सोमवार, नवंबर 17, 2008

ब्लॉगिंग पर रोक ?

"जी हाँ ! अगर सूत्रों की मानें तो सरकार ब्लॉगिंग पर रोक लगाने का पूरा मन बना चुकी है । ब्लॉगिंग पर रोक लगाने की इस कवायद को काफी सधे हुए कदमों से अंजाम दिया जारहा है ताकि ब्लॉगरों को कानोंकान खबर न हो अन्यथा ये लोग अपने अपने ब्लॉग में सरकार के खिलाफ लिखकर ऐण्टी-इनकम्बेंसी फैक़्टर को मजबूत बना सकते हैं । दर असल इस पूरे प्रकरण का आधार पिछले दिनों कराया गया एक गुप्त सर्वेक्षण है जिसके अनुसार ब्लॉगिंग देश के लिए आने वाले दिनों में एक लाइलाज महामारी के रूप में सामने आसकती है । इसलिए इस जहरीले पौधे को दरख्त बनने से पहले ही उखाड देना बेहतर होगा .इससे जुडे हुए लोग वैसे तो देश के हर हिस्से में हर गली कूचे और ऑफिस में हैं तथा काफी लोगों को इसकी लत पड चुकी है. और दूसरे सीधे सादे लोगों को भी अपने ब्लॉग पढा पढाकर उत्तेजित करते रहते हैं . मगर आज हम बात कर रहे हैं चिकित्सा जगत में फैली हुई इस बुराई की . जी हाँ अपने को भगवान का प्रतिनिधि मानने वाले और पब्लिक में सम्मान प्राप्त डॉक्टर लोग जिनके कंधों पर देश का स्वास्थ्य टिका हुआ है बडी संख्या में ब्लॉगिंग की पकड में आ चुके हैं . ऐसे डॉक्टर का ध्यान मरीजों का इलाज करने से ज्यादा ब्लॉगिंग में रहता है .ये लोग रात को ढाई तीन बजे ही कुछ उल्टा सीधा लिखकर ( जिसको ब्लॉगिंग की भाषा में पोस्ट कहा जाता है ) इण्टरनेट पर डाल देते हैं ताकि बाकी लोग उसे पढकर या बिना पढे अपनी प्रतिक्रिया दे सकें जिसे इनकी भाषा में टिप्पणी कहा जाता है . इसके बाद सारा दिन इनकी एक आँख मरीज की तरफ तो दूसरी कम्प्यूटर स्क्रीन पर लगी रहती है . बीच बीच में ये खुद भी टिप्पणियाँ भेजते रहते हैं ताकि दूसरा ब्लॉगर भी, शिष्टाचारवश ही सही, टिप्पणी भेजने पर मजबूर हो जाय . एक बार तो ऐसा देखा गया कि कोई डॉक्टर पेशेण्ट को इन्जेक्शन लगारहा था कि अचानक उसके ब्लॉग पर टिप्पणी आगई . टिप्पणी पढने के चक्कर में उन महाशय ने सही दवा की बजाय खाँसी की सीरप को ही सिरिंज में भरके मरीज के शरीर में प्रविष्ट करा दिया . बेचारा मरीज जब चिल्ला रहा था तो आप हिल जाएंगे सुनकर कि डॉक्टर ने क्या बोला . अरे भाई पाँच ऐम ऐएल में ही इतनी त्वरित प्रतिक्रिया दे रहे हो, तुम्हें तो ब्लॉगिंग में होना चाहिए . इसी तरह आने वाले समय में हम आपको बताते रहेंगे कि अन्य व्यवसायों में यह बीमारी किस प्रकार नुकसान पहुँचा रही है . सरकार का मानना है कि ऐसे डॉक्टरों की पहचान करना और इन पर लगाम कसना टेढी खीर है . मगर जब ब्लॉगिंग को ही बैन कर दिया जाएगा तो न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी . "
टीवी एंकर ऐसा कह ही रहा था कि मेरी आँख खुल गई, और सपना अधूरा ही रह गया .

