गुरुवार, अक्तूबर 09, 2008

लुढ़कने वाला लोटा

तब था खतरा जान को, हुए फोन भी टेप ।
अब घावों पर लग गया, कैसा ठण्डा लेप ।
कैसा ठण्डा लेप ,मित्रता अब तो गहरी ।
बना मैम का मित्र, बड़े भैया का प्रहरी ।
विवेक सिंह यों कहें लुढ़कने वाला लोटा ।
है बाहर से चिकना पर अन्दर से खोटा ॥

6 टिप्‍पणियां:

  1. िवजयदशमी पवॆ की शुभकामनाएं ।
    अच्छा िलखा है आपने

    दशहरा पर मैने अपने ब्लाग पर एक िचंतनपरक आलेख िलखा है । उसके बारे में आपकी राय मेरे िलए महत्वपूणॆ होगी ।

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  2. बहुत जबरदस्त!!
    विजय दशमी पर्व की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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  3. बोले तो बिना पेंदी का लोटा !

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  4. बहुत खूब.
    आज कल यह बेपेंदी के लोटे बहुत डिमांड में हैं.

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