.
बस एक विनम्र आग्रह: लौट आइये.
अरे क्या हो गया, हम लोगों से क्या खता हो गयी।
जवाब देंहटाएंमिले थे कभी हम इस अजनबी शहर में...
जवाब देंहटाएंचले हम संग -संग अनजाने सफ़र...
पलकों में थे सपने,दिल में एक उमंग थी...
रास्ता था मुश्किल,ख़ुद से हर पल एक नयी जंग थी...
अब तो बस फिर यादें ही रह जाएँगी...
कुछ बातें रह जाएगी,वो रातें रह जाएँगी...
उन्ही रातों में फिर से सोने को जी चाहता है...
आ जाओ लौट के ये दिल चाहता है ...
.............आप के आने के इंतजार में ................
Kahan chale Bhai...!!
जवाब देंहटाएंअरे कितनी चढा ली अभी तक नशा नही उतरा,अरे आ जाओ भाई, ज्यादा गुस्सा भी अच्छा नही
जवाब देंहटाएंका भाय केतना टाइम लगावत हया लौटेमेs . अब त् आई जा हो
जवाब देंहटाएं........इन्तहा हो गई इंतजार की ..................
-यह पोस्ट पढ़ ली. अच्छी लगी(टिप्पणियों में प्रायः यही कहा जाता है). अगली कब आ रही है ?
जवाब देंहटाएंअभी आए हो, आकर के दामन सम्भाला है.
तुम्हारी जाऊं जाऊं ने हमारा दम निकाला है.
भतीजे इब्बी तक उतरया कोनी? के बात सै? आजा भाई नीचे उतर आ.
जवाब देंहटाएंटंकी भी घणी कमजोर हो गई होगी.
घणा इन्तजार कर रे सैं.
रामराम.
ग़लत समय पर रणछोड़ बनना ,ये आपके विवेक की बात हो ही नहीं सकती ?
जवाब देंहटाएं- विजय
कुल पांच दिनों बाद मैं पहुंचा हूं यहां. इतने दिन दूर रहा, फ़िर आया तो यह धमाका सुना. क्या बात हो गयी? हम तो आपकी ही कमेंट से, और आपके दिये गये हवालों से जाने पहचाने गये. सोच लो ना फ़िर से आप.
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा में पढ़ा था लेकिन पोस्ट आज ही देख पाया. क्या बात हुई है, ये मुझे पता नहीं. लेकिन भाई ऐसा निर्णय ठीक नहीं है. वापस आओ. और फ़िर बिना गुरु को बताये, ये करना ठीक नहीं है.
जवाब देंहटाएंघंटे , दिन बीतते-बीतते अब एक सप्ताह होने चला है , अब तो इंतजार बहुत ज्यादा हो गया है .
जवाब देंहटाएंआ जाओ लौट के , अब हर ओर खाली-खाली सा लगाने लगा है .
आ लौट आ जा विवेक तुझे तेरे मित्र बुलाते है ,यहाँ सूना पढ़ा रे ब्लोगिग.
तुझे तेरे मित्र बुलाते हैं ,आ लौट के आजा विवेक.
विवेक भाई क्या हो गया . कभी कभी लिखते लिखते आदमी थक जाता है . तो ठीक है आप थोड़ा सा आराम कर ले और फिर तैयार हो गएँ एक नए उर्जा के साथ . घर परिवार में सब ठीक तो है ना ?
