यूँ तो हम सभी जानते हैं कि जो आया है उसे कभी न कभी जाना ही है । फिर भी अपने प्रिय से बिछुड़ जाने पर दुख तो होता ही है ।
यही दुख मुझे तब हुआ जब लगभग तीन साल तक उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते हमेशा मेरे साथ रहने वाला मेरा प्रिय मोबाइल नोकिया 6085 मेरा साथ छोड़ गया ।
उसके साथ मेरी कितनी यादें जुड़ी हैं, न पूछिए । बात दिसम्बर 2007 की है । डीमैट एकाउण्ट के लिये जीपीआरएस कनेक्शन लेने पर जब पता चला कि मेरे पास उपलब्ध मोबाइल से काम नहीं चलेगा तो झटके में नया मोबाइल लाया गया था । एक सनक थी कि आज ही इन्टरनेट चलाना है ।
विधि का विधान तो देखिए कि वह मोबाइल झटके के साथ ही गया । वर्धा जाते समय यह झटके के साथ जेब से गिरकर यह ऐसा गया कि मैं इसे बाय भी न बोल सका । इसके जाने से मुझे दुख तो होना ही था । साथ ही परेशानी भी खूब हुई होती । पर आयोजकों के हाथ बहुत लम्बे थे और मुझे परेशानी से निकाल लिया ।
मोबाइल खोया तो एक कहावत सच होती हुई लगी कि जली तो जली पर सिकी भी खूब । नया मोबाइल लेने का मन बहुत दिन से था लेकिन पुराने का क्या करें यही सवाल हल नहीं हो पा रहा था । शायद उसे इसका भान हो गया था और वह खुद ही शहीद हो गया ।
अब वर्धा से आते ही नए मोबाइल की खोज शुरू हुई । खोजते खोजते प्रवीण पाण्डेय जी की एक पोस्ट मिली तो उन्हीं से सलाह लेने की ठानी । उन्हीं सिफारिशों को लागू करते हुए यह नोकिया C3 सेट लिया जिससे यह पोस्ट लिखी जा रही है ।
संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
मंगलवार, अक्तूबर 19, 2010
गुरुवार, अक्तूबर 14, 2010
बुधवार, अक्तूबर 13, 2010
वर्धा के गलियारों से (कुछ झूठ कुछ सच )
वर्धा ब्लॉगर सम्मलेन के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है . हम भी कुछ आँखों देखा कानों सुना न कह लें तब यह कैसे लगेगा की हम वर्धा गए थे ?
कहा तो यह भी जा रहा है की विचारधाराओं के टकराव की वजह से ही कुछ ब्लागरों ने आना टाल दिया क्योंकि उनको भनक लग गयी थी कि विरोधी विचारधारा वाले पहले ही पहुंचकर कब्जा जमा सकते हैं .
ब्लागरों के ठहरने के लिए कमरों का इंतजाम भी विचाराधारा के अनुसार किया गया था . दक्षिणपंथियों को दक्षिण में और उत्तरपंथियों को उत्तर में कमरे मिले हुए थे . जो लोग विचारधारा से जितना ऊपर उठ चुके हैं उन्हें उतना ही ऊपर कमरा दिया गया था .
सेवाग्राम आश्रम देखने गए ब्लागरों ने शिकायत की कि गांधीजी स्वयं टब में स्नान करते थे तो बा के स्नानगृह में टब की व्यवस्था क्यों नहीं कराई गयी गयी ?
विनोबा भावे आश्रम देखने गए लोगों में से कई ब्लॉगर पवनार नदी में कूदकर नहाने के इच्छुक थे जैसे तैसे मनाने पर बड़ी मुश्किल से वे माने .
एक ब्लॉगर सड़क पर जोश में बेतहाशा भाग रहा था . बेचारा ठोकर लगाने से गिर गया और घुटनों में और माथे पर काफी चोट खा गया .
एक ब्लॉगर कैमरा और लैपटाप किसी पडौसी से मांग लाए थे . पर इतने से ही काम कैसे चलता ? उनको चलाना भी तो आना चाहिए ? बड़ी मुश्किल से बात फैलने से रोकी गयी .
