संभव है कि इस ब्लॉग पर लिखी बातें मेरी विचारधारा का प्रतिनिधित्व न करती हों । यहाँ लिखी बातें विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने का परिणाम हैं । कृपया किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न रखें ।
सोमवार, दिसंबर 29, 2008
चित्र पहेली का जबाब
इस पहेली में हमने पूछा था कि ये महाशय कौन हैं ? और क्या कहना चाहते हैं . अधिकतर प्रतियोगियों ने पहेली के एक ही हिस्से का उत्तर दिया .
सबसे पहले हमारे मित्र कुश का जबाब आया और हिंट माँगने लगे . जब हमने साफ मना कर दिया तो उन्होंने अपनी समझ से ये बताने की कोशिश की कि यह कौन हैं पर क्या कहना चाहते हैं इस पर कुश कुछ न बोले .
मुसाफिर जाट ने शुरुआत कर दी पर जबाब बीच में छोड घूमने निकल गए . मुसाफिर जो हैं .
संजय बेंगाणी जी साफ मुकर गए .
सबसे बडा उलटफेर का शिकार पहेली विशेषज्ञ अल्पना वर्मा जी को होना पडा . भूमिका बनाने में ही उनका टाइम अप हो गया .
सीमा गुप्ता जी भीं हँसी में टाल गईं .
सुनीता शानू जी ने दोनों भागों के जबाब दिए . इनके दूसरे हिस्से को देखिए : " इनके हाथों की स्टाईल और आंखों के एक्सप्रेशन को गौर से देखिये लगता है यह कह रहे हैं...आतंकवाद? छड यार सानु की फ़र्क पैणा हैं असी तो बुलेट प्रुफ़ हैं होर असी ओथे जांदे ही नई जिथे बम होणा होया,फ़ेर जावांगे तो भी मोमबत्ती जलाण वास्ते...:) की कैया असी पहेली जीत गये लो जी तुसी भी बधाई कबूल करो दार जी ...:)"
आप देख सकते हैं इन्होंने स्माइली लगा दी मतलब हँसी में टाला .
हिमांशु जी ने पहेली को मजेदार बताया .
आदरणीय ज्ञानदत्त जी ने पूरी कॉपी एक ही हिस्से का जबाब देने में जाया कर दी . पर बी-कॉपी का कोई प्रोवीजन ही नहीं था .
मोहन वशिष्ठ जी ने दोनों भागों को कवर किया .
रंजन जी ने दर्द को समझा .
हमारे शेखावत जी ज्ञानदत्त जी की नकल मारते लगे :)
रंजना जी ने बडा ही संतुलित जबाब दिया . पर हाथों के स्टाइल से मैच नहीं मिला .
महक जी ने अंग्रजी में अपना आन्सर दिया .
अलग सा जी ने अलग सा ही कुछ कहा .
डी.के. शर्मा जी भी अपना स्टाइल मारकर चलते बने .
पिण्टू जी ने हमें मुना भाई बताया .
धीरू सिंह जी को लगा कि हम उनपर अलीगढी चक्कर चला रहे हैं .
महेन्द्र मिश्रा जी ने भी टाइम पास कर लिया .
चन्द्रमौलेश्वर जी ने पहचाना नहीं . फिर भी बता दिया .
ताऊ जी अपनी ताऊ गीरी में जबाब दे दिए .
प्यासा सजल जी ने पूरी तन्मयता से परीक्षा दी . शायद विकिपीडिया की मदद भी ले आये . दोनों भागों का जबाब भी दिया .
अनुपम अग्रवाल जी निर्णायकों को घूस देने की फिराक में थे :)
प्रदीप मानोरिया जी यहाँ भी कविता लिखने से बाज न आए .
श्रद्धा जी ने आत्मविश्वास की कमी से मौका गँवा दिया .
अरविन्द मिश्रा जी ने भी आखिर में अपनी अटेण्डेंस लगा दी .
अब हम आपको सही जबाब बता दें :
यह मनमोहन सिंह जी हैं . यह कहना चाहते हैं : " क्या बात कर रहे हो यार, मुझे कौन नहीं जानता ?"
पर्फैक्ट जबाब कोई न मिला . आप लोग खुद ही अपने जबाब मिला लें . किसका कितना सही है . कमेटी हार गई आप सब जीत गए . पहेली पूछने से तौबा :)
वैसे रोचकता में सुनीता शानू जी का पलडा भारी रहा .
शनिवार, दिसंबर 27, 2008
चित्र पहेली : बूझो तो जानें
युद्ध ही दिखता एक विकल्प ?
युद्ध ही दिखता एक विकल्प !
शांति के दरवाजे सब बन्द ।
मूर्ख होता जाता उद्दण्ड ॥
लगाता जाता प्रत्यारोप ।
चलाता नित्य झूठ की तोप ॥
बताता सब साक्ष्यों को गल्प ।
युद्ध ही दिखता एक विकल्प !
चाहता हर कोई बस युद्ध ।
दिख रहा जनमानस अतिक्रुद्ध ॥
बन गया है अब जो नासूर ।
चिकित्सा उसकी हो भरपूर ॥
तभी हो सकता कायाकल्प !
युद्ध ही दिखता एक विकल्प !
लगाकर बैठे हैं सब घात ।
पडौसी जो हैं उसके साथ ॥
अभी जो आस्तीन के साँप ।
कर रहे इंतजार चुपचाप ॥
लूटने का करके संकल्प !
युद्ध ही दिखता एक विकल्प ?
युद्ध का उठा सकेंगे बोझ ?
करेंगे मेहनत दूनी रोज ?
पिछडना है आपको कबूल ?
तरक्की जाएंगे सब भूल ?
मिलेगा भोजन भी अत्यल्प !
युद्ध ही दिखता एक विकल्प ?
गुरुवार, दिसंबर 25, 2008
फुरसतिया का ऐजेण्डा
ब्लागजगत से संबंधित तमाम काम करने को बकाया हैं। उनकी लिस्ट क्या बनायेंजब से हमने यह पोस्ट पढी है । तब से हमारी अंतरात्मा हमें धिक्कार रही है कि तुम तो इनमें से कितने पाप कर चुके हो , और करने का विचार मन में पाले हो । विशेष रूप से सात नम्बर का । हालाँकि अनूप जी ने हल्का करने के लिए पहले दो सूत्र जोडे हैं और यहाँ पर हमारे लिए प्रासंगिग नहीं हैं । किंतु बाकी के सब तो हमारे लिए ही लिखे गए लगते हैं । इस आत्म-ग्लानि को दूर करने का एक ही उपाय नज़र आता है कि हम प्रायश्चित कर लें । हम गढे मुर्दों को न उखाडते हुए उन सभी लोगों से सार्वजनिक रूप से माफी चाहते हैं जो कभी हमारे व्यवहार से आहत हुए हों ,और भविष्य में दो से ग्यारह वाले ऐजेण्डे के सूत्रों को यथा सम्भव पालन करने का प्रयास करने का आश्वासन देते हैं ।
लेकिन जो कुछेक जरूरी काम लगते हैं उनमें ये करने का मन है:-
1-ब्लाग लिखना बंद करने की घोषणा ।
2-सबके प्यार और अनुरोध पर वापस आने की घोषणा।
3-किसी का दिल दुखाने वाली पोस्ट न लिखना।
4- बड़े-बुजुर्गों (ज्ञानजी, समीरलाल,शास्त्रीजी आदि-इत्यादि) से अतिशय मौज लेने से परहेज करना।
5- नारी ब्लागरों की पोस्टों को खिलन्दड़े अन्दाज से देखने से परहेज करना।
6- नये ब्लागरों का केवल उत्साह बढ़ाना, उनसे मौज लेने से परहेज करना।
7-किसी आरोप का मुंह तोड़ जबाब देने से बचना।
8- अपने आपको ब्लाग जगत का अनुभवी/तीसमारखां ब्लागर बताने वाली पोस्टें लिखने से परहेज करना।
9- अपने लेखन से लोगों को चमत्कृत कर देने की मासूम भावना से मुक्ति का
प्रयास ।
10- तमाम नई-नई चीजें सीखना और उन पर अमल करना।
11- जिम्मेदारी के साथ अपने तमाम कर्तव्य निबाहना।
ये सारे काम आपको पता हो या न पता हो लेकिन हमें पता है कि बहुत कठिन काम हैं। लेकिन एजेंडा बनाने में क्या जाता है। कुछ जाता है क्या?
आपै बताओ!
