अपने घर जब आ गई, नई एस्टिलो कार ॥
नई एस्टिलो कार, लगे यह बड़ी सुहानी ।
इसके आने की है अपनी अलग कहानी ॥
विवेक सिंह यों कहें, हमें भी खुशी भई है ।
अन्तू ते सन्तू दी गड्डी नई - नई है ॥
संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
हड़प्पा मोहनजोदड़ो के बारे में हमने पढ़ा है । आपने भी पढ़ा होगा । वहाँ खुदाई में पूरी की पूरी सभ्यता मिली है । यह पूरी सभ्यता कैसे मिट्टी में दब गयी ? हम नहीं जानते । शायद इसे दबने में बहुत लम्बा समय लगा होगा । किन्तु आजकल अनुभव हो रहा है कि हमारी आधुनिक सभ्यता भी जैसे मिट्टी में दबती जा रही है । यह दिखायी भी दे रहा है । आज से दस साल पहले जिन घरों को जमीन के स्तर से ऊपर बनते देखा था, आज उन्हीं को नीचे जाते देख रहे हैं । मथुरा में देखते हैं कि जहाँ सड़क के ऊपर रेलवे का पुल बना है वह जगह बाकी सड़क से बहुत नीची रह गयी है ।
घरों को ऊपर उठाया जा रहा है । इस क्षेत्र में विशेषज्ञ लोग भी अपनी सेवाएं देने लगे हैं । ये पूरे मकान को जैक लगाकर ऊपर उठा देते हैं ।
पूरे के पूरे गावं नीचे पड़ गये हैं । सड़क पर पानी भरने लगे तो इसका सीधा सा समाधान दिखाई देता है कि उसे ऊँचा उठा दिया जाय । गावों की तो बात ही छोड़िए हमारे अधिकतर शहरों में भी जल निकास की उचित व्यवस्था नहीं हैं । जहाँ नदी है वहाँ नदी में इसे बहा दिया जाता है । अन्य जगहों पर इसे गंदे तालाब में जमा किया जाता है । इतने पर भी सड़कों पर पानी जमा होता मिल ही जाता है । कभी कभी हादसे भी होते रहते हैं ।
सड़कों को ऊपर ऊठाकर घरों को नीचा करने की बजाय जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।