बुधवार, अप्रैल 21, 2010

कब तक यह सिलसिला चलेगा

शाम ढले आ बैठा घर में,
अतिथि एक अनजाना ।
मुस्काया वह बता स्वयं को,
मेरा मित्र पुराना ॥

बोला, "यूँ क्यों घूर रहे हो,
क्या अब तक हो रूठे ?
बात-बात पर गाल फुलाते,
तुम हो बड़े अनूठे ॥

बड़े दिनों से चाह रहा था,
तुमसे मिलने आना ।
मौसम अब अनुकूल हो गया,
मैंने कल ही जाना ॥

हवा मार्ग से आया हूँ,
जैसे ही देखा मौका ।
लेकिन भाई मुझे देखकर,
तू ऐसे क्यों चौंका ?

पिछली बार गया था जल्दी,
थी मेरी मजबूरी ।
जाड़ा समयपूर्व आया था,
तन पर सिर्फ़ फतूरी ॥

तुमको तो मालुम होगा,
मैं जाड़े से डरता हूँ ।
मित्रों के घर टूर सिर्फ़,
गरमी में ही करता हूँ ॥

कला पारखी मुझको कोई,
नहीं मिला है ऐसा ।
कद्रदान यदि मिले किसी को,
मिले तुम्हारे जैसा ॥

मेरे करतब देख देख तुम,
ताली खूब बजाते ।
गरमी में पंखा झलकर,
मुझको ठंडक पहुंचाते ॥

सुन मेरा संगीत मधुर,
तुम ऐसे खो जाते हो ।
चाँटा मार गाल पर अपने
खुद ही, रो जाते हो ॥

मैंने नहीं अतिथि सत्कारी,
देखा कोई ऐसा ।
मेरे लिए हवन-पूजा में,
खर्च करे जो पैसा ॥

जला अगर बत्तियाँ,
धुआँ करने में तुम जुटते हो ।
मेरी साँसे महकाते हो,
यद्यपि खुद घुटते हो ॥

अब तुमसे क्या शरमाना,
जब खुला हुआ ही खत है ।
बुरा कहो या भला मित्र,
मुझको पीने की लत है ॥

शायद कुछ अटपटा लगे,
पर मेरी है अभिलाषा ।
रक्तदान कर शान्त करो,
तुम मेरी रक्त-पिपासा ॥

टूटे कितने नाते लेकिन,
यह मित्रता न तोड़ी ।
मच्छर और आदमी की,
यह कैसी सुन्दर जोड़ी !"

इतना कहकर झपट पड़ा,
मेरी गर्दन पर पीछे ।
जब तक मैं सँभलूँ, तब तक
वह उतर गया था नीचे ॥

मैंने खूब प्रयास किया,
मैं उसको मजा चखाऊँ ।
इसको समझौता कह लो,
क्यों अपनी हार बताऊँ ॥

युद्ध-विराम हो गया,
वह उड़कर जा बैठा ऊपर ।
ठगा हुआ सा उसे देखता,
बैठ गया मैं भू पर ॥

जब उसका मन हो, आकर
वह लहू चूस लेता है ।
लेकर वोट भाग जाता है,
जैसे वह नेता है ॥

कब तक यह सिलसिला चलेगा,
यही सोच रह जाते ।
उसे रोकने के साधन,
लगता है, रिश्वत खाते ॥

फिर लगता है, यही नियति है,
अपना खून चुसाओ ।
अपने ही गालों पर खुद ही,
चाँटे रोज लगाओ ॥

12 टिप्‍पणियां:

  1. अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

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  2. मच्छर और नेता को खूब आँका एक ही पलड़े में ...
    अच्छी कविता ...!!

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  3. Machchar puran me maza aagya....

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  4. तबियत जो खराब थी
    अब गुलाब गुलाब हो गयी.
    बहुत खूब.

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  5. इसे तो मैं अपने बच्चों को याद कराऊंगा..

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  6. अजी बडे अजीब अजीब मित्र बन रखे है आप ने, आप से मिलने आना था अब डर लगता है आप के मित्रो से....
    राम राम

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  7. मच्‍छर पर इससे अच्‍छी और मजेदार कवि‍ता क्‍या होगी।
    बहुत खूब।

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  8. waah waah ..
    mai to soch bhi nahi sakti ki machchar per bhi koi kavita likh sakta hai..
    really very interesting..
    shuru se le kar ant tak yahi sochne per majboor ki aakhir kiske baare me ye kavita likhi gayi hai..
    yahi aapki poem ko bahut interesting bana rahi hai.. :)

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  9. आईये... दो कदम हमारे साथ भी चलिए. आपको भी अच्छा लगेगा. तो चलिए न....

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