सोमवार, दिसंबर 29, 2008

चित्र पहेली का जबाब

 पहेली पूछना तो आसान था . बस फ़ोटो लगाया और सवाल पूछ लिया . पर जब लोगों के जवाब देखे तो हमारी एक सदस्यीय निर्णय कमेटी ने दाँतों तले उंगली दबा ली . विजेता का निर्णय करना तो बहुत कठिन हो गया . दर असल कुछ लोगों ने पहेली को सीरियसली लिया ही नहीं और कुछ ने ज्यादा सीरियसली ले लिया .
इस पहेली में हमने पूछा था कि ये महाशय कौन हैं ? और क्या कहना चाहते हैं . अधिकतर प्रतियोगियों ने पहेली के एक ही हिस्से का उत्तर दिया .
सबसे पहले हमारे मित्र कुश का जबाब आया और हिंट माँगने लगे . जब हमने साफ मना कर दिया तो उन्होंने अपनी समझ से ये बताने की कोशिश की कि यह कौन हैं पर क्या कहना चाहते हैं इस पर कुश कुछ न बोले .
मुसाफिर जाट ने शुरुआत कर दी पर जबाब बीच में छोड घूमने निकल गए . मुसाफिर जो हैं .
संजय बेंगाणी जी साफ मुकर गए .
सबसे बडा उलटफेर का शिकार पहेली विशेषज्ञ अल्पना वर्मा जी को होना पडा . भूमिका बनाने में ही उनका टाइम अप हो गया .
सीमा गुप्ता जी भीं हँसी में टाल गईं .
सुनीता शानू जी ने दोनों भागों के जबाब दिए . इनके दूसरे हिस्से को देखिए : " इनके हाथों की स्टाईल और आंखों के एक्सप्रेशन को गौर से देखिये लगता है यह कह रहे हैं...आतंकवाद? छड यार सानु की फ़र्क पैणा हैं असी तो बुलेट प्रुफ़ हैं होर असी ओथे जांदे ही नई जिथे बम होणा होया,फ़ेर जावांगे तो भी मोमबत्ती जलाण वास्ते...:) की कैया असी पहेली जीत गये लो जी तुसी भी बधाई कबूल करो दार जी ...:)"
आप देख सकते हैं इन्होंने स्माइली लगा दी मतलब हँसी में टाला .
हिमांशु जी ने पहेली को मजेदार बताया .
आदरणीय ज्ञानदत्त जी ने पूरी कॉपी एक ही हिस्से का जबाब देने में जाया कर दी . पर बी-कॉपी का कोई प्रोवीजन ही नहीं था .
मोहन वशिष्ठ जी ने दोनों भागों को कवर किया .
रंजन जी ने दर्द को समझा .
हमारे शेखावत जी ज्ञानदत्त जी की नकल मारते लगे :)
रंजना जी ने बडा ही संतुलित जबाब दिया . पर हाथों के स्टाइल से मैच नहीं मिला .
महक जी ने अंग्रजी में अपना आन्सर दिया .
अलग सा जी ने अलग सा ही कुछ कहा .
डी.के. शर्मा जी भी अपना स्टाइल मारकर चलते बने .
पिण्टू जी ने हमें मुना भाई बताया .
धीरू सिंह जी को लगा कि हम उनपर अलीगढी चक्कर चला रहे हैं .
महेन्द्र मिश्रा जी ने भी टाइम पास कर लिया .
चन्द्रमौलेश्वर जी ने पहचाना नहीं . फिर भी बता दिया .
ताऊ जी अपनी ताऊ गीरी में जबाब दे दिए .
प्यासा सजल जी ने पूरी तन्मयता से परीक्षा दी . शायद विकिपीडिया की मदद भी ले आये . दोनों भागों का जबाब भी दिया .
अनुपम अग्रवाल जी निर्णायकों को घूस देने की फिराक में थे :)
प्रदीप मानोरिया जी यहाँ भी कविता लिखने से बाज न आए .
श्रद्धा जी ने आत्मविश्वास की कमी से मौका गँवा दिया .
अरविन्द मिश्रा जी ने भी आखिर में अपनी अटेण्डेंस लगा दी .
अब हम आपको सही जबाब बता दें :
यह मनमोहन सिंह जी हैं . यह कहना चाहते हैं : " क्या बात कर रहे हो यार, मुझे कौन नहीं जानता ?"
पर्फैक्ट जबाब कोई न मिला . आप लोग खुद ही अपने जबाब मिला लें . किसका कितना सही है . कमेटी हार गई आप सब जीत गए . पहेली पूछने से तौबा :)

