सोमवार, मार्च 22, 2010

कहहुँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं

चेतावनी : कृपया इस लेख को पढ़ने के बाद एक दिन का नहाना रद्द कर दें इसे पढ़कर यदि किसी पाठक को उल्टी आने लगे अथवा स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई और दिक्कत हो तो इसमें हमारा कोई दोष नहीं होगा हर्जे खर्चे के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे विवाद की स्थिति में न्यायालय स्वप्नलोक ही होगा हमने यह लेख खूब सोच समझकर लिखा है हमें इससे अच्छा लिखना आता ही नहीं तो इसमें हमारा कोई दोष नहीं
रहीम जी ने बहुत पहले चेतावनी जारी कर दी थी । पर लोग समझें तब न । अन्यथा आज विश्व जल दिवस मनाने की आवश्यकता ही क्यों पड़ती । देखिए तो यह दोहा :
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून
पानी गए ऊबरे, मोती, मानुस, चून

पर हमारे यहाँ चेतावनी के खिलाफ़ जाने की परम्परा बहुत पुरानी है । समझा जाता है कि जहाँ नो पार्किंग लिखा है वह जगह गाढ़ी पार्किंग लायक है । जहाँ शूशू करने की मनाही लिखी होती है वहीं लोग शूशू करते दिखते हैं । इसके पीछे आखिर क्या कारण है ?
हमें लगता है कि लोगों के मष्तिस्क में चेतावनी लिखी देखकर दो बातें साफ हो जाती हैं । पहली तो यह कि यह जगह अवश्य ही जिस वर्जित उद्देश्य के लिए प्रयोग करने लायक है । और दूसरी यह कि यहाँ कोई रोकने-टोकने वाला होगा इसके चान्सेज बहुत कम हैं । क्योंकि रोकने-टोकने वाला तो चेतावनी लिखकर फूट लिया । उसके पास यहाँ रखवाली करने का टाइम होता तो चेतावनी लिखने की जरूरत ही क्या थी ?
वैधानिक चेतावनी की वैल्यू तो और भी कम है । सिगरेट और तम्बाकू के पैकेट पर भी यही चेतावनी लिखी रहती है । इसे पढ़कर लगता है कि लिखने वाले ने मजबूरी में लिखी है । डण्डे के डर से । यही सोचकर बेचारे के प्रति दयाभाव उमड़ आता है । इसी कारण लोग नुकसानदायक जानते हुए भी सिगरेट पी लेते हैं ।
चेतावनी का ही एक प्रकार डिस्क्लेमर है । इसकी हिन्दी मुझे मालूम नहीं । इसमें सीधे-सीधे जो मन में आए लिख दिया जाता है । सामने वाले की गरज होगी तो डिस्क्लेमर मानेगा ही । बड़े-बड़े धाँसू ऑफ़र देकर कम्पनियाँ नीचे छोटे अक्षरों में लिखती हैं 'शर्तें लागू' । लिख दिया जाता है कि विवाद की स्थिति में न्यायालय हमारा वाला ही होगा । हर्जे खर्चे के जिम्मेदार आप स्वयं होंगे । अपने सामान की रक्षा स्वयं करें । बिका हुआ माल वापस नहीं होगा आदि आदि ।
रामायण में भी में भी जब मुनि परशुराम के सामने लक्ष्मण जी ऐंड़ गये तो परशुराम जी ने भी डिस्क्लेमर जारी कर दिया था ।
काल कवलु होइहिं छिन माहीं कहहुँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं

12 टिप्‍पणियां:

  1. इस दोहा के साथ हमारा नाम कतई गलत है , हमने पानी वानी के लिए कभी कुछ नहीं लिखा
    इसे तुरंत हटा दे वरना यहाँ नरक में तारीख भुगतने के लिए तैयार रहे
    सही दोहा ये था
    रहिमन चमचा राखिए, बिनु चमचा सब सून ।
    चमचा बिना न जानिये , नेता अभिनेता अफसर कौन ॥

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  2. भई सारी पोस्ट तो आपने डिस्कलेमर के चक्कर में निकाल दी। विषय का कहीं नामोनिशान भी नहीं दिखाई दिया। ये तो पाठकों के साथ सरासर चीटिंग है जी :-)

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  3. वर्जित सम सपनेहु सुख नाहीं
    अच्छा लिखना आता नहीं पर अच्छा लिखने की आदत है शायद्

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  4. अरे यह रहिम चचा कूद ही आ गये अपनी आत्मा सहित अब पहले फ़ेसला कर ले कि पानी के बारे लिखा है या फ़िर...
    रहिमन चमचा राखिए, बिनु चमचा सब सून ।
    चमचा बिना न जानिये , नेता अभिनेता अफसर कौन ॥

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  5. चमचे वाला इस तरह से है :-
    बन्धु चमचा राखिये, बिन चमचा सब सून.
    चमचा गर नहिं मिल सके, ले लें इक स्पून.
    ले लें इक स्पून, काम जो चमचा आवे.
    लगा लीजिये शर्त, नहीं दूजा कर पावे.
    कह दानव कविराय, कढ़ाई, थाली, कड़छा.
    रह जाते सब नीचे, मुंह तक जाता चमचा.

    -आपका दानव कविराय

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  6. मुझे यहाँ ऊपर की ओर शिव भैया की झलक दिखायी दी ;)

    एंवेइ कह दिया हूँ। बाकी आपकी पोस्ट का विषय क्या था? यह तो हम जान ही नहीं पाये। (...सिर खुजा रहा हूँ)

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  7. सिर्फ " चेतावनी" नहीं " वैधानिक चेतावनी " लिखिए :)

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  8. दोनों बातें आपने बहुत सही पकड़ी....और उनका इंतेर्प्रेतेसन भी बहुत सही निकाला है आपने ......आम भारतीय बहरहाल सोचते इसी तरह हैं.....! मन को उद्वेलित करने वाला चुटीला लेख

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  9. बिलकुल सही लोग वही काम करना पसंद करते हैं जिसके लिये मना किया जाये जैसे कि फैशन टीवी

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