शुक्रवार, अक्तूबर 30, 2009

न जाओ मकर वृत्त की ओर

चले तुम मकर वृत्त की ओर ?

कर्क वृत्त वाले यूँ ताकत
ताके, जैसे चाँद चकोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?

तुम्हें मकर वालों की चिन्ता
किन्तु हमारा हक है छिनता
कोई वहाँ तुम्हें है गिनता ?
वहाँ पर हो जाओगे बोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?

वहाँ गये तो पछताओगे
जाकर वहाँ लात खाओगे
वापस लौट यहीं आओगे
मकर वाले हैं अति लतखोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?

वहाँ सुरक्षित रह न सकोगे
उस धारा में बह न सकोगे
हाल स्वयं का कह न सकोगे
कष्ट का कोई ओर न छोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?

तुम बहकावे में मत आओ
मसला बैठ यहीं सुलझाओ
क्या दिक्कत है हमें बताओ
बड़े हो तुम अब नहीं किशोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर
?

हमसे यूँ मत रूठो संगी
बातें करो न ये बेढंगी
साथ सहेंगे सब सुख-तंगी
हम, इस बगिया के मोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?

तेज धूप भी हमने झेली
रहे झुलसते हम सब डेली
फिर भी सदा सीख तुमसे ली
उठाओ मत यह कदम कठोर
न जाओ मकर वृत्त की ओर

कर्क वृत्त वाले यूँ ताकत
ताके, जैसे चाँद चकोर
चले तुम मकर वृत्त की ओर ?

9 टिप्‍पणियां:

  1. कष्ट का कोई ओर न छोर
    तो फिर कहां है अपना ठौर??????

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  2. ये ‘कर्क’ और ‘मकर’ में का अन्तर भवा भाई...?
    पहली बार आपकी कविता कछू ना समझ में आई:(

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  3. कौन मकर... कैसा मगर... कहाँ गया.. कहाँ जा रहा है...

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  4. बात ज़रा ख़ुलकर के कह दो
    इंगित किया कहाँ किस ओर ?
    जिसको मकर वृत्त हो कहते
    उस पर जाती कर्क की डोर !
    जुगराफ़िया कहाँ कमज़ोर ?
    पुनि-पुनि देखो चहुँ-चहुँ ओर !!
    हा हा।
    खै़र।
    बहुत उम्दा कटाक्ष, विवेक भाई। ग़ज़ब लिखा आपने, भाई।

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  5. मुझे पहिले से मालूम हवा की विवेक भइया गगनविहारी भी हौवें !

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  6. ई क्या भाई! कल रात अरविन्द मिश्र जी कुछ लिखे ऊ न बुझाया और अब तुम! सब रहस्यवाद की तन्ख्वाह पा रहे हो का आजकल!

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  7. क्यों ना जाये मकर वृत्त की ओर.. वहां कोई ब्लोगर सम्मलेन हो रहा है क्या...??

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  8. hasy vyang saralata se vilay hote dekhe aapakee rachana me. kitanee aasanee se kar lete hai mushkil aasan ? badhai !

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