बुधवार, दिसंबर 24, 2008
ज्ञानदत्त जी से प्रेरित
रविवार, दिसंबर 21, 2008
नाम, रूप, गुण कैसे कैसे !
जब नाम से किसी को जानें ।
किंतु रूप से ना पहचानें ॥
तो अजीब स्थिति होती है ।
मन में एक मूरत होती है ॥
जैसा नाम रूप, गुण वैसे ।
लोग मान लेते हैं ऐसे ॥
नाम, रूप, गुण, कार्य मिलें सब ।
लेकिन ऐसा होता है कब ?
सत्य सामने जब आता है ।
अक्सर मन चकरा जाता है ॥
शेरसिंह कुत्तों से डरते ।
जलसिंह पानी में न उतरते ॥
झूठ बोलकर दाम कमाते ।
लेकिन हरीचन्द कहलाते ॥
शांतिस्वरूप क्रोध करते हैं ।
भीष्म लडकियों पै मरते हैं ॥
हर्ष विषादग्रस्त रहते हैं ।
सुखपाल भी दुखी रहते हैं ॥
नाम कबीर पूजते मूरत ।
सुन्दर को देखा बदसूरत ॥
बलराम की हुई बरबादी ।
राधा से हो गई है शादी ॥
मोहनचन्द दूसरे भाई ।
राधा जी उनकी भौजाई ॥
कैसे कैसे मिले अजूबे ।
साहूकार कर्ज़ में डूबे ॥
अमर बिचारे स्वर्ग सिधारे ।
जंगजीत जूए में हारे ॥
तेजसिंह का काम है धीमा ।
चक्कर खा गिर पडता भीमा ॥
काला अक्षर भैंस बराबर ।
इनका नाम रहा विद्याधर ॥
गलती से पड गए जो छींटे ।
लछिमन रामचन्द को पीटे ॥
कर्ण जरा ऊँचा सुनते हैं ।
लक्की अपना सिर धुनते हैं ॥
राजकुमार लगाता ठेला ।
दानवीर ने दिया न धेला ॥
साधूराम डकैती डालें ।
लाखों का सामान पचा लें ॥
शीतल को लगती है गर्मी ।
धरमवीर सा नहीं अधर्मी ॥
मेघराज पानी को तरसे ।
बादल अब तक कभी न बरसे ॥
दारासिंह हड्डी के ढाँचे ।
शिवशंकर जी कभी न नाचे ॥
विश्वनाथ अनाथालय में ।
लता न गाती बिल्कुल लय में ॥
नन्हे खाँ दिखते हैं फूले ।
झूलेलाल कभी ना झूले ॥
दयावती को दया न आई ।
करी सास की खूब पिटाई ॥
ऐसा पृथ्वीराज मिला है ।
भूमिहीन में नाम लिखा है ॥
कल्लोदेवी देखीं उजली ।
चन्दा तारकोल की पुतली ॥
यादराम जी की लाचारी ।
इन्हें भूलने की बीमारी ॥
कुलभूषण की बात सुनाएं ।
दुराचार कुछ कहे न जाएं ॥
कुल की साख लगाया बट्टा ।
सत्यनारायण खेलें सट्टा ॥
नाम नयनसुख देखे भेंगे ।
कुँआरे दूल्हेराम मरेंगे ॥
पर कुमार की दो-दो शादी ।
आशा घोर निराशावादी ॥
अन्नपूर्णा मरती भूखी ।
मृदुला की बातें हैं रूखी ॥
परमानन्द दुखी बेचारे ।
लाख प्रयत्न किए पर हारे ॥
बेटे का दिमाग है खिसका ।
होशियारचन्द नाम है जिसका ॥
ध्यानचन्द जी कभी न खेले ।
टाँग तुडाकर बैठे पेले ॥
अर्जुन बडे युधिष्ठिर छोटे ।
लाखन को रुपयों के टोटे ॥
घोर गरीबी ऐसी छाई ।
जाने कैसी किस्मत पाई ॥
धनीराम यूँ जीवन काटें ।
सेठ भिखारी कर्ज़ा बाँटें ॥
श्रवण कुमार झगडते माँ से ।
बुड्ढे को ले जाओ यहाँ से ॥
इसका सरक गया है भेजा ।
इसको वृद्धाश्रम में लेजा ॥
लज्जा देवी नहीं लज़ाती ।
नहीं इमरती मीठा खाती ॥
ऐसे भी जगपाल यहीं हैं ।
घर में आटा दाल नहीं है ॥
बेचारे ये रोज कमाते ।
तभी शाम को खाना खाते ॥
घर में मित्र प्रकाश आगया ।
बत्ती गुल अंधेर छागया ॥
किस्मत के मिट सके न लेखे ।
ज्ञानदत्त अज्ञानी देखे ॥
गौर वर्ण के देखे कल्लू ।
नाम विवेक मगर हैं लल्लू ॥
अत: सज्जनो नाम है जैसा ।
आवश्यक न रूप, गुण वैसा ॥
शुक्रवार, दिसंबर 19, 2008
मेरे पै जो डीजे होता.....
आओ तुमको आज बताएं ।
कलयुग में है कैसी भक्ति ॥
विषय-वासना में सब डूबे ।
छोड न पाए ये आसक्ति ॥
एक भक्त ने करी तपस्या ।
शिवजी को प्रसन्न कर लिया ।।
नन्दी पर चढ आए भोले ।
बोले "भक्त माँगता है क्या ?
खुलकर आज माँगले कुछ भी ।
तुझे वही वर मिल जाना है ॥
बोल तुझे अप्सरा चाहिए ।
या लक्ष्मी का दीवाना है ? "
सुनकर भक्त हो गया पागल ।
लगा नाचने वहीं खुशी से ॥
बोला "मुझे लक्ष्मी से क्या ?
मुझे चाहिए तो बस डीजे ।।"
शिवजी को तब हँसी आगई ।
उसका हाथ पकडकर देखा ।
बोले "तेरी कमी नहीं हैं ।
इसमें नहीं अकल की रेखा ॥
तुझको इतनी समझ नहीं हैं ।
अरे बावली बूच नूँ बता ॥
मेरे पै जो डीजे होता ।
मैं क्यों डमरू लिए घूमता ?"
बुधवार, दिसंबर 17, 2008
गुरु-शिष्य परम्परा और अफजल गुरु
" भारत में गुरु शिष्य परम्परा बहुत पुरानी है । यहाँ पर गुरुओं का आदर किया जाता है . हम भी अपने मास्साब का बहुत आदर करते हैं . गुरु शिष्य परम्परा का महत्व निम्नलिखित है .
आपने महसूस किया होगा कि जब से संसद पर हमले के आरोपी अफजल को फाँसी की सजा सुनाई गई है तभी से यदा कदा उसकी सजा को क्रियान्वित करवाने के लिए जनता के बीच से आवाजें आती रही हैं . जब कभी कहीं बम धमाका हो जाता है तो कुछ समय के लिए यह शोर तेज होता है और फिर धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो जाता है ।
पर इतने पर भी हमारी सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंगती । आखिर जूँ रेंगेगी कैसे . उसे रेंगने ही नहीं दिया जाता . साफ सफाई पर ध्यान ही इतना दिया जाता है , कि बेचारी जूँ पास भी फटकने नहीं पाती , रेंगना तो बहुत दूर की बात है । हमारे पूर्व गृहमंत्री की सफाई के आगे तो अच्छे से अच्छे सफाईगीर भी पानी भरते हैं .
पर सब लोग सरकार को ही दोष दिए जाएंगे । किसी ने यह नहीं सोचा कि सरकार के ऊपर तो देश की परम्पराओं को जीवित रखने की भी जिम्मेदारी है . उस जिम्मेदारी को नहीं निबाह सकी तो आने वाली पीढियों को कैसे मुँह दिखाएगी ? यह जो अफजल के नाम के पीछे जो गुरु शब्द लगा हुआ है उसने सारा खेल बिगाडा हुआ है .