32 टिप्‍पणियां:

  1. सपनों में वही तो आता है जो दिमाग में चलता है :-)

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  2. जाईये और सो जाईये.. जगने के बाद पूरा हाल सुनाईयेगा.. यूं कहानी अधूरी नहीं छोड़ते हैं.. :)

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  3. वैसे ऐसा प्रूव तो हुआ नहीं है अभी कि जो सोचें वही सपना दिखे . हाँ कभी कभी ऐसा होता जरूर है . और सोने के बाद फिर से यही सपना आएगा या नहीं क्या पता ? कोशिश करते हैं .

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  4. खुद तो सपना देख लिए विवेक भाई पर ख़ामाख़्वाह एक पल के लिए दूसरो की नींद उड़ा दी .. सरकार से डरने की ज़रूरत नही वो नींद से नही जागती चाहे कैसा भी सपना क्यो ना देख ले..

    हालाँकि सुरक्षा की दृष्टि से हम अपने ब्लॉग पे नींबू मिर्ची लगा देते है... ताकि किसी की बुरी नज़र नही लगे..

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  5. ये लोग रात को ढाई तीन बजे ही कुछ उल्टा सीधा लिखकर ( जिसको ब्लॉगिंग की भाषा में पोस्ट कहा जाता है ) इण्टरनेट पर डाल देते हैं ताकि बाकी लोग उसे पढकर या बिना पढे अपनी प्रतिक्रिया दे सकें जिसे इनकी भाषा में टिप्पणी कहा जाता है . इसके बाद सारा दिन इनकी एक आँख मरीज की तरफ तो दूसरी कम्प्यूटर स्क्रीन पर लगी रहती है . बीच बीच में ये खुद भी टिप्पणियाँ भेजते रहते हैं ताकि दूसरा ब्लॉगर भी, शिष्टाचारवश ही सही, टिप्पणी भेजने पर मजबूर हो जाय .

    बहुत कटु सत्य लिखा भाई आपने ! ऐसा तो सभी ब्लॉगर करते हैं ! :) पर आपके व्यंग में दम तो है विवेक जी !
    बात बिल्कुल खरी है भले कोई माने या ना माने ! धन्यवाद !

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  6. अरे भाई, तुमने तो जान ही निकाल दी थी. बहुत टैंसनवा होई गईल. सुकर है ई सब सपना था

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  7. भइया, आँख खुल गयी माने सपना सुबह का था. सुबह का सपना तो सच हो जाता है. कहीं सच में तो ब्लागिंग पर बैन नहीं लगने वाला?

    बहुत मस्त लिखा है. पढ़कर आनंद आया.

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  8. संप्रग सरकार तथा उसकी गुलाम मिडीया के विरुद्ध छोटा हीं सही, एक विकल्प तो प्रस्तुत किया हीं है ब्लागिंग ने । लगता है की चर्च प्रभावित शक्ति सम्पन्न राष्ट्र और उनकी गुलाम मिडीया इससे घबरा गई है। असत्य के खिलाफ एक छोटा सी अभिव्यक्ति भी दुर तक जाती है। हेंस अंडरसन का एमपररस न्यु क्लोथ के उस बच्चे की तरह है यह ब्लागिंग जो सत्य कहता है की राजा तो नंगा है।

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  9. आप सपने बहुत देखने लगे है, इलाज भी किसी न किसी ब्लॉग पर मिल जाएगा.

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  10. शुरूआत पढकर तनाव बढा। खैर , अंत में राहत मिली।

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  11. भाई विवेक जी, आपने तो बड़ा ही खतरनाक सपना देखा है। ब्लोगिंग पर रोक से तो मेरा दिल धक्-धक् नहीं धाड़-धाड़ करने लगा था।

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  12. are kaahe darate ho vivek bhaiyaa.khamkha dam nikal diya.naukari to sachhikhabar ke chakkar me chhutati rahti hai.patrakairati ke liye yahi ek sahara bacha hai,uske band hone ki khabar dekar daraa diye the bhaiyaa.aisa ant-shant sapne dekhana band karo.bistar ke nichhejoote rakho.aur achhe sapne dekho bhale hi kisi ko batana mat,