जवाब देंहटाएंमुझे पहले ही पता था कि अब आपका विकेट गिरने वाला है। जब सारी सारी रात कंपूटर पर बैठकर टाइप करेंगें तो मैडम तो नाराज होएंगी न। चलिए पैचअप कर लीजिए। एक समय बांध लीजिए और कंपूटर से नाता जोडे रहिए।
जवाब देंहटाएंमान भी जाओ प्यारे जिन्दा कौमे ज्यादा इंतज़ार नही कराती
जवाब देंहटाएंmujhe to kuch samajh hi nahi aa raha.....kya ho raha raha hai? aap ham logo ko yun nahi chod sakte....pleaseeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee
जवाब देंहटाएंchod ko yoon likhiye bhaai "chhod"
जवाब देंहटाएंकुछ दिनों का विश्राम है तो जरुर ब्रेक लें..लेकिन ब्लॉग पर जल्दी वापस आईये..आप के लिखने का अंदाज़ सब से जुदा है.
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंविवेक ज़ी
जवाब देंहटाएंविवेक से काम लेँ
और जिसकी गल्ती हो उसे बतायेँ
दो लाइनेँ याद आ रही हैँ:
ज़रा ठहरो तुम्हे सुन्न पडेगी दास्ताँ मेरी
अभी तक बेज़ुबाँ हो के रही है ये ज़ुबाँ मेरी
हमाओ नाम सुई डाल लियो
जवाब देंहटाएंअपनी लिस्ट में भैया जी
हम हेमराज नामदेव् "राज़ सागरी "
कहात हैं
१) चले थे साथ मिलकर चलेगें साथ मिलकर तुम्हें लौटना पडेगा हम सब की आवाज सुनकर......!
जवाब देंहटाएं२)ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना....!
३)आ लौट के आजा मेरे मीत तुझे तेरे मीत बुलाते हैं.....!
४)आजा रे...मैं तो कब से खडी टंकी के नीचे....!
५)आ....जा..तुझको पुकारे तेरे मीत आजा हम तो मिटे हैं तेरी चाह में......!
अब तो आ ही जाना चाहिए विवेक जी....
हा हा ...भाईयो और बहनो इस हकीर ने पाँच गीतों से बीच में भाँजी मार ली और वीरू टंकी
जवाब देंहटाएंसे नीचे उतर आया है अभी उसकी थोडी दवा दारू चल रही है जल्द ही उन्होंने ब्लाग पर
आने की बात की है लिजिए उन्हीं के शब्द सुनिए---
बालक को शर्मिन्दा न
> करें . जल्द ही आदेश का
> पालन होगा :)
क्या हो गया भाई क्यों जा रहे हो कहाँ जा रहे हो मत जाओ लौट आओ
जवाब देंहटाएंयह हमरे पीछे क्या -क्या होता रहता है ..पर स्थति सोचनीय है कारन की आप अब तक नही लौटे ..जल्दी वापस आइये .
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंभतीजे को परिवार सहित होली की हार्दिक बधाई और घणी रामराम.
जवाब देंहटाएंहोली की अनंत असीम व रंगीन शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंविवेक जी, ये क्या कह रहे हो?
जवाब देंहटाएंमुझे तो अभी अभी पता चला है. और चार तारीख के बाद से लिखा भी नहीं. यार ऐसा मत करो, समय की कमी तो सभी को हो ही जाती है.
मुझे देखो ना, कंपनी में नेट बंद कर दिया तो क्या मैंने ब्लोगिंग छोड़ दी? अब तो हप्ते भर में एक पोस्ट डालता हूँ.
इसका मुझे जवाब मिलना चाहिए, नहीं तो मैं भी तुम्हारे रस्ते पर चल दूंगा. आखिर मुझे भी एक सपोर्टर मिल गया. जवाब मेल कर देना जल्दी से जल्दी.
दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे मेरे ब्लॉग पर जाकर देखें !!
जवाब देंहटाएंवाह वाह विवेक जी आप कब आये मुझे पता ही नहीं चला कई बार आपके घर ताला देख कर लौट जाना पडा आज् किसी ब्लोग्गेर की गली मे आपको देख ही लिया बस झट से पहुँच गयी क्या कोई खुशखबरी ले कर आये हैं तो मुँह तो मीठा करवा दीजिये? शुभकामनायें एव बधाई
जवाब देंहटाएं