रविवार, अक्तूबर 11, 2009

कूड़े से कविता तक

 

दिवाली अभी आयी नहीं लेकिन माहौल बन गया है । घर की साफ-सफाई होने लगी है । अवांछित तत्वों के खिलाफ बिना किसी कानूनी कार्रवाई के ही उन्हें जबरदस्ती घर के बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है । घर में थे तो आनन्द से पड़े हुए थे । न कहीं बारिश में भीगने का डर, न आँधी में उड़ने की चिन्ता । लेकिन अब भविष्य अंधकारमय नज़र आने लगा है ।

घर में थे तो कूड़ा होते हुए भी किसी की मजाल न थी कि कूड़ा कह दे । लेकिन अब जिसे देखिए वही देखते ही नाक-भौं सिकोड़ लेता है । “अपने घर में चाहे हमसे भी बदतर कूड़ा मौजूद हो लेकिन पब्लिकली बड़े सफाई पसंद होने का दिखावा करेंगे ।” कूड़ागण पड़े पड़े सोच रहे हैं ।

कूड़े के सदस्यों में गहन विचार विमर्श जारी है । आगे की संभावनाओं पर विचार हो रहा है । यह जो भी कूड़े के साथ हो रहा है वह बिल्कुल ठीक नहीं हो रहा है इस बात पर आम सहमति है । आखिर मकान मालिक ने कैसे स्वयं डिसीजन ले लिया कि हम अवांछित तत्व हैं । कोई पंचायत नहीं, कोई कोर्ट कचहरी, मुकद्दमा नहीं । बस कह दिया कि बाहर हो लो । कम से कम दो चार दिन का नोटिस तो देना चाहिए था  कि नहीं ? उन दिनों को भूल गए जब हम उन्हें जान से भी ज्यादा प्रिय थे ।

 

एक गत्ते के टुकड़े का दर्द कुछ ज्यादा ही उभर आया । टूटी प्लास्टिक की बाल्टी से रोकर  बोला, “ अम्मा क्यों घावों को कुरेदती हो ? जब में कम्प्यूटर का कवर बनकर पहली बार इस घर में आया था तो मकान मालिक के लड़के ने मुझे छू भर दिया था । इसी बात पर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था । अपने ही बेटे की धुनाई एक कागज के टुकड़े के पीछे कर डाली थी । सब समय का फेर है ।”

 

“जानती हूँ ।” बाल्टी बोली । “ मुझे न बताओ । मैं इन लोगों की असलियत को अच्छी तरह जानती हूँ । मैंने कई साल इनके बाथरूम में बिताए हैं । इनकी अन्दर बाहर की सब खबरें मेरे पास हैं । अब तुम्हें क्या बताऊँ । तुम बच्चे ठहरे ।”

 

हीटर का कवर इनकी बातों को सुनसुनकर बोर हो गया । बोला, “ अब आगे की कार्रवाई के बारे में सोचो । बीती बातों को भूल जाओ । क्या किसी तरह कानूनी केस डालकर कुछ दिन का स्टे नहीं मिल सकता ? पर हम गरीबों की सुनेगा कौन ? हाँ यदि किसी खोजी पत्रकार के पास पहुँचा जा सके तो वह हमारे अंदर से भी धाँसू खबर बना सकता है । हो सकता है इस कूड़े में मकान मालिक के काले कारनामों के कुछ सबूत ही हों ।”

 

तभी मकान मालिक वहाँ से गुजरा तो कूड़ागण शान्त हो गए । सहसा उसने एक कागज के टुकड़े को उठा लिया और बोला, “अरे यह तो बहुत पुरानी कविता है । आजकल तो हरियाणा में वैसे भी चुनावी माहौल है क्यों न इस कविता को ब्लॉग पर ठेल दिया जाय ?”

