गुरुवार, अक्तूबर 30, 2008

सपना जो देखा था

चन्दा मामा पर बसा, भारत का साम्राज्य ।
अब यह भी इस देश का अंग हुआ अविभाज्य ।
अंग हुआ अविभाज्य दखल मत दो अमरीका ।
लालकिले से भाषण था मनमोहन जी का ।
विवेक सिंह यों कहें कहो क्या बुरा किया है ?
सपना जो देखा था सबको बता दिया है ॥

बुधवार, अक्तूबर 29, 2008

नहीं बची है शर्म

आज भरोसा खो चुकी है लालू की रेल ।
कांग्रेस अब खेलती छुपकर ओछा खेल ।
छुपकर ओछा खेल राज ठाकरे है मोहरा ।
खेल वोट के सौदागर ही खेलें दोहरा ।
विवेक सिंह यों कहें देशहित तो है बौना ।
नहीं बची है शर्म दिखाया रूप घिनौना ॥

मंगलवार, अक्तूबर 21, 2008

अंग्रेजों की मिस्टेक

अंग्रेजों ने भारत में की बहुत बड़ी मिस्टेक ।
अपनाते परिवार नियोजन बच्चे दो या एक ।
बच्चे दो या एक, थर्ड ने खेल बिगाड़ा ।
गाँधी जी ने उनको बिन हथियार पछाड़ा ।
विवेक सिंह यों कहें फिरंगी खाए गच्चा ।
बिखर गया साम्राज्य न कर पाए रक्षा ॥

रविवार, अक्तूबर 19, 2008

कल के ब्लॉग समाचार

आओ ब्लॉगरो शुरू करें अब कल की कथा सुनाना ।
अर्द्धरात्रि से अर्द्धरात्रि तक का गाएंगे गाना ।।
नरेन्द्र मोदी के विकास का सच बयान करते हैं ।
यह मृणाल का ब्लॉग पढें क्यों ख्वामखाह डरते हैं ॥
जो है गलत उसी का तो वह इंकलाब करता है ।
तुम्हीं बताओ अंकित क्या कविता खराब करता है ?
मछली अगर पकडनी हो यह जैन कथा पढ जाएँ ।
प्रेरक रही कहानी इससे सीखें और सिखाएं ॥
राज अमरता का चाहें तो वह भी यहाँ मिलेगा ।
अच्छी रही कहानी पढकर मन का कमल खिलेगा ॥
दुख में आए याद रामजी रास्ता बचा न कोई ।
काम आए शिव का विलाप तो जागे इंडिया सोई ॥
सूचनाएं हैं हद से ज्यादा सब न पकड पाएंगे ।
शिरीष की कविता नीलम की रौशनी में लाएंगे ॥
है ये कैसी सजा ? भूल थी उस छात्रा की छोटी ।
कहें सचिन मिश्रा टीचर को खूब खरी और खोटी ॥
अरुणा राय नित नई कविताएं लेकर आती हैं ।
सुन्दर हैं उनकी रचनाएं मन को ललचाती हैं ॥
अमीर खुसरो की पहेलियाँ अगर बूझना चाहें ।
फिर कैसा संकोच पढें और खण्डेलवाल सराहें ॥
दर्द बुजुर्गों का कहते हैं संतोष दर्पण वाले ।
धर्म नहीं है हिन्दू यह रचना अवश्य पढ डालें
यहाँ पढें चुटुकुले मज़े से हँस घर भर दें सारा ।
मिला ब्लॉग यह जरा अलग सा हँसा हँसाकर मारा ॥
कोर्ट कचहरी की कुछ बातें अजय कुमार झा लाए ।
महेन्द्र मिश्रा आदिवासियों से क्यों जा टकराए ?
सर्प पहेली बूझें लायीं लवली नए रंग में ।
सुरेश चन्द्र गुप्ता दुल्हन को ले आए निज संग में ॥
अहोई अष्टमी की सुन लें यह कथा रहे उपयोगी ।
आरोग्यवर्धनी वटी बनाकर लाभ उठाएं रोगी ॥
सर सैयद अहमद खाँ का यह पूरा जीवन परिचय ।
मिलें टिप्पणी सबको ही यह शाष्त्री जी का आशय ॥
ताऊ की चालाकी को अब राज भाटिया जाने ।
पढ मेडिकल टेस्ट हमहुँ मीडिया डाक्टर को माने ॥
एक कहानी डायन की है कविता ने छपवाई ।
सच्ची झूठी आप जाँच लें हमने बस पढवाई ॥
चावल देने का वचन नोट पर आगे से हो लागू ।
कहें यही आलोक पुराणिक अब मैं यहाँ से भागूँ ॥
घूम रहे पिस्तौल तानकर हमको डर लगता है ।
आज बस करें लोग कहेंगे क्या फिजूल ठगता है ?

