भीषण गरमी है । बारिश सामने ही है पर बरसना ही नहीं चाहती । सीधे सीधे मना भी नहीं करती कि," हमें नहीं बरसना जी, आप अपना कोई और इन्तजाम कर लो । " मानो कोई भ्रष्ट बाबू फ़ाइल को सामने रखे बैठा है और आगे नहीं बढ़ाता । बस तसल्ली देता रहता है । खुलकर रिश्वत भी नहीं माँगता और बिना रिश्वत लिए काम भी नहीं करता । समझदार लोग चुपचाप एक लिफ़ाफ़ा मेज के नीचे से सरका देते हैं और फ़ाइल आगे बढ़ जाती है । पर नासमझ तो नासमझ ठहरे । समझ ही नहीं पाते कि आखिर बाबू चाहता क्या है । बस मन ही मन बेचारे बाबू को कोसते रहते हैं ।
बाबू सरकार से वेतन पाता है । पर उससे उसका काम ही नहीं चलता । ऊपर की आमदनी चाहिए । वर्षा जी भी शायद इन्द्र के सिंचाई विभाग से वेतन पाती होंगी । पर बाबुओं की देखा-देखी उन्हें भी ऊपर की खुशामद चाहिए । पेड़ मत काटो, वृक्षारोपण करो, प्रदूषण मत फ़ैलाओ आदि आदि, न जाने कितनी ही माँगें हैं पर अपने को समझदार कहते न थकने वाला इन्सान समझ ही नहीं पा रहा । अपने लिए पानी तक का प्रबन्ध न कर सकने वाला इन्सान वाकई कितना समझदार है !
शास्त्रों में लिखा है कि जल ही जीवन है । जीवन अब बोतल में बिकता है । हवा भी बिकती है पर इतने बड़े पैमाने पर नहीं । जब हवा-पानी मिलते हैं तो जीवन रहता है । जीवन को बुलबुले की भाँति माना गया है । हवा पानी जब अलग अलग हो जाते हैं तो बुलबुला फ़ूट जाता है । बुलबुले का कोई भरोसा नहीं । कब फ़ूट जाए कोई नहीं जानता । स्वयं हवा और पानी भी शायद नहीं जानते कि वे कब संबंध विच्छेद कर लेंगे ।
जीवन का भी कोई भरोसा नहीं । कौन कब टपक जाय कुछ कहा नहीं जा सकता । कौन हमें यहाँ भेज देता है और फ़िर अचानक वापस बुला लेता है ? क्या हम किसी शरारती बच्चे के खिलौने हैं जो हमें रिमोट से नियन्त्रित कर रहा है ? हम क्यूँ हैं ? यह सृष्टि , यह ब्रह्माण्ड किसकी शरारत है ?
कहा जाता है कि ब्रह्माण्ड का लगातार विस्तार हो रहा है । यह शायद 76.9 किलोमीटर प्रति सेकण्ड की गति से बाहर की ओर फ़ैल रहा है । कितनी ही आकाशगंगाएं भाग रही हैं । वैज्ञानिक पता करने में जुटे हैं कि ब्रह्माण्ड में हमारे अलावा क्या कहीं जीवन है ? इसी चक्कर में नित्य नये नये राज खोले जा रहे हैं । कहा जा रहा है कि यहाँ से दो सौ प्रकाशवर्ष दूर कोई तारा बुझ रहा है या जल रहा है । बहुत प्रसंशनीय है आपने इतनी दूर का समाचार सुनाया । पर हमें तो यह न्यूज दो सौ साल पुरानी लगती है । जो प्रकाश वहाँ से दो सौ वर्ष पहले चला होगा वही तो आपने देखा होगा । खैर छोड़िये हम इतने संकुचित नहीं कि ब्रह्माण्ड के बारे में ही सोचते रहें । ब्रह्माण्ड के परे क्या है ? किसी विशेषज्ञ से जब ऐसा सवाल पूछ लिया जाय जो बहुत कठिन हो तो सबसे पहले वह यही बोलता है कि ," गुड क्वेश्चन !" इस प्रश्न का भी वही हश्र होता है । पर हमें सोचने से कोई रोक तो नहीं सकता ना । इसलिए सोच लिया ।
हो सकता है ब्रह्माण्ड के बाहर कोई महा-ब्रह्माण्ड हो और हमारा ब्रह्माण्ड उस महा-ब्रह्माण्ड में किसी अण्डे के समान हो जो धीरे धीरे बड़ा हो रहा है और एक दिन फ़ूट जाने वाला है ।
जैसे परमाणु में इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन जैसे न जाने कौन कौन से टॉन फालतू घूमते रहते हैं । हो सकता है उसी भाँति ब्रह्माण्ड भी महा-ब्रह्माण्ड का कोई परमाणु ही हो और ये सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, आकाशगंगाएं, ब्लैकहोल और न जाने कौन कौन जो अपने को बहुत तीस मार खाँ समझते हैं, उस परमाणु के इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन जैसे ही हों । हम और आप तो खैर चीज ही क्या हैं । शायद विकिरण हों ।
शायद इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन जैसे सूक्ष्म कणों के भीतर भी सूक्ष्म जीवन हो और वहाँ के जीव उसे ही अपना ब्रह्माण्ड कहते हों । वहाँ भी चांद तारे हों और और कई ग्रहों पर जीवन हो । वहाँ भी आतंकवाद, राष्ट्रवाद, उदारवाद, नारी-सशक्तिकरण, समलैंगिकता और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर बहस होती हो और जरा-जरा सी बात पर लोग कट मरते हों ।
यही सब महा-ब्रहमाण्ड और महा महा-ब्रह्माण्ड में भी होता रहता होगा । या ऐसा हो सकता है कि हम सपने में हों और जब जागें तो किसी और दुनिया में बिस्तर पर पड़े मिलें जहाँ हमें जगाया जा रहा हो ," उठो सुबह हो गयी । ऑफ़िस नहीं जाना क्या ?"
कहीं आप गम्भीर तो नहीं हो गए ?
मैं तो यूँ ही मजाक कर रहा था ! ( यही तो शीर्षक है )