रविवार, अगस्त 30, 2009

जरूरी है सड़क पर आना

एक आदमी को सड़क के किनारे मल-त्याग करने की आदत थी । यह कोई बहुत अनहोनी बात नहीं । ऐसा अक्सर हो जाता है । पर तथाकथित सभ्य लोग इस दृश्य से आँखें बचाकर निकलने के सिवा करें भी तो क्या ?

लेकिन एक स्वयंभू समाज सुधारक से यह देखा नहीं जाता था । एक दिन उन्होंने चलते-चलते बोल ही दिया, " भाई क्यों सड़क को गंदा करते हो ? आखिर साफ-सफाई भी तो कोई चीज है । "

इस पर पप्पू भड़क गया । उसे लगा उसके आत्मसम्मान पर प्रहार किया गया है । बोला, "मल-त्याग करना मेरा निजी मामला है । आपको इसमें टाँग अड़ाने की आवश्यकता नहीं । वह भी तब जब आस-पास खेतों में और भी लोग सुन रहे हों । आपने सीधे-सीधे मेरे आत्मसम्मान को आहत किया है । क्या जिसके घर में टॉयलेट न हो उसको मल-त्याग करने का अधिकार नहीं ? आप साफ-सफाई की बात किसी और को सिखाना । मैं अस्पताल में सफाई कर्मचारी हूँ । "

इस पर खेतों में काम कर रहे कुछ मौजी टाइप लोग शोर सुन कर घटना स्थल पर आ गए । उनके लिए कदाचित मौज लेने का इससे अच्छा अवसर कई साल में एक बार आता होगा । मौज लेते हुए बोले, " हाँ भाई सही तो कह रहे हो । जरूरी है सड़क पर आना । चाहे मल-त्याग करने के लिए आया जाय या फिर टहलने के लिए । इन बुजुर्ग लोगों की तो आदत ही होती है टोकाटोकी करने की । आप नित्य सड़क पर आते रहें । जो होगा देखा जायेगा ।"

इतने में मौज लेने वाले और भी लोग आ गये । एक साहब बोले, " अच्छा ? आप अस्पताल में हो ? हमने कभी देखा नहीं आपको उधर । पर वहाँ की गंदगी देखकर आपकी बात की पुष्टि अवश्य होती है । "

एक आवाज आयी, " एक तो चोरी ऊपर से सीना-जोरी ! अब तो घोर कलयुग आ गया जी । शिव शिव । "
जितने मुँह उतनी बातें होने लगीं ।

अब पप्पू बोला, " आप लोग यह न समझें कि मेरे घर में टॉयलेट नहीं । मैं तो उन लोगों के समर्थन में यहाँ मल-त्याग करता हूँ जो अपने घर में टॉयलेट नहीं बनवा सकते । क्या गरीब लोगों का समर्थन करना कोई गलत बात है ?" पप्पू ने बात को घुमाव देने की पूरी कोशिश की ।

इतने में वहाँ एक रैली के बराबर भीड़ जमा हो चुकी थी । प्रयाग तक के विद्वान आ गए थे, बहस का निर्णय करने । किसी ने पूछा, " भाई क्या हुआ ?" बस प्रश्न करने की देर थी । उत्तर देने वाले तो पहले से ही लालायित थे कि कोई पूछे तो हम बताएँ । एक शरारती तुरंत सबके सामने घटना की पुनरावृत्ति करके बताने लगा । उसे जैसे-तैसे शांत किया गया ।
जिस शरारती को वहाँ बताने का मौका न मिला उसने चौपाल पर जाकर इसे करके दिखाया । उसे सराहना भी मिली ।

दूसरे दिन सुबह-सुबह पप्पू को कान पर जनेऊ लटकाकर लोटा लिए खेतों की ओर जाते देखा गया । होठों पर मंद मंद मुस्कान तैर रही थी ।

31 टिप्‍पणियां:

  1. समर्थन का अपना अपना तरीका होता है. पप्पू ने भी किसी का समर्थन किया कम से कम उसे पता तो था कि वह किसका समर्थन कर रहा है. मैने तो ऐसे समर्थक भी देखे है जो समर्थन तो करते है पर उन्हे यह पता ही नही होता कि समर्थन किसका कर रहे है और समर्थन का मुद्दा क्या है!!.

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  2. पप्पू के अन्दर ब्लॉगर बनने के गुण हैं. उन्हें अपना ब्लॉग बना लेना चाहिए. जो होगा देखा जाएगा....:-)

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  3. पप्पू से लोग बड़ी जल्दी हार मान लिये।

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  4. पप्पूओं की क्मी नही है इस देश में। हर गली,हर मुहल्ल्ले,हर गांव और हर शहर मे मिल जायेंगे।

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  5. वाह!
    … ना समझे वो अनाड़ी है :-)

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  6. हा हा हा इस तरह के कई वाकिये सामने से गुजर जाते हैं पर पप्पू कभी सुधरता नहीं। लाजबाब...

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  7. पता नहीं..पप्पू की देखा-देखी..कौन कौन लोटा उठा के ..जाता है..हमको तो पूरा यकीन है ..कि सडकें हमेशा की तरह सजती रहेंगी..

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  8. देखें इस विवेक पूर्ण आलेख को देख कर ..कित्ते पप्पू..लोटा का उपयोग शुरू कर देते हैं..वैसे हमें ..पूरा यकीन है कि आपके यूं भटकाने से कुछ नहीं होने वाला सडकें हमेशा की तरह सजती रहेंगी...

