मंगलवार, अप्रैल 20, 2010

मच्छी में काँटा

गरमी का मौसम है । पारा थर्मामीटर को फाड़कर निकल जाने की फ़िराक में है । डाक्टर लोगों का कहना है कि गरमी से बचकर रहें । कहीं ऐसा न हो कि बाद में दवा खानी पड़े या सुई लगवानी पड़े ।सुई चुभती है । सुई लगने का अपना अलग ही डर होता है । बच्चों को सबसे ज्यादा डर सुई से लगता है । अस्पताल का नाम सुनते ही वे कल्पना कर लेते हैं कि सुई लगाई जा रही है । रोने लगते हैं और ठीक होने का बहाना करते हैं । सुई का डर बड़ों को भी कम नहीं होता । कुछ लोग तो बुढ़ापे तक भी इस डर से नहीं उबर पाते । सुई छुआते ही बच्चों की भाँति बिलखने लगते हैं । जितना सुई लगने में नहीं तड़पेंगे उससे ज्यादा पहले ही कराह लेते हैं । जो आदमी भालों और तलवारों से नहीं डरता उसे सुई से डरते देखा गया है । शायद ऐसे लोगों के लिए ही रहीम जी ने लिखा होगा:

जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि ॥


सुई को आदमी ने बनाया है तो भगवान ने काँटे को बनाया है । काँटा भी चुभता है । काँटों से तो श्री राम जी भी डरते थे । इसीलिए तो वनवास जाते समय सीता जी को काँटों से भयभीत करने का प्रयास किया । काटें के कारण ही खड़ाऊँ का आविष्कार हुआ होगा । कांटे से प्रेरणा लेकर ही तीर की खोज हुई होगी ।
वैसे तो आँख में कुछ भी चुभने पर काँटे के चुभने जैसा दर्द होता है पर असल में काँटा लगे तो तीव्र वेदना होती होगी । इसीलिए आँख का कांटा मुहावरा बना है । कहा जाता है कि काँटा और शत्रु रात को सोने से पहले अवश्य याद आते है और कष्ट पहुँचाते हैं । इसीलिए यथासंभव काँटा लगने पर उसे दिन में ही निकाल दिया जाता है । मछली में भी काँटा होता है । जहाँ हमें जानकारी है, काँटे वाली मछली को लोग कम पसंद करते हैं ।

बचपन में एक गाना गाते थे:

एक, दो, तीन
बुड्ढे की मशीन
बुड्ढा गया जेल
हम गए रेल
रेल करती छुक-छुक
हमने खाए बिस्कुट
बिस्कुट बड़े खराब
हमने पी शराब
शराब बड़ी अच्छी
हमने खायी मच्छी
मच्छी में काँटा
हमने मारा चाँटा


और पास में बैठे साथी को चाँटा मार देते थे ।

काँटे केवल अनुपयोगी ही नहीं हैं । काँटों का सदुपयोग भी किया जा सकता है और किया जाता है । काँटे का उपयोग छुरी के साथ खाना खाने के लिए भी किया जाता है । खाना खाते समय छुरी किस हाथ में पकड़नी है और काँटा किस हाथ में पकड़ना है इसका भी संविधान है । जिसे यह नहीं पता उसे सभ्य समाज में एकदम गँवार समझा जाता है । सच कहें तो हमें खुद नहीं पता यह छुरी काँटे का यह नियम ।

सीमा पर काँटेदार तार लगाकर आतंकवादियों की घुसपैठ को रोकने की कोशिश हमारी सरकार करती रही है । जब कुएं में बाल्टी गिर जाती है तो काँटे से ही उसे निकालने का प्रयास किया जाता है । अधिकतर मामलों में सफलता मिल ही जाती है ।
धर्मकाँटा भी बहुत उपयोगी साधन है । इसका उपयोग बड़े भारी वाहनों का वजन ज्ञात करने के लिए होता है।

यह कहावत तो सबने सुनी होगी कि काँटे से ही काँटा निकाला जाता है । काँटे को ही भगवान ने फूलों की रक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा है । जिस फूल की रक्षा काँटा नहीं करता उसे दुनिया वाले बड़ी आसानी ने मसल देते हैं । कुछ जीवों को भी भगवान ने अपनी सुरक्षा के लिए काँटा नामक हथियार प्रदान किया है । ततैया, मधुमक्खी और बिच्छू के डंक भी काँटे के ही रूप हैं । 

बॉलीवुड ने भी काँटे को खूब भुनाया है । 'फूल और काँटे'  फिल्म बड़ी हिट हुई थी । राजेश खन्ना जी की फिल्म 'आपकी कसम' का गाना 'काँटा लागे न कंकर' तो सभी को याद हो होगा । इसके अलावा 'काँटा लगा.. बेरी के पीछे.' नामक गाना  तो धमाल ही कर गया था ।

कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि काँटे को उसका वह स्थान कभी समाज ने नहीं दिया जिसका वह वास्तव में हकदार है । उसे जब चाहा काम निकाल लिया । जब चाहा काँटा कहकर उपेक्षित कर दिया । सरकार से हमारी माँग है कि काँटे को उसका उचित स्थान मिलना ही चाहिये ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. विवेक जी, बचपन में ही शराब पीने की बात - राम राम राम।

    जवाब देंहटाएं
  2. काँटे केवल अनुपयोगी ही नहीं हैं । काँटों का सदुपयोग भी किया जा सकता है

    जवाब देंहटाएं
  3. ये पोस्ट पढ़कर मुझे काटो तो खून नहीं...

    जवाब देंहटाएं
  4. काँटे के पक्ष में / संरक्षण के लिये आवाज उठाने में हम तभी तक आपके साथ हैं जब तक यह दूसरों को चुभाने के लिये प्रयोग होता रहे.

    जवाब देंहटाएं
  5. जो तो को कांटा बवै वाये बोये तू भाला...
    ये तो आपने भी पढ़ ही रखा होगा... :)

    जवाब देंहटाएं
  6. "जहाँ हमें जानकारी है, काँटे वाली मछली को लोग कम पसंद करते हैं । "
    किसी बंगाली बाबू मोशाय से पूछ कर कम से कम जानकारी तो दुरुस्त कर लीजिये -बाकी काँटा लगा रे टाईप पोस्ट है !

    जवाब देंहटाएं

मित्रगण