वैसे रोचकता में सुनीता शानू जी का पलडा भारी रहा .

शनिवार, दिसंबर 27, 2008

चित्र पहेली : बूझो तो जानें

आजकल ब्लॉगजगत में पहेलियों की धूम है । सोचा समय के साथ कदम
से कदम मिलाकर न चले तो हम पिछडे हुए माने जाएंगे । पर कोई आसान
पहेली हमारे हाथ नहीं लगी तो कठिन वाली पूछनी पडी ।
आपको बताना है कि ये महाशय कौन हैं । पर इतने से ही आपकी जीत
पक्की नहीं मानी जाएगी । असली विजेता वही होगा जिसे हमारी एक सदस्यीय निर्णय समिति घोषित करेगी . फैसला इस आधार पर होगा कि आपको यह भी बताना है कि यह कहना क्या चाहते हैं । जिस प्रतियोगी का जबाव सबसे रोचक और सत्य के निकट होगा वही . विजेता होगा .
इसका जबाब सोमवार को सुबह इसी ब्लॉग पर मिलेगा . तो शुरू हो जाइए :)

युद्ध ही दिखता एक विकल्प ?

युद्ध ही दिखता एक विकल्प !

शांति के दरवाजे सब बन्द ।

मूर्ख होता जाता उद्दण्ड ॥

लगाता जाता प्रत्यारोप ।

चलाता नित्य झूठ की तोप ॥

बताता सब साक्ष्यों को गल्प ।

युद्ध ही दिखता एक विकल्प !

चाहता हर कोई बस युद्ध ।

दिख रहा जनमानस अतिक्रुद्ध ॥

बन गया है अब जो नासूर ।

चिकित्सा उसकी हो भरपूर ॥

तभी हो सकता कायाकल्प !

युद्ध ही दिखता एक विकल्प !

लगाकर बैठे हैं सब घात ।

पडौसी जो हैं उसके साथ ॥

अभी जो आस्तीन के साँप ।

कर रहे इंतजार चुपचाप ॥

लूटने का करके संकल्प !

युद्ध ही दिखता एक विकल्प ?

युद्ध का उठा सकेंगे बोझ ?

करेंगे मेहनत दूनी रोज ?

पिछडना है आपको कबूल ?

तरक्की जाएंगे सब भूल ?

मिलेगा भोजन भी अत्यल्प !

युद्ध ही दिखता एक विकल्प ?

