संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
गुरुवार, जून 25, 2009
मेरे प्यारे मानसून
पलक पाँवड़े बिछा रखे थे, इन आँखों में नींद न थी ।
आते आते रुक जाओगे, ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
यद्यपि पहली बार नहीं यह, जब तुमने मुँह मोड़ा है ।
मुझे याद है तुमने मेरा पहले भी दिल तोड़ा है ॥
उत्सव की सब तैयारी थी, जबकि दिवाली-ईद न थी ।
आते आते रुक जाओगे, ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
यूँ तो पानी मुझमें भी है, यह भी देन तुम्हारी है ।
तुम इतना तो मानो जनता, मेरी नहीं हमारी है ॥
छोड़ा साथ अचानक तुमने, पहले से ताकीद न थी ।
आते-आते रुक जाओगे ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
तुम तो कहकर अलग पड़ोगे,"मेरी कोई खता नहीं " ।
कितने लोग रहेंगे भूखे, शायद तुमको पता नहीं ॥
था सम्बन्ध सनातन अपना,बिक्री और खरीद न थी ।
आते-आते रुक जाओगे, ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
तुम आते हो और बरसकर खुद को हल्का करते हो ।
अनजाने ही सही, किन्तु मेरी भी पीड़ा हरते हो ॥
मेरे प्यारे मानसून कब, वसुधा तेरी मुरीद न थी ।
आते-आते रुक जाओगे ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
पलक पाँवड़े बिछा रखे थे, इन आँखों में नींद न थी ।
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बेदर्दी हमें सोता छोड़ ,सपने सारे तोड़,
जवाब देंहटाएंयूँ छोड़ जाओगे ,इक दिन ,उम्मीद न थी,
प्यार हमारा खींच लायेगे इक दिन वापस,
ऐसे तो उम्मीद..थी थी थी थी थी...
बताओ क्या कल ल्लोगे ....अब की गए न ..घर पहुँच जायेने..फिर झेलते रहना
बहुत बढिया विवेक भाई, देर आयद दुरुस्त आयद!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रवाहमय पीड़ा का इजहार. बधाई.
जवाब देंहटाएंसच मे थक गई हैं अब तो नज़रे भी आसमान को तक़ कर्।यंहा भगवाम जगन्नाथ की यात्रा निकली थी कल,बचपन से सुनते आ रहे है कि इस दिन पानी ज़रूर बरसता है और नही बरसे तो अकाल्।जगन्नाथ ना करे ऐसा हों।
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी चिट्ठी इन्द्र को अग्रेसित कर दे रहे है वो ही विचार कर उचित निर्णय लेगें.. आप चाहे तो RTI से अधिक जानकारी मांग सकते है.. :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन वापसी...स्वागत है विवेक भाई...
जवाब देंहटाएंआपकी वापसी ने मुग्ध किया । आभार ।
जवाब देंहटाएंतुम आते हो और बरसकर खुद को हल्का करते हो ।
जवाब देंहटाएंअनजाने ही सही, किन्तु मेरी भी पीड़ा हरते हो ॥
मेरे प्यारे मानसून कब, वसुधा तेरी मुरीद न थी ।
आते-आते रुक जाओगे ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
पलक पाँवड़े बिछा रखे थे, इन आँखों में नींद न थी ।
bahut hi khub..........lajawaab
इसे कहते हैं धमाके दार वापसी....बहुत खूब लिखा है...आज कालिदास होते तो मेघ दूत कैसे लिखते...मेघ ही नहीं तो दूत किसे बनाते...विचारणीय प्रश्न है...नहीं?
जवाब देंहटाएंनीरज
अरे विवेक जी हमारी नज़रें तो तुम्हेंदेखने को थक गयी थी एक पोस्ट डाल कर फिर गायब हो गयी अब पता चला कि इतनी बडिया कविता लिखने मे वक्त तो लगता ही बहुत खूब अगली पोस्ट किइ इन्तज़ार मान्सून से पहले ही रहेगी शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअरे उपर तो गलतियाँ बडी हो गयी भई सही कर लेना नहीं तो सब हंसेन्गे
जवाब देंहटाएंआप लिख ही नहीं रहें हैं, सशक्त लिख रहे हैं. आपकी हर पोस्ट नए जज्बे के साथ पाठकों का स्वागत कर रही है...यही क्रम बनायें रखें...बधाई !!