कार्यशाला में उपस्थित विद्यार्थियों को शायद ब्लॉग बनाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी इसीलिए दो समूहों में से एक समूह के विद्यार्थियों ने दूसरे समूह और बस के जाने का हवाला देकर अपनी जान छुड़ाई और भाग निकले .
ज्यादातर ब्लॉगर बिना परिचय के एक दूसरे को पहचान नहीं सके . आप ब्लॉग पर तो ऐसे दिखते हैं वैसे दिखते हैं आदि वाक्य बहुतायत में सुनने को मिले .
कई महिला ब्लागरों से जब बातचीत के बहाने उनकी असल उम्र पूछने की कोशिश की गयी तो वे साफ़ इनकार कर गईं .
कुछ ब्लॉगर दूसरों को अपनी डिग्रियां गिनाने में लगे रहे . सुनने वाले ब्लागरों को बाद में छुपकर कान खुजलाते देखा गया .
सम्मलेन में आलआउट नाम के एक ब्लॉगर को भी बुलाया गया था ताकि मच्छरों की समस्या से निजात मिल सके .
ब्लॉगर सम्मलेन का आयोजन करने वाले महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में एक ब्लॉगर का मासूम सवाल था कि जब यह विश्वविद्यालय है तो फिर नाम में अंतरराष्ट्रीय लिखने की क्या जरूरत है ? विश्वविद्यालय तो पहले ही अंतरराष्ट्रीय होता है . इसका जबाब कम से कम हमारे पास तो नहीं था .
खाने पीने की व्यवस्था टनाटन थी . यहाँ तक कि आते समय रास्ते के लिए भी परोसा दिया गया था . चाय पीने के लिए किसी को बाहर जाने की आवश्यकता न थी . मजे की बात तो यह कि चाय में कितनी चीनी डालनी है इसकी स्वतन्त्रता हर ब्लॉगर को थी .
हाँ दवाओं की व्यवस्था ज़रा सोचनीय थी . एक ब्लॉगर को डिस्प्रिन माँगते हुए देखा गया . लेकिन लोग उसे पैरासीटामौल ऑफर कर रहे थे .
कुछ ऐसे ब्लॉगर भी मिले जिन्हें लोग अलग अलग समझते थे लेकिन वहां पता चला कि वे एक ही परिवार के सदस्य हैं .
कुछ ब्लॉगर अपने जीवनसाथी को तो कुछ अपने भाई या बहन को लेकर पधारे थे .
कुछ महिला ब्लागरों को एक नौसिखिये ब्लॉगर को एकान्त में हड़काते देखा गया . बेचारे ब्लॉगर ने जैसे तैसे पीछा छुडाया .
अंतिम समय में सभी ब्लॉगर को एक दूसरे से फोटो आदान प्रदान करते देखा गया . वैसे तो सभी ब्लॉगर पेनड्राइव, मेमोरीकार्ड, मोबाइल, कैमरा, लैपटाप आदि से लैस होकर मौक़ा-ए-वारदात पर पधारे थे . किन्तु एक ठो ब्लॉगर ने बहाना बनाया कि उसका मोबाइल ट्रेन में गुम हो गया है . इसपर दूसरे ब्लागरों ने आयोजक से मौज ली कि मोबाइल की क्षतिपूर्ती होनी चाहिए . इस पर एक स्वस्थ बहस की शुरूआत हो गयी जो नाश्ता आते ही ख़त्म भी हो गयी .
जाते जाते कुछ लोग साथियों को हिदायत देते देखे गए कि उनके फोटो मेल से उन्हें भेज दिए जायं .
वर्धा के गलियारों से (कुछ झूठ कुछ सच )
प्रयास किया गया था की सभी विचारधाराओं के प्रतिनिधि ब्लागरों को बुलाया जाय . विचारधारा के चर्चे यहाँ कभी कभार सुनाई भी दे रहे थे . मसलन एक ख़ास विचारधारा वाले ब्लॉगर दूसरी ख़ास विचारधारा वाले ब्लॉगर को कमरे में बंद करके टहलने चले गए .कहा तो यह भी जा रहा है की विचारधाराओं के टकराव की वजह से ही कुछ ब्लागरों ने आना टाल दिया क्योंकि उनको भनक लग गयी थी कि विरोधी विचारधारा वाले पहले ही पहुंचकर कब्जा जमा सकते हैं .