गुरुवार, दिसंबर 25, 2008

फुरसतिया का ऐजेण्डा

जब से ब्लॉगिंग का शौक चढा है । हम जब भी घर से बाहर होते हैं तो फुरसत के समय अक्सर मोबाइल पर पुराने ब्लॉग्स पढते रहते हैं । इसी श्रंखला में कल जब फुरसतिया का ब्लॉग पढ रहे थे तो उनके जन्मदिन के बहाने लिखी पोस्ट में उनका ऐजेण्डा पढा . आप भी देखिए :
ब्लागजगत से संबंधित तमाम काम करने को बकाया हैं। उनकी लिस्ट क्या बनायें
लेकिन जो कुछेक जरूरी काम लगते हैं उनमें ये करने का मन है:-
1-ब्लाग लिखना बंद करने की घोषणा ।
2-सबके प्यार और अनुरोध पर वापस आने की घोषणा।
3-किसी का दिल दुखाने वाली पोस्ट न लिखना।
4- बड़े-बुजुर्गों (ज्ञानजी, समीरलाल,शास्त्रीजी आदि-इत्यादि) से अतिशय मौज लेने से परहेज करना।
5- नारी ब्लागरों की पोस्टों को खिलन्दड़े अन्दाज से देखने से परहेज करना।
6- नये ब्लागरों का केवल उत्साह बढ़ाना, उनसे मौज लेने से परहेज करना।
7-किसी आरोप का मुंह तोड़ जबाब देने से बचना।
8- अपने आपको ब्लाग जगत का अनुभवी/तीसमारखां ब्लागर बताने वाली पोस्टें लिखने से परहेज करना।
9- अपने लेखन से लोगों को चमत्कृत कर देने की मासूम भावना से मुक्ति का
प्रयास ।
10- तमाम नई-नई चीजें सीखना और उन पर अमल करना।
11- जिम्मेदारी के साथ अपने तमाम कर्तव्य निबाहना।
ये सारे काम आपको पता हो या न पता हो लेकिन हमें पता है कि बहुत कठिन काम हैं। लेकिन एजेंडा बनाने में क्या जाता है। कुछ जाता है क्या?
आपै बताओ!
जब से हमने यह पोस्ट पढी है । तब से हमारी अंतरात्मा हमें धिक्कार रही है कि तुम तो इनमें से कितने पाप कर चुके हो , और करने का विचार मन में पाले हो । विशेष रूप से सात नम्बर का । हालाँकि अनूप जी ने हल्का करने के लिए पहले दो सूत्र जोडे हैं और यहाँ पर हमारे लिए प्रासंगिग नहीं हैं । किंतु बाकी के सब तो हमारे लिए ही लिखे गए लगते हैं । इस आत्म-ग्लानि को दूर करने का एक ही उपाय नज़र आता है कि हम प्रायश्चित कर लें । हम गढे मुर्दों को न उखाडते हुए उन सभी लोगों से सार्वजनिक रूप से माफी चाहते हैं जो कभी हमारे व्यवहार से आहत हुए हों ,और भविष्य में दो से ग्यारह वाले ऐजेण्डे के सूत्रों को यथा सम्भव पालन करने का प्रयास करने का आश्वासन देते हैं ।

बुधवार, दिसंबर 24, 2008

ज्ञानदत्त जी से प्रेरित

दिन भर कोई काम न करना ।
आप ऊबने से मत डरना ।
काम करो तो करना धीमे ।
होता है बस सृजन इसीमें ।
सृजन तेज ना हो पाएगा ।
सारा कार्य व्यर्थ जाएगा ।
ऊब ऊब कर महान बनना ।
होकर बोर गर्व से तनना ।
अरे आज की पीढी जागो ।
आप ऊबने से मत भागो ॥

रविवार, दिसंबर 21, 2008

नाम, रूप, गुण कैसे कैसे !


