आज मूर्ख-दिवस निकल गया । सबको बड़ी बेसब्री से इसका इंतजार रहता है ।
इसलिए नहीं कि इंतजार करने वाले सब मूर्ख हैं बल्कि इसलिए ताकि इस सुअवसर का
सदुपयोग दूसरे लोगों को मूर्ख साबित करने के लिए कर सकें । एक बार दूसरों को मूर्ख
सिद्ध कर दिया फिर स्वयं को तो ऑटोमैटिकली विद्वान घोषित हो ही जाना है ।
वैसे तो मूर्ख की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है । कहा जाता है कि
मूर्खों के सिर पर सींग नहीं होते । किन्तु इस गणित से तो बैल होशियार की श्रेणी
में आ जाता है और सारा मानव समाज मूर्ख बन जाता है । इतिहास पर निगाह डालें तो
पाते हैं कि यदि कोई व्यक्ति जिस डाल पर बैठा हो उसी को काटे तो उसे मूर्ख समझना
चाहिए । अर्थात् अपना ही नुकसान करने वाला । लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसके विपरीत
जिस थाली में खाए उसी में छेद करने वाला मूर्ख नहीं कहलाता । अपना फायदा और दूसरों
का नुकसान करना जिनके बाएं हाथ का खेल हो उनको होशियार, चालाक, चतुर और न जाने
किन-किन उपाधियों से विभूषित किया जाता है । पर मूर्ख के लिए गधा, उल्लू और बेचारा
जैसे पर्यायवाची उपयोग में लाए जाते हैं ।
जब बालक मूर्खता करता है तो उसे बचपना कहा जाता है और जब बड़ा आदमी
वही बचपना करता है तो उसे मूर्खता का नाम दे दिया जाता है । टेक्निकली भगवान हर
व्यक्ति को मूर्ख ही पैदा करता है लेकिन दुनिया में पहले से मौजूद चालाक लोग उसे
बिगाड़ देते हैं ।
मूर्ख का कोई साथ नहीं देता । सब लोग तरह-तरह से उससे मजे लेते हैं
जबकि वह किसी का बुरा नहीं चाहता । मूर्ख
से किसी को हानि की आशंका नहीं होती । वह किडनैपिंग नहीं कर सकता, हवाई जहाज
हाईजैक नहीं कर सकता, परमाणु बम नहीं बना सकता । इन सारे कार्यों पर होशियारों का
पेटेंट है ।
यह आम धारणा है कि पति पत्नी
में से कोई एक मूर्ख हो तो गृहस्थी बड़े आराम से चलती है । मूर्खों के बीच तलाक
होता हुआ शायद ही किसी ने देखा होगा । तेज लोगों के बारे में मित्र पहले ही आगाह
कर देते हैं कि फलाँ आदमी बहुत तेज है जरा सँभलके रहना । जो लोग बहुत चालाक होते हैं वे किसी के काम आते
हुए कम कम ही देखे जाते हैं । आमतौर पर जिनके बाल जल्दी सफेद हो जाते हैं तत्पश्चात
खोपड़ी चिकनी हो जाती है और आँखों पर चश्मा चढ़ा रहता है वे मूर्ख नहीं समझे जाते
। लेकिन शरीर बेचकर होशियारी का तमगा हासिल करने वालों पर तरस आता है ।
आज बाजारीकरण के युग में जब दाग अच्छे हो गए हैं तो मूर्खों ने किसी
का क्या बिगाड़ा था । मूर्ख भी अच्छे हो गए । कभी गधाप्रसाद के रूप में तो कभी
बागा बनकर खूब बिक रहे हैं ।