मैंने जब से होश सँभाला स्वयं को बृजभाषामय वातावरण में पाया । खड़ी बोली हिन्दी तो वहाँ बस लिखने और पढ़ने के लिए है । यदि कोई बोलने की कोशिश भी करे तो धाराप्रवाह बोलना कठिन होता था । आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि बाहरी लोग ही 'क्या कू' बोलते अच्छे लगते हैं, या फिर ज्यादा पढ़े लिखे लोग । अगर कोई आम आदमी यह कोशिश करता तो मजाक होता था कि, " देखो तो, अंग्रेजी की टाँग को तोड़े ही दे रहा है ।" यदि गाँव का व्यक्ति शहर में जाकर बस गया है तो वह जब भी गाँव घूमने आये उसे गाँव की भाषा में ही बोलना चाहिए न कि अंग्रेजी फुर्रकनी चाहिए ऐसी आम धारणा है । अन्यथा कहा जाता है कि वह उड़ने लगा है । घमण्डी हो गया है । आदि आदि ।
मैं जब कभी किसी के बारे में सुनता कि अमुक व्यक्ति कई भाषाएं जानता है तो यही विचार आता कि कैसे वह किसी भाषा में बोलते समय अन्य भाषाओं के शब्दों को घालमेल होने से बचाता होगा । पर अब लगता है कि आदमी एक ऐसे रेडियो की तरह होता है जिसका बैण्ड स्वयमेव परिस्थिति के अनुरूप बदलता रहता है ।
ऑफिस में हों या बेटों से बात करें तो शहरी हिन्दी का बैण्ड, पत्नी से बात करें या गाँव में हों तो गाँव की अपनी प्यारी बृजभाषा का बैण्ड, अभी चेन्नई से किसी पुराने साथी का फोन आ जाए तो अंग्रेजी का बैण्ड अपने आप ही लग जाता है । पर जो बात बृजभाषा बैण्ड में होती है वह किसी और में कहाँ ? इसीलिए पत्नी को मैंने उसकी इच्छा के प्रतिकूल मुझसे बात करते समय बृजभाषा बैण्ड पर रहने को राजी किया हुआ है । इससे बड़ी शान्ति मिलती है । अन्यथा ऐसा लगता है जैसे मैं अभिनय करता जा रहा हूँ ।
यह तो हुई अपनी भाषा की बात । अब आते हैं हिन्दी दिवस पर । अब हिन्दी दिवस में अधिक देर नहीं बची । इसलिए मैं एक हिन्दी दिवस की कविता का पुन:ठेलन कर ही देता हूँ । झेलिए :
हिन्दी दिवस के अवसर पर
समारोह कार्यालय में था,
हिन्दी दिवस मनाना था ।
सभ्य समाज उपस्थित सब,
मर्दाना और जनाना था ।
एक-एक कर सब बोले,
सबने हिन्दी का यश गाया ।
हिन्दी ही सत्य कहा सबने,
अंग्रेजी तो है बस माया ।
साहब एक बढ़े आगे,
अपना कद ऊँचा करने में ।
"मिलती है अद्भुत शान्ति सदा ही,
हिन्दी भाषण करने में ।
चले गए अंग्रेज यहाँ से,
पर अंग्रेजी छोड़ गए ।
बुरा किया अंग्रेजों ने,
मिलकर भारत को तोड़ गए ।
किन्तु नहीं चिन्ता हमको,
हम मिलकर आगे जाएंगे ।
उत्थान करेंगे हिन्दी का,
हिन्दी में हँसेंगे, गाएंगे ।
अब बात करेंगे हिन्दी में,
हम सब अंग्रेजी छोड़ेंगे ।
जो अंग्रेजी में बोलेगा,
हम उससे नाता तोड़ेंगे ।"
सचमुच उनका कद उच्च हुआ,
करतल ध्वनि की हुँकार हुई ।
अंग्रेजी पडी रही नीचे,
तो हिन्दी सिंह सवार हुई ।
पर यह क्या सब कुछ बदल गया,
अनहोनी को तो होना था ।
बस चीफ बॉस का आना था,
हिन्दी को फिर से रोना था ।
आगमन चीफ का हुआ सभी ने,
उठकर गुड मॉर्निंग बोला ।
"मोर्निंग मॉर्निंग हाउ आर यू ?"
साहब ने गिरा दिया गोला ।
खड़े हुए जा माइक पर,
फिर हिन्दी की तारीफ करी ।
"ऑल ऑफ अस शुड यूज़ हिन्दी,
जस्ट लीव इंग्लिश यू डॉण्ट वरी ॥"
हिंदी दिवस पर बढ़िया ठेलन कर दिया !
जवाब देंहटाएंपर जो बात बृजभाषा बैण्ड में होती है वह किसी और में कहाँ ?
अपनी भाषा अपनी ही होती है ,मातर-भाषा का जबाब कहाँ ?
ऑल ऑफ अस शुड यूज़ हिन्दी,जस्ट लीव इंग्लिश यू डॉण्ट वरी
जवाब देंहटाएंभेरी गुड भेरी गुड !
"ऑफिस में हों या बेटों से बात करें तो शहरी हिन्दी का बैण्ड, पत्नी से बात करें या गाँव में हों तो गाँव की अपनी प्यारी बृजभाषा का बैण्ड, अभी चेन्नई से किसी पुराने साथी का फोन आ जाए तो अंग्रेजी का बैण्ड अपने आप ही लग जाता है । "
जवाब देंहटाएंवल्लाह! आफ टॊ ब्राडबैंड हो गए:)
आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.
जवाब देंहटाएंभाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.
"ऑल ऑफ अस शुड यूज़ हिन्दी,
जवाब देंहटाएंजस्ट लीव इंग्लिश यू डॉण्ट वरी ॥"
वेरी फन्नी लैंगवेज:)
हिन्दी दिवस पर कविता-ठेलन का आभार ।
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस के आयोजनों पर अच्छा व्यंग्य प्रस्तुत है इस कविता में ...
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ..!!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने और बड़े ही सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है! अच्छा व्यंग्य किया है कविता के मध्यम से! हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंhttp://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
बहुत बढिया. हिंदी दिवस की रामराम.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इसे कहते हैं कथनी और करनी का फर्क .. ब्लाग जगत में आज हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएं"ऑल ऑफ अस शुड यूज़ हिन्दी,
जवाब देंहटाएंजस्ट लीव इंग्लिश यू डॉण्ट वरी ॥"
majaa aayaa..:)
आप हिंदी की सेवा कर रहे हैं. आप निस्संदेह एक महान पूण्य कार्य कर रहे है. इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. लीजिये बधाई.
जवाब देंहटाएंआपने कविता के माध्यम से जो व्यंग किया है, उसके लिए 'एक्स्ट्रा' बधाई.
नहीं यह मेरी मंजिल...भतिजे..इस पोस्ट पर टिपणी सुविधा नही दीख रही है..क्या फ़िर टंकी पर चढ गये क्या?
जवाब देंहटाएंरामराम.
hey bhut accha likha ha tumne
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