आप यह तो भली भाँति जानते होंगे कि गुरु शिष्य परम्परा इस देश में युगों से चली आरही है । गुरु के एक आदेश पर शिष्य अपनी जान तक देने के लिए तैयार हो जाते थे । एकलव्य ने कैसे गुरु के एक इशारे पर अपना अँगूठा काटकर उनको गुरु दक्षिणा में दे डाला था भूल गए आप ? बस यही प्रोब्लम है पब्लिक के साथ . पब्लिक जल्दी भूल जाती है ।
इस पर भी हमारे प्रधानमंत्री के लिए तो गुरु शब्द का और भी अधिक महत्व है . वैसे इस देश में ऐसा पहली बार नहीं है कि गुरु को मृत्यु दण्ड दिया गया हो । इससे पहले भी गुरु अर्जुनदेव को और गुरु तेगबहादुर को मुगलों ने मृत्यु दण्ड दिया था . और बाद में अंग्रेजों ने शिवराम राजगुरु को भगतसिंह के साथ फाँसी पर लटका दिया था । पर इससे क्या वे सब चाहे बेशक निर्दोष थे . पर शासकों को गुरु शिष्य परम्परा का इतना खयाल नहीं था जितना आज की सरकार को है ।
आशा है हमारी सरकार गुरु शिष्य परम्परा को जीवित रखने में कोई कसर न उठा रखेगी . और अफजल गुरु यूँ ही कबाब काटते रहेंगे . हम तो खैर अपने मास्साब का सम्मान करते ही हैं .
मंगलवार, दिसंबर 16, 2008
स्वर्ग में संवाददाता
शनिवार, दिसंबर 13, 2008
कहीं आप ही तो लल्लू नहीं
किंतु एक आम समस्या यह आती है कि यहाँ जो लोग टिप्पणी करते हैं वे खुद भी ब्लॉग लिखते हैं, टिप्पणियाँ उन्हें भी चाहिए । और इस तरह सौदा बराबरी पर ही छूटता है कि भई इस हाथ दे और उस हाथ ले । यहाँ पर जो तथाकथित ब्लॉग मठाधीश हैं वे भी इस सार्वभौमिक सत्य के अपवाद नहीं हैं . इनमें दो-एकाध ही इतना पानी रखते हैं जो एक महीने बिना टिपियाए टिक सकें . अन्य सब हफ्तों में पब्लिक का पानी भरते नज़र आएंगे . हम जैसों की तो खैर चर्चा ही मत करिए . सेकिण्डों में निपट लेंगे .
पर सोचिए अगर कोई सेल्समैन आपके दरवाजे पर आकर आपसे कहे कि हमारी कम्पनी ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर लॉन्च किया है जो आपकी तमाम मुश्किलें आसान कर देगा । बस इसे अपने कम्प्यूटर में इंस्टॉल कर लें फिर कमाल देखें . यह ब्लॉग एग्रीगेटर से ब्लॉग पढेगा और यथायोग्य टिप्पणियाँ आपकी सेटिंगानुसार आपके नाम से भेजता रहेगा . तो शायद आप पहले तो भरोसा ही न करेंगे और जब सुबूत के बिना पर आपको भरोसा होगा तो तुरंत ऐसा सॉफ्टवेयर प्राप्त करने के लिए उतावले हो जाएंगे . मगर रुकिए; हम आपको आगाह कर दें कि ज्यादा खुशफहमी ना पालें . क्योंकि यह कोई खुशी की बात है ही नहीं . इसकी खुशी आपको तभी मिलेगी जब यह सॉफ्टवेयर सिर्फ और सिर्फ आप ही के पास हो . वह भी शुरू शुरू में . तत्पश्चात आपको मिलने वाली खुशी गुजरते समय की समानुपाती दर से कम होती जाएगी । समझ लीजिए यह सॉफ्टवेयर सबको मिल जाय तो टिप्पणी की वैल्यू तो रुपए से भी नीचे गिर जाएगी . हर टिप्पणी को जाँचने की कवायद होगी कि नेचुरल है या आर्टिफिसियल ? टिप्पणी पहचानने वालों की दुकानें चल निकलेंगी . जिस तरह हीरे की परख जौहरी करता है . हो सकता कि टिप्पणी की परख करने वाला भी कोई टौहरी होने लगे .
चलिए जाते जाते आपको बता ही देते हैं कि ऐसा सॉफ़्टवेयर सचमुच ब्लॉगजगत में पदार्पण कर चुका है और चल रहा है ।
अब आप सोच रहे होंगे कि हम आपको ईजाद करने वाले और उपयोग में लाने वालों का नाम बता देंगे . तो इतने लल्लू हम हैं नहीं । इतना सब फ्री-फॉण्ड में बता दिया यह कम है क्या ?
आप खुद ही गेस करिए . हो सकता है कि आपके बगल वाला ब्लॉगर ही इसे डाले बैठा हो . और यह भी आशंका है कि यह आपको छोडकर सबके पास हो . और सिर्फ आप ही लल्लू हों .
रविवार, दिसंबर 07, 2008
जब मेरी सरकार बनेगी
सभी बिलागर छा जाएंगे ।
मंत्री सबको बनना होगा ,
समुचित मन्त्रालय पाएंगे ॥
चयन करो अपना मंत्रालय ,
सबको खुली छूट दे दूँगा ।
बचे कुचे मंत्रालय लेकर ,
उनकी पोस्ट नित्य ठेलूँगा ॥
टाँग खिंचाई का विभाग तो ,
फुरसतिया ही ले जाएंगे ।
पोर्टफोलियो एक एक्स्ट्रा ,
हा हा ठी ठी का पाएंगे ॥
पर हा हा के सभी मामले ,
सीमा गुप्ता अगर सँभालें ।
फुरसतिया को फुरसत होगी ,
बस ठी ठी का बोझ उठालें ॥
ज्ञानदत्त पाण्डेय अपना प्रिय ,
ठेल मंत्रालय ले लेंगे ।
फिर जो कुछ भी मिल जाएगा ,
बता ओरिजीनल ठेलेंगे ॥
फिल्म मन्त्रालय ले लें कुश ,
मेरी उनसे रही गुजारिश ।
भूले भटके काम पडा तो ,
कर दें मेरी जरा सिफारिश ॥
शास्त्री जी जो स्नेह मन्त्री ,
बन जाएं तो फिर क्या कहना ।
सबको खूब स्नेह मिलेगा ,
फिर चाहे जैसे भी रहना ॥
लट्ठ मंत्रालय ताऊ का ,
इसमें कोई बहस न होगी ।
जो ताऊ से बहस करेगा ,
समझें उसे मानसिक रोगी ॥
बेहतर होगा जो रचना सिंह ,
अनुशासन मंत्री बन जाएं ।
पर अनुशासन में रहकर वे ,
शायद ही मंत्री बन पाएं ॥
शब्दों के मन्त्री के पद पर ,
अजीत वडनेरकर सोहेंगे ।
अर्थ अनर्थ करें शब्दों का ,
वे सबके मन को मोहेंगे ॥
दिनेश राय द्विवेदी जी भी ,
अपने विधि मन्त्री होंगे ।
कानूनी मसलों पर हमको ,
अपनी राय जरूरी देंगे ॥
अमर कुमार उठा मन्त्रालय ,
देखेंगे जब घुमा फिराकर ।
मन ही मन में सोचेंगे वे ,
गलती करदी इसको लाकर ॥
यह तो खाली मन्त्रालय है ,
इसमें भरा विभाग न कोई ।
मन्त्री बना विभाग न पाया ,
मेरी किस्मत ऐसी सोई ॥
किन्तु टिप्पणी ग्रोथ मन्त्री ,
उनको तुरत बना डालूँगा ।
होती खरी टिप्पणी इनकी ,
सबसे ज्यादा मैं ही लूँगा ॥
उडन तश्तरी के सुपुर्द हैं ,
आसमान के सभी मामले ।
ब्लॉगजगत की निगरानी हो ,
आसमान से ना हों हमले ॥
सफल रहे आलोक पुराणिक ,
अपना प्रिय मन्त्रालय लेकर ।
व्यंग्य विभाग उडाकर भागे ,
बिलागरों को झाँसा देकर ॥
झाड फूँक मन्त्री का पद तो ,
ले ही लेंगे अभिषेक ओझा ।
और दूसरा कोई इसका ,
उठा न सकता पूरा बोझा ॥
आम आदमी की मन्त्री जब ,
रीता भाभी बन जाएंगी ।
भरतलाल जो खबरें देगा ,
वे खबरें भी छप जाएंगी ॥
शिवकुमार मिश्रा जी गुरु हैं ,
उनको मन्त्रालय ना देंगे ।
हम तो बैठे मौज करेंगे ,
सारा काम वही देखेंगे ॥
शनिवार, नवंबर 29, 2008
ढीली होती ना सुनी
कडी सुरक्षा हो गई, सुनते हैं हर बार ।
ढीली होती ना सुनी अभी एक भी बार ।
अभी एक भी बार न यह खबरों में आया ।
था कोई बर्खास्त , पुन: पद पर बैठाया ।
विवेक सिंह यों कहें, सूचना आती छनकर ।
लोकतन्त्र में बिका मीडिया फिल्टर बनकर ।।
२.