शनिवार, अक्तूबर 18, 2008

ब्लॉग समाचार

समाचार हिन्दी चिट्ठों के सुनिए आप लगाकर ध्यान ।
रद्दी कविता प्रस्तुत करते पकड़े शिवकुमार ने ज्ञान ।।
आर्थिक मंदी शुरू हुई के ? पूछें ताऊ देउ बताय ।
चिडिया गदही पुकारती थी कैसा कलयुग आया हाय ॥
फिर हाज़िर एक चित्रपहेली अरविंद मिश्रा ने की आज ।
सरिताजी ने खोला आखिर
छलिया चाँद छलनी का राज ।।
मार्क्सवाद आपराधिक है घोस्टबस्टर के सुनें विचार ।
जागा मगर प्रेत इसका ये कहें द्विवेदी जी इस बार ॥
फुटकर सोच पाण्डेय जी की बढा
ब्लॉग पर यातायात
मिला खज़ाना अलमारी में वडनेरकरजी की क्या बात ॥
मॉर्डन नारी बनना हो तो अचूक नुस्खा है तैयार ।
अगर डराना है दोस्तों को है षडयन्त्र यहाँ तैयार ॥
मनविंदर भिंभर कहती हैं
वे रब तेरा भला करे
यहाँ नीलिमा सुना रही है
मृत्युगीत अब कौन मरे ॥
छणिकाएं जो पढनी हों तो नीशू ने की हैं तैयार ।
किन्तु राधिका बुधकर का यह है मार्मिक आरोही
प्यार !

शुक्रवार, अक्तूबर 17, 2008

सचिन बने बादशाह

कीर्तिमान कायम किया, टेस्ट रनों का आज ।
सचिन बने क्रिकेट के, बादशाह बेताज .
बादशाह बेताज, नहीं है कोई सानी ।
तुलना करें किसी से तो होगी बेमानी ।
विवेक सिंह यों कहें , सर्वदा रहें खेलते ।
बनते रहें रिकॉर्ड पोस्ट हम रहें ठेलते ॥

करवाचौथ पर निन्दक-निन्दा

एक बार दो दादा और पोता घोड़ी पर जा रहे थे .घोड़ी जरा कमजोर सी थी फिर भी ले जा रही थी . पहले गाँव से होकर गुजरे तो लोगों ने देखा . टिप्पणी हुई : "इनको न शर्म है न दया . हट्टेकट्टे इतनी कमजोर घोड़ी पर लदे जा रहे हैं ." पोते ने सुन लिया तो दादा से बोला , दादा जी मैं पैदल चलूँगा आप घोड़ी पर चलो लोग अच्छा नहीं समझते ." दादा ने तो दुनिया देखी थी . बोला, "बेटा लोगों की जुबान नहीं पकड़ सकते ये तो कुछ न कुछ कहेंगे ही ." मगर पोता न माना नीचे उतर गया और पैदल चलने लगा . अगले गाँव में पहुँचे तो वहाँ भी टिप्पणियाँ हुईं : "इस आदमी को न शर्म है न दया खुद हट्टाकट्टा घोड़ी पर सवार है और बच्चे को पैदल घसीट रहा है ." अबकी बार दादा ने कहा," बेटा मैं पैदल चलूँगा तू घोड़ी पर चल ." तीसरे गाँव में पहुँचे तो भी टिप्पणी से न बच सके . लोगों ने देखा तो कहा ," देखो इस लड़के को न शर्म है न दया खुद हट्टाकट्टा घोड़ी पर चल रहा है और बुड्ढा बेचारा पैदल भाग रहा है ." अब क्या चारा था ? दोनों ने तय किया कि पैदल चलेंगे . अगले गाँव में पहुँचे तो भी टिप्पणी से न बच सके . टिप्पणी मिली : " देखो ये दोनों कितने मूर्ख हैं . घोड़ी होते हुए भी पैदल जा रहे हैं .