जब नाम से किसी को जानें ।
किंतु रूप से ना पहचानें ॥
तो अजीब स्थिति होती है ।
मन में एक मूरत होती है ॥
जैसा नाम रूप, गुण वैसे ।
लोग मान लेते हैं ऐसे ॥
नाम, रूप, गुण, कार्य मिलें सब ।
लेकिन ऐसा होता है कब ?
सत्य सामने जब आता है ।
अक्सर मन चकरा जाता है ॥
शेरसिंह कुत्तों से डरते ।
जलसिंह पानी में न उतरते ॥
झूठ बोलकर दाम कमाते ।
लेकिन हरीचन्द कहलाते ॥
शांतिस्वरूप क्रोध करते हैं ।
भीष्म लडकियों पै मरते हैं ॥
हर्ष विषादग्रस्त रहते हैं ।
सुखपाल भी दुखी रहते हैं ॥
नाम कबीर पूजते मूरत ।
सुन्दर को देखा बदसूरत ॥
बलराम की हुई बरबादी ।
राधा से हो गई है शादी ॥
मोहनचन्द दूसरे भाई ।
राधा जी उनकी भौजाई ॥
कैसे कैसे मिले अजूबे ।
साहूकार कर्ज़ में डूबे ॥
अमर बिचारे स्वर्ग सिधारे ।
जंगजीत जूए में हारे ॥
तेजसिंह का काम है धीमा ।
चक्कर खा गिर पडता भीमा ॥
काला अक्षर भैंस बराबर ।
इनका नाम रहा विद्याधर ॥
गलती से पड गए जो छींटे ।
लछिमन रामचन्द को पीटे ॥
कर्ण जरा ऊँचा सुनते हैं ।
लक्की अपना सिर धुनते हैं ॥
राजकुमार लगाता ठेला ।
दानवीर ने दिया न धेला ॥
साधूराम डकैती डालें ।
लाखों का सामान पचा लें ॥
शीतल को लगती है गर्मी ।
धरमवीर सा नहीं अधर्मी ॥
मेघराज पानी को तरसे ।
बादल अब तक कभी न बरसे ॥
दारासिंह हड्डी के ढाँचे ।
शिवशंकर जी कभी न नाचे ॥
विश्वनाथ अनाथालय में ।
लता न गाती बिल्कुल लय में ॥
नन्हे खाँ दिखते हैं फूले ।
झूलेलाल कभी ना झूले ॥
दयावती को दया न आई ।
करी सास की खूब पिटाई ॥
ऐसा पृथ्वीराज मिला है ।
भूमिहीन में नाम लिखा है ॥
कल्लोदेवी देखीं उजली ।
चन्दा तारकोल की पुतली ॥
यादराम जी की लाचारी ।
इन्हें भूलने की बीमारी ॥
कुलभूषण की बात सुनाएं ।
दुराचार कुछ कहे न जाएं ॥
कुल की साख लगाया बट्टा ।
सत्यनारायण खेलें सट्टा ॥
नाम नयनसुख देखे भेंगे ।
कुँआरे दूल्हेराम मरेंगे ॥
पर कुमार की दो-दो शादी ।
आशा घोर निराशावादी ॥
अन्नपूर्णा मरती भूखी ।
मृदुला की बातें हैं रूखी ॥
परमानन्द दुखी बेचारे ।
लाख प्रयत्न किए पर हारे ॥
बेटे का दिमाग है खिसका ।
होशियारचन्द नाम है जिसका ॥
ध्यानचन्द जी कभी न खेले ।
टाँग तुडाकर बैठे पेले ॥
अर्जुन बडे युधिष्ठिर छोटे ।
लाखन को रुपयों के टोटे ॥
घोर गरीबी ऐसी छाई ।
जाने कैसी किस्मत पाई ॥
धनीराम यूँ जीवन काटें ।
सेठ भिखारी कर्ज़ा बाँटें ॥
श्रवण कुमार झगडते माँ से ।
बुड्ढे को ले जाओ यहाँ से ॥
इसका सरक गया है भेजा ।
इसको वृद्धाश्रम में लेजा ॥
लज्जा देवी नहीं लज़ाती ।
नहीं इमरती मीठा खाती ॥
ऐसे भी जगपाल यहीं हैं ।
घर में आटा दाल नहीं है ॥
बेचारे ये रोज कमाते ।
तभी शाम को खाना खाते ॥
घर में मित्र प्रकाश आगया ।
बत्ती गुल अंधेर छागया ॥
किस्मत के मिट सके न लेखे ।
ज्ञानदत्त अज्ञानी देखे ॥
गौर वर्ण के देखे कल्लू ।
नाम विवेक मगर हैं लल्लू ॥
अत: सज्जनो नाम है जैसा ।
आवश्यक न रूप, गुण वैसा ॥

शुक्रवार, दिसंबर 19, 2008

मेरे पै जो डीजे होता.....