हारे जब किरकेट में, हुए बहुत नाराज ।
देशवासियों की गिरी, खिलाडियों पर गाज ।
खिलाडियों पर गाज, घरों पर पत्थर बरसे ।
बेचारे अपने ही घर आने को तरसे ।
विवेक सिंह यों कहें गया वह जोश कहाँ पर ।
गुस्सा क्यों न तनिक दिखलाते नेताओं पर ॥
शुक्रवार, नवंबर 28, 2008
ना मूर्खों के सींग
विदेशियों को सौंपकर, अपने तीर-कमान ।
उनसे आशा कर रहे, रखें हमारा ध्यान ।
रखें हमारा ध्यान, धन्य हैं भारतवासी ।
साध्वी का अपमान, न दें फजल को फाँसी ।
विवेक सिंह यों कहें, प्रसन्न उदार कहाते ।
ना मूर्खों के सींग, युँही पहचाने जाते ॥
सोमवार, नवंबर 24, 2008
नीति-निर्धारकों का ओवरटाइम ?
केन्द्र सरकार या राज्य सरकारों की बात करें तो जनता को लुभाने और वाहवाही लूटने के चक्कर में मन्त्रियों की संख्या को तो सीमित कर दिया गया पर यह नहीं सोचा गया कि एक ही मन्त्री कैसे कई विभागों की जिम्मेदारी सँभाल पाएगा । आखिर वे भी सुपरमैन तो हैं नहीं, आदमी ही हैं और ज्यादातर ऐसे हैं जो रिटायरमेंट की आयु पार कर चुके हैं तथा बिना सहारे के खड़े रह पाने की भी स्थित में नहीं हैं । अधिकतर सांसद अपनी दो करोड़ रुपये की धन राशि को ही ठिकाने नहीं लगा पाते, जो उन्हें अपने क्षेत्र में विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए मिलती है । ऐसे में मन्त्रियों की संख्या घटाने की अपेक्षा उनके ऊपर होने वाले फालतू खर्चों को घटाना चाहिए था । उस स्थिति में कोई सांसद मन्त्री बनने के लिए राजी ही न होता, ऐसा तो लगता नहीं ।
यही हाल नौकरियों में है । मैन पॉवर शॉर्ट रखी जाती है । जहाँ एक ओर कुछ कर्मचारी वेतन से भी अधिक धनराशि ओवरटाइम के रूप में ले लेते हैं, वहीं अन्य पढे लिखे बेरोजगार चप्पल चटकाते घूमते हैं । जिस देश में इतनी बडी संख्या में लोग बेरोजगार हों वहाँ ओवरटाइम नाम की चिडिया को तो हर जगह से ढूँढ ढूँढकर उड़ा देना चाहिए । एक व्यक्ति एक पद के सिद्धान्त को हरसंभव अमल में लाया जाना चाहिए ।
पर क्या करें जब व्यवस्था के नीति निर्धारक स्वयं ओवरटाइम कर रहे हों तो उनके पास इस दिशा में सोचने की फुर्सत कहाँ ?
शनिवार, नवंबर 22, 2008
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आओ ब्लॉगरो तुम्हें बताएं ।
ब्लॉगिंग में कैसे टिपियाएं ॥
यूज करें कट पेस्ट टेक्निक ।
माउस से बस करें दो क्लिक ॥
कम ना समझें टिप्पणियों को ।
बना चुकी हैं ये कइयों को ॥
जम कर सबको दें टिप्पणियाँ ।
जुडें आपकी सबसे कडियाँ ॥
मेहनत करलें शुरुआत में ।
करें खूब आराम बाद में ॥
कर्जदार सब हो जाएंगे ।
बैठे आप ब्याज खाएंगे ॥
चंद नमूने यहाँ बाँच लें ।
जो पसंद हों उन्हें छाँट लें ॥
"अरे वाह क्या खूब लिखा है ।
इसमें गहरा राज छिपा है ॥
आप उच्च श्रेणी के लेखक ।
स्वीकार करते हम बेशक ॥
लिखते रहिए रोज कुछ न कुछ ।
पढते ही पाठक हों बेसुध ॥
जुदा लगा अंदाज आपका ।
क्या कहना तुम्हरे प्रताप का ॥
ऐसे लेखक कम मिलते हैं ।
शब्द आपने खूब चुने हैं ॥
बात सुनें अब मेरे मन की ।
इच्छा है तुम्हरे दर्शन की ॥
आप बधाई तो स्वीकारें ।
मेरे भी ब्लॉग पर पधारें ॥
नहीं आपका जबाब कोई ।
पढकर हमने सुध बुध खोई ॥
बेशक आप तिरेपन के हैं ।
कार्य आपके बचपन के हैं ॥
है अंदाज जवानों जैसा ।
सत्य यही है संशय कैसा ॥
ब्लॉगजगत की आप धुरी हैं ।
कुछ लोगों की नज़र बुरी हैं ॥
बुरी नज़र ना लगे आपको ।
फेंकें आस्तीन के साँप को ॥
लिखें साथ में जब घरवाली ।
ट्यूब आपकी कभी न खाली ॥
अपना अलग बिलाग चलाते ।
साझे में शामिल हो जाते ॥
यह साझा भी सुन्दर कैसा ।
कौए और गिलहरी जैसा ॥
पूछे कोई ब्लॉगिंग क्या है ।
हमने सबको बता दिया है ॥
आप जो लिखें ब्लॉग वही तो ।
कहते हैं सब लोग यही तो ॥
कलम आपकी जो चल जाए ।
मिट्टी भी सोना बन जाए ॥
ब्लॉग जगत के आप हैं राजा ।
बजा रहे हैं सबका बाजा ॥
बैंगन व मूँगफली टमाटर ।
धन्य आपकी दृष्टि पाकर ॥
मेरा यही विनम्र निवेदन ।
करते रहें लक्ष्य का बेधन ॥
टिप्पणियों से ना हों विचलित ।
ये तो आती रहतीं हैं नित ॥
नाम टिप्पणीकार हमारा ।
ब्लॉग रोज पढते हैं थारा ॥
हम न किसी की भी मानेंगे ।
खाक लिखो वो भी छानेंगे ॥
जिस ब्लॉगर का सिक्का खोटा ।
उसे विषय का रहता टोटा ॥
आप जहाँ भी दृष्टि डाल दें ।
पानी से अमृत निकाल दें ॥
माना कलयुग में हो रहते ।
कथा मगर द्वापर की कहते ॥
आप जहाँ भी हाथ लगाते ।
अनायास ही बस छा जाते ॥
बन जाते हो कभी निठल्ले ।
सदा आपकी बल्ले बल्ले ॥
नहीं कभी टाइम का टोटा ।
समय दण्ड पकडे हो मोटा ॥
सारे ब्लॉगजगत में जाहिर ।
टाँग खींचने में हो माहिर ॥
टाँग किसी की जो दिख जाए ।
फिर न आपसे वह बच पाये ॥
कसकर पकड खींच लेते हो ।
किन्तु मुस्करा कर कहते हो ॥
अरे मित्र हो गया ये लोचा ।
मैंने ऐसा कभी न सोचा ॥
मैंने रैण्डमली खींची थीं ।
दोनों आँख रखीं मींची थी ॥
छोडो इसमें रोना कैसा ।
आगे से न करेंगे ऐसा ॥
भैंस आपकी है हीरोइन ।
ब्लॉगिंग में सब सूना इस बिन ॥
अब विराम बस तारीफों पर ।
एक नज़र डालें दोषों पर ॥
ब्लॉगजगत खेमों में बाँटा ।
इसी बात का है बस काँटा ॥
जल्दी बुरा मान जाते हो ।
टंकी पर भी चढ जाते हो ॥
मान मनौती करवाते हो ।
वापस किन्तु लौट आते हो ॥
तीसमार खाँ खुद हो बनते ।
अन्य किसी को कहीं न गिनते ॥
झगडा स्वयं मोल लेते हो ।
सारा दोष हमें देते हो ॥
पोस्ट गैर की चार लाइना ।
अपनी किन्तु माइक्रो कहना ॥
दस टिप्पणी मँगा लेते हो ।
तत्पश्चात एक देते हो ॥
यह क्या तुम नाराज़ हो गए ?
