गुरुवार, सितंबर 11, 2008

शिव कुमार मिश्रा गुरु हैं विवेक सिंह के ?

शिव कुमार मिश्रा हुए, गुरु हमारे आज ।
हम उनके चेले हुए, अब न रहा यह राज ।
अब न रहा यह राज,हों सूचित सर्व साधारण ।
गुरु चेले का यह संबंध न हुआ अकारण ।
विवेक सिंह यों कहें, जान लें ब्लॉगर सारे ।
शिव कुमार मिश्रा जी अब हैं गुरु हमारे ॥

कोष्ठक में:
आदरणीय श्री मिश्र जी से बिना गलती किए एडवांस में क्षमा माँग लेता हूँ कि उनको मैंने बिना परमीशन लिये ही अपना गुरु घोषित कर दिया है . और यह भी घोषणा करता हूँ कि फीस नहीं दूँगा . आशा है क्षमा मिलेगी वह भी कविता में .

5 टिप्‍पणियां:

  1. क्षमा करें हे मित्रवर, किंचित हुई जो देर
    पढ़कर कविता आपकी हुए आज हम ढेर
    हुए आज हम ढेर औ विस्मयपूर्ण निहारें
    गुरु बनाने में क्या मंशा आप उचारें
    गुरु-शिष्य के रिश्ते में कुछ दिक्खे लोचा
    पहुंचे हम इस निर्णय पर हमने जब सोचा

    कोष्टक में:

    क्षमा की ज़रूरत और वो भी शिष्य को! वैसे भाई, गुरुगति को प्राप्त होना सबके बस की बात नहीं. और मेरे बस की (या फिर बैलगाड़ी की) तो बिल्कुल भी नहीं. हमारे अन्दर कौन सा गुरुवत्व दिखाई दे गया? कहीं गुरु बताकर हमारी टांग (या फिर कान) तो नहीं खींच रहे?

    हमने तो ख़ुद कितनों का चेलत्व ग्रहण कर रखा है. कुछ के यहाँ चेलागीरी की अर्जी भी दे रखी है. ऐसे अचानक स्टेटस में आए उफान को बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा है, विवेक जी. यही कारण है कि यह लिखते हुए हम अपने अन्दर शंकत्व के तत्वों का अनुभव कर रहे हैं......:-)

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  2. गुरु बना डाला अगर शिव जी को महाराज
    समझो तेरे हो हो गए सफल सकल ही काज
    सफल सकल ही काज खुशी अब रोज मनाओ
    टिप्पणियों की वर्षा में तुम खूब नहाओ
    गुस्से से शिव के तुम बिल्कुल मत घबराना
    छोड़ उन्हें तत्काल गुरु फ़िर हमें बनाना
    नीरज

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  3. चेला तुमको पाय कर, गुरु भये बेचैन
    पहले धोखा खाये हैं, बनके जैन्टलमैन
    बनके जैन्टलमैन, सभी ने भद्द उतारी
    दिये जबाबी वार, फिर भी बची उधारी
    कहते हैं कविराज, इसमें काहे का लोचा
    गुरु-शिष्य का भाव,इहमें एतन न सोचा*

    (इहमें एतन न सोचा = इसमें इतना न सोचो)

    --जय हो आपके गुरुदेव की!!!

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  4. वाह वाह


    क्या बात है


    क्या बात है ??

    अरे कोई बताओ तो क्या बात है???????
    वीनस केसरी

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