 

उस कागज के टुकड़े पर 20 जून 2000 लिखा था । नीचे यह कविता थी ।

 

नहीं चाहिए मुझको ये अधिकार वोट का

कमजोरों के लिए नहीं संसार वोट का

आया चुनाव थर-थर डर से काँपे मेरी सब काया

मेरे दिल के तारों ने गम का संगीत बजाया

बचना, होने लगा गरम बाजार वोट का

 कमजोरों के लिए नहीं संसार वोट का

आया जो भी वोट माँगने यही लगाया नारा

कमजोरों को आगे लाना, पहला लक्ष्य हमारा

रखना ध्यान हमारा अबकी बार वोट का

 कमजोरों के लिए नहीं संसार वोट का

कहने लगा एक प्रत्याशी ‘कर लो मुझसे वादा

वोट मुझे ही दोगे तुम बदलोगे नहीं इरादा

क्या लोगे करने का, कारोबार वोट का ?’

 कमजोरों के लिए नहीं संसार वोट का

और अंत में आये कुछ गुंडे भी मुझे डराने

धमकाकर स्वपक्ष में मेरा भी मतदान कराने

‘विवेक’ मैं खुश नहीं देख व्यवहार वोट का

कमजोरों के लिए नहीं संसार वोट का

12 टिप्‍पणियां:

  1. विवेक भाई, जो पहले हुआ सो हुआ, अब आगे से तो डिस्पोज़ेबल
    कचरे का इंतज़ाम कर लिया जाए...यूज़ एंड थ्रो...हाथों-हाथ...गंदगी रहने का मतलब ही नहीं...बस इतना रहम करना कि वो अस्पतालों वाला कूड़े की चिंदी-चिंदी करने वाला क्रशर मत लगा लीजिएगा...आखिर कुछ तो बीते गोल्डन डेज़ का मान रखिए...

    जय हिंद...

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  2. जय हो कूडा देव की जय. अति सटीक और दिपावली के मौके पर सामयिक भी कही जायेगी.

    रामराम.

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  3. विवेक भाई,

    एक बात तो कहना भूल ही गया था...देखना कूड़े को ठिकाने लगाने के चक्कर में आपका वो बेचारा मेंढक (टैडपोल कहना बेहतर होगा) कहीं शहीद न हो जाए...

    जय हिंद...

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  4. ये तो मज़ेदार व्यंग रहा.
    लेकिन दोस्त, लोकतंत्र में वोटर कमज़ोर नहीं होता.
    यही तो मौका है, अपनी ताकत दिखने का.

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  5. सही मौके पर सटीक विषय पर लिखा |

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  6. अरे बाबा .... टुटी फ़ुटी बालटी की भी तो कविता सुना दो

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  7. अजी कूडा फिकता ही कहाँ है, जैसे वो कविता वाला कागज उठाया गया वैसे ही एक-एक चीज वापस उठा ली जाती है। किसी को गृहस्‍वामी तो किसी को बच्‍चे वापस ले आते हैं। बचे खुचे को घर का बुजुर्ग व्‍यक्ति उठा लाता है, यहाँ तक की सूतली तक।

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  8. कूड़ा महिमा अपरम्पार...
    गाओ इसको बारम्बार..

    -जय हो!!

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  9. कूड़े के प्रति आपकी संवेदना देखकर बहुत अच्छा लगा। कविता तो बस ऐसी वैसी ही है। लेकिन और कुछ लोग कहें तो अच्छी समझी जा सकती है। बहुमत का जमाना है भाई!

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  10. वाकई कल तक जो घर का मेम्बर था वहा एकाएक कूडा कैसे हो गया?
    दिवाली पर श्रीमती जी को यही तर्क देकर खर्चीले सफाई (बोनस डुबाऊ) से बचने का प्रयास करूँगा.

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  11. “अपने घर में चाहे हमसे भी बदतर कूड़ा मौजूद हो लेकिन पब्लिकली बड़े सफाई पसंद होने का दिखावा करेंगे ।”

    हमें तो जी सारी पोस्ट में से ये बात आपकी सबसे खरी लगी ।
    मकान मालिक कही दिखाई नहीं दे रहे :)

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