शनिवार, सितंबर 19, 2009

शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते!


शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते!

हमें पूछते तो क्या होता ?
होठ न हम सिलवाते
शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते

तुमने बहुत हमें है माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना ?
खुला राज यह बहुत पुराना
हम न किन्तु कह पाते
शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते

पहले उनको कहा जनार्दन
हमको धिक्कारा था निज मन
आम आदमी का दे भूषण
अब उनको बहकाते
शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते

राजनीति में नव आगन्तुक!
पहले अपनी सीट करो बुक
बदलो यह साहब वाला लुक
हम कितना समझाते ?
शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते

तुम कलयुग में ही हो भाया
सतयुग अभी नहीं है आया
फिर क्यों कड़वा सत्य सुनाया ?
मीठा झूठ सुनाते
शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते

कहा सत्य ही इन्हें जानवर
कहाँ जायेंगे बुरा मानकर
हाथ हिलायें हम विमान पर
ये तब पूँछ हिलाते
शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते

जिनकी तुम खा रहे कमाई
तुमने गाली उन्हें सुनाई
क्या अजीब बुड़बक हो भाई
इसीलिए इतराते ?
शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते

हमें पूछते तो क्या होता ?
होठ न हम सिलवाते
शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते!

30 टिप्‍पणियां:

  1. वाह विवेक भाई अब तो उसने माफी भी माँग ली । व्यंग अच्छा है बधाई

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  2. वाह! वाह!
    कविता लिखना सीखना है तुमसे. एकलव्य की तरह सीख लूँ या फिर एडमिशन दोगे?

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  3. ओह तो यह पूछना पछोरना अभी चल ही रहा है -बुद्धं शरणं गच्छामि !

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  4. आम आदमी जानवर, कह गये शशी थरूर।
    राजनीति के पेंच को भाँप न पाय गरूर ॥

    भाँप न पाय गरूर, बड़ा है इनका चोला।
    शातिर हैं घनघोर, दिखाए चेहरा भोला॥

    सुन‘सत्यार्थमित्र’मन को तू छोटा मतकर।
    इस मनुष्य से भले रहेंगे सदा जानवर॥

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  5. शशि जी राजनीति के चाल-पेंच की पर्याप्त प्रेक्टिस किये बिना कूद आये इस फील्ड में!

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  6. यदि अभिमन्यु की भांति कूदे है तो समझो इनका बंटाधार पक्का .....

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  7. अजी, शशि जी तो सिर्फ मौज ले रहे थे:)

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  8. पूछ की पूँछ पकड कर शशि तक पहुँच गए। ऐसे ही कभी तारा और रवि तक की दाढी़-मूँछ तक पहुँच ही जाओगे तो मज़ाक समझ लोगे:)

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  9. इतनी गजब कविता लिख डाली है कि मैं तो ईर्ष्या से भस्म हो गया. जी चाहा कि तुम्हारा नाम काटकर अपना लिख दूं.

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  10. बहुत सुंदर...impressive सचमुच।

    वैसे खुलेआम माफी माँग ली है जनाब ने। कोई जो लेकिन उन्हें ये कविता पढ़वा दे..!!!!

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  11. अच्छा है! शीर्षक -शशि तुम हमें पूछ, फ़रमाते! शायद ज्यादा जमता!

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  12. @ अनूप जी,

    पब्लिक की भारी डिमाण्ड पर शीर्षक जमा दिया गया है!

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  13. हमारा कमेंट कहां दबा गये विनम्रजी?:)

    रामराम.

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  14. @ ताऊ जी,

    कौन से कमेण्ट की बात रहे हैं जी, गलत जगह आ गये क्या ?

    हमने तो आपका कोई कमेण्ट नहीं दबाया अभी!

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  15. हा हा हा

    खूब कही..........बहुत खूब कही.........

    हा हा हा हा

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  16. तो ये विनम्र जी का ब्लाग नही है क्या? कल तक तो शायद यही था. फ़िर हो सकता है विनम्रजी ने दबा लिया होगा?:)

    रामराम.

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  17. @ ताऊ जी,

    यह ब्लॉग कल विनम्र जी के कब्जे में रहा,

    पर जो आया है उसे तो जाना ही था,

    चले गए,

    कल ही हमने अच्छे से चार्च वापस लिया, पर आपका कोई कमेण्ट उन्होंने नहीं सौंपा,

    अपना मेल चेक करिये वहाँ शायद कुछ क्ल्यू मिले :)

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  18. भाई बडी जल्दी विनम्र जी का तबादला करवा दिया?:)

    रामराम.

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  19. @ ताऊ जी,

    यह आना जाना तो लगा रहता है,

    सब माया है जी ! :)

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  20. पर भाई विनम्रजी को २४ घंटे तो काम करने देते. लोगों को कितनी अच्छी २ सलाह देकर आये थे. हम तो निश्चिंत होगये थे कि चलो राजा बाबू अब समझदार हो गये हैं.:)

    रामराम.

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  21. सब ऊपर वाले की माया है
    इस धरा पे भीषण काया है .


    सुन्दर प्रस्तुति . नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनाये

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  22. सालिड्।एकदम झक्कास लिखेला है भाई।भाई अब तो भाईच रहने का।

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  23. बहुत बढ़िया , नया अंदाज़ ! शुभकामनायें विवेक !

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