ऊपर वाली इतनी लम्बी कथा हमने अकारण ही नहीं कही . आज करवा चौथ है . सब तरफ प्रसन्नता का माहौल है .हम तो छुट्टी लेकर घर बैठे हैं ईवनिंग शिफ्ट में ड्युटी थी इस डर से नहीं गये कि कहीं रात वाला फँसा न दे . जो पति हैं वे इसलिए खुश हैं कि उनके लिए ऐसा मौका साल में एक ही बार आता है जब उनकी पूजा होती है . अन्यथा वे तो साल भर पूजक ही बने रहते हैं . पत्नियाँ खुश हैं क्योंकि इसे बड़ा प्रदर्शन का सुअवसर बार बार थोड़े ही आता है . पडौसिनों को दिखाने का यही तो अवसर है कि मेरे पास यह साड़ी इतने की है और फलाँ जेवर इतने में खरीदा . आखिर प्रदर्शन का कोई बहाना तो चाहिए . ऐस ही तो किसी के सामने जाकर अपना बखान नहीं कर सकते न . ऊपर से पतिदेव को भी भ्रम हो जाता है कि वे देवता हैं . इस अवसर पर देवता से लगे हाथ वह इच्छा भी पूरी कराई जा सकती है जो पूरे साल बज़ट से बाहर थी . बच्चे मम्मी पापा दोंनों को एक साथ खुश देखकर अति आनन्दित हैं . उनको समझ आ गया है कि आज कोई न कोई विशेष अवसर है . जरूर कुछ न कुछ या तो हो गया है या होने वाला है .पर बुरा हो इन घोर असामाजिक छिद्रान्वेषियों का . इनको हर बात में टाँग अड़ाने की आदत जो है . इन्हें कोई बात अच्छी नहीं लगती . किसी को खुश देखकर तो ये कदापि खुश नहीं रह सकते .ये हर जगह मिल जायेंगे .एक ढूंढो तो चार मिलेंगे . यहाँ ब्लॉगिंग पर भी ऐसे लोगो की कमी नहीं है .पत्नियों को भडकाने में लगे हैं . स्त्री शोषण हो रहा है . पुरुष क्यों व्रत नहीं रखता स्त्री के लिए .ये होना चाहिए वो होना चाहिए . मै होता तो कभी व्रत न रखता . ऐसा कहते और लिखते हुए पाए जाते हैं ये लोग .मेरी सभी करवाचौथ प्रेमियों/प्रेमिकाओं से विनम्र गुजारिश है कि ऐसे लोगों की बात कतई न सुनें . खुश रहें और खुशी मनाने का कोई मौका हाथ से न जाने दें . निंदक तो हर बात की निंदा करते ही रहेंगे . इन निंदकों की जितनी निंदा की जाय कम है .

गुरुवार, अक्तूबर 16, 2008

मंदी का यह दौर

कल तक जो थे ठेलते लम्बे लम्बे लेख ।
मंदी का यह दौर है जाना उनको देख ।
जाना उनको देख ,उतर आए दोहों पर ।
रहा न कुछ कन्ट्रोल यहाँ माया मोहों पर ।
विवेक सिंह यों कहें शुरू अब दौर नया है ।
अगर नहीं यह मंदी तो फिर बोलो क्या है ॥

बतलावें मंदा

आसमान पर जा टँगे , सब चीजों के भाव ।
सस्ते बस शेयर हुए, सब कर रहे बचाव ।
सब कर रहे बचाव , भूलकर मँहगाई को ।
देखें शेयर सूचकांक के लो हाई को ।
विवेक सिंह यों कहें गरीबों को है फंदा ।
तेज हुई हर चीज मगर बतलावें मंदा ॥

बुधवार, अक्तूबर 15, 2008

गिरते मार्केट में बृज

ऊधौ इतनी कहियौ जाइ !
कभी भूलकर भी मुरलीधर बृज की ओर न आइ ।
दूध, दही, लाखन कौ माखन गयौ फ्री में खाइ ।
जैसे बाँधि गयौ हो लाके द्वार हमारे गाय ।
माल मारि जा बैठ्यौ मथुरा अब लौटानौ नाइ ?
सीधे सब चुकता कर दे कहुँ कोट कचहरी जाइ ।
विवेक सिंह धमकी सुनि मोहन ठाड़े ते डकराय ।

