गुरुवार, अगस्त 06, 2009

परदे के उस पार

जीवन के जिस क्षेत्र में भी दृष्टिपात किया जाय । परदे पर अभिनय करते लोग दिखाई देते हैं । सार्वजनिक दुनिया परदे के सामने रहती है । सरेआम इसकी चर्चा होती है ।

दूसरी दुनिया जिसे परदे के पीछे की दुनिया कहा जा सकता है, भी हर क्षेत्र में मौजूद है । इसकी चर्चा दबे स्वरों में होती है । न्यूनाधिक लगभग सभी लोग इससे परिचित होते हैं ।

अब देखिये परदे के सामने एक जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है, जो जनता से टैक्स वसूलती है । बदले में लोक कल्याण का दावा भी करती है । लेकिन इस चुनी हुई सरकार का माध्यम ईवीएम है जिसकी सत्यता परदे के पीछे है । दूसरी हुकूमत परदे के पीछे भी चलती है जो हफ़्ता वसूलती है । बदले में जीवनदान देने का दावा करती है । परदे के सामने वाली सरकार में जो काम गैरकानूनी हैं वे परदे के पीछे धड़ल्ले से चलते हैं जैसे सट्टा आदि । सट्टे के गेम में गज़ब की ईमानदारी बताई जाती है । अगर आपने सट्टा खेला और जीत गये तो पैसा आपके घर पहुँचना ही है, पर यदि आप हार गये और पैसा देने में आनाकानी की तो गये सीधे स्वर्ग या नर्क ।

बाजार में भी यही खेल है । कम्पनियाँ उत्पाद लौंच करती हैं, बाजार में उत्पाद पहुँचता है । लेकिन उससे पहले हूबहू उसकी नकल बाजार में पहुँच जाती है । यह नकली उत्पाद कहाँ बनते हैं किसी को नहीं पता । यहाँ तक कि दवायें भी नकली आ रही हैं ।

परदे पर दिखायी देंगे बड़े ऊँचे संत महात्मा हैं । अच्छे अच्छे प्रवचन सुनाते हैं । परदे के पीछे वही यौन शोषण, हत्या, अपहरण जैसे अपराधों में भी लिप्त पाये जा सकते हैं । सामने पूजा और पीछे काम दूजा ।

किसी बड़े शहर में अनजान लोगों से मिलें । पता चला बड़ी अच्छी फ़ैमिली है । संस्कारी लोग हैं । भेद खुला तो पता चला रिश्ते में भाई बहन हैं । घर से भागकर शादी की हुई है । घरवालों को इनका अता-पता भी नहीं मालूम । अन्यथा कल ही ये दुनिया से विदा कर दिये जायें ।

परदे पर एक से बढ़कर एक हास्य के चैम्पियन । पर परदे के पीछे के तथाकथित गंदे जोक्स के आगे सब फ़ेल ।

परदे पर एक से बढ़कर एक नामचीन ब्लॉगर का तमगा लटकाए घूमते लोग । परदे के पीछे वही अनाम टिप्पणीकार ।

परदे पर अच्छे अच्छे शिष्टाचार सुलझे हुए शब्दों में बातचीत । शरीर के कुछ अंगों का नाम लेना भी पाप । उन्हें विशिष्ट अंग के नाम से संबोधित किया जाना । परदे के पीछे उन्हीं का धड़ल्ले से उच्चारण और उनमें बीड़ी जलाना !

परदे के पीछे का मसाला कब सामने आयेगा ? कभी न कभी तो आयेगा ही । तो अभी क्यों नहीं ? क्या हमारे बाद ?

सूचना : यह पोस्ट मानसिक हलचल से प्रेरित है ।

21 टिप्‍पणियां:

  1. सदियों से परदे के पीछे और परदेके आगे ..दो अलग जिंदगी ..सिलसिला चला आ रहा है ...जिनकी ऐसी दोहरी ज़िंदगी नही होती , वो दीप शिखा बन जाते हैं ..!ये भी सच है ,कि ,उनकी दिखायी राह पे कमही लोग चल पाते हैं ..!

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  2. परदे के पीछे की सब चीजें सामने लाने से किसी की निजता का उल्लंघन न हो यह ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है।

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  3. परदे में रहने दो.. परदा न उठाओ.. परदा जो उठ गया तो भेद खुल जायेगा...

    बस यही याद आया.. मजेदार

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  4. दुनिया हाथी दांत सी हो गयी है आज कल दिखाने की और ...अन्दर से कुछ और .

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  5. आपने सही कहा है लोगो की कथनी और करनी में बड़ा फर्क आ चुका है ।

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  6. पर्दा रहना भी ज़रूरी होता है. सार्वजनिक जीवन में जो लोग हैं, उन्हें भी निजता का अधिकार है. हमारे क्रिकेटर एंटी डोपिंग के खिलाफ नहीं हैं लेकिन वे कहाँ रहेंगे, इसकी जानकारी दूसरे लोगों के पास रहे, यह भी तो ठीक नहीं. हम घर की खिड़कियों में पर्दा क्यों लगते हैं? इसीलिए न कि बाहर वाला देख न सके.

    सार्वजनिक तौर पर अच्छा दिखना और व्यक्तिगत तौर पर ख़राब रहना की तुलना ढेर सारी निजता वाली बातों से नहीं की जा सकती. वे बातें जिसको लेकर निजता किसी भी व्यक्ति का अधिकार है.

