रविवार, नवंबर 07, 2010

ओ मामा कुछ देते जाना

ओ मामा कुछ देते जाना
सीट सुरक्षा परिषद की दो
या देने का करो बहाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
थोड़ी सी तारीफ हमारी
कर दोगे यदि अबकी बारी
बिगड़ेगी न तबीयत थारी
फिर यूँ काहे का शरमाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
"भ्रष्टाचार कहीं भारत में
मिला न मुझे किसी हालत में
है ईमान यहाँ नीयत में"
दुनिया को ऐसा बतलाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
पाक पड़ौसी को हड़काना
खुलेआम कुछ डाँट पिलाना
बेशक करके फोन मनाना
खेप डालरों की भिजवाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
संकट में देश की लाज है
दकियानूसी यह समाज है
ऊपर से कोढ़ में खाज है
चलन गाल से गाल मिलाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
सीट सुरक्षा परिषद की दो
या देने का करो बहाना
ओ मामा कुछ देते जाना

16 टिप्‍पणियां:

  1. या देने का करो बहाना
    ओ मामा कुछ देते जाना


    -बहाना ही कर पायेंगे बस!!


    शुभ दीपावली!

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  2. मामा तो बना गये बहाना
    डाल गये चुग्गा और दाना..

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  3. ये क्या देंगे जिनका काम ही है दूसरों को लड़ाकर अपनी पेट भरना .....इनकी संगत में हमारे सभी मंत्री भी ऐसा ही कर रहें हैं इस देश और समाज में ....

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  4. ये मामा तो देने के बजाय लेने आया है !

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  5. संकट में देश की लाज है
    दकियानूसी यह समाज है
    ऊपर से कोढ़ में खाज है
    चलन गाल से गाल मिलाना
    ओ मामा कुछ देते जाना,
    विवेक जी
    कविता तो सुंदर है , जो कभी मानवता को समझे ही नहीं , उनसे क्या अपेक्षा की जा सकती है , चालबाजी के सिवाय जिन्हें कुछ आता ही नहीं वो क्या दे पाएंगे ?.....
    काश ऐसा भी होता ..
    तो क्योँ आज आदमी धरती पर रोता ,
    पराया तो कोई नहीं है यहाँ पर
    यह समझ होती तो
    इंसान- इंसान का दुश्मन ना होता ,
    शुभकामनायें

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  6. मामा मामा बने ओबामा
    स्कूली बच्चों ने थामा
    मांग रहे हैं चंद्र खिलौना
    कृष्ण नहीं, अब आप सुदामा

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  7. मामा भूल गये हैं भांजे को। दुंदभी बजती रहे, याद दिलाना पड़ेगा।

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  8. घर वाले खाए शक्कर
    ऐसा है अपना चक्कर
    इस चक्कर में तुम न आना
    ओ मामा ...ओबामा

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  9. पाक पड़ौसी को हड़काना
    खुलेआम कुछ डाँट पिलाना
    बेशक करके फोन मनाना
    खेप डालरों की भिजवाना
    ओ मामा कुछ देते जाना
    वाह वाह ेऔर कुछ करें या न मगर खेप तो भिजवा ही देंगे। शुभकामनायें।

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  10. देते जाना !!!
    (कउए के घोंसने में मांस की उम्मीद)

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