जवाब देंहटाएं___________________________________
"शब्द-शिखर" पर देखें- "सावन के बहाने कजरी के बोल"...और आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाएं !!
excellent
जवाब देंहटाएंमानसून के बहाने हालात का चित्रण बहुत सुंदर तरीके से किया है।
जवाब देंहटाएंअब आ गये हैं, तो जमे रहिएगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
तुम आते हो और बरसकर खुद को हल्का करते हो ।
जवाब देंहटाएंअनजाने ही सही, किन्तु मेरी भी पीड़ा हरते हो ॥
maansoon की इंतज़ार में rachi सुन्दर रचना............. सब को इंतज़ार है इसके आने की
बहुत सुन्दर कविता है. तुम्हारा कुछ लेकर आना हमेशा बहुत सुखद रहता है शिष्य.
जवाब देंहटाएंhaalat sachmuch kharaab hai is garmee me...nahaake ata hoon vaaps to lagta hai fir nahaa loon jaake
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जवाब देंहटाएंविवेक भाई, मेरा छाता नहीं बिक रहा है...
कुछ करो ना !
बहुत सुंदर, काश भगवान इस कविता को ही पढ कर बरसात कर दे.
जवाब देंहटाएंकिसी ईमान्दार नेता को भरी दोपहरी मै नंगे पांव हल चलवाओ बरसात जरुर आयेगी, सुना है राहुळ बाबा को गरीबो का बहुत फ़िर्क है....
वाह!
जवाब देंहटाएंआप लिख ही नहीं रहें हैं, सशक्त लिख रहे हैं. आपकी हर पोस्ट नए जज्बे के साथ पाठकों का स्वागत कर रही है...यही क्रम बनायें रखें...बधाई !!
___________________________________
"शब्द-शिखर" पर देखें- "सावन के बहाने कजरी के बोल"...और आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाएं !!
तुम आते हो और बरसकर खुद को हल्का करते हो ।
जवाब देंहटाएंअनजाने ही सही, किन्तु मेरी भी पीड़ा हरते हो ॥
मेरे प्यारे मानसून कब, वसुधा तेरी मुरीद न थी ।
आते-आते रुक जाओगे ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
पलक पाँवड़े बिछा रखे थे, इन आँखों में नींद न थी
बहुत ही बढिया रचना लिखी है.....आभार
अगर मानसून ब्लागर होता तो आकर टिपियाता इस कविता पर और लिखता- लो भैया हम आ गये बताओ ठहरने का क्या इंतजाम है?
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता। मन खुश हो गया सुबह-सुबह इसे पढ़कर और अभी शाम तक खुश हैं दुबारा पढ़कर। तीसरी बार पढ़ेंगे तो बतायेंगे नहीं! :)
वाह बहुत अच्छा लगा मानसून को इस तरह
जवाब देंहटाएंबुलाना, लुभाना विवेक भाई
- लावण्या
आते-आते रुक जाओगे ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
जवाब देंहटाएंखैर, अब आते रहिए:)
आते-आते तो रुक गया है जी. अब उम्मीद पे टिके हैं.
जवाब देंहटाएंआप अच्छा लिखते हैं ये कहने की जरुरत बची है क्या ? :)
घनन घनन घिर आये बदरा...
जवाब देंहटाएंआशा करते हैं कि अगले कुछ दिनों में आपकी ही तरह मानसून भी जोरदार तरीके से वापसी करे :)
जवाब देंहटाएंएक और गीत लिखें विवेक जी ..शायद अब भी आ जाय बेईमान मानसून !
जवाब देंहटाएंमुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ही शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
bahut hi badhiya..
जवाब देंहटाएंsach much ye mansun jitna late hota jaa raha hai.. bijali pani ki samsya badhti jaa rahi hai..
naa jaane kab barsange badra.. ???
पलक पाँवड़े बिछा रखे थे, इन आँखों में नींद न थी ।
जवाब देंहटाएंआते आते रुक जाओगे, ऐसी तो उम्मीद न थी ॥
बहुत ही सुन्दर भावों के साथ बेहतरीन रचना, बधाई ।
suswagtam
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं पता कि आपका प्रिय मेघ बरसेगा कि नहीं, बस इतनी चाह है कि आपकी कलम बरसती रहे.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता.
आप मेरे ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया दी, इसके लिए आभार. अपनी कृपादृष्टि बनाएं रखें.
जवाब देंहटाएंHame sadiyon maaf kartee rahee,prakrutee maa
जवाब देंहटाएंEk samay to aanaa tha, jab usne roothnaa thaa,
Aao! milke roke vinash uska, door nahee warna,
Kya mera, kya tera, sarvnaash pooree dharteekaa!!
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