कल रात तबियत कुछ अच्छी महसूस नहीं हो रही थी । मैं जल्दी सो गया । रात को अचानक कॉलबेल बजी तो उठकर दरवाजा खोला । दरवाजे पर चार अजीब से प्राणी खड़े थे । एक ने आदमी की तरह बात करते हुए मुझे हिन्दी में कहा, “ चल भई तुझे ब्लॉग-मठाधीश ने बुलाया है ।” इसके बाद उन्होंने मुझे बोलने तक का मौका नहीं दिया । मुझे बोलने का मौका तभी मिला जब होश आने पर मैंने स्वयं को ब्लॉग-मठाधीश के सामने खड़ा पाया । एक प्राणी बोला बाबा यही वह ब्लॉगर है जिसे आपने याद किया था ।
बाबा एक ऊँचे से आसन पर बैठे हुए मठा पी रहे थे । बगल में ही एक बर्तन रखा था जिसको अभी आखिरी कौर खाकर बाबा ने खाली कर दिया था । बाबा पास खड़े प्राणी से बोले, “ बच्चा माफी दो ।” वह प्राणी भागता हुआ गया और सेकिण्डों में माफी का टोकरा लेकर दौड़ता हुआ आ गया । बर्तन भरा हुआ देखकर बाबा का चेहरा खिल उठा । मैं समझ गया कि बाबा को माफी खाने का शौक है ।
बाबा ने मेरी ओर नज़र उठाकर कहा, “ हमें माफी दो बच्चा जो इतनी रात गये बुलाया ।” मैंने तुरंत बाबा के पास जाकर बर्तन से उठाकर थोड़ी सी माफी बाबा के हाथ पर रख दी । बाबा देखते रह गये । मुँह से इतना ही निकला, “माफ करना, बहुत शातिर हो ।”
फिर बाबा काम की बात पर आये । बोले, “माफ करना, दरअसल हमें शंका हो गयी है ।” मैंने हिम्मत करके पूछा , “ क्या शंका है बाबा ? मुझे आपकी शंका का समाधान करके खुशी होगी ।”
“माफ करना, सही बताओ यह स्वप्नलोक कंपनी का क्या रहस्य है ?”
“ बाबा, इतनी सी बात को इस तरह बुलाकर पूछा ?”
तभी एक प्राणी बोला, “ ओ सीधे से मुद्दे की बात बता । बाबा मीठा बोलते हैं इसका ये मतलब नहीं है कि बहुत सीधे हैं ।”
मेरे शरीर में झुरझुरी सी हो गयी । बाबा मुस्काराने लगे । बोले, “ माफ करना, बच्चे उद्दण्ड हैं । हाँ तो स्वप्नलोक कंपनी का क्या रहस्य है ? ”
“ आपको क्या लगता है ?”
“ माफ करना, हमें लगता है कि इस कंपनी में असल में कई लोग शामिल हैं । एक अच्छा कवि, एक बढ़िया कवि, एक अच्छा व्यंग्यकार, एक बढ़िया व्यंग्यकार, एक अच्छा कार्टूनिस्ट, एक बढ़िया कार्टूनिस्ट आदि आदि कई लोग इस ब्लॉग पर लिखते हैं ।”
“ बाबा अन्दाज़ा तो आपका ठीक है पर अच्छा और बढ़िया क्या अलग होते हैं ?”
फिर प्राणी को हस्तक्षेप करना पड़ा, “ तुझे अभी तो बताया था कि बाबा मीठा ही बोलते हैं । खराब को अच्छा कहते हैं और बढ़िया तो खैर बढ़िया हईये है । तू सीधा खड़ा रहेगा कि लगाऊँ एक कण्टाप ?”
बाबा ने हाथ से उसे शान्त रहने का इशारा किया और बोले, “ माफ करना, हमारी शंका निर्मूल नहीं थी । हम शर्त जीत गये । दर असल अभी शाम को ही एक नामचीन ब्लॉगर तुम्हारी बहुत तारीफ कर रहे थे । तो हमने अपनी शंका उनके सामने रख दी । शंका भारी थी लिहाज़ा वे लगभग दब से गये और शर्त लगा बैठे । हार गये बेचारे । ”
मैंने पोल खुलने के डर से कातर स्वर में निवेदन किया कि “बाबा यह बात अपने तक ही रखें अन्यथा बड़ी भद्द पिटेगी मेरी ।”
“माफ करना, ठीक है पर तुम कंपनी में कवि, कार्टूनिस्ट आदि में से किस पद पर हो ?”
“मैं तो बस लेखक हूँ बाबा । सबकी ओर से लिखता भर हूँ ।” कहते हुए मैं शर्म से जमीन में गढ़ा जा रहा था ।
बाबा ने धीरज बँधाया, “माफ करना, डरो मत ब्लॉग-जगत में सिर्फ़ तुम्हीं पर हमें शंका नहीं हुई है । राज और भी हैं जो हम किसी को नहीं बताते । पर तुम्हारा राज जाना है तो तुम्हें बताये देते हैं । दरअसल फुरसतिया, अनूप शुक्ल, अजय कुमार झा, और टिप्पू चाचा एक ही व्यक्ति हैं । समीरलाल एक व्यक्ति नहीं हैं । चेले चपाटे मिलाकर कुल दस लोग हैं जो उड़नतश्तरी नाम से टिपियाते और लिखते हैं । ताऊ जी का मसला तो खैर बच्चा बच्चा जानता है कि ताऊ कोई व्यक्ति नहीं एक टीम है । इस टीम के साथ एक रोचक बात यह है कि इनमें से किसका फोटू लगेगा यह आज भी डिसाइड नहीं हो सका है । और ज्यादा जानना चाहते हो तो सुनो, शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय भी एक ही व्यक्ति हैं ।”
मैं यह सब सुनकर अविश्वास से कहने लगा, “नहीं यह नहीं हो सकता । यह नहीं हो सकता ।”
इतने में पत्नी जी ने मुझे जगाकर पूछा, “ क्या नहीं हो सकता ?
और इस तरह मेरा सपना अधूरा ही रह गया ।