जब कोई कार्य जल्दबाजी में उल्टा-सीधा कर दिया जाता है तो उसकी तुलना घास खोदने से की जाती है । लेकिन घास खोदना कोई साधारण काम नहीं जो हर कोई यूँ ही कर सके । यदि घास खोदने वाला इस फील्ड में नया है तो खुरपी घास की जड़ में न लगकर उस हाथ की उँगलियों को घायल कर सकती है जिससे घास को पकड़ा गया है । ऐसे में घास की बजाय उँगलियों की खुदाई होने से लेने के देने पड़ सकते हैं ।
घास खोदने से पूर्व कई बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है । घास खोदने में खुरपी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है । इसलिए सबसे पहले घर पर ही, प्रयोग की जाने वाली खुरपी की जाँच भली भाँति कर लेनी चाहिए ताकि बाद में पछताना न पड़े । खुरपी पर्याप्त पैनी हो, अगर हो सके तो घास का नमूना लेकर खुरपी से काटकर उसके पैनेपन की जाँच की जा सकती है । ध्यान रहे ऐसा करते समय खुरपी को अपने दायें हाथ से और घास को बायें हाथ से पकड़ें ( खब्बू लोग उल्टा समझें ) । यदि आपने खुरपी पहली बार ही देखी है तो बेहतर यही होगा कि किसी अनुभवी व्यक्ति से इसकी जानकारी ले ली जाय । खुरपी हत्थे पर अच्छी तरह कसी हो, यदि यह हत्थे पर ढीली होगी तो घास खोदते समय इस पर नियन्त्रण कर पाना उतना ही कठिन होगा । "खुरपी के नियन्त्रण में होने वाली कठिनाई हत्थे पर इसके ढीलेपन के समानुपाती होती है । " इसे खुरपी विषयक प्रथम नियम भी कहा जाता है ।
जब खुरपी की ओर से संतुष्ट हो लें तो उस स्थान की ओर प्रस्थान करें जहाँ घास खोदी जानी है । यहाँ पहुँचकर यूँ ही घास खोदने नहीं लग जाना है । कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व कई महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना आवश्यक है । सबसे महत्वपूर्ण मिट्टी की स्थिति होती है । यदि मिट्टी गीली है तो घास खोदने में आसानी रहेगी । " घास खोदने में होने वाली आसानी मिट्टी के गीलेपन और खुरपी के पैनेपन के समानुपाती होती है । " इसे खुरपी विषयक द्वितीय नियम भी कहा जाता है । यदि घास जमीन को जमीन को साफ करने के उद्देश्य से खोदी जा रही है तो मिट्टी का गीला होना अधिक लाभदायक होता है । किन्तु यदि घास खोदने का उद्देश्य भैंस आदि के लिये चारे की व्यवस्था करना है तो मिट्टी गीली न हो । ऐसे में खुरपी के पैनेपन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है ताकि घास के साथ मिट्टी न आये । यद्यपि इस प्रक्रिया में घास को खोदने की बजाय काटा जाता है तथापि यह शास्त्रों में इसका वर्णन घास खोदने के रूप में किया गया है ।
घास खोदने की ही एक विशेष परिस्थिति निराई होती है । इसमें किसी फसल विशेष में से घास को ऐसे ही निकाला जाता है जैसे खास आदमियों की सभा से आम आदमी को छाँट छाँटकर बाहर कर दिया जाता है ।
जब सारी बातों से अच्छी तरह परिचित हो जाएं तो घास खोदने का कार्य प्रभु का नाम लेकर आरम्भ किया जा सकता है । यदि घास खोदते समय असावधानीवश उँगली कट जाय तो घास को मुँह में अच्छी तरह चबाकर इसे घाव पर लगायें, तुरंत लाभ होगा । इसके बाद यदि आवश्यक लगे तो डॉक्टर से सम्पर्क करें ।
घास खोदते समय पसीना निकलता है । इस पसीने को चेहरे से न हटाया गया तो यह नमकीन पानी आँख में जाकर नुकसान पहुँचा सकता है । इससे बचने लिये चेहरे से पसीने को कोहनी से पोंछते रहना चाहिये । चेहरे से पसीना पोंछने के लिए गंदे हाथों का प्रयोग कदापि न करें ।
घास के बारे में हमारे समाज में कई मुहावरे और लोकोक्तियाँ प्रचलित हैं । विषय पर अच्छी पकड़ बनाने के लिए इनका ज्ञान होना अच्छा समझा जाता है ।
'घास खोदना' भी अपने आप में एक मुहावरा है जिसकी चर्चा हम लेख के प्रारम्भ में ही कर आये हैं । इसके अलावा कहा जाता है कि 'घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या ?' इस मुहावरे का जितना दुरुपयोग होता है उतना शायद ही किसी अन्य मुहावरे का होता होगा । इसका सहारा लेकर लोग धंधे के नाम पर अपने अच्छे से अच्छे मित्र और निकटतम रिश्तेदारों को ठगते देखे जाते हैं ।
कहा जाता है कि 'कुत्ता अगर घास खाने लगे तो दुनिया में सभी लोग कुत्ता पाल लेंगे' इस मुहावरे के द्वारा न केवल कुत्ते का घास से बेमेल रिश्ता जोड़ा गया है बल्कि यह भी जताया गया है कि आदमी को सुरक्षा की अपेक्षा पेट का खयाल रखना पड़ता है । सुरक्षा का खर्चा भूखे रहकर नहीं किया जा सकता । पर ध्यान देने की बात यह है कि कुत्ता बेचारा यदि घास खा सकता तो पालतू बनने आता ही क्यों ?