आओ तुमको आज बताएं ।
कलयुग में है कैसी भक्ति ॥
विषय-वासना में सब डूबे ।
छोड न पाए ये आसक्ति ॥
एक भक्त ने करी तपस्या ।
शिवजी को प्रसन्न कर लिया ।।
नन्दी पर चढ आए भोले ।
बोले "भक्त माँगता है क्या ?
खुलकर आज माँगले कुछ भी ।
तुझे वही वर मिल जाना है ॥
बोल तुझे अप्सरा चाहिए ।
या लक्ष्मी का दीवाना है ? "
सुनकर भक्त हो गया पागल ।
लगा नाचने वहीं खुशी से ॥
बोला "मुझे लक्ष्मी से क्या ?
मुझे चाहिए तो बस डीजे ।।"
शिवजी को तब हँसी आगई ।
उसका हाथ पकडकर देखा ।
बोले "तेरी कमी नहीं हैं ।
इसमें नहीं अकल की रेखा ॥
तुझको इतनी समझ नहीं हैं ।
अरे बावली बूच नूँ बता ॥
मेरे पै जो डीजे होता ।
मैं क्यों डमरू लिए घूमता ?"

बुधवार, दिसंबर 17, 2008

गुरु-शिष्य परम्परा और अफजल गुरु

एक बार परीक्षा में गुरु शिष्य परम्परा पर निबंध लिखने को कहा गया । हमने एक उत्तर पुस्तिका से एक नमूना उठाकर यहाँ पेश किया है .
" भारत में गुरु शिष्य परम्परा बहुत पुरानी है । यहाँ पर गुरुओं का आदर किया जाता है . हम भी अपने मास्साब का बहुत आदर करते हैं . गुरु शिष्य परम्परा का महत्व निम्नलिखित है .
आपने महसूस किया होगा कि जब से संसद पर हमले के आरोपी अफजल को फाँसी की सजा सुनाई गई है तभी से यदा कदा उसकी सजा को क्रियान्वित करवाने के लिए जनता के बीच से आवाजें आती रही हैं . जब कभी कहीं बम धमाका हो जाता है तो कुछ समय के लिए यह शोर तेज होता है और फिर धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो जाता है ।
पर इतने पर भी हमारी सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंगती । आखिर जूँ रेंगेगी कैसे . उसे रेंगने ही नहीं दिया जाता . साफ सफाई पर ध्यान ही इतना दिया जाता है , कि बेचारी जूँ पास भी फटकने नहीं पाती , रेंगना तो बहुत दूर की बात है । हमारे पूर्व गृहमंत्री की सफाई के आगे तो अच्छे से अच्छे सफाईगीर भी पानी भरते हैं .
पर सब लोग सरकार को ही दोष दिए जाएंगे । किसी ने यह नहीं सोचा कि सरकार के ऊपर तो देश की परम्पराओं को जीवित रखने की भी जिम्मेदारी है . उस जिम्मेदारी को नहीं निबाह सकी तो आने वाली पीढियों को कैसे मुँह दिखाएगी ? यह जो अफजल के नाम के पीछे जो गुरु शब्द लगा हुआ है उसने सारा खेल बिगाडा हुआ है .
आप यह तो भली भाँति जानते होंगे कि गुरु शिष्य परम्परा इस देश में युगों से चली आरही है । गुरु के एक आदेश पर शिष्य अपनी जान तक देने के लिए तैयार हो जाते थे । एकलव्य ने कैसे गुरु के एक इशारे पर अपना अँगूठा काटकर उनको गुरु दक्षिणा में दे डाला था भूल गए आप ? बस यही प्रोब्लम है पब्लिक के साथ . पब्लिक जल्दी भूल जाती है ।
इस पर भी हमारे प्रधानमंत्री के लिए तो गुरु शब्द का और भी अधिक महत्व है . वैसे इस देश में ऐसा पहली बार नहीं है कि गुरु को मृत्यु दण्ड दिया गया हो । इससे पहले भी गुरु अर्जुनदेव को और गुरु तेगबहादुर को मुगलों ने मृत्यु दण्ड दिया था . और बाद में अंग्रेजों ने शिवराम राजगुरु को भगतसिंह के साथ फाँसी पर लटका दिया था । पर इससे क्या वे सब चाहे बेशक निर्दोष थे . पर शासकों को गुरु शिष्य परम्परा का इतना खयाल नहीं था जितना आज की सरकार को है ।
आशा है हमारी सरकार गुरु शिष्य परम्परा को जीवित रखने में कोई कसर न उठा रखेगी . और अफजल गुरु यूँ ही कबाब काटते रहेंगे . हम तो खैर अपने मास्साब का सम्मान करते ही हैं .