ब्लागरों के ठहरने के लिए कमरों का इंतजाम भी विचाराधारा के अनुसार किया गया था . दक्षिणपंथियों को दक्षिण में और उत्तरपंथियों को उत्तर में कमरे मिले हुए थे . जो लोग विचारधारा से जितना ऊपर उठ चुके हैं उन्हें उतना ही ऊपर कमरा दिया गया था .
सेवाग्राम आश्रम देखने गए ब्लागरों ने शिकायत की कि गांधीजी स्वयं टब में स्नान करते थे तो बा के स्नानगृह में टब की व्यवस्था क्यों नहीं कराई गयी गयी ?
विनोबा भावे आश्रम देखने गए लोगों में से कई ब्लॉगर पवनार नदी में कूदकर नहाने के इच्छुक थे जैसे तैसे मनाने पर बड़ी मुश्किल से वे माने .
एक ब्लॉगर सड़क पर जोश में बेतहाशा भाग रहा था . बेचारा ठोकर लगाने से गिर गया और घुटनों में और माथे पर काफी चोट खा गया .
एक ब्लॉगर कैमरा और लैपटाप किसी पडौसी से मांग लाए थे . पर इतने से ही काम कैसे चलता ? उनको चलाना भी तो आना चाहिए ? बड़ी मुश्किल से बात फैलने से रोकी गयी .
कार्यशाला में उपस्थित विद्यार्थियों को शायद ब्लॉग बनाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी इसीलिए दो समूहों में से एक समूह के विद्यार्थियों ने दूसरे समूह और बस के जाने का हवाला देकर अपनी जान छुड़ाई और भाग निकले .
ज्यादातर ब्लॉगर बिना परिचय के एक दूसरे को पहचान नहीं सके . आप ब्लॉग पर तो ऐसे दिखते हैं वैसे दिखते हैं आदि वाक्य बहुतायत में सुनने को मिले .
कई महिला ब्लागरों से जब बातचीत के बहाने उनकी असल उम्र पूछने की कोशिश की गयी तो वे साफ़ इनकार कर गईं .
कुछ ब्लॉगर दूसरों को अपनी डिग्रियां गिनाने में लगे रहे . सुनने वाले ब्लागरों को बाद में छुपकर कान खुजलाते देखा गया .
सम्मलेन में आलआउट नाम के एक ब्लॉगर को भी बुलाया गया था ताकि मच्छरों की समस्या से निजात मिल सके .
ब्लॉगर सम्मलेन का आयोजन करने वाले महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में एक ब्लॉगर का मासूम सवाल था कि जब यह विश्वविद्यालय है तो फिर नाम में अंतरराष्ट्रीय लिखने की क्या जरूरत है ? विश्वविद्यालय तो पहले ही अंतरराष्ट्रीय होता है . इसका जबाब कम से कम हमारे पास तो नहीं था .
खाने पीने की व्यवस्था टनाटन थी . यहाँ तक कि आते समय रास्ते के लिए भी परोसा दिया गया था . चाय पीने के लिए किसी को बाहर जाने की आवश्यकता न थी . मजे की बात तो यह कि चाय में कितनी चीनी डालनी है इसकी स्वतन्त्रता हर ब्लॉगर को थी .
हाँ दवाओं की व्यवस्था ज़रा सोचनीय थी . एक ब्लॉगर को डिस्प्रिन माँगते हुए देखा गया . लेकिन लोग उसे पैरासीटामौल ऑफर कर रहे थे .
कुछ ऐसे ब्लॉगर भी मिले जिन्हें लोग अलग अलग समझते थे लेकिन वहां पता चला कि वे एक ही परिवार के सदस्य हैं .
कुछ ब्लॉगर अपने जीवनसाथी को तो कुछ अपने भाई या बहन को लेकर पधारे थे .
