हमारे समाज में गिरे हुए में लात मारने की परम्परा बहुत पुरानी है । महाभारत में गिरे हुए अभिमन्यु के सिर में जयद्रथ ने लात मारी थी । जरूरी नहीं कि लात मारने के लिए अपने पैर को कष्ट दिया जाय । यह कार्य जीभ द्वारा जितने अच्छे ढंग से किया जा सकता है, उतना पैर से शायद न हो सके ।
समझ लीजिए आप 'बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं' गुनगुनाते हुए रास्ते पर चले जा रहे हैं । तभी आपके सामने चल रहा कोई परिचित ठोकर खाकर गिर जाता है । अब आप क्या करेंगे ? आप अवश्य ही सबसे पहला कार्य हँसने का करेंगे । चाहे इसके लिए आपको दूसरी ओर मुंह फेरना पड़े । लाख कोशिश कर लीजिए हँसी तो आकर रहेगी । अब आप बेकार ही आत्मग्लानि से परेशान न हों । दरअसल इसमें आपका कोई दोष नहीं । हमें ईश्वर ने बनाया ही ऐसा है तो इसमें हमारा क्या दोष ? जैसा हमें बनाया गया है हम तो वैसा ही वर्ताव करेंगे न ?
हँस तो लिए । अब दो बातें हो सकती हैं । या तो ऑपरेशन-सुहानुभूति डाइरेक्ट प्रारम्भ किया जा सकता है । या पहले दो लात जमाकर फिर सुहानुभूति जता सकते हैं । जैसा आप उचित समझें । आपको अगर जीभ से लात जमानी है तो बस इतना ही कहना होगा, " अरे गिर गए क्या ? " गिरने वाले को इतनी चोट गिरने से न लगी होगी जितनी आपकी बोली से लग जाएगी । इसीलिए तो कहा गया है, 'बोली एक अमोल है, जो कोई बोलै जानि । हिए तराजू तौलिके तब मुख बाहर आनि ।' अगर आप यह मौका चूक गए तो न जाने आपको अगली बार गिरे हुए में लात मारने के लिए कब तक इंतजार करना पड़े । और मौका अगर मिल भी जाय तो हो सकता है, गिरने वाला लात खाने के लिए सुपात्र न हो । आजकल व्यस्तताएं भी इतनी बढ़ गयी हैं कि हर ऐरे-गैरे में लात मारने के लिए आजकल समय भी कहाँ बचा है ।
पर गिरने वाला भी सब समझ रहा होता है । मन में कहेगा, " अरे मूर्ख, तुझे दिखाई नहीं देता ? गिर ही तो गया हूँ । अन्धा कहीं का । " लेकिन प्रकट में घटना के कारण गिनाने लग जाएगा । कहेगा कि, "इन PWD वालों को तो चौराहे पर खड़े करके गोली मार देनी चाहिए । भृष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं । पता नहीं सड़क बनाते हैं या युद्ध की मोर्चाबंदी करते हैं । " फिर आपके पास इस बहस में उलझने के सिवाय कोई चारा न होगा । "
आजकल हमारे देश में एक पार्टी गिर गयी है । अपने प्रधानमंत्री जी, वैसे तो ऐसे नहीं लगते, लेकिन यह सुनहरा मौका उनसे न छोड़ा गया । बयान दे दिया कि, "मुख्य विपक्षी पार्टी का यह हाल होना अच्छी बात नहीं ।" यह तो सभी जानते हैं कि यह अच्छी बात नहीं । पर जब बड़े लोग मौज लेने पर उतर आये हैं तो मौज लेने से उन्हें कौन रोके ?
कुछ आदतन मौज लेने वाले लोगों को हालांकि मौज लेने के लिए 'उतर आये' शब्द का प्रयोग करने पर आपत्ति हो सकती है । हो सकता है उनकी नज़र में इसके लिए 'चढ़ गये' शब्द अधिक उपयुक्त हो । उन्हें आपत्ति दर्ज़ कराने की पूरी आजादी है । लेकिन इसमें 'चढ़ गये' कहने में हमें लगा कि कोई यह न समझ ले कि 'चढ़ गयी' होगी इसलिए चढ़ गए होंगे ।
लो उधर से जबाब भी आ गया तो सुनते( पढ़ते) जाइये । वेटिंग इन, वेटिंग इन, वेटिंग इन,.............∞ जी ने कहा है कि प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के बारे में सोचें । जबाब तो ठीक ही ठाक है पर मज़ा नहीं आया । भई प्रधानमंत्री तो पूरे देश की चिन्ता करते हैं तो भारतीय जनता पार्टी कोई देश से बाहर थोड़े ही है । ऐसे में दो ठो लात इस गिरी हुई पार्टी में लगा दीं तो क्या गज़ब हो गया ?
आप भी ना … :-)
जवाब देंहटाएंयह लातियौवल तो थमने का नाम ही नही ले रहा है !