घास को आमतौर पर चरने और खोदने की वस्तु समझकर तिरस्कृत कर दिया जाता है । परन्तु इसकी महत्ता भी कम नहीं है । आजकल बड़े-बड़े शहरों में लोग सुबह-शाम पार्कों में कुछ समय बिताने के लिये तरसते देखे जाते हैं ऐसा इसीलिये होता है कि पार्क में हरी-हरी घास होती है जिस पर बैठने और लेटने का आनंद हज़ारों गद्दों से भी बढ़कर है । सुबह-सुबह ओस वाली घास पर नंगे पाँव टहलने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है ।
क्रिकेट से भी घास का गहरा रिश्ता है । क्रिकेट के खेल में मैदान पर घास होने या न होने का विशेष महत्व होता है और इससे भी अधिक महत्व पिच पर घास होने या न होने का होता है । घरेलू मैदान पर घास की स्थिति अपने अनुकूल और विपक्षी टीम के प्रतिकूल करके मैच जीतने की परम्परा क्रिकेट में पुरानी है । भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक मौका ऐसा भी आया जब पिच पर घास की स्थिति को लेकर हुए विवाद के कारण कप्तान ने चोट का बहाना करके मैच खेलने से ही इनकार कर दिया । और सचमुच भारत वह मैच हार गया था ।
एक प्रसिद्ध भारतीय तेज गेंदबाज के बारे में कहा जाता है कि वे बचपन में भैंसों को घास चराने जाते थे तो भैंस के सींगों को निशाना बनाने का अभ्यास करते करते उन्हें विकेट पर निशाना लगाना आ गया था ।
गायों को घास चराने तो हमारे मुरलीधर भगवान कृष्ण भी जाते थे । और महाराणा प्रताप के बारे में बताया जाता है कि जब वे चित्तौड़ के मुगलों के अधिकार में चले जाने के बाद अरावली की पहाड़ियों में परिवार सहित भटक रहे थे तो कई दिनों तक खाना न मिलने के बाद घास की ही रोटियाँ बनाई गयी थीं । इस रोटी को बालक अमर सिंह से हाथ से बिलाव छीन ले गया तो महाराणा एक क्षण के लिए देशभक्ति भूलकर अकबर की अधीनता के लिए तैयार हो गये थे ।
भगवान राम जब चौदह वर्ष के वनवास में रहे थे तो घास के बिछौने पर ही सोते थे । और भरत तो अयोध्या में होते हुए भी घास के बिछौने पर सोते थे । सीता जी का त्याग करने के बाद भी भगवान राम एक बार फिर घास के बिछौने पर सोने लगे थे ।
जिन गरीबों को हमारे नीति नियन्ता भूमि न दिला सके वे तमाम भूमिहीन आज भी गावँ में घास खोदकर जानवर पालते हैं या घास खोदकर शहर में जाकर बेच देते हैं । इसी तरह किसी प्रकार घास के सहारे उनका जीवन कट रहा है । अक्सर खेत की मेंड़ से खास खोदते समय इन्हें खेत मालिक के द्वारा अपमानित होना पड़ता है ।
घास से कागज भी बनता है । और आयुर्वेद दवाएं भी विशेष प्रकार की घास से तैयार की जाती हैं । कूलर में नमी बनाये रखने के लिये भी सूखी घास का उपयोग किया जाता है । खस नाम की घास से प्रसिद्ध खस की टट्टी बनायी जाती है ।
कुछ लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि बाँस भी एक प्रकार की घास ही है । अत: कोई यह न समझ बैठे कि घास तो बस पैरों तले रौंदने के लिए ही बनी है । बाँस भी घास है और घास भी खास है ।
घास खोदना विज्ञान है अथवा कला ? इस प्रश्न पर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद मौजूद हैं । इससे सिद्ध होता है कि यह विषय चाहे विज्ञान हो या फिर कला पर महत्वपूर्ण अवश्य है ।
चूँकि क्रमबद्ध सुव्यवस्थित ज्ञान को ही विज्ञान कहा जाता है । और विज्ञान के सिद्धान्त हर बार दुहराने पर समान परिणाम देते हैं । इस परिभाषा की कसौटी पर यदि घास खोदने की क्रिया को कसा जाता है तो हम पाते हैं कि घास खोदना एक क्रमबद्ध क्रिया है और इसमें घास को काटने के बाद उसे व्यवस्थित करके ढेरियों के रूप में रखा जाता है . अत: यह विषय विज्ञान होना चाहिये . लेकिन यह बार बार दुहराये जाए पर एक ही परिणाम नहीं देता है . और कभी कभी हाथ भी कट जाता है . अत: विद्वान इसे विज्ञान मानने के विरोध में हैं .