कुछ महिला ब्लागरों को एक नौसिखिये ब्लॉगर को एकान्त में हड़काते देखा गया . बेचारे ब्लॉगर ने जैसे तैसे पीछा छुडाया .
अंतिम समय में सभी ब्लॉगर को एक दूसरे से फोटो आदान प्रदान करते देखा गया . वैसे तो सभी ब्लॉगर पेनड्राइव, मेमोरीकार्ड, मोबाइल, कैमरा, लैपटाप आदि से लैस होकर मौक़ा-ए-वारदात पर पधारे थे . किन्तु एक ठो ब्लॉगर ने बहाना बनाया कि उसका मोबाइल ट्रेन में गुम हो गया है . इसपर दूसरे ब्लागरों ने आयोजक से मौज ली कि मोबाइल की क्षतिपूर्ती होनी चाहिए . इस पर एक स्वस्थ बहस की शुरूआत हो गयी जो नाश्ता आते ही ख़त्म भी हो गयी .
जाते जाते कुछ लोग साथियों को हिदायत देते देखे गए कि उनके फोटो मेल से उन्हें भेज दिए जायं .
बुधवार, अक्तूबर 06, 2010
बगुला
लगता है शर्मीला बगुला
होता किन्तु हठीला बगुला
कई रंग में मिलता बगुला
श्वेत रंग अति खिलता बगुला
श्वेत रंग यदि है भी बगुला
होता किन्तु हठीला बगुला
कई रंग में मिलता बगुला
श्वेत रंग अति खिलता बगुला
श्वेत रंग यदि है भी बगुला
दूध-धुला नहिं वह भी बगुला
टेढ़ी गरदन वाला बगुला
लम्बी टाँगों वाला बगुला
पानी में न फिसलता बगुला
मछली पकड़ निगलता बगुलाटेढ़ी गरदन वाला बगुला
लम्बी टाँगों वाला बगुला
पानी में न फिसलता बगुला
नहीं चूककर रोता बगुला
फिर से चोंच डुबोता बगुला
ध्यान-मग्न हो खोता बगुला
दिखता जैसे सोता बगुला
नहीं बदलता सूरत बगुला
मानो कोई मूरत बगुला
मौका देख अकड़ता बगुला
तुरत शिकार पकड़ता बगुला
खेतों में आ जाता बगुला
दावत खूब उड़ाता बगुला
कीट पतंगे खाता बगुला
कीट पतंगे खाता बगुला
फिर भी भगत कहाता बगुला
हमको राह दिखाता बगुला
हमको राह दिखाता बगुला
बको-ध्यान सिखलाता बगुला
सदा झुण्ड में रहता बगुला
सदा झुण्ड में रहता बगुला
रहो संगठित कहता बगुला
मंगलवार, अक्तूबर 05, 2010
भारत माता खुश हुई
खाता खोला स्वर्ण का, सही निशाना मार
बिन्द्रा-नारंग को कहें, बहुत बहुत आभार
बहुत बहुत आभार बनाया कीर्तिमान है
अर्जुन की इस मातृभूमि की बढ़ी शान है
विवेक सिंह यों कहें खुश हुई भारत माता
सही निशाना लगा स्वर्ण का खोला खाता
बिन्द्रा-नारंग को कहें, बहुत बहुत आभार
बहुत बहुत आभार बनाया कीर्तिमान है
अर्जुन की इस मातृभूमि की बढ़ी शान है
विवेक सिंह यों कहें खुश हुई भारत माता
सही निशाना लगा स्वर्ण का खोला खाता
शनिवार, अक्तूबर 02, 2010
बापू फिर से आइये
बापू फिर से आइये, भारत में इक बार ।
नीति अहिंसा की यहाँ, लागू भली प्रकार ॥
लागू भली प्रकार, न दी अफ़जल को फाँसी ।
फूलें हाथ-पैर यदि हो कसाब को खाँसी ॥
विवेक सिंह यों कहें, उतारी हिंसा सिर से ।
भारत में इक बार आइये बापू फिर से ॥
सदस्यता लें
संदेश (Atom)