जवाब देंहटाएंभाई पानी तो आदत है भीड़ मैं साथ साफ़ करने की, फिर अपने मनमोहन जी तो कोई कोई वेधी नहीं हैं की उनमें ये गुण ना हो !
जवाब देंहटाएंकोई गजब नहीं हुआ जी...:)
जवाब देंहटाएंmanmohan ji ke sath sath bechari BJP par aaj to aapne bhi khub laat mardi :)
जवाब देंहटाएंबोले बिना तो सरे ही नहीं।
जवाब देंहटाएं" आप अवश्य ही सबसे पहला कार्य हँसने का करेंगे ।"
जवाब देंहटाएंद्रौपदी का हंसना ही तो कारण बना महाभारत का:) लो...हम भी हंस दिय:)
इसे भी ठेल दिये -
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उनकी तरफ से आपत्ति दर्ज़ कर ही ली जाये, प्लीज़!!!
जवाब देंहटाएंगजब लिखा है !!
जवाब देंहटाएंha ha ha ha!!
जवाब देंहटाएंNahi nahi koi gira nahi hai, yoon hi hans diye :)
अजी गिरे हुए को दो लातें लगा देने और फ़िर हंसने का आनन्द अनिर्वचनीय है..पते कि बात कही आपने
जवाब देंहटाएंटाईम खराब हो तो कुयें मे गिरे हाथी को मेंढक भी लात मार देता है।
जवाब देंहटाएंbadhiya latiyaayaa
जवाब देंहटाएंha ha ha
venus kesari
लतियाने का यह अन्दाज बढिया लगा.
जवाब देंहटाएंकोई गिरा हो तो बताइएगा.
Aji mare hue ko kya marna, par kuch log ise bhee mauka samazte hain.
जवाब देंहटाएंekdam sahee likha hai Vivek bhai aapne
जवाब देंहटाएंवक्त बुरा हो तो ऊट पर बैठे बंदे को कुत्ता काट लेता है :)
जवाब देंहटाएंआप गिरे हुए में लात मारने की बात कर रहे है.. यहाँ तो लोग बाग़ नीचे गिरा कर लात मारते है..
जवाब देंहटाएंअरे विवेक भाई...हमने तो इसी बात पर एक ठो शोध भी किया है...
जवाब देंहटाएंकिसी को वैसे ही लतियाईयेगा न त आवाज आयेगा...भट्ट...
और गिरे हुए को लतियाईयेगा त आयेगा...टैंण टैंणण.....
वर्तमान परिस्थिति पर अच्छा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंthik hai.
जवाब देंहटाएंलतियाने में चौपाई संशोधन की गुंजाइश निकलती है इस लेख से:
जवाब देंहटाएंतात लात रावन मोहि मारा की जगह
बात लात रावन मोहि मारा हो सकता है।
भैय्ये अबकी गिरने क प्रोग्राम बनाना अनुभव कर के देखेगें थ्योरी बताई प्रैक्टिकल का अवसर तो देंगे ही ।
जवाब देंहटाएंइतनी शिक्षाप्रद व्यवहारिक ग्यान हेतु ध्न्य.....
आपके इस पोस्ट ने पुरानी फिल्म श्री 420 के एक संवाद की याद दिला दी, जिसे कि शायद डेविड ने कहा था, संवाद कुछ इस प्रकार है (शब्दशः न समझें):
जवाब देंहटाएं"...... यहाँ दूसरों को गिरते देख सभी हँसते हैं पर खुद गिरते हैं तो हँसना भूल जाते हैं।"
सुन्दर प्रस्तुति!
फ़िर भी लात "सही ठिकाना" देखकर ही मारना चाहिये… :) वरना लेने के देने पड़ सकते हैं…
जवाब देंहटाएंशरीर तो अब गिरा है चरित्र तो बहुत पहले ही कीचड में गिर चुका है. इनके सदस्य ही सवाल पूछने के लिए धन लेने सांसद निधि स्वीकृत करने दल बदल करने , कबूतरबाजी बगेरह में सबसे आगे रहे हैं डालरों में रुपया माँगते अध्यक्ष पैसे को खुदा मानने वाले मंत्री और अल्पसंख्यकों की नृशंस ह्त्या करने वाले मुख्य मंत्री इन्हीं की पार्टी में सर्वाधिक पाए जाते हैं
जवाब देंहटाएंलात मारना वैसे तो गधे की फितरत में है लेकिन आजकल कुछ इंसानों ने भी अपना ली है जनाब। शानदार पोस्ट
जवाब देंहटाएंआवाहूँ सब विवेक बाबू बोलाता
जवाब देंहटाएंदेवाहूँ सब कोई एक-एक लाता
लात दीज्यो लात दीज्यो लात दीज्यो लात
(सुर : मंगल भवन अमंगल हारी)
खूब मौज ले रहे हैं विवेक जी :)
जवाब देंहटाएंBahut Badiya ....
जवाब देंहटाएंHansna koi buri baat nahin....
अब भाई क्या कहें विवेक जी आपको :)
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