मंगलवार, दिसंबर 16, 2008

स्वर्ग में संवाददाता


जरा सोचिए ये क्या देख रहे हैं आप ? यह चित्र स्वर्ग से लिया गया है . दर असल जब चन्द्रयान को चन्द्रमा के लिए रवाना किया गया था , तभी हमारे एक न्यूज चैनल का संवाददाता चुपके से अपनी और अपने चैनल की टी आर पी बढाने चक्कर में चन्द्रयान में सवार होगया था .

आपको याद होगा पिछले दिनों ताऊ की भैंस चन्द्रमा पर गई थी । इतना पता चलते ही चैनलों में होड मच गई । कि ताऊ की भैंस का फोटू सबसे पहले कौन खींच्चैगा । भैंस का फोटू तो ताऊ ने ना लेने दिया पर रास्ते में स्वर्ग में कुछ दिन तक चन्द्रयान ने जब डीजल भरवाया था ।


इन्द्र की झोंपडी के पीछे; यह संवाददाता गया तो था किसी और चक्कर में कि शायद रम्भा , मेनका या उर्वशी में से किसी से मुलाकात हो जाय तो कुछ चक्कर चलाया जाय . पर इंसीडेंटली उसे यह भैंस का पेड दिखाई दे गया ।

बस फोटू खींच लिए । तीन ही खींच पाया था कि चित्रगुप्त उधर आगए । बस कॉपी राइट के मामले में फँसाने की धमकी देकर उसे भगा दिया . स्वयं रम्भा की कुटिया की तरफ चले गए . वैसे ताऊ ने अपनी भैंस का फोटू पिछले दिनों मॉस्क लगाकर दिखाया था .

