शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

लगवा/कटवा दो इण्टरनेट पिया

कहते हैं दूर के ढोल सुहावने लगते हैं  । हम इस कहावत के सत्य होने की गारण्टी  नहीं ले सकते । कहा भी गया है कि फैशन के इस युग में गारण्टी की उम्मीद न करें । अब तो वारण्टी भी मुश्किल से मिलती है । वह भी शर्तें लागू करके मिलती है  और सामान खराब होने से पूर्व ही या तो किसी न किसी तरह समाप्त हो जाती है  या दुकानदार भूल जाता है । अगर किसी भले आदमी को याद भी है तो फिर से सामान मरम्मत करने के बाद वारण्टी की अवधि में जितने दिन बचे हैं उतने दिन की ही वारण्टी मिलती है । मानो सामान हमने किराए पर लिया हो । भई हमारा तो मानना  है कि वारण्टी पीरियड में यदि सामान खराब होता है तो मरम्मत के बाद वहीं से  फ्रेश वारण्टी चालू होनी चाहिए ।
इसे कहते हैं विषय से भटकना । आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास । बताने आये थे कि किसी चीज के मिलने से पहले और मिलने के बाद उसके प्रति हमारे दृष्टिकोण में कितना  फ़र्क आ जाता है । यही हमने इन्टरनेट के बारे में विचार किया है । पेशे खिदमत हैं दो कविताएं ।    


लगवा दो इण्टरनेट पिया


लगवा दो इण्टरनेट पिया !

अब और न टालमटोल करो
बस बहुत हो गया वेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया ॥

युग यह ग्लोबलाइजेशन का
तोड़ दायरा अब आँगन का
खोलूँ दुनिया का गेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया

अपनी कहूँ, सुनूँ औरों की
जानूँ बातें सब दौरों की
करलूँ सखियों संग चैट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया

डायल-अप या ब्रॉडबैण्ड हो
नया कि फिर सेकण्ड-हैण्ड हो
या हो जुगाड़ का सेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया

तंगी में लेकर कर्ज़ करो
पर पूरा अपना फ़र्ज़ करो
बस अब न करो तुम लेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया

अब और न टालमटोल करो
बस बहुत हो गया वेट पिया
लगवा दो इण्टरनेट पिया ॥




कटवा दो इण्टरनेट पिया


कटवा दो इण्टरनेट पिया !

अब सहा न जाता और अधिक
तुम इसको रखो समेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

खोए ऐसे कम्प्यूटर में
भूले बाहर हो या घर में
हो वाकई तुसी ग्रेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

बर्वाद वक्त इस पर न करो
कैलोरी कुछ तो बर्न करो
तुम बनो न मोटू सेठ पिया
कटवा दो इन्टरनेट पिया

तुम समय न देते मुझको तो
कुछ ध्यान बालकों पर तो दो
हुई शिक्षा मटियामेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

ये चैटिंग- फैटिंग बन्द करो
अब जोशे जवानी मन्द करो
तुम अब न तलाशो डेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

अब सहा न जाता और अधिक
तुम इसको रखो समेट पिया
कटवा दो इण्टरनेट पिया

12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह !!
    लगवा/कटवा दो इण्टरनेट पिया !!
    बहुत खूब !!

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  2. क्या बात है.. दुखती रग पर हाथ धर डाला आपने तो..

    बर्वाद वक्त इस पर न करो
    कैलोरी कुछ तो बर्न करो
    तुम बनो न मोटू सेठ पिया
    कटवा दो इन्टरनेट पिया

    ये तो मस्त ही है..

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  3. वार्रंटी का हमारा भी अनुभव है. सामान बदल जाता है. परन्तु उस नए माल की कोई वार्रंटी नहीं रहती. दोनों ही कवितायें अपनी बात सक्षमता से कह गयीं.

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  4. दुनिया कितनी बढ़ती जाए
    घर बैठ लिखे पढ़ती जाए
    मैं बना रही अमलेट पिया
    लगवा दो इंटरनेट पिया

    ***:(:(:( ***

    करवट बदलूँ, आखें मींचू
    अब कितनी बार तुम्हें खींचू
    ब्लॉगिंग करते पगलेट पिया
    कटवा दो इंटरनेट पिया

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  5. कल कटा वा दुंगा विवेक भाई का इंटर्नेट.... फ़िर मत कहना छॊटा सा काम नही किया:)

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  6. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

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  7. हा हा हा दोनों ही कविताएँ बहुत मज़ेदार है.....धन्यवाद !
    बूढी पथराई आँखें .....रानीविशाल

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  8. गारेंटी/वारेंटी से बढिया वो तारा * होता है जो उनके सिर पर दमकता रहता है... आखिर वही तो घुंडी होती है :)

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  9. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

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