गुरुवार, अक्तूबर 16, 2008

मंदी का यह दौर

कल तक जो थे ठेलते लम्बे लम्बे लेख ।
मंदी का यह दौर है जाना उनको देख ।
जाना उनको देख ,उतर आए दोहों पर ।
रहा न कुछ कन्ट्रोल यहाँ माया मोहों पर ।
विवेक सिंह यों कहें शुरू अब दौर नया है ।
अगर नहीं यह मंदी तो फिर बोलो क्या है ॥

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह....वाह.....हर इरशाद के साथ एक नया छंद...क्या कहने.बहुत खूब.अच्छा लिखा है.

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  2. अच्छा ठेला है :) मंदी में भुनाऐ रहो भाई

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  3. इस तरह की कवि‍ता-शैली में आपकी पकड़ बहुत अच्‍छी है। इस शैली में कोई पुराने कवि‍ भी लि‍खा करते थे, नाम ज्ञात हो तो हमें भी इस शैली/शैलीकार से परि‍चि‍त कराऍं।

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