किस खयाल में आप खो गए ?
कहा सुना सब माफ करो जी ।
लिखते रहो युँही मनमौजी ॥ ॥ "
सोमवार, नवंबर 17, 2008
ब्लॉगिंग पर रोक ?
टीवी एंकर ऐसा कह ही रहा था कि मेरी आँख खुल गई, और सपना अधूरा ही रह गया .
हैप्पी बड्डे आगया
तीस साल के हो गए सुन ले ब्लॉग समाज ॥
सुन ले ब्लॉग समाज बधाई भिज़वा देना ।
बड़े हो गए हम भी अब छोटा मत कहना ॥
विवेक सिंह यों कहें शर्म है इसमें कैसी ।
देउ मुबारकवाद , आपकी श्रद्धा जैसी ॥
शनिवार, नवंबर 15, 2008
बलम तुम हुक्का छोडौ
कैसें कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥
बीन बान कैं कण्डा लाई आँच दई सलगाय ।
खोल चपटिया देखन लागी हाय तमाकू नाय ॥
बलम तुम हुक्का छोडौ ॥
कैसें कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥
हुक्का हरि कौ लाडिलौ और सबकौ राखै मान ।
भरी सभा में ऐसें सोहै ज्यों गोपिन में कान्ह ॥
बलम तुम हुक्का छोडौ ॥
कैसैं कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥
हुक्का में गंगा बहै और नै में बहै पहाड ।
चिलम बिचारी कहा करै जाके मुह पै धरियौ अंगार ॥
बलम तुम हुक्का छोडौ ॥
कैसैं कटैगी सगरी रात, बलम तुम हुक्का छोडौ ॥
नोट: यह मेरी रचना नहीं है . बृज का लोकगीत है .
गुरुवार, नवंबर 13, 2008
फुरसतिया ब्राण्ड टाइमपास
ऊटपटाँग अगर लिख जाए प्लीज बुरा मत मानें ॥
लिखना हमको आ जाए तो फिर क्या ब्लॉग लिखेंगे ?
टीवी, अखबार में बसेंगे बाहर ना निकलेंगे ॥
टीवी का तो मत पूछें यह बहुत बुरी बीमारी ।
बेचारा अखबार दशा इसकी ना जाय निहारी ॥
राजा सिर्फ एक दिन का यह उसके बाद भिखारी ।
जाने क्या क्या पोंछ पोंछकर फेंकें अत्याचारी ॥
पडा रहा जाकर कूडे में बिलख बिलखकर रोया ।
कैसी किस्मत पायी सब सुख एक रात में खोया ॥
किस्मत का क्या कहना इसके देखे खेल निराले ।
अंधों के हाथ बटेर मरें भूखे सब आँखों वाले ॥
मरता कुछ भी कर सकता है पापी पेट बताया ।
ईश्वर के इस अद्भुत जग में कहीं धूप कहीं छाया ॥
ईश्वर ने जो ऊँट बनाया उसके मुँह में जीरा ।
जीरे का अब भाव बढ गया हो जैसे यह हीरा ॥
हीरे की तो परख जौहरी ही बतला सकता है ।
हीरा डाक्टर सदा मरीजों का रास्ता तकता है ॥
तकने और ताकने में भी बडा फर्क है भाई ।
ताक झाँक की आदत तो लोगों ने बुरी बताई ॥
तकना मतलब इंतजार करना है जमकर तकिए ।
जब सोना हो तो तकिए को सिर के नीचे रखिए ॥
सोने की कीमतें आजकल आसमान छूती हैं ।
आसमान से बारिश हो तो छतें खूब चूती हैं ॥
चूने से सब गीला गीला होता कोना कोना ।
चूना घर पर करदें तो हो इसका रूप सलौना ॥
रूप रंग में क्या रक्खा है हृदय उतरकर जानें ।
हृदय उतरकर मिलें रक्त में नस नस को पहचानें ॥
खूनी लाल रक्त का रंग तो डरावना होता है ।
आवश्यक है रक्त तभी तो रक्तदान होता है ॥
काले गोरे सबके भीतर एक लहू ही पाए ।
गोरे करें न गर्व रंग यह दो दिन में ढल जाए ॥
अगर तीन दिन तक न ढले तो थोडा घमण्ड करलें ।
चौथे दिन तक बचा रहे तो आसमान सिर धरलें ॥
खुबसूरत लोगों के पडते कभी न पैर जमीं पर ।
इनके गुण ही सब देखें बस परदा पडा कमी पर ॥
सबकी आँखों के तारे ये सूरज चाँद कहाए ।
सोचो इनके बीच कभी गलती से धरती आए ॥
होगा क्या बस चंद्रग्रहण सबको दिखलाई देगा ।
मिलें बधाई सूरज को चंदा मामा को ठेंगा ॥
ठेंगा अगर दिखाएंगे तो भैंस बिदक जाएगी ।
अक्ल बडी या भैंस पूछकर सबको भरमाएगी ॥
जिसकी लाठी भैंस उसी की और अक्ल भी उसकी ।
सदा भैंस वालों की तर है बाकी सबकी खुसकी ॥
काला अक्षर भैंस बरावर अब काला मत लिखना ।
इतने छोटे कम्प्यूटर में मुश्किल उसका फिटना ॥
कम्प्यूटर भी चीज अजब है क्या क्या गुल खिलवाए ।
इण्टरनेट लगालें तो यह किस किस से मिलवाए ॥
इण्टरनेट बिना रक्खा है बुद्धू बक्से जैसा ।
हम भी बुद्धू यह भी बुद्धू है जैसे को तैसा ॥
बुद्धू बुद्धिमान क्या दोंनों अलग अलग होते हैं ।
इनमें मेल खूब रहता है साथ साथ सोते हैं ॥
मेल मिले तो पढकर उसको डिलीट कर देते हैं ।
अगर लगे आवश्यक तो रिप्लाई भी देते हैं ॥
इतना धैर्य धरा है तो बस और जरा सा धरलें ।
अच्छी बुरी जिस तरह भी हो एक टिप्पणी करदें ॥
डरें न हडकाना चाहें तो हडका भी सकते हैं ।
निश्चित है हम यह न कहेंगे साहब क्या बकते हैं ?
गुरुवार, नवंबर 06, 2008
ओबामा की गोटी लाल
व्हाइट हाउस में हुई, इनकी गोटी लाल ।
इनकी गोटी लाल, सँभल कर पाँसे फेंके ।
हाथ खूब बेचारे जॉन मैक्केन पर सेंके ।
विवेक सिंह यों कहें ये अंकल सैम नए हैं ।
पौ बारह हो गई तभी तो तने भए हैं ॥
मंगलवार, नवंबर 04, 2008
कुँआरी लडकी नीचे खडी
गाड़ी आपकी जाने वाली है ।
वक्त थोड़ा खाली है ।
चार बातें काम की बताएंगे ।
आशा है घर जाके आप खूब लाभ उठाएंगे ।
जब कोई कुँआरी लडकी नीचे खडी हो जाती है ।
तो बेमतलब का झमेला हो जाता है ।
आदमी असल को भूल जाता है ।
ब्याज के लिए सिर खपाता है ।
करना कुछ और होता है ।
कर कुछ और देता है ।
राह से भटक जाता है ।
खामख्वाह लड़ाई मोल लेता है ।
अपने स्वजनों को दुश्मन समझने लगता है
दिन में परेशान रहे रातों को जगता है ।
कुँआरी लड़की नीचे खडी किसी के भी बीच हो सकती है ।
पति पत्नी में हो जाय ।
प्रेमी प्रेमिका में हो जाय ।
क्या देर लगती है ।
पिता पुत्र के बीच हो जाय,
सास बहू में हो जाती है ।
फालतू मन मुटाव हो
घर तुडवाती है ।
बडे बडे शहरों में अक्सर ये होता है ।
सज्जन खुश रहें तो दिल दुर्जनों का रोता है ।
औरों की खुशी को ये देख नहीं सकते हैं ।
कुँआरी लडकी नीचे खडी होने की राह तकते हैं ।
इंतजार करते हैं ।
जल जल के मरते हैं ।
कुँआरी लडकी नीचे खडी जब खुद नहीं होती है ।
तो खुद ये काम करते हैं ।
अवसर मिलते ही छोटी बडी जैसी भी हो सके ।
सज्जनों के बीच कुँआरी लडकी नीचे खडी पैदा करते हैं ।
मौका ए वारदात से चुपके खिसक जाते हैं ।
दूर खडे होकर नजारा करते हैं ।
क्योकि पास रहने से भेद खुलने से डरते हैं ।
मैनें हिन्दी से काम चलाया अब तक लेकिन ।
अंग्रेजी न बोला तो कुँआरी लडकी नीचे खडी हो जाएगी
आपके और मेरे बीच भी ।
अंतिम हथियार का इस्तेमाल करते हैं ।
अंग्रेजी में आप से ये सच बयान करते हैं ।
ताकि हो नके कोई मिस अण्डर स्टैण्डिंग दोस्तों के बीच ,
कि ये वक्त थोडा खाली है ।
न दी किसी को गाली है ।
गुरुवार, अक्तूबर 30, 2008
सपना जो देखा था
अब यह भी इस देश का अंग हुआ अविभाज्य ।
अंग हुआ अविभाज्य दखल मत दो अमरीका ।
लालकिले से भाषण था मनमोहन जी का ।
विवेक सिंह यों कहें कहो क्या बुरा किया है ?