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  13. ब्लाग पर बैन की अफ़वाह फ़ैला कर क्यों ब्लागियों की जान के दुश्मन बन गये आप ? कम से कम ऊपर चेतावनी ही डाल देते कि कमज़ोर दिल वाले ब्लागर पोस्ट को दिल थाम कर पढें । वैसे विश्वस्त सूत्रों के हवाले से पता चला है कि आपकी पोस्ट ने सरकार को लोगों पर नकेल कसने का एक आइडिया दे ही दिया है । और हां उन सभी ब्लागर डाक्टरों की लिस्ट भी जल्द से जल्द सार्वजनिक करें ।

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  14. hamara to dil hi baith gaya tha,aakhari mein rahat huyi,bahut mast lekh:)badhai

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  15. "स्वप्नलोक" ब्लॉग नाम को सार्थक करती पोस्ट!

    यह जरूर है कि बच्चों और ब्लॉगरों को समय से सो जाना चाहिये। पोस्ट शिड्यूलिंग की सुविधा जो है!

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  16. आपने तो डरा ही दिया था ...कुछ पता नही जी आज कल कौन किस पर कहाँ रोक लगा दे ..:)

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  17. भई, मजा आ गया पढ़कर, क्‍या ट्वीस्‍ट मारा है।

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  18. भाई वाह...हा हा हा...रोचक पोस्ट...और बहुत हद तक सही बात भी...
    नीरज

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  19. डाक्टर साहब इस पर एक पोस्ट लिखने वाले हैं। रात को तीन बजे! तब तक अगला सपना सुनाओ!

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  20. अब अगला सपना अपनी मरजी से तो देख नहीं सकते . सपने की मरजी है दिख गया तो ठीक नहीं दिखा तो हरे हरे :)

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  21. सरकार चाहे जो कर ले मैं डाक्टरी छोङ सकता हूं ....पर ब्लोगिंग नहीं

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  22. प्रिय विवेक, कई तानाशाह देशों ने चिट्ठाकारी को न केवल नियंत्रित कर दिया है बल्कि जम कर चिट्ठाकारों का दमन किया है. अत: यह आलेख पढा तो कलेजा मूंह को आ गया. बल्कि काटो तो खून नहीं कि अब क्या होगा.

    इस बीच यह भी लगने लगा कि मेरे शरीर कि सारी तकलीफें हो न हो किसी चिट्ठाकार डाक्टर की करतूत है.

    अंत में "नींद खुली" तो ऐसा लगा जैसे एक बार और जीवनदान मिल गया हो.

    इस गजब के आलेख के लिये आभार !!


    सस्नेह -- शास्त्री

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  23. जाने अन्जाने में आपने चेता तो दिया कि ऐसा कभी भी हो सकता है।
    बहुत बढ़िया व्यंग्य। पढ़ कर अच्छा लगा।
    ॥दस्तक॥
    गीतों की महफिल
    तकनीकी दस्तक

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  24. vivek bhai, aaj shaayad pehlee baar hee apke blog par aayaa hoon aur wada raha ki ab ise bhee apnaa adda banayenge.

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  25. आदरणीय
    अब तो बड़े हो जाइए .
    अभी पिछली पोस्ट में तो बर्थडे मना कर बड़े हुए थे.
    अब आप सपने अच्छे देखिये .आप सपने में भी ब्लॉग देखते हैं .
    वैसे पोस्ट रोचक है

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  26. बहुत बढ़िया! चौंका ही दिया इस सपने ने !

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  27. अच्छा हुआ जे ये सपना ही था .....मेरी तो जान ही निकल रही थी....ऊपर जाकर ब्लोगिरी के माध्यम से ही आप सबसे जुड़ पाया...वरना आपका पता कहाँ था..??
    और जीते-जी मेरा पता कहाँ था....??

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  28. विवेक भाई, ये सपना नहीं था...हकीकत ही थी....

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  29. और जो लोग ब्लॉग्गिंग के बारे में सपने देखते हैं उनका क्या उनको कोई पकड़ेगा की नहीं कायदे से तो ऐसी खतरनाक बीमारी को रोकने के लिए हर संभव प्रयास होने चाहिए...संक्रमण आपमें भी है...इलाज करना होगा :)

    कमाल लिखा है...पढ़ कर चकरा गए हम तो.

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