बुधवार, अप्रैल 14, 2010

जिन्हें राष्ट्र ने जन्मा वे ही, राष्ट्रपिता कहलाएं

अपना क्या है, तुम कह दो तो, हम तो मान भी जाएं ।
पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥

देश तरक्की बहुत कर लिया, सर जी ! हमने माना
किन्तु आज भी सिर पर मानव ढोता है पाखाना
अगर न ढोये, शायद बच्चे भूखे ही रह जाएं।

पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥

उद्योगों ने करी तरक्की, खरबपति खुश होते
बिटिया बढ़ती देख बाप अब भी किस्मत पर रोते
शादी अच्छी जगह हो सके, क्या तिकड़म बैठाएं।

पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥

जो पिछड़े हैं संसाधन पर पहले उनका हक है
लेकिन यह वर्गाधारित हो, यह सब क्या बकबक है
उच्च जातियों के गरीब क्या भूखे ही मर जाएं ?

पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥

जनता मालिक ? कर मजदूरी अपना टाइम काटे
जनसेवक ऐसी में लेटे, भरते हैं खर्राटे
उनको है अधिकार कि वेतन, अपना स्वयं बढ़ाएं

पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥

कुछ बेचारे जैसे-तैसे अपने बच्चे पालें

कुछ उन बच्चों से अच्छे तो कुत्ते-बिल्ली पालें
उनकी जूठन उतनी, जितना ये सब खा ना पाएं ।
पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥

राष्ट्र व्यक्ति से सदा बड़ा है, तुमने ही बतलाया
लेकिन कभी आपने हमको यह तो नहीं पढ़ाया
जिन्हें राष्ट्र ने जन्मा वे ही, राष्ट्रपिता कहलाएं ।

पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥


दो दो पोस्ट एक दिन में, ऐसी भी क्या आफ़त थी
तुम  तो नावाकिफ़ हो जी, यह बहुत पुरानी लत थी
आज लिखें कल करें प्रकाशित, सब्र न हम कर पाएं ।
पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥


अपना क्या है, तुम कह दो तो, हम तो मान भी जाएं ।
पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥

6 टिप्‍पणियां:

  1. सिर पर ढ़ोते पखाना, बिल्कुल सही ।

    आज लिखें कल करें प्रकाशित, सब्र न हम कर पायें बिल्कुल सही।

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  2. आज लिखें कल करें प्रकाशित, सब्र न हम कर पाएं ।
    पर यह पगला नहीं मानता, दिल को क्या समझाएं ॥
    सब्र करें ही क्यों लिखा है तो प्रकाशित करवाना ही चाहिये.
    सुन्दर

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  3. जिन्हें राष्ट्र ने जन्मा वे ही, राष्ट्रपिता कहलाएं ।

    बहुत बढ़िया और विचारणीय पंक्ति |

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