बुधवार, सितंबर 07, 2011

शर्म मँगाओ




शर्म मँगाओ !


संसद के गलियारों में है इसकी किल्लत


शर्म मँगाओ !



बम फूटे हौसला न टूटे,


मंत्रालय न हाथ से जाए ।


चाहे पड़े झेलनी जिल्लत


पर मंत्रीपद को न गँवाओ


शर्म मँगाओ !


बिना शर्म के नहीं चलेगा


कुछ उपाय कुछ बात करो


करो देश में ही वसूल


या बाहर से आयात कराओ


शर्म मँगाओ !



संसद के गलियारों में है इसकी किल्लत


शर्म मँगाओ !

गुरुवार, सितंबर 01, 2011

मेरा तुझे प्रणाम सितम्बर



धूप-छावँ का नाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर


वसुधा तृप्त हुई जल पीकर
हरियारी फैली धरती पर
धरती का गुलफ़ाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर


वर्षा सारा जहाँ धो गई
लेकिन अब कुछ मंद हो गई
इसका अल्प विराम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर


बादल थककर वापस जाते
बचाकुचा पानी बरसाते
देता कुछ आराम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर


लगती ताजा हवा भली सी
धूप कुरकुरी तली तली सी
तलता है बेदाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर


खेतों में झूमते धान हैं
इन पर लट्टू सब किसान हैं
खुशियों का पैगाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर


वर्ष यहाँ से ढलान पर है
नदियाँ कुछ कम उफान पर हैं
नदी किनारे ग्राम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर


देख शरद ऋतु खड़ी द्वार पर
मस्ती सी छायी बयार पर
मेरा तुझे प्रणाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर


धूप-छावँ का नाम सितम्बर
कोई उजली शाम सितम्बर

बुधवार, अगस्त 24, 2011

डाक्टर अमर कुमार को श्रद्धांजलि !

आज इस टिप्पणीकार की तमाम टिप्पणियाँ रह रहकर याद आ रहीं हैं । हम जहाँ डॉक्टर साहब से मौज लेने के अवसर तलाशते रहते थे वहीं उनसे थोड़ा सा डरते भी थे कि कहीं हम कुछ ऐसा न लिखें जिससे उन्हें टोकना पड़े । यहाँ काफी कुछ मन में घुमड़ रहा है लेकिन अब लिखा न जाएगा ।

आज डॉक्टर अमर कुमार शरीर से हमारे बीच नहीं हैं । लेकिन वे हमारे  मन में हमेशा बने रहेंगे । मेरी उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !

मंगलवार, अगस्त 23, 2011

पतली गली से निकल जा



तेरा दावा है कि तू भारत का पूत है ।

मुझको लगता है कि तू दुश्मन का दूत है ॥


अक्ल से तू एकदम कंगाल हो गया ।

माना कि तेरे पास में दौलत अकूत है


मेरी माने तो अब आबरू बचा ले तू ।

पब्लिक खड़ी है देख ले हाथों में जूत है ॥


खींच ली जाएगी लंगोटी तेरी ।

सबको लगता है कि तू भागता भूत है ॥

रविवार, जुलाई 10, 2011

आया, मानसून आया

आज काफी दिनों के बाद ब्लाग पर आने का समय मिला है । असल में पड़ौस के बच्चों को स्कूल के लिए मौसम पर कविता लिखकर ले जानी थी । उनकी डिमाण्ड पर एक कविता लिखी तो सोचा इसे क्यों न ब्लॉग पर भी डाल दिया जाय जिससे इसका सूखा भी समाप्त हो सके । एक बार गरमी से परेशान होकर एक कविता लिखी थी "गर्मी की सरकार निरंकुश" । आज उसी श्रृंखला में यह कविता भी है ।

गर्मी की सरकार गिराने,
आया, मानसून आया ।
पड़े धूप के तेवर ढीले,
हुई बादलों की छाया ॥


भर उमंग में लगीं फुदकने,
चिड़ियाँ सब डाली-डाली ।
मधुर स्वरों में लगी बोलने,
कुहू-कुहू कोयल काली ॥


देख धरा पर चहल-पहल,
बूँदों का भी जी ललचाया ।
टप-टप गिरने लगीं भूमि पर,
मोर-नृत्य उनको भाया ॥


बारिश के देवता इंद्र ने,
इंद्रधनुष जब तान लिया ।
सूर्यदेव भी सहम गए,
चुप, पश्चिम को प्रस्थान किया ॥


धरती पर उत्साह, बाग में
फूल और हरियाली ।
सब कीचड़ बह गया,
साफ हो गयीं गावँ की नाली ॥

सोमवार, दिसंबर 20, 2010

सचिन की उम्र

सचिन को शतकों के अर्धशतक की बधाई । इस अवसर पर मैं सरकार को एक मुफ्त की सलाह देना चाहता हूँ कि वह सचिन की उम्र के बारे में बात करने को दण्डनीय अपराध घोषित करने के लिए एक कानून बनाए । इसके लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया जाय । फिर देखें कौन रोकता है संसद को चलने से ?

