रविवार, फ़रवरी 21, 2010

अन्तू ते सन्तू दी गड्डी


अब खुशियों का ना रहा, कोई पारावार ।
अपने घर जब आ गई, नई एस्टिलो कार ॥
नई एस्टिलो कार, लगे यह बड़ी सुहानी ।
इसके आने की है अपनी अलग कहानी ॥
विवेक सिंह यों कहें, हमें भी खुशी भई है ।
अन्तू ते सन्तू दी गड्डी नई - नई है ॥

मंगलवार, फ़रवरी 16, 2010

कुत्ताहित याचिका

लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाला मीडिया एक बार फिर विवादों में घिरता नज़र आ रहा है ।
विश्वस्त सूत्रों के हवाले से खबर मिली है कि कुत्तासंघ से मीडिया के खिलाफ न्यायालय में कुत्ताहित याचिका दायर करने का निर्णय लिया है ।
मीडिया पर आरोप हैं कि उसने कुत्तों के साथ भेदभाव किया और आदमी का पक्ष लिया ।
कुत्ते भौंकते भौंकते सठिया गये लेकिन कभी भी किसी कुत्ते के भौंकने को मीडिया ने खबर नहीं बनाया । जबकि आदमी जब भौंकता है तो उसे टीवी और अखबारों में सुर्खियों में जगह मिलती है, चाहे वह भौंकने की सीडी भी जारी कर दे तो उसे भी हाथोंहाथ लिया जाता है ।
कुत्ता युग-युग से अपने मालिक की चौकीदारी पूरी निष्ठा से करता आ रहा है । उसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया गया । जबकि आदमी अपने स्वार्थवश भी यदि किसी स्टार की चौकीदारी करने लगता है तो उसे मीडिया सर आँखों पर बैठा लेता है ।
कुता कभी भी दूसरे मोहल्ले के कुत्ते को अपने मोहल्ले में नहीं आने देता । इसी से कहा जाता है कि अपने मोहल्ले में तो कुत्ता भी शेर होता है । दुनिया जानती है कि इसी बात को लेकर कुत्तों के बीच बड़े बड़े युद्ध तक हो चुके हैं । इतिहास गवाह है कि मोहल्ला भक्त कुत्तों ने जान की बाजी लगाकर भी दूसरे मोहल्ले के कुत्तों को अपने मोहल्ले में आने से रोका है । लेकिन अफसोस कि मीडिया ने उन्हें कभी सुर्खियों में जगह नहीं दी । किन्तु अब, जब आदमी भी अपने मोहल्ले में शेर बनने लगा है और दूसरे मोहल्ले के आदमियों को अपने यहाँ नहीं आने देता तो उसे बहुत बड़ी खबर बना दिया जाता है ।
इस याचिका पर न्यायालय का क्या रुख होगा इसके बारे में याचिका दायर होने से पहले ही जितने मुँह उतनी बातें हो रही हैं ।

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

दफ़न होते गावं-शहर

हड़प्पा मोहनजोदड़ो के बारे में हमने पढ़ा है । आपने भी पढ़ा होगा । वहाँ खुदाई में पूरी की पूरी सभ्यता मिली है । यह पूरी सभ्यता कैसे मिट्टी में दब गयी ? हम नहीं जानते । शायद इसे दबने में बहुत लम्बा समय लगा होगा । किन्तु आजकल अनुभव हो रहा है कि हमारी आधुनिक सभ्यता भी जैसे मिट्टी में दबती जा रही है । यह दिखायी भी दे रहा है । आज से दस साल पहले जिन घरों को जमीन के स्तर से ऊपर बनते देखा था, आज उन्हीं को नीचे जाते देख रहे हैं । मथुरा में देखते हैं कि जहाँ सड़क के ऊपर रेलवे का पुल बना है वह जगह बाकी सड़क से बहुत नीची रह गयी है ।

घरों को ऊपर उठाया जा रहा है । इस क्षेत्र में विशेषज्ञ लोग भी अपनी सेवाएं देने लगे हैं । ये पूरे मकान को जैक लगाकर ऊपर उठा देते हैं ।

पूरे के पूरे गावं नीचे पड़ गये हैं । सड़क पर पानी भरने लगे तो इसका सीधा सा समाधान दिखाई देता है कि उसे ऊँचा उठा दिया जाय । गावों की तो बात ही छोड़िए हमारे अधिकतर शहरों में भी जल निकास की उचित व्यवस्था नहीं हैं । जहाँ नदी है वहाँ नदी में इसे बहा दिया जाता है । अन्य जगहों पर इसे गंदे तालाब में जमा किया जाता है । इतने पर भी सड़कों पर पानी जमा होता मिल ही जाता है । कभी कभी हादसे भी होते रहते हैं ।

सड़कों को ऊपर ऊठाकर घरों को नीचा करने की बजाय जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ।

मित्रगण