गरमी की सरकार
निरंकुश, कोई रोक न टोक यहाँ ।
यदा कदा जो रहें
बरसते, हैं विपक्ष वे मेघ कहाँ ॥
सूर्य धूप तो देते
हैं, पर अब उनमें मृदुभाव नहीं ।
जब सरकार बन गई तो
जनता से रहा लगाव नहीं ।।
यूँ सरकार प्रमुख
का पद तो, गर्म हवा ने पाया है ।
लेकिन इसकी गरमी तो
बस, तेज धूप की माया है ॥
पंखों ने तो इसे
समर्थन, बिना शर्त ही दे डाला ।
कूलर सिर्फ़ नाम के
कूलर, उर में बसती है ज्वाला ॥
एसी सदा ध्यान रखते
हैं, बस अपने ही लोगों का ।
ये गैरों की ओर
बढ़ाते, बन्द लिफ़ाफ़ा रोगों का ॥
जो साधन सम्पन्न
लोग बस, उनसे ही यारी इनकी ।
उन्हें कदापि न
पहचानेंगे, खाली जेब पड़ी जिनकी ॥
कुएं विधायक
भूतपूर्व, ज्यों राजनीति हों छोड़ चुके ।
इनका फैशन पड़ा
पुराना, मतदाता मुंह मोड़ चुके ।।
एक समय था जब न,
ढूँढ़ने से मिलता नल सा दानी ।
गला स्वयं का सूख
रहा अब, हमको कैसे दे पानी ।।
दल-बदलू वे पेड़
जिन्होंने, गिरा दिए पत्ते अपने ।
कड़ी धूप में घनी
छाँव के, पूरे हो न सके सपने ।।
धूल असामाजिक है पर, पा मौन समर्थन
सरकारी ।
सबकी शुचिता भंग
करे, हो निडर फ़िरे अत्याचारी ॥
भले लोग बस आँख
बन्दकर, इसे सहन कर लेते हैं ।
जैसे नाविक तूफ़ानों
में, नौका अपनी खेते हैं ॥
बूढ़े बच्चों को
समझाते, " दुनिया आनी जानी है ।
जो उठता वह गिरता
भी है, सबकी यही कहानी है ॥
धीरज से लो काम हाल
यह, सदा नहीं रह पायेगा ।
कट-कट दाँत बजेंगे
ऐसा शीत भयंकर आयेगा ॥ "