संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
शनिवार, सितंबर 04, 2010
दीजिए जरा इधर भी कान
पिता ने लाखों किये प्रयास
न देखे बाहर का संसार
किन्तु विधि को जो था मंजूर
धरा पर होता वही जरूर
हुआ भी ; निकले राजकुमार
देखने बाहर का संसार
सब तरफ खुशियों का माहौल
झूठ की जय सत्य का मखौल
टिक सका अधिक न किन्तु असत्य
सामने आना ही था सत्य
हुआ उनको गहरा संताप
सभी कुछ छोड़ गए चुपचाप
विश्व की खातिर झेले कष्ट
हो सका तब जाकर स्पष्ट
दुखों का कारण केवल मोह
उपजता आसक्ति से बिछोह
दिया जनता को यह उपदेश
शांति फैलाई देश-विदेश
आज वे स्वयं तो नहीं पास
किन्तु तुमसे सबको है आस
पुत्र तुम यशोधरा के नहीं
हो चला सबको लेकिन यकीं
नाम राहुल न तुम्हारा व्यर्थ
शब्द गांधी का भी है अर्थ
इधर आतंकवाद से युद्ध
उधर नक्सलवादी अति क्रुद्ध
गरीबी हो या भ्रष्टाचार
आम जन ही बेबस लाचार
अपाहिज नेताओं का लक्ष्य
स्वार्थ ही बना परोक्ष-प्रत्यक्ष
ऐंठते सीमाओं के कान
बढ़ रहे चीन-ओ-पाकिस्तान
लगाई थी जिनसे उम्मीद
सो रहे हैं सब सुख की नींद
दीजिए जरा इधर भी कान
सँभालें कृपया जल्द कमान
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दीजिए जरा इधर भी कान
जवाब देंहटाएंसँभालें कृपया जल्द कमान
-सच्ची कांग्रेसी कविता.
राहुल भईया जिन्दाबाद...
हमारा नेता कैसा हो..
राहुल भैया हैसा हो..
-एक सच्चा कांग्रेसी सिपाही :)
कांग्रेस की टिक्कट चाहने वाला कोई न कोई प्रापर्टी डीलर, इस गज्जल को उड़ाकर अपनी और राहुल गाँधी की फोटुओं के साथ उन बड़े बड़े पोस्टरों पर चिपकायेगा जो दिल्ली एअरपोर्ट से जनपथ तक की सड़क पर लगे बिजली के खम्भों पर टंगे रहते हैं... शर्त लगा लो.
जवाब देंहटाएंटिकट का इंतजाम करे रहे लगता है...
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