मंगलवार, अक्तूबर 14, 2008

अनूप जी से रिक्वेस्ट

बात कॉलेज की है . क्लास में गुरुजी नहीं थे . सभी छात्र एक दूसरे से बातें करने में मशगूल थे . एक मित्र ने मुझे पूछा पानी पीने चलना है ? मैंने नहीं में सिर हिला दिया . वह फिर बोला चल यार . पर मेरा मन ही नहीं था जाने का, लिहाज़ा फिर से बोल दिया तू जाके पी आ मुझे प्यास नहीं है .उसे पता नहीं क्या हुआ . हाथ पकड कर खींचने लगा और बोला चल यार हम रिक्वेस्ट कर रहे हैं . मुझे भी उसकी जिद में आनन्द आने लगा . मैंने कहा मुझे जाना ही नहीं है .बात हाथापाई पर आगई . वह मुझे पकडकर बाहर खींच रहा था मैं उससे अपने को छुडा रहा था .वह बोलता जारहा था तू चलेगा कैसे नहीं हम रिक्वेस्ट कर रहे हैं . साथ के सब लडके खडे हँस रहे थे . इतने में गुरुजी आगए और अचानक एक जोर का झापड मेरे साथी योद्धा को रसीद कर दिया और बोले हम तुझसे रिक्वेस्ट कर रहे हैं कि रिक्वेस्ट करना सीख ले . ऐसे रिक्वेस्ट नहीं की जाती .
हमने इतनी बडी कहानी फालतू नहीं लिखी है .हम भी किसी से रिक्वेस्ट कर रहे हैं . आज की चिट्ठाचर्चा पढकर हम अनूप जी से रिक्वेस्ट कर रहे है कि अपना कुछ लिखने का आपको पूरा अधिकार है . पर चिट्ठा चर्चा की कीमत पर नहीं . चिट्ठा चर्चा के लिये तो आपको अपने कीमती समय में से थोडा सा निकालना ही पडेगा . आप निकालेंगे कैसे नहीं आखिर हम रिक्वेस्ट कर रहे हैं .आप सभी ब्लॉगर भाइयों/भाभियों से भी हम अनूप जी से ऐसी ही रिक्वेस्ट करने की रिक्वेस्ट कर रहे हैं . आप रिक्वेस्ट करेंगे कैसे नहीं हम आपसे रिक्वेस्ट कर रहे हैं .

सोमवार, अक्तूबर 13, 2008

अंग्रेजी का दर्द

छटवीं क्लास पास कर ली अब स्टूडेण्ट कहलाते हैं ।
सब विषय मुझे अच्छे लगते पर इंग्लिश से दहलाते हैं ।
इंग्लिश का घण्टा लगते ही दिल की धड़कन बढ जाती है ।
मास्टर जी के दर्शन कर नाड़ी धीमी पड़ जाती है ।
यदि मीनिंग याद हो जाए तो उच्चारण अति दुखदाई है ।
पूछो न हाल स्पेलिंग का सबकी दादी कहलाई है ।
भारत में इसके जो प्रेमी निशदिन इसके गुण गाते हैं ।
जाने देते हैं नहीं इसे बस मेरा प्राण सुखाते हैं ।

रविवार, अक्तूबर 12, 2008

हिन्दी का विस्तार

आओ सब मिलकर करें, हिन्दी का विस्तार
खुलकर सब भाषाओं, से ले लें शब्द उधार
ले लें शब्द उधार ,न फिर उनको लौटाएँ
डटकर करें विवाद, उन्हें अपना बतलाएँ
विवेक सिंह यों कहें,आइडिया नया नहीं है
किस भाषा में गैरों के अल्फाज़ नहीं हैं ?

शुक्रवार, अक्तूबर 10, 2008

दादा का सन्यास

बन्द हुए सब रास्ते, डिगा आत्मविश्वास ।
कन्दुक क्रीड़ा से हुआ, दादा का सन्यास ।
दादा का सन्यास, बडी घटना क्रिकेट की ।
मज़ेदार थी कथा, गेंद बल्ले विकेट की ।
विवेक सिंह यों कहें निराश न हों महाराजा ।
कभी न कभी तो बजता है सबका ही बाजा ॥

गुरुवार, अक्तूबर 09, 2008

लुढ़कने वाला लोटा

तब था खतरा जान को, हुए फोन भी टेप ।
अब घावों पर लग गया, कैसा ठण्डा लेप ।
कैसा ठण्डा लेप ,मित्रता अब तो गहरी ।
बना मैम का मित्र, बड़े भैया का प्रहरी ।
विवेक सिंह यों कहें लुढ़कने वाला लोटा ।
है बाहर से चिकना पर अन्दर से खोटा ॥

मित्रगण