    आज तो बड़ी गंभीर पोस्ट लिख दी.

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  7. परदे के आगे और पीछे का यह भेद जितना कम किया जा सके जीवन उतना ही सहज हो जाएगा.

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  8. परदे पर एक से बढ़कर एक नामचीन ब्लॉगर का तमगा लटकाए घूमते लोग । परदे के पीछे वही अनाम टिप्पणीकार ।

    किस किस को रोकोगे भाई? यहां तो अच्छे २ बीडी जलाने को तैयार बैठे हैं. ज्यादा बोलेंगे तो लोगों की बीडी कहां सुलग जाये? क्या पता?

    रामराम.

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  9. परदे के उस पार विवेक सिंह क्या हैं ? मतलब चिट्ठाकार से इतर । नहीं नहीं । मतलब दिखने वाले चिट्ठाकार से इतर चिट्ठाकार ।

    वैसे कुछ इशारा तो आज की पोस्ट ने ही दे दिया । ये टिप्पणी वाले विवेक तो नहीं ।

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  10. काठ की हांड़ी बार बार नहीं चढ़ती। सभी लोग सभी समय मूर्ख नहीं बनाये जा सकते।
    वर्जनायें व्यक्ति स्वयं रचता है - अपने लिये। वर्जनायें लांघता है तो अपनी शर्तों पर। पर कोई पर्दों का प्रयोग अपना कलुष छिपाने को करता है तो वह अधम है। और वह शाश्वत चल नहीं सकता।

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  11. परदे के पीछे का " मसाला " कब सामने आयेगा ? कभी न कभी तो आयेगा ही । तो अभी क्यों नहीं ? क्या हमारे बाद ?


    जब तक "मसाला " की चाह हैं किसी को
    बेपर्दा करने मे कोई उज्र होगा ही नहीं

    "मसाला" से ऊपर उठ कर अगर किसी को
    बेपर्दा इसलिये करे की समाज मे एक बुराई
    ख़तम हो तो आप के अधिकार क्षेत्र मे कुछ
    भी कहना या करना

    "मसाला " ये शब्द बताता हैं की
    मानसिकता क्या होती हैं जब हम किसी
    की निजता को सार्वजनिक करते हैं

    सबके सम्बन्ध , सुख दुःख उसके अपने हैं
    हमे मतलब होना चाहिये उसके सामाजिक v
    व्यवहार से और जो नियम हम अपने लिये
    बनाए वाही दुसरो के लिये हो तो पर्दे
    के अन्दर क्या हैं इसकी जिज्ञासा ही ख़तम
    हो जायेगी .

    जिन्दगी द्विअर्थी डाईलोग नहीं हैं अपने
    लिये कुछ दुसरो के लिये कुछ , ऊपर से
    कुछ अंदर से कुछ .

    कुछ लोग निरंतर हंसते हैं पर केवल इस लिये की वो अपने गम
    छुपा सके

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  12. ज्ञान जी से सहमत ,सिर्फ इतना ही कहूँगी -कुछ भी सापेक्ष नही है.

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  13. साहब हर चीज के दो पहलू हैं. हर व्यक्ति के पास दोहरा चरित्र है. कम से कम मेरा मानना यही है. थोड़ा सूक्षम विश्लेषण करें तो आपको भी इस चीज का एक विचित्र अहसास होगा.

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  14. kabhi parde se ye jhaanke,
    kabhi parde se wo jhaanke,
    laga do aag parde mein,
    na ye jhaanke na wo jhaanke..

    ath pardaa katha samaaptam..

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  15. "परदे के पीछे का मसाला कब सामने आयेगा ?"
    जब पर्दा उठ जाएगा...जब पति-पत्नी का झगड़ा चुपके से हो ‘म’गर साला बाहर जाकर मुँह खोल दें तो मसाला हो जाता है:) अरे भाई, गम्भीर मत होइए... इसलिए परदे में रहने दो, पर्दा उठा तो राज़ खुल जाएगा:-)

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  16. भाई मेरे
    परदे के पीछे मत देखो वरना पर्दे के आगे की सारी खूबसूरती बिखर जायेगी.
    देखो जो लोग बेच रहे है
    पर्दे के पीछे बिके हुए है

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  17. बहुत ही सही कहा आपने पर क्या कहे जो पर्दे के पीछे घटित हो रहा है उसको खतम करना बहुत ही मुश्किल लगता है .......इसके लिये क्या करना चहिये ........यह एक समस्या है ....इसपर हर एक आदमी को कोशिश करने की जरुरत है ........तभी कुछ हो सकता है........एक अच्छी पोस्ट

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  18. पर्दा रहना भी ज़रूरी होता है.

    इसीलिए बाथरुम और बेडरुम में दरवाजा होता है. क्या बाहर घर वालों को मालूम नहीं मगर सभ्यता का तकाजा है कि कुछ चीजें परदे के पीछे ही हों, तो ठीक. वरना इन्सानों और जानवरों में क्या फर्क रह जायेगा.

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  19. परदे के पीछे मत जाना मेरे भाई,
    बड़े बड़े अफसर बैठे हैं,
    माल भरे तस्कर बैठे हैं ........

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  20. विवेक जी कुछ तो परदे के पीछे रहने दो !

    समीर जी सहमत |

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