शनिवार, अक्तूबर 24, 2009

सबसे पहले मैंने ही

सबसे पहले मैंने ही, चिट्ठे को ‘चिट्ठा’ बोला था
यह रहस्य था गहरा मैंने, इलाहाबाद में खोला था

सुनते ही सब मचल गये थे, तान लिये थे भौहें भी
जैसे मैंने गिरा दिया जो, वह परमाणु गोला था

कुछ लोगों ने इसे मामला, झूठमूठ का बतलाया
लेकिन मैंने भी तो पहना, बुजुर्गियत का चोला था

कानाफूसी बहुत हुई पर, कानों में ही उलझ गयी
कोई खुलकर बोल न पाया, मुँह में कोका-कोला था

कोई हल्की बात कहे, या इसको भारी बतलाये
मैंने अपने इन शब्दों को पहले कभी न तोला था

तीसमारखाँ अच्छे अच्छे, मार न पाये पन्द्रह भी
मैं यह समझा चतुर हो गया, लेकिन ब्लॉगर भोला था

नया शौक नेतागीरी का, बिस्मिल्लाह करने आये
टकले होकर घर से निकले, गिरा चाँद पर ओला था

बीच धार जब लगी डूबने, नैया तो सब चिल्लाये
यह क्या ? हमने तो समझा था कोई उड़नखटोला था

बड़े शौक से पास बुलाया, कितनी इज़्ज़त बख्श दिये
बेचारों को मालुम क्या, मैं फूल नहीं था शोला था

पैर कब्र में लटके तो क्या, जो मिल जाये अच्छा है
नामवरी का काम किया यह, भरा नाम से झोला था

28 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह, विवेक तुम तो सच में आशु कवि हो भई|


    इस छंद

    - "बीच धार लगी डूबने, नैया तो सब चिल्लाये
    यह क्या ? हमने तो समझा था कोई उड़नखटोला था"

    में कम्प्युटर की कारीगिरी से "में" उड़ गया है, सो, मात्रा कम पड़ रही है |


    - बीच धार में लगी डूबने, नैया तो सब चिल्लाये
    यह क्या? हमने तो समझा था कोई उड़नखटोला था

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  2. "जब" फब रहा है अब, पंक्ति पूरी हुई| Good

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  3. @ कविता जी,

    धन्यवाद ! मात्रा पूरी कर दी है ।

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  4. मेरे एक लेखक मित्र ने यह पढ़कर कहा..
    .
    ब्लॉगिंग की दुनिया में भैया सब ऐसे ही चलता है
    लिखना-पढ़ना जारी रख तुझको पहले ही बोला था

    लेकिन आपकी यह कविता पढ़ कर आनन्द आया ।

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  5. जिस किसी ने 'ब्लागार' हथियाया इलाहाबाद में
    कर दो अब माफ उसे .....वह बहुत भोला था

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  6. विवेक जी आपके विवेक के क्या कहने!!

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  7. बहुत ही अच्‍छा शब्‍द संयोजन लाजवाब प्रस्‍तुति के लिये बधाई ।

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  8. ek shandar kavita ke liye badhai Vivek ji.... haan ji sir aur wo 'berozgar' maine apne oopar nhin likhi.. :)

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  9. सबसे पहले मैंने ही, चिट्ठे को ‘चिट्ठा’ बोला था

    पर किसी ने इलाहाबाद में झूठ का गट्ठा खोला था:)

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  10. जो जौन काम करने आया था वो किया
    ब्लॉर ने ब्लॉगिंग किया और कई लोगों ने कई काम किया
    नामवर जी आयें और माहौल न बनाये
    इसीलिये तो उन्हैं सब हैं बुलाये

    अब क्या पता कि बम गोला था कि ठिठोला था !

    पोस्ट तो हर बार अच्छी ही रहती है ...

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  11. Teesmaarkhaan...maar naa paye pandrah bhee..waah...! Aisa istemaal kabhee dimaag me aayaa nahee...!

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  12. हम गवाह हैं भाई, बिल्कुल आपने ही रचा था.

    रामराम.

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  13. वह नामवर जी के बैनिफिटार्थ ब्लॉग-मैच था। उसे उसी स्पिरिट में लिया जाये।

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  14. कानाफूसी बहुत हुई पर, कानों में ही उलझ गयी
    कोई खुलकर बोल न पाया, मुँह में कोका-कोला था
    ये तो गज़ब ही हो गया ....

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  15. प्रो. नामवर सिंह
    kaa blog to ab banvaa hi diya hoga !!!!

    aur un dono blogger ko jinkae vishay mae chokherbali par aksar likha jaata haen ki un par rape aur molestation kaa case chal rahaa unko manch par !!! kyaa kehtey haen aap kitna jantey haen is hindi ki bloging ko

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  16. मजेदार रचना :)
    विवेक जी आप तो हरफनमौला ब्लोगर हो गए हो | सभी विषयों में दक्ष ,बहुमुखी प्रतिभा के धनी :)

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  17. कोई खुलकर बोल न पाया, मुँह में कोका-कोला था

    सच्ची?

    बी एस पाबला

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  18. आपने भी तो मौका देख चौका मार दिया है ( कविता के रूप में :)

    जहां चार लोग जुटेंगे तो ऐसी बातें होंगी ही....औऱ ब्लॉगिंग के ब्लॉ ब्लॉ....का मतलब भी तो यही है....ब्लॉ...ब्लॉ :)

    लोग जुटे....लोग फेस टू फेस हुए....दो चार बातें हुई.....दो चार मनमुटावात्मक मौके आए....और कुल मिलाकर इस पर चरचा चली।


    वैसे,
    गिरिजेश राव जी की एक टिप्पणी में कहीं लिखा था कि मैं परस्पर मिलने की बजाय वर्चुअल रहना पसंद करूंगा...मिलने पर कोई पुराना अक्स जो जहन में है वह गायब हो सकता है....

    ऐसा ही कुछ लिखा था गिरिजेश जी ने। पूरा शब्द तो याद नहीं। लेकिन उनकी यह टिप्पणी काफी जंच रही है।

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  19. और जितना सच बोला गया न ..उ कोका कोला पीते ही जो गैसवा निकलता है न..उसी के साथ बाहर आया था..है न राजा बाबू....

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  20. अपनी बात को बड़े सलीके से कह गए, भाई बधाई।

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  21. बेजोड़...मौके पर फिर से ग़ज़ल।

    जबरदस्त काफ़ियों ने मिलकर नामवर को टटोला है।

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  22. pet pakad kar hasana pad raha hai bahut dino bad mahsoos hua ki hasane me bhee dard hai .
    is lekhan shailee ko aadab .

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