सपना जो देखा था सबको बता दिया है ॥
बुधवार, अक्तूबर 29, 2008
नहीं बची है शर्म
कांग्रेस अब खेलती छुपकर ओछा खेल ।
छुपकर ओछा खेल राज ठाकरे है मोहरा ।
खेल वोट के सौदागर ही खेलें दोहरा ।
विवेक सिंह यों कहें देशहित तो है बौना ।
नहीं बची है शर्म दिखाया रूप घिनौना ॥
मंगलवार, अक्तूबर 21, 2008
अंग्रेजों की मिस्टेक
अपनाते परिवार नियोजन बच्चे दो या एक ।
बच्चे दो या एक, थर्ड ने खेल बिगाड़ा ।
गाँधी जी ने उनको बिन हथियार पछाड़ा ।
विवेक सिंह यों कहें फिरंगी खाए गच्चा ।
बिखर गया साम्राज्य न कर पाए रक्षा ॥
रविवार, अक्तूबर 19, 2008
कल के ब्लॉग समाचार
अर्द्धरात्रि से अर्द्धरात्रि तक का गाएंगे गाना ।।
नरेन्द्र मोदी के विकास का सच बयान करते हैं ।
यह मृणाल का ब्लॉग पढें क्यों ख्वामखाह डरते हैं ॥
जो है गलत उसी का तो वह इंकलाब करता है ।
तुम्हीं बताओ अंकित क्या कविता खराब करता है ?
मछली अगर पकडनी हो यह जैन कथा पढ जाएँ ।
प्रेरक रही कहानी इससे सीखें और सिखाएं ॥
राज अमरता का चाहें तो वह भी यहाँ मिलेगा ।
अच्छी रही कहानी पढकर मन का कमल खिलेगा ॥
दुख में आए याद रामजी रास्ता बचा न कोई ।
काम आए शिव का विलाप तो जागे इंडिया सोई ॥
सूचनाएं हैं हद से ज्यादा सब न पकड पाएंगे ।
शिरीष की कविता नीलम की रौशनी में लाएंगे ॥
है ये कैसी सजा ? भूल थी उस छात्रा की छोटी ।
कहें सचिन मिश्रा टीचर को खूब खरी और खोटी ॥
अरुणा राय नित नई कविताएं लेकर आती हैं ।
सुन्दर हैं उनकी रचनाएं मन को ललचाती हैं ॥
अमीर खुसरो की पहेलियाँ अगर बूझना चाहें ।
फिर कैसा संकोच पढें और खण्डेलवाल सराहें ॥
दर्द बुजुर्गों का कहते हैं संतोष दर्पण वाले ।
धर्म नहीं है हिन्दू यह रचना अवश्य पढ डालें ॥
यहाँ पढें चुटुकुले मज़े से हँस घर भर दें सारा ।
मिला ब्लॉग यह जरा अलग सा हँसा हँसाकर मारा ॥
कोर्ट कचहरी की कुछ बातें अजय कुमार झा लाए ।
महेन्द्र मिश्रा आदिवासियों से क्यों जा टकराए ?
सर्प पहेली बूझें लायीं लवली नए रंग में ।
सुरेश चन्द्र गुप्ता दुल्हन को ले आए निज संग में ॥
अहोई अष्टमी की सुन लें यह कथा रहे उपयोगी ।
आरोग्यवर्धनी वटी बनाकर लाभ उठाएं रोगी ॥
सर सैयद अहमद खाँ का यह पूरा जीवन परिचय ।
मिलें टिप्पणी सबको ही यह शाष्त्री जी का आशय ॥
ताऊ की चालाकी को अब राज भाटिया जाने ।
पढ मेडिकल टेस्ट हमहुँ मीडिया डाक्टर को माने ॥
एक कहानी डायन की है कविता ने छपवाई ।
सच्ची झूठी आप जाँच लें हमने बस पढवाई ॥
चावल देने का वचन नोट पर आगे से हो लागू ।
कहें यही आलोक पुराणिक अब मैं यहाँ से भागूँ ॥
घूम रहे पिस्तौल तानकर हमको डर लगता है ।
आज बस करें लोग कहेंगे क्या फिजूल ठगता है ?
शनिवार, अक्तूबर 18, 2008
ब्लॉग समाचार
रद्दी कविता प्रस्तुत करते पकड़े शिवकुमार ने ज्ञान ।।
आर्थिक मंदी शुरू हुई के ? पूछें ताऊ देउ बताय ।
चिडिया गदही पुकारती थी कैसा कलयुग आया हाय ॥
फिर हाज़िर एक चित्रपहेली अरविंद मिश्रा ने की आज ।
सरिताजी ने खोला आखिर छलिया चाँद छलनी का राज ।।
मार्क्सवाद आपराधिक है घोस्टबस्टर के सुनें विचार ।
जागा मगर प्रेत इसका ये कहें द्विवेदी जी इस बार ॥
फुटकर सोच पाण्डेय जी की बढा ब्लॉग पर यातायात ।
मिला खज़ाना अलमारी में वडनेरकरजी की क्या बात ॥
मॉर्डन नारी बनना हो तो अचूक नुस्खा है तैयार ।
अगर डराना है दोस्तों को है षडयन्त्र यहाँ तैयार ॥
मनविंदर भिंभर कहती हैं वे रब तेरा भला करे ।
यहाँ नीलिमा सुना रही है मृत्युगीत अब कौन मरे ॥
छणिकाएं जो पढनी हों तो नीशू ने की हैं तैयार ।
किन्तु राधिका बुधकर का यह है मार्मिक आरोही प्यार ! ॥
शुक्रवार, अक्तूबर 17, 2008
सचिन बने बादशाह
सचिन बने क्रिकेट के, बादशाह बेताज .
बादशाह बेताज, नहीं है कोई सानी ।
तुलना करें किसी से तो होगी बेमानी ।
विवेक सिंह यों कहें , सर्वदा रहें खेलते ।
बनते रहें रिकॉर्ड पोस्ट हम रहें ठेलते ॥
करवाचौथ पर निन्दक-निन्दा
ऊपर वाली इतनी लम्बी कथा हमने अकारण ही नहीं कही . आज करवा चौथ है . सब तरफ प्रसन्नता का माहौल है .हम तो छुट्टी लेकर घर बैठे हैं ईवनिंग शिफ्ट में ड्युटी थी इस डर से नहीं गये कि कहीं रात वाला फँसा न दे . जो पति हैं वे इसलिए खुश हैं कि उनके लिए ऐसा मौका साल में एक ही बार आता है जब उनकी पूजा होती है . अन्यथा वे तो साल भर पूजक ही बने रहते हैं . पत्नियाँ खुश हैं क्योंकि इसे बड़ा प्रदर्शन का सुअवसर बार बार थोड़े ही आता है . पडौसिनों को दिखाने का यही तो अवसर है कि मेरे पास यह साड़ी इतने की है और फलाँ जेवर इतने में खरीदा . आखिर प्रदर्शन का कोई बहाना तो चाहिए . ऐस ही तो किसी के सामने जाकर अपना बखान नहीं कर सकते न . ऊपर से पतिदेव को भी भ्रम हो जाता है कि वे देवता हैं . इस अवसर पर देवता से लगे हाथ वह इच्छा भी पूरी कराई जा सकती है जो पूरे साल बज़ट से बाहर थी . बच्चे मम्मी पापा दोंनों को एक साथ खुश देखकर अति आनन्दित हैं . उनको समझ आ गया है कि आज कोई न कोई विशेष अवसर है . जरूर कुछ न कुछ या तो हो गया है या होने वाला है .पर बुरा हो इन घोर असामाजिक छिद्रान्वेषियों का . इनको हर बात में टाँग अड़ाने की आदत जो है . इन्हें कोई बात अच्छी नहीं लगती . किसी को खुश देखकर तो ये कदापि खुश नहीं रह सकते .ये हर जगह मिल जायेंगे .एक ढूंढो तो चार मिलेंगे . यहाँ ब्लॉगिंग पर भी ऐसे लोगो की कमी नहीं है .पत्नियों को भडकाने में लगे हैं . स्त्री शोषण हो रहा है . पुरुष क्यों व्रत नहीं रखता स्त्री के लिए .ये होना चाहिए वो होना चाहिए . मै होता तो कभी व्रत न रखता . ऐसा कहते और लिखते हुए पाए जाते हैं ये लोग .मेरी सभी करवाचौथ प्रेमियों/प्रेमिकाओं से विनम्र गुजारिश है कि ऐसे लोगों की बात कतई न सुनें . खुश रहें और खुशी मनाने का कोई मौका हाथ से न जाने दें . निंदक तो हर बात की निंदा करते ही रहेंगे . इन निंदकों की जितनी निंदा की जाय कम है .