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शुक्रवार, दिसंबर 10, 2010

खूब किया सत्कार

मेहमानों का आपने, खूब किया सत्कार ।
गर्दन नीची हो गई, पहन-पहनकर हार ।।
पहन-पहनकर हार, फिरें कीवी इतराते ।
क्लीन स्वीप कर मेजबान भी दाँत दिखाते ।।
विवेक सिंह यों कहें, कर्ज यह ऐहसानों का ।
चुके जल्द से जल्द, फर्ज है मेहमानों का ।।

बुधवार, नवंबर 10, 2010

अब खड़ाऊँ शत्रुघ्न के हवाले

जब राम जी को वनवास के दौरान यह खबर मिली कि अयोध्या में घोटाला हुआ है तो वे न तो उदास हुए और न अपनी प्रसन्नता ही उन्होंने लक्ष्मण जी को जाहिर होने दी । पर जो लोग यह दावा करते थे कि वे खत का मजमून भाँप लेते हैं लिफ़ाफ़ा देखकर, उन्होंने यह दावा किया कि राम जी को खुशी हुई थी क्योंकि घोटाले का ठीकरा भरत जी के सिर फूट रहा था और रामजी की खड़ाऊँ साफ बच निकली थीं ।


भरत को वन में आने के आदेश दिये गए । भरत आए । साथ में सफाई भी लाए । इतनी सफाई लाए कि जंगल के पेड़ पौधे साफ़ हो गए और  जंगल में मंगल हो गया । उन्होंने कहा, " भैया ! होनी को कौन टाल सकता है ? घोटाला तो होना था सो गया । पर आप इसका पॉजीटिव पक्ष भी तो देखिए । आपके राज में घोटाला भी हुआ तो आदर्श !"


किन्तु राम जी न पसीजे । उन्होंने लक्ष्मण को मामले की जाँच करके रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया । लक्ष्मण तो इसी ताक में थे । उन्होंने जाँच करके रिपोर्ट दी कि अब भरत को वन में बुला लिया जाय ताकि यह अपना आदर्श कार्य बड़े स्तर पर कर सकें ।  खड़ाऊँ शत्रुघ्न के हवाले कर दी जाएं ।  


जब यह खबर अयोध्या वासियों को मिली तो वे राम की जय जयकार करने लगे ।
( कलयुग की रामायण से )

रविवार, नवंबर 07, 2010

ओ मामा कुछ देते जाना

ओ मामा कुछ देते जाना
सीट सुरक्षा परिषद की दो
या देने का करो बहाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
थोड़ी सी तारीफ हमारी
कर दोगे यदि अबकी बारी
बिगड़ेगी न तबीयत थारी
फिर यूँ काहे का शरमाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
"भ्रष्टाचार कहीं भारत में
मिला न मुझे किसी हालत में
है ईमान यहाँ नीयत में"
दुनिया को ऐसा बतलाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
पाक पड़ौसी को हड़काना
खुलेआम कुछ डाँट पिलाना
बेशक करके फोन मनाना
खेप डालरों की भिजवाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
संकट में देश की लाज है
दकियानूसी यह समाज है
ऊपर से कोढ़ में खाज है
चलन गाल से गाल मिलाना
ओ मामा कुछ देते जाना
 
सीट सुरक्षा परिषद की दो
या देने का करो बहाना
ओ मामा कुछ देते जाना

मंगलवार, अक्टूबर 19, 2010

जली तो जली पर सिकी भी खूब

यूँ तो हम सभी जानते हैं कि जो आया है उसे कभी न कभी जाना ही है । फिर भी अपने प्रिय से बिछुड़ जाने पर दुख तो होता ही है ।
यही दुख मुझे तब हुआ जब लगभग तीन साल तक उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते हमेशा मेरे साथ रहने वाला मेरा प्रिय मोबाइल नोकिया 6085 मेरा साथ छोड़ गया ।
उसके साथ मेरी कितनी यादें जुड़ी हैं, न पूछिए । बात दिसम्बर 2007 की है । डीमैट एकाउण्ट के लिये जीपीआरएस कनेक्शन लेने पर जब पता चला कि मेरे पास उपलब्ध मोबाइल से काम नहीं चलेगा तो झटके में नया मोबाइल लाया गया था । एक सनक थी कि आज ही इन्टरनेट चलाना है ।
विधि का विधान तो देखिए कि वह मोबाइल झटके के साथ ही गया । वर्धा जाते समय यह झटके के साथ जेब से गिरकर यह ऐसा गया कि मैं इसे बाय भी न बोल सका । इसके जाने से मुझे दुख तो होना ही था । साथ ही परेशानी भी खूब हुई होती । पर आयोजकों के हाथ बहुत लम्बे थे और मुझे परेशानी से निकाल लिया ।

मोबाइल खोया तो एक कहावत सच होती हुई लगी कि जली तो जली पर सिकी भी खूब । नया मोबाइल लेने का मन बहुत दिन से था लेकिन पुराने का क्या करें यही सवाल हल नहीं हो पा रहा था । शायद उसे इसका भान हो गया था और वह खुद ही शहीद हो गया ।

अब वर्धा से आते ही  नए मोबाइल की खोज शुरू हुई । खोजते खोजते प्रवीण पाण्डेय जी की एक पोस्ट मिली तो उन्हीं से सलाह लेने की ठानी । उन्हीं सिफारिशों को लागू करते हुए यह नोकिया C3 सेट लिया जिससे यह पोस्ट लिखी जा रही है ।

मित्रगण