शनिवार, जनवरी 24, 2009

रामदास कहलाए


बिना बिचारे जो करे, रामदास कहलाय ।
हाईकोर्ट खारिज करे जो भी कदम उठाय ॥
जो भी कदम उठाय चित्त में तानाशाही ।
शायद आनन फानन में चाहें वाहवाही ॥
विवेक सिंह यों कहें मंत्री कैसे कैसे ।
घिसट घिसटकर देश चल रहा जैसे तैसे ॥


27 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह ....विवेक जी वाह क्या खूब कही !

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  2. अराजक तरीके से मनमानी करने का नतीजा तो यही होना था।

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  3. वाह! वाह! सही है.
    बिना बिचारे जो करे रामदास कहलाय

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  4. करते हैं तारीफ हम तेरी मित्र विवेक
    तुम मुझको लगते सदा हो लाखों में एक
    हो लाखों में एक, सत्य हर रचना तेरी
    तेरे सम्मुख झुकती जाए गर्दन मेरी
    कह "नीरज" कविराय ब्लॉग के तुम हो राजा
    तुम को पढ़ कर सच हम हो जाते हैं ताजा

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  5. ये जो ऊपर नीचे सिगरेट लगा दी है ना आपने...चार चांद..

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  6. @ नीरज जी ,

    आप चने के पेड पर, मुझको रहे चढाय ?
    अविश्वास सा हो रहा, इतना आदर पाय .
    इतना आदर पाय बढ रहे भाव हमारे .
    हम पहले ही नतमस्तक हैं सम्मुख थारे .
    विवेक सिंह यों कहें ,आपका वरदहस्त हो .
    फिर क्या चिंता मोइ लिखूँगा सदा मस्त हो .

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  7. बहुत आस है इनसे; राम के दास जो हैं!

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  8. खूब सुलगेगी अब तो....जब मिल बैठेगे रामू ओर रामदास

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  9. भाई हमें रामदास नहीं बनना इसलिए कमेंट बहुत सोच समझकर दे रहे हैं

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  10. आपने तो डरा ही दिया....बहुत सोंचसमझकर कमेंट कर रही हूं....अच्‍छा लिखा है।

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  11. सही कुण्डली रच रहे हैं..बहुत उम्दा!

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  12. देश चल रहा है?..

    आप कह रहे है तो चल ही रहा होगा..

    जै राम दास की..

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  13. आपकी कुण्‍डली तो 'जनवाणी' है।
    शानदार।

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  14. कह गये कवि विवेक सारी बात बड़ी चतुराई से
    रामदास भये पानी-पानी धुँयें की परछाई से

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  15. लगे रहो तुमको मंत्री बना देंगे! फिर बाद में हम चुनाव लड़ेगे!

    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    गुलाबी कोंपलें

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  16. यही आश्चर्य है कि देश चल कैसे रहा है..?
    रामदास की भली चलायी!

    खूब बटोरें वाह वाही ,आप बस बोल के दोहे |
    रामदास से मुक्ति दिला दो ,देश बोल गया मोहे||

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  17. सटीक और धारदार्।गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

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  18. kya yahi purn satya hai gantantrik bharat ki? agar satya hai to kaun badlega is bharat ko?

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  19. लिखते रहो बबुआ। जो तारीफ़ कर रहें उनकी बात मान ही लो!

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  20. घिसट घिसट कर देश चल रहा जैसे तैसे
    क्योंके सब रहने वाले हैं ऐसे वैसे

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  21. बिना बिचारे जो करे, रामदास कहलाय ।
    हर बात लिखे कविता ,वह विवेक कहलाये

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