गुरुवार, अक्तूबर 16, 2008
मंदी का यह दौर
मंदी का यह दौर है जाना उनको देख ।
जाना उनको देख ,उतर आए दोहों पर ।
रहा न कुछ कन्ट्रोल यहाँ माया मोहों पर ।
विवेक सिंह यों कहें शुरू अब दौर नया है ।
अगर नहीं यह मंदी तो फिर बोलो क्या है ॥
बतलावें मंदा
सस्ते बस शेयर हुए, सब कर रहे बचाव ।
सब कर रहे बचाव , भूलकर मँहगाई को ।
देखें शेयर सूचकांक के लो हाई को ।
विवेक सिंह यों कहें गरीबों को है फंदा ।
तेज हुई हर चीज मगर बतलावें मंदा ॥
बुधवार, अक्तूबर 15, 2008
गिरते मार्केट में बृज
कभी भूलकर भी मुरलीधर बृज की ओर न आइ ।
दूध, दही, लाखन कौ माखन गयौ फ्री में खाइ ।
जैसे बाँधि गयौ हो लाके द्वार हमारे गाय ।
माल मारि जा बैठ्यौ मथुरा अब लौटानौ नाइ ?
सीधे सब चुकता कर दे कहुँ कोट कचहरी जाइ ।
विवेक सिंह धमकी सुनि मोहन ठाड़े ते डकराय ।
मंगलवार, अक्तूबर 14, 2008
अनूप जी से रिक्वेस्ट
हमने इतनी बडी कहानी फालतू नहीं लिखी है .हम भी किसी से रिक्वेस्ट कर रहे हैं . आज की चिट्ठाचर्चा पढकर हम अनूप जी से रिक्वेस्ट कर रहे है कि अपना कुछ लिखने का आपको पूरा अधिकार है . पर चिट्ठा चर्चा की कीमत पर नहीं . चिट्ठा चर्चा के लिये तो आपको अपने कीमती समय में से थोडा सा निकालना ही पडेगा . आप निकालेंगे कैसे नहीं आखिर हम रिक्वेस्ट कर रहे हैं .आप सभी ब्लॉगर भाइयों/भाभियों से भी हम अनूप जी से ऐसी ही रिक्वेस्ट करने की रिक्वेस्ट कर रहे हैं . आप रिक्वेस्ट करेंगे कैसे नहीं हम आपसे रिक्वेस्ट कर रहे हैं .
सोमवार, अक्तूबर 13, 2008
अंग्रेजी का दर्द
सब विषय मुझे अच्छे लगते पर इंग्लिश से दहलाते हैं ।
इंग्लिश का घण्टा लगते ही दिल की धड़कन बढ जाती है ।
मास्टर जी के दर्शन कर नाड़ी धीमी पड़ जाती है ।
यदि मीनिंग याद हो जाए तो उच्चारण अति दुखदाई है ।
पूछो न हाल स्पेलिंग का सबकी दादी कहलाई है ।
भारत में इसके जो प्रेमी निशदिन इसके गुण गाते हैं ।
जाने देते हैं नहीं इसे बस मेरा प्राण सुखाते हैं ।
रविवार, अक्तूबर 12, 2008
हिन्दी का विस्तार
खुलकर सब भाषाओं, से ले लें शब्द उधार
ले लें शब्द उधार ,न फिर उनको लौटाएँ
डटकर करें विवाद, उन्हें अपना बतलाएँ
विवेक सिंह यों कहें,आइडिया नया नहीं है
किस भाषा में गैरों के अल्फाज़ नहीं हैं ?
शुक्रवार, अक्तूबर 10, 2008
दादा का सन्यास
कन्दुक क्रीड़ा से हुआ, दादा का सन्यास ।
दादा का सन्यास, बडी घटना क्रिकेट की ।
मज़ेदार थी कथा, गेंद बल्ले विकेट की ।
विवेक सिंह यों कहें निराश न हों महाराजा ।
कभी न कभी तो बजता है सबका ही बाजा ॥
गुरुवार, अक्तूबर 09, 2008
लुढ़कने वाला लोटा
अब घावों पर लग गया, कैसा ठण्डा लेप ।
कैसा ठण्डा लेप ,मित्रता अब तो गहरी ।
बना मैम का मित्र, बड़े भैया का प्रहरी ।
विवेक सिंह यों कहें लुढ़कने वाला लोटा ।
है बाहर से चिकना पर अन्दर से खोटा ॥
सोमवार, सितंबर 22, 2008
विधाता को यही मंज़ूर था
सहमति हो गई . जिसने यह सुझाव दिया था वही सबसे पहले गया . किसी तरह परिक्रमा पूरी करके वापस आगया तो बाकी बचे छ: लोगों की धड़कनें बढ़ गईं । हर बार जब कोई सलामत वापस लौटता तो बाकी बचे लोगों को मौत की आहट सुनाई देने लगती । इसी तरह दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवाँ और छ्टा भी हिम्मत करके एक एक कर बाहर गए और वापस आगए । अब सातवें को मौत साक्षात सामने खड़ी दिखाई दे रही थी । वह बाहर कैसे जाता ? बाकी लोगों की मिन्नतें करने लगा । बोला ," दोस्तो मैं अगर बाहर गया तो मेरा मरना निश्चित है । यह आप सब भी भली भाँति जानते हैं । क्या एसा नहीं हो सकता कि आप सभी के पुण्यों के सहारे मेरी भी जान बच जाय ?" किन्तु वहाँ उसकी सुनने वाला कोई न था । "जान न पहचान, हम क्यों अपनी जान एक अजनबी के लिए ज़ोखिम में डालें ?" सब लोग एक स्वर में बोले ," तुम्हें जाना ही होगा ।" वह रोने गिडगिडाने लगा । पर उनके हृदय न पसीजे । बिजली का चमकना जारी था । अन्त में उसको धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया । मरता क्या न करता, वह वहाँ से बेतहाशा भागा । जब वह मंदिर से पर्याप्त दूरी पर पहुँच गया तो अचानक बिजली गिरी । किन्तु यह क्या ? वह बच गया । बिजली उस पर नहीं बाकी छ: लोगों पर गिरी थी । वे मर चुके थे । विधाता को यही मंज़ूर था ।
सॉफ्ट कॉर्नर
ये आतंकी हैं वही, जो कि रहे बम फोड़ ।
जो कि रहे बम फोड़, सॉफ्ट कॉर्नर की जय हो ।
हटा वही कानून, किसी को जिससे भय हो ।
विवेक सिंह यों कहें, बदल दो निज़ाम सारा ।
पकड़ा जो एक , बार न छूटे फिर हत्यारा ॥
रविवार, सितंबर 21, 2008
काटोगे जो इसे
पर घर में थीं बकरियाँ, लिया उन्होंने देख ।
लिया उन्होंने देख, बनाया प्रेशर भारी ।
काटोगे जो इसे, न देंगे वोट तुम्हारी ।
विवेक सिंह यों कहें, काटना मेरा जिम्मा ।
कब तक खैर मनाएंगी बकरे की अम्मा ?
