कभी धूप से करे मित्रता
कभी छाँव के दल में जाना
बात अटपटी फिर भी हमको
लगे नवम्बर माह सुहाना
हमसे दूरी लगे बढ़ाने
अब ऐसे ये सूरज दादा
जैसे हमसे कर्ज लिए हों
करते हों हम रोज तकादा
पंखे की छिन गई नौकरी
कूलर, एसी के जैसी
हीटर की उम्मीद बढ़ गई
यद्यपि ठण्ड नहीं ऐसी
शीतल पवन मुफ़्त मिलती है
सुबह शाम की बेला में
जितनी चाहे भर ले कोई
निज साँसों के थैला में
जुकाम, खाँसी जैसे ठग हों
किसी ताक में रहते हैं
जो इनके जाल में फँसें वे
कई दिनों तक सहते हैं
पक्षी सर्दी से बचने को
बदल रहे अपने अड्डे
इसी सुहाने माह नवम्बर
आता है मेरा बड्डे !