दूसरी ओर इसे कला मानने वालों की भी कमी नहीं है . इसमें चूँकि बुद्धिचातुर्य और हस्तकौशल का विशेष महत्व होता है व इसका उपयोग समाज की भलाई के लिए होता है . यदि भैंस के लिए घास नहीं खोदी जायेगी तो समाज को दूध तो मिलने से रहा . इस प्रकार घास खोदना सामाजिक भलाई है . अत: इसे कला की श्रेणी में रखे जाने को लेकर कुछ विद्वानों ने विशेष उत्साह दिखाया है .
लीजिये अभी कल ही तो प्रधानमंत्री जी ने कहा था की दूसरी हरित क्रांति लानी पड़ेगी.....और आपने इत्ता सिरीयसली ले लिया...मगर विवेक भाई ..घास खोदने से क्या होगा ..इससे बढ़िया तो पहाड़ न खोदें ..कम से कम चूहा तो निकलेगा..वैसे घास खोदना ..न कला है न विज्ञान ..ये फाइन आर्ट है ...बस जी हमें तो इत्ता ही पता है
जवाब देंहटाएंगिरते भूजल स्तर के चलते अब अनाज तो अपने देश में होगा नहीं, इसलिए कृषि विश्वविद्यालयों को घास खोदने की पढ़ाई पर ही जोर देना होगा।
जवाब देंहटाएंमेरा विश्वास है कि उस वक्त आपके इस ललित निबंध को सिलेबस में जरूर रखा जाएगा :)
बहुत मेहनत की है, घास खोदने में। वैसे खुरपी का इस्तेमाल खरपतवार के लिए किया जाता है। खेत में घास भी खरपतवार ही है। आज पता लगा कि घास खोदने के पहले उस का अच्छा प्रशिक्षण जरूरी है।
जवाब देंहटाएंबढियां घास और खुरपी चिंतन -क़ला के साथ विज्ञान का सम्पुट ! दर्शन शास्त्रिओं ने भी खुरपी चिंतन किया है और बताया है की खुरपी का हत्था ब्रह्म है और फलक जीव ! और इस तरह दोनों अलग अलग होकर भी एक हैं !
जवाब देंहटाएंदर्शनशास्त्र है.
जवाब देंहटाएंघास खोदने में इतनी ज्यादा मेहनत होती है , आज ही पता चला.....ये भी एक कला हुई ...हमे तो रोचक
जवाब देंहटाएंलगा ये विषय...