शनिवार, सितंबर 20, 2008
वोट की राजनीति यह
थी अंत्येष्टि शहीद की, समय न पाए निकाल ।
समय न पाए निकाल, जो अंत्येष्टि में जाते ।
वोट-बैंक को अपना मुँह कैसे दिखलाते ? ।
विवेक सिंह यों कहें, बनी है नाशनीति यह ।
जी का है जंजाल वोट की राजनीति यह ॥
शहीद श्री मोहन चंद शर्मा
जिनके कारण हम सभी, रहते हैं स्वच्छंद ।
रहते हैं स्वच्छंद, नमन है शर्मा जी को ।
कैसे दरिया बीच विदाई दें माँझी को ?
विवेक सिंह यों कहें, शत्रु ने पाँव पसारे ।
ऐसे मोहन किन्तु, चंद ही पास हमारे ॥
मंगलवार, सितंबर 16, 2008
अपना डी सी एस
ताप दाब सबके यहाँ, क्या लीक्विड क्या गैस ।
क्या लीक्विड क्या गैस, सभी के अलार्म आते ।
नीले पीले लाल रंग स्क्रीन सजाते ।
विवेक सिंह यों कहें, एक ही मुझको डर है ।
ना फेल हो डी सी एस, प्लाण्ट का कण्ट्रोलर है ॥
एक ब्लॉगर का स्टिंग ऑपरेशन
सोमवार, सितंबर 15, 2008
सिर्फ कपडे न बदलिए
किन्तु सीरियस ना हुए, यही बडा संताप
यही बड़ा संताप, रहे अपने ही मद में
अब तक तो कुछ नया न कर पाए संसद में
विवेक सिंह यों कहें राष्ट्र को आप न छलिए
गृहमन्त्री हैं आप सिर्फ कपड़े न बदलिए
स्वर्ग से ब्लॉगिंग
इसमें कुछ लोग नाम कमाते हैं, तो कुछ धन कमाने की इच्छा रखते हैं . बिरले
भाग्यशाली ही नाम कमाने के साथ साथ लक्ष्मी जी की अनुकम्पा प्राप्त करने में
भी सफल रहते हैं . बाकी सब वे बंदर हैं जो श्रीराम के साथ लंका में केवल
सीताजी के दर्शन के लालच में अपनी जान जोखिम में डाल दिए थे . यह खेल
मृत्युलोक में काफी प्रचलित होता जा रहा है, और नेता, अभिनेता, खिलाड़ी तथा
डॉक्टर व इंजीनियर सभी इसको खेलने लगे हैं . पत्रकारों को तो खैर इसका व्यसन ही है ."
इन्द्र अचानक बोले," अरे चित्रगुप्त ! क्यों न हम भी ब्लॉगिंग करें ?"
"आइडिया तो बुरा नहीं है महाराज, पर जनता आपकी क्लास ले लेगी । और आपने समझदारी से काम न लिया तो दो मिण्ट में आपकी हिन्दी हो जाएगी . वैसे आपने हिन्दी ब्लॉगिंग में हाथ आजमाया तो कोई आपकी हिन्दी न कर सकेगा क्योंकि वहाँ पहले ही सबकी हिन्दी हुई पड़ी है ."
"पर हम तो इसकी ए बी सी डी भी नहीं जानते ." इन्द्र बोले .
"तो भी टेंशन नहीं लेने का गुरु ." चित्रगुप्त ने समझाया," किसी अच्छे से हिन्दी ब्लॉगर को स्वर्गवासी कर देते हैं . थोडा डराएँगे, धमकाएँगे तो आपके नाम से लिखने को तैयार हो जाएगा ."
इन्द्र : और यदि वह तैयार न हुआ तो ?
चित्रगुप्त : तो उसको नर्क में डालने की धमकी दे देंगे .
इन्द्र : इतने पर भी न माना तब ?
चित्रगुप्त : तो उसको राजी कराने के लिये उत्तर प्रदेश से एक ऐसे पुलिसिये को स्वर्गवासी करके लाएंगे जो कम से कम दस बेकसूरों से गुनाह कबूल करवा चुका हो .
इन्द्र : पुलिस वाला राजी होगा ?
चित्रगुप्त : उसकी छोडो वो सब तो अपने यमराज के चेले हैं .
इन्द्र : अच्छा ठीक है ब्लॉगिंग शुरू हो गयी फिर ?
चित्रगुप्त : फिर क्या धडाधड टिप्पणियाँ ! मान सम्मान !
"मान सम्मान तो ठीक है मगर टीका-टिप्पणी भी सहनी पड़ेगी क्या ?" इन्द्र बोले .
"सहनी नहीं पड़ेगी शुरू में तो माँगनी भी पड़ेगी और करनी भी पड़ेगी . हाँ आप सीनियर हो जाइएगा तो जबरदस्ती झेलनी भी पड़ेंगी . फिर मना किया तो और भी ज्यादा आयेंगी . यही तो इस खेल का आनन्द है और यही इसमें सम्मान . आप क्या सोचे कोई स्वर्ण पदक मिलने वाला है आपको ?" अबकी बार चित्रगुप्त ने खोलकर समझाया .
इन्द्र कुछ उदास होकर बोले," रहने दो चित्रगुप्त मुझे ब्लॉगिंग नहीं करनी ."
देवराज ऐसा कह ही रहे थे कि मेरी आँख खुल गयी और सपना अधूरा ही रह गया .
रविवार, सितंबर 14, 2008
हिन्दी दिवस मनाना था
सभ्य समाज उपस्थित सब, मर्दाना और जनाना था ।
एक-एक कर सब बोले, सबने हिन्दी का यश गाया ।
हिन्दी ही सत्य कहा सबने, अंग्रेजी तो है बस माया ।
साहब एक बढ़े आगे, अपना कद ऊँचा करने में ।
मिलती है अद्भुत शान्ति सदा ही, हिन्दी भाषण करने में ।
चले गए अंग्रेज यहाँ से, पर अंग्रेजी छोड़ गए ।
बुरा किया अंग्रेजों ने, मिलकर भारत को तोड़ गए ।
किन्तु नहीं चिन्ता हमको, हम मिलकर आगे जाएंगे ।
उत्थान करेंगे हिन्दी का, हिन्दी में हँसेंगे, गाएंगे ।
अब बात करेंगे हिन्दी में, हम सब अंग्रेजी छोड़ेंगे
जो अंग्रेजी में बोलेगा हम उससे नाता तोड़ेंगे ।
सचमुच उनका कद उच्च हुआ, करतल ध्वनि की हुँकार हुई ।
अंग्रेजी पडी रही नीचे, तो हिन्दी सिंह सवार हुई ।
पर यह क्या सब कुछ बदल गया, अनहोनी को तो होना था ।
बस चीफ बॉस का आना था, हिन्दी को फिर से रोना था ।
आगमन चीफ का हुआ सभी ने उठकर गुड मॉर्निंग बोला ।
मॉर्निंग मॉर्निंग हाउ आर यू, साहब ने गिरा दिया गोला ।
खड़े हुए जा माइक पर, फिर हिन्दी की तारीफ करी ।
ऑल ऑफ अस शुड यूज़ हिन्दी,जस्ट लीव इंग्लिश यू डॉण्ट वरी ॥
जबरदस्ती आएंगी ?
अधिक टिप्पणी चाहिये ? ताक रखें स्वविवेक ।
ताक रखें स्वविवेक, विवादास्पद ही लिखना ।
बता अन्य को निम्न, स्वयं तुम महान दिखना ।
विवेक सिंह यों कहें, जबरदस्ती आएंगी ।
अच्छी हों या बुरी किन्तु मन हर्षाएंगी ॥
शनिवार, सितंबर 13, 2008
अमरीकन हथियार ?
देगा वह ईंधन नहीं, हो जाओ होशियार ।
हो जाओ होशियार, रहेंगे रिएक्टर खाली ।
गारण्टी कुछ नहीं पक रहे पुलाव ख्याली ।
विवेक सिंह यों कहें, जहाँ पर नहीं तेल है ।
अमरीकन हथियार, वहाँ पर ब्लैकमेल है ॥
शुक्रवार, सितंबर 12, 2008
कृपया सुनें अपील !
मुक्तहस्त दें टिप्पणी, इसमें ना हो ढील ।
इसमें ना हो ढील, हुआ अधिकार ये सबका ।
मिलें टिप्पणी प्रचुर, हो लाभान्वित हर तबका ।
विवेक सिंह यों कहें, उन्नति ब्लॉग जगत की ।
धुआँधार टिपियाएँ , भूल सब बात विगत की ॥