टाउनशिप में बंदर आया
उछला, कूदा वह लहराया
चढ़ा बालकोनी के ऊपर
जमा हो गए बच्चे भू पर
खीं खीं करके उन्हें डराया
कूद सड़क पर नीचे आया
सिर पर पैर रखे वे दौड़े
लाल हुए उन सबके म्हौंड़े
बंदर फूला नहीं समाया
अहंकार सा उसपर छाया
उसने टाउनशिप था जीता
सिद्ध हुआ हर योद्धा रीता
सबको दौड़ा दौड़ा मारा
सीना फूल हुआ गुब्बारा
उसने निज प्रतिभा पहचानी
विश्वविजय करने की ठानी
बढ़ा विजय मद में हो चूर
एक गाँव था थोड़ी दूर
सोचा इसको भी निपटा दूँ
इन बच्चों को भी दौड़ा लूँ
जैसे ही वह घुसा गाँव में
पीपल के पेड़ की छाँव में
खेल रहे थे बालक वीर
देख उसे हो उठे अधीर
भूल गये सब खेल निराले
दौड़ पड़े सब हो मतवाले
जिसके हाथ लगा जो लेकर
डण्डा, जूता, चप्पल, कंकड़
साथ हुए कुत्ते भी उनके
बंदर चला शोर यह सुनके
कभी पेड़ पर कभी गली में
दौड़ा कभी तेज फिर धीमे
फूली साँस उठा गिर गिरकर
जान बचाने को था तत्पर
सीना फूल हुआ गुब्बारा
उड़ा हवा में घमण्ड सारा
कितने पत्थर पड़े न जाने
गर्मी लगी शरीर तपाने
जैसे तैसे निकला बाहर
भागा ज्यों पीछे हो नाहर
चेहरे सब बच्चों के लाल
सबके किन्तु उठे थे भाल
घुसपैठिया गया था हार
इनको मिला विजय उपहार
बंदर का घमण्ड था गायब
"आज बचाया तूने या रब !"
पूर्ण हुए अरमान न मेरे
मर्दों हेतु मर्द बहुतेरे
मस्त..
जवाब देंहटाएंअतीसुन्दर !
जवाब देंहटाएंइस्लाम आतंक ? या आदर्श यहाँ पढ़ें
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएं‘बंदर का घमण्ड था गायब’
जवाब देंहटाएंघमण्ड था या झंडू बाम लगा सिरदर्द :)
बन्दर को गांव वाले छोरों को हाथ भी कहां लगाने दे रहे हैं. बन्दर की बजाय छोरों के लिये जाल ला रहे हैं...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंसटीक!
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है! बहुत बढ़िया....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
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