शनिवार, नवंबर 15, 2008

बलम तुम हुक्का छोडौ

बलम तुम हुक्का छोडौ ।
कैसें कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

बीन बान कैं कण्डा लाई आँच दई सलगाय ।
खोल चपटिया देखन लागी हाय तमाकू नाय ॥

बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

कैसें कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

हुक्का हरि कौ लाडिलौ और सबकौ राखै मान ।
भरी सभा में ऐसें सोहै ज्यों गोपिन में कान्ह ॥
बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

कैसैं कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

हुक्का में गंगा बहै और नै में बहै पहाड ।
चिलम बिचारी कहा करै जाके मुह पै धरियौ अंगार ॥
बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

कैसैं कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥

नोट: यह मेरी रचना नहीं है . बृज का लोकगीत है .

7 टिप्‍पणियां:

  1. हुक्के में जब इतना गुन है तो छोड़ने की बात क्यों?
    लोकगीत पसंद आया. इसे अपनी आवाज़ में गाकर पॉडकास्ट पर चढा दो.

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  2. "यह मेरी रचना नहीं है, ब्रज का लोक गीत है।"

    विवेक जी, चोरी के माल पर लेबल भी लगा दिया। इसी को अगर ठेठ हरियाणवी में लिखते तो और भी अच्छी लगती। कम से कम चोरी तो नहीं कही जाती।

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  3. भाई लोक गीत का अपना मजा है ! कहीं का भी हो ! आपकी वजह से इतना पुराना लोक गीत फ़िर से स्मृतियों में आगया ! आपके पास तो और भी खजाना होगा ! उनसे रूबरू कराते रहिये ! अच्छा लगेगा ! बहुत शुभकामनाएं !

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  4. पता नहीं क्यों पढने के पहले लगा की कुछ ऐसा होगा:
    बलम तुम हुक्का छोडौ ।
    बदला ज़माना अब सिगरेट पियो !

    लगता है रात ज्यादा हो गई है, अब सो जाना चाहिए :-)

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  5. लेबल लगा दिया तो चोरी तो हुई नहीं .वैसे भी लोकगीतों पर तो सबका अधिकार
    है .हमारा भी होगा ही . रही बात हरियाणवी में लिखने की उसमें हम अक्षम
    हैं . यह काम तो कोई हरियाणवी ही करे . मेल मिले तो जबाब देना . कल का भी
    मेल कूडे में गया .

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  6. Mai kafi samay se Google pr search karta hu or nhi milta.
    Ye pehli baar radio FM Bareilly pr suna karte the...

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