सोमवार, सितंबर 22, 2008

विधाता को यही मंज़ूर था

एक बार किसी सुनसान राह पर कुछ अनजान लोग चले जा रहे थे । भादों का महीना था । आसमान में घने काले बादल थे और रह रह कर बिजली का चमकना सबको सहमा रहा था । अचानक तेज वर्षा की झडी ने कुछ लोंगों को पास ही स्थित एक छोटे मंदिर में शरण लेने को विवश कर दिया । वे सात लोग थे और मंदिर में मुश्किल से ही समा रहे थे । पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था । बिजली बार बार चमकती और हर बार लोगों को अपने पास आग की लपट का अहसास होता । बडी विकट स्थिति थी । जान के लाले पडे थे । सभी किंकर्तव्यविमूढ थे । तभी उनमें से एक बोला ," साथियो लगता है बिजली हम में से किसी की बलि लेना चाहती है । एसा न हो कि किसी एक की आई में सब मारे जाएं । इसलिए बेहतर यही होगा कि एक-एक कर सभी मंदिर से बाहर जाकर एक परिक्रमा करके वापस आजाएं । जिसकी आई होगी उसी को बिजली ले जाएगी ।"
सहमति हो गई . जिसने यह सुझाव दिया था वही सबसे पहले गया . किसी तरह परिक्रमा पूरी करके वापस आगया तो बाकी बचे छ: लोगों की धड़कनें बढ़ गईं । हर बार जब कोई सलामत वापस लौटता तो बाकी बचे लोगों को मौत की आहट सुनाई देने लगती । इसी तरह दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवाँ और छ्टा भी हिम्मत करके एक एक कर बाहर गए और वापस आगए । अब सातवें को मौत साक्षात सामने खड़ी दिखाई दे रही थी । वह बाहर कैसे जाता ? बाकी लोगों की मिन्नतें करने लगा । बोला ," दोस्तो मैं अगर बाहर गया तो मेरा मरना निश्चित है । यह आप सब भी भली भाँति जानते हैं । क्या एसा नहीं हो सकता कि आप सभी के पुण्यों के सहारे मेरी भी जान बच जाय ?" किन्तु वहाँ उसकी सुनने वाला कोई न था । "जान न पहचान, हम क्यों अपनी जान एक अजनबी के लिए ज़ोखिम में डालें ?" सब लोग एक स्वर में बोले ," तुम्हें जाना ही होगा ।" वह रोने गिडगिडाने लगा । पर उनके हृदय न पसीजे । बिजली का चमकना जारी था । अन्त में उसको धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया । मरता क्या न करता, वह वहाँ से बेतहाशा भागा । जब वह मंदिर से पर्याप्त दूरी पर पहुँच गया तो अचानक बिजली गिरी । किन्तु यह क्या ? वह बच गया । बिजली उस पर नहीं बाकी छ: लोगों पर गिरी थी । वे मर चुके थे । विधाता को यही मंज़ूर था ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बताओ, उसी के कारण बाकी ६ बचे हुए थे...चलो, होनी को कौन टाल सकता है. आधा दर्जन दिवंगतों को श्रृद्धांजलि.

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  2. बहुत अच्छा संदेश है विवेक जी !

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  3. Vivek Bhai, Sahi kaha gaya hai ki kabhi kabhi hame kuchh pata nahi hota hai ki prakriti kya chahati hai...

    http://dev-poetry.blogspot.com

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