समाचार हिन्दी चिट्ठों के सुनिए आप लगाकर ध्यान ।
रद्दी कविता प्रस्तुत करते पकड़े शिवकुमार ने ज्ञान ।।
आर्थिक मंदी शुरू हुई के ? पूछें ताऊ देउ बताय ।
चिडिया गदही पुकारती थी कैसा कलयुग आया हाय ॥
फिर हाज़िर एक चित्रपहेली अरविंद मिश्रा ने की आज ।
सरिताजी ने खोला आखिर छलिया चाँद छलनी का राज ।।
मार्क्सवाद आपराधिक है घोस्टबस्टर के सुनें विचार ।
जागा मगर प्रेत इसका ये कहें द्विवेदी जी इस बार ॥
फुटकर सोच पाण्डेय जी की बढा ब्लॉग पर यातायात ।
मिला खज़ाना अलमारी में वडनेरकरजी की क्या बात ॥
मॉर्डन नारी बनना हो तो अचूक नुस्खा है तैयार ।
अगर डराना है दोस्तों को है षडयन्त्र यहाँ तैयार ॥
मनविंदर भिंभर कहती हैं वे रब तेरा भला करे ।
यहाँ नीलिमा सुना रही है मृत्युगीत अब कौन मरे ॥
छणिकाएं जो पढनी हों तो नीशू ने की हैं तैयार ।
किन्तु राधिका बुधकर का यह है मार्मिक आरोही प्यार ! ॥
बहुत खूब चिटठा चर्चा वह भी कविता में शायद पहली बार
जवाब देंहटाएंbahut khunb . kya baat hai . vivek bahi bahut hi accha laga . likhte rahiye yun hi
जवाब देंहटाएंये तो काव्यमय चिठ्ठाचर्चा हो गई ! आईडिया जोरदार है ! बधाई और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रयास।
जवाब देंहटाएंकविता के रूप में चिटठा चर्चा रोचक लगी . विवेक जी बधाई .
जवाब देंहटाएंye angle to wakai naya hai aur rochak bhee, lage rahiye shaayad kisi din hamaaraa bhee nambar aaye.
जवाब देंहटाएंमजा आ गया भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कवितमय चर्चा..मुख्य मंच से ही कर देते मेरे भाई.
जवाब देंहटाएंये शानदार चर्चा है ! इस कविता को पढ़ कर मजा आया !
जवाब देंहटाएंचिठ्ठा-चर्चा का काव्य संस्करण बढ़िया और पेटेण्ट कराने योग्य है। जमाये सहिये।
जवाब देंहटाएंचर्चा पढ़कर आनन्द आ गया। अब निकलते हैं चिठ्ठा पढ़ने। जमाए रहिए जी।
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