regards
.विवेक जी हमें तो घास खोदने का प्रयाप्त अनुभव है स्कूल के दिनों में स्कूल जाने से पहले गाय के लिए हमेशा घास खोद कर लानी होती थी | घास खोदते समय समय का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता था जैसे सुबह स्कूल जाते समय कहाँ से खोदनी है ताकि जल्द से जल्द ज्यादा घास इक्कठा की जा सके और फुरसत के क्षणों में ऐसी जगह से घास खोदी जाती थी जहाँ वह कम मात्रा में उपलब्ध होती थी | घर पर न पढने के लिए डांट नहीं पड़ती थी लेकिन यदि घास नहीं खोदी तो डांट से बचना असंभव था |
जवाब देंहटाएंऔर हाँ में तो घास खोदने को एक कला ही मानूंगा | हालाँकि इसे विज्ञान मानने का मन भी बहुत करता है लेकिन विज्ञान मानते ही कई विज्ञानियों को बुरा लगेगा कि घास खोदने जैसे तुच्छ कला भी यदि विज्ञान हो गयी तो विज्ञान का स्तर नहीं गिर जायेगा . ठीक उसी तरह जैसे विज्ञानी लोग ज्योतिष को विज्ञान कहने पर गरियाते है ऐसे मुर्ख विज्ञानियों को कौन समझाए कि तुम्हारी विज्ञान के पैदा होने से पहले ही ज्योतिष ने सभी ग्रहों की स्थिति ,चाल आदि की सभी जानकारियां हासिल कर इस शास्त्र की रचना की थी |
खैर मजा आ गया आपकी पोस्ट पढ़कर ! आज तो आपने पूरी घास पुराण ही लिख डाली |
जोधपुर स्थित मरू रुक्ष अनुसन्धान केंद्र में घास पर बहुत सारे शोध होते रहते है वहां एक विशेष प्रकार की सेवण घास को उगाने का किसानो को समुचित प्रशिक्षण भी दिया जाता है जोधपुर रहते समय मेने सुना था कि पूर्व वितमंत्री जसवंत सिंह के खेतो में भी इसी घास कि खेती कि जाती है |
जवाब देंहटाएंइससे घास का महत्त्व और ज्यादा समझा जा सकता है |
मरू रुक्ष अनुसन्धान केंद्र में अपने "आदि" के पिता रंजन जी ने भी कार्य किया है वे इस सेवण घास पर और प्रकाश डाल सकते है |
घास खोदना एक कलात्मक विज्ञान है जो बिना पढ़े लिखे लोग पढ़े लिखो की अपेक्षा ज्यादा अच्छी तरह से करते है
जवाब देंहटाएंघास खोदी ! आस खो दी ?
जवाब देंहटाएंमन्सूर अली हाश्मी
अब जो है सो है.
जवाब देंहटाएंघास जैसे विषय पर आपका ये शोध निबन्ध यहाँ बहुत से लोगों के काम आने वाला है:)
जवाब देंहटाएंवैसे हमारी दृ्ष्टि में तो घास खोदना पूर्णत: विज्ञान का विषय है:)
कलात्मक विज्ञान की धीरू जी की संज्ञा ज्यादा बेहतर है । बेहतरीन प्रविष्टि । आभार ।
जवाब देंहटाएंभाई हमने तो सारी उम्र घास ही खोदी है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपने तो अच्छी घास खोद दी और चमत्कार देखो.. खोदते खोदते.. कहां से कहां पहुच गये...
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत मेहनत की जाती है घास खोदने में :)
जवाब देंहटाएंकाफी महत्वपूर्ण जानकारी दे दी आपने ! इस ज्ञान बृष्टि के लिए हार्दिक धन्यवाद :-))
जवाब देंहटाएंआपकी सारी बातें और तर्क अपनी जगह सटीक हैं लेकिन एक बात शुरिऐ से बोले तो आरम्भै से खटक रही है। ऐसा सुना है हमने लोगों से कि घास , खोदी नहीं जाती , छीली जाती है। अगले घसियारा सम्मेलन में तनिक इस मुद्दे पर भी बातचीत कर ली जाये।
जवाब देंहटाएंsubah hi chitthacharcha me link dekhe the...par aane me itti der ho gyai kahe ki ghas khod rahe the.
जवाब देंहटाएंab dukh ho raha hai, pahle aana chahiye the, kamse kam thik se ghas to khod paate :)
ये घास खोदी है या घास के नीचे सुरंग ? कृपया ना कुछ खोदे सही सही व्याख्या करे :)
जवाब देंहटाएंघास खोदना एक कलात्मक टेक्नॉलॉजी है।
जवाब देंहटाएंblogging kala hai ya vigyaan...
जवाब देंहटाएंagar ye vigyaan hai to comment beshak kala hi hogi....
घास खोदना कड़ी मेहनत की बात है और उतना आसान नहीं! बहुत बढ़िया लगा! स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंघास खोदना विज्ञान है, न मानो तो मन्त्री जी से पूछ लो!
जवाब देंहटाएंGhas khodte khodte budhe ho gaye hai babu par kuchh mila nahi
जवाब देंहटाएंGhas khodte khodte budhe ho gaye hai babu par kuchh mila nahi
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