शनिवार, दिसंबर 13, 2008

कहीं आप ही तो लल्लू नहीं

ब्लॉगजगत में हर कोई चाहता है कि उसका चिट्ठा अधिक से अधिक लोगों द्वारा पढा जाए और खूब टिप्पणियाँ मिलें । तभी तो सोना लिखने वाले भी चोरी की चिंता के बावजूद अपना सोना ब्लॉग पर लिख मारते हैं । लाख ताला लगाएं पर चोर हैं कि उनके भी ताऊ हैं . वो चुनौती से चोरी करते हैं ( वैसे इसके लिए डकैती शब्द ज्यादा उपयुक्त होगा . भाई डकैती शब्द पर जिसका कॉपीराइट हो हमें क्षमा कर दें . इसीलिए कोष्ठक में लिखा है . आखिर हम भी ब्लॉग पुलिस से डरते हैं , क्या पता रंगे हाथों धर दबोचे तो सीधा एनकाउण्टर ) ।
किंतु एक आम समस्या यह आती है कि यहाँ जो लोग टिप्पणी करते हैं वे खुद भी ब्लॉग लिखते हैं, टिप्पणियाँ उन्हें भी चाहिए । और इस तरह सौदा बराबरी पर ही छूटता है कि भई इस हाथ दे और उस हाथ ले । यहाँ पर जो तथाकथित ब्लॉग मठाधीश हैं वे भी इस सार्वभौमिक सत्य के अपवाद नहीं हैं . इनमें दो-एकाध ही इतना पानी रखते हैं जो एक महीने बिना टिपियाए टिक सकें . अन्य सब हफ्तों में पब्लिक का पानी भरते नज़र आएंगे . हम जैसों की तो खैर चर्चा ही मत करिए . सेकिण्डों में निपट लेंगे .
पर सोचिए अगर कोई सेल्समैन आपके दरवाजे पर आकर आपसे कहे कि हमारी कम्पनी ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर लॉन्च किया है जो आपकी तमाम मुश्किलें आसान कर देगा । बस इसे अपने कम्प्यूटर में इंस्टॉल कर लें फिर कमाल देखें . यह ब्लॉग एग्रीगेटर से ब्लॉग पढेगा और यथायोग्य टिप्पणियाँ आपकी सेटिंगानुसार आपके नाम से भेजता रहेगा . तो शायद आप पहले तो भरोसा ही न करेंगे और जब सुबूत के बिना पर आपको भरोसा होगा तो तुरंत ऐसा सॉफ्टवेयर प्राप्त करने के लिए उतावले हो जाएंगे . मगर रुकिए; हम आपको आगाह कर दें कि ज्यादा खुशफहमी ना पालें . क्योंकि यह कोई खुशी की बात है ही नहीं . इसकी खुशी आपको तभी मिलेगी जब यह सॉफ्टवेयर सिर्फ और सिर्फ आप ही के पास हो . वह भी शुरू शुरू में . तत्पश्चात आपको मिलने वाली खुशी गुजरते समय की समानुपाती दर से कम होती जाएगी । समझ लीजिए यह सॉफ्टवेयर सबको मिल जाय तो टिप्पणी की वैल्यू तो रुपए से भी नीचे गिर जाएगी . हर टिप्पणी को जाँचने की कवायद होगी कि नेचुरल है या आर्टिफिसियल ? टिप्पणी पहचानने वालों की दुकानें चल निकलेंगी . जिस तरह हीरे की परख जौहरी करता है . हो सकता कि टिप्पणी की परख करने वाला भी कोई टौहरी होने लगे .
चलिए जाते जाते आपको बता ही देते हैं कि ऐसा सॉफ़्टवेयर सचमुच ब्लॉगजगत में पदार्पण कर चुका है और चल रहा है ।
अब आप सोच रहे होंगे कि हम आपको ईजाद करने वाले और उपयोग में लाने वालों का नाम बता देंगे . तो इतने लल्लू हम हैं नहीं । इतना सब फ्री-फॉण्ड में बता दिया यह कम है क्या ?
आप खुद ही गेस करिए . हो सकता है कि आपके बगल वाला ब्लॉगर ही इसे डाले बैठा हो . और यह भी आशंका है कि यह आपको छोडकर सबके पास हो . और सिर्फ आप ही लल्लू हों .

रविवार, दिसंबर 07, 2008

जब मेरी सरकार बनेगी

जब मेरी सरकार बनेगी ,
सभी बिलागर छा जाएंगे ।
मंत्री सबको बनना होगा ,
समुचित मन्त्रालय पाएंगे ॥
चयन करो अपना मंत्रालय ,
सबको खुली छूट दे दूँगा ।
बचे कुचे मंत्रालय लेकर ,
उनकी पोस्ट नित्य ठेलूँगा ॥
टाँग खिंचाई का विभाग तो ,
फुरसतिया ही ले जाएंगे ।
पोर्टफोलियो एक एक्स्ट्रा ,
हा हा ठी ठी का पाएंगे ॥
पर हा हा के सभी मामले ,
सीमा गुप्ता अगर सँभालें ।
फुरसतिया को फुरसत होगी ,
बस ठी ठी का बोझ उठालें ॥
ज्ञानदत्त पाण्डेय अपना प्रिय ,
ठेल मंत्रालय ले लेंगे ।
फिर जो कुछ भी मिल जाएगा ,
बता ओरिजीनल ठेलेंगे ॥
फिल्म मन्त्रालय ले लें कुश ,
मेरी उनसे रही गुजारिश ।
भूले भटके काम पडा तो ,
कर दें मेरी जरा सिफारिश
शास्त्री जी जो स्नेह मन्त्री ,
बन जाएं तो फिर क्या कहना ।
सबको खूब स्नेह मिलेगा ,
फिर चाहे जैसे भी रहना ॥
लट्ठ मंत्रालय
ताऊ का ,
इसमें कोई बहस न होगी ।
जो ताऊ से बहस करेगा ,
समझें उसे मानसिक रोगी ॥
बेहतर होगा जो रचना सिंह ,