गुरुवार, नवंबर 08, 2012

लगे नवम्बर माह सुहाना

 

कभी धूप से करे मित्रता

कभी छाँव के दल में जाना

बात अटपटी फिर भी हमको

लगे नवम्बर माह सुहाना

 

हमसे दूरी लगे बढ़ाने

अब ऐसे ये सूरज दादा

जैसे हमसे कर्ज लिए हों

करते हों हम रोज तकादा

 

पंखे की छिन गई नौकरी

कूलर, एसी के जैसी

हीटर की उम्मीद बढ़ गई

यद्यपि ठण्ड नहीं ऐसी

 

शीतल पवन मुफ़्त मिलती है

सुबह शाम की बेला में

जितनी चाहे भर ले कोई

निज साँसों के थैला में

 

जुकाम, खाँसी जैसे ठग हों

किसी ताक में रहते हैं

जो इनके जाल में फँसें वे

कई दिनों तक सहते हैं

 

पक्षी सर्दी से बचने को

बदल रहे अपने अड्डे

इसी सुहाने माह नवम्बर

आता है मेरा बड्डे !

 

मंगलवार, फ़रवरी 21, 2012

राष्ट्रीय एकता एवं प्रगति में हिन्दी भाषा का महत्व

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   इस निबंध को हिन्दी दिवस के अवसर पर नगर स्तरीय निबंध प्रतियोगिता के लिए लिखा गया था । जब इसे प्रथम पुरस्कार मिल गया तो जनता की भारी माँग पर इसे यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।

मित्रगण