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  9. भाई हम आजाद देश के आजाद नागरिक है, हमे सब कुछ करने की आजादी चाहिये पप्पू ने भी यही किया, अभी रिश्वत खाना, घुस खाना, नंगे बदन यह सब हमारी आजादी का ही एक स्वरुप है, हमारी मर्जी हम कुछ भी करे, पप्पू के समर्थन मै मिडिया भी आ सकता है..

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  10. भाई, मैंने सिर्फ इस पोस्ट को पढ़कर टिप्पणी लिखी है. बाद में मुझे लगा कि यह एक छायावादी पोस्ट है. इसलिए मैं अपनी टिप्पणी वापस लेता हूँ. यह छायावादी पोस्ट की छाया जहाँ से उभरी है, उस बात के बारे में जानकारी नहीं थी.

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  11. छाया में बैठकर ही पड़नी पड़ेगी.. यहाँ बहुत धुप है..

    वैसे पप्पू का क्या है.. आज इसका समर्थन किया कल उसका कर देगा.. लोग इक्कठे होते रहेंगे.. चौपालों पर टाइम पास होता रहेगा.. खेतो से निकलकर लोग मौज लेते रहेंगे.. ये तो जीवन चक्र है.. चलता रहेगा..

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  12. वो चला तीर..कि निशाने पर!!

    वैसे आप नित्य सड़क पर आते रहें..जो होगा देखा जायेगा :)

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  13. ये पप्पु बडा शरारती है। एक दिन मैंने कहा था कि मल करते समय गन्ना नहीं चबाते। उसने भन्ना कर कहा- मेरी मरज़ी। मैं मल करते समय खाऊं या उसमें डुबा कर!" और गन्ना नीचे की ओर जाते देख मैं भाग निकला:)

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  14. कथा वाचन आप ने भी प्रारम्भ कर दिया !
    बधाई और शुभकामनाएँ।
    भाई कथा और कहानी में फर्क है। कहानी छायावादी प्रकार से लिखी जा सकती है लेकिन कथा तो बस एक शैली - किस्सागो वाली में कही जाती है। व्यंग्यार्थ और निहितार्थ वग़ैरह की मीमांसा श्रोता और कथ्थक दोनों करते हैं।
    कथा की प्रेरणा घटित से ही आती है। हम समझ रहे हैं। अपनी समझ को लंठ जन बताया नहीं करते। वैसे यहाँ मुआमला स्वस्पष्ट है।

    ... आज कल हमारी कॉलोनी वाले घूम घूम कर पार्क के किनारे खाली पड़े प्लॉटों में हगते बंगलादेशियों और मज़दूरों को हड़का रहे हैं। यह परम्परा मैंने ही शुरू की है . . .यह कथा नहीं व्यथा है। कुछ अधिक किसी दिन हो गया तो लंठ को कथा का सामान मिलेगा ही ;)

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  15. ये तो कुछ समझ में कम आई। लिटरेचर है क्या?!

    अच्छा हुआ, पप्पू सवर्ण बन गया।

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  16. काम की बात के लिये साधुवाद स्वीकारें...

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  17. भाई प्रयाग से जाने वाले विद्वान तो बनारस वाले उस्ताद की टेक पर ठेका जमाने पहुँच गये होंगे। दोनो शहरों में भाईचारा जो ठहरा।

    आपने जो कथा सुनाई है उसे पढ़कर उनका क्या होगा जो लोटा लेकर खेत में जा ही नही सकते?

    कुछ जीव ऐसे भी हैं जो साँझे और भिन्सारे (भोर में) समूह बनाकर सड़क किनारे ही निपटने के आदी हैं और लोटा वाला काम कुछ देर बाद घर आकर पूरा करते हैं।

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  18. यह कथा-आलेख पढ़कर एक ऊर्जा-जैसी चीज महसूस कर रहा हूं। विरोध के बिना कुछ भी नहीं बदलता, लेकिन हम सोचते हैं कि सबकुछ बैठे-बिठाये ठीक हो जायेगा। हमारे देश में सुर-असुर युद्ध की कहानी प्रचलित है, लेकिन हम समझते हैं कि सारे असुर अपने-आप सुधर जायेंगे। हम तो बस जी लें।
    सड़क पर तो हमें आना ही होगा, आज नहीं तो कल...

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  19. बहुत सटीक तीर चलाया है और निशाने पर भी लगा है मगर बहुतों को ये नहीं पता कि निशाना कौन है और तीर क्यों छोड़ा गया है, क्योकि जो बसह में शामिल नहीं हुए उनको पता ही नहीं होगा की बात किस सन्दर्भ को रख कर कही जा रही है

    पोस्ट पर आये कमेन्ट को देख कर भी यही लगता है

    वीनस केसरी

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  20. बहुत सटीक तीर चलाया है और निशाने पर भी लगा है मगर बहुतों को ये नहीं पता कि निशाना कौन है और तीर क्यों छोड़ा गया है, क्योकि जो बसह में शामिल नहीं हुए उनको पता ही नहीं होगा की बात किस सन्दर्भ को रख कर कही जा रही है

    पोस्ट पर आये कमेन्ट को देख कर भी यही लगता है

    वीनस केसरी

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  21. काहे पप्पू के पीछे पडे हो भाई ? यहा भी पप्पू कान्ट ......

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  22. सुना है पप्पू पास हो गया है,वो भी अव्वल दर्जे मे..:)

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  23. हम तो कुछो नहीं समझे भाई.....
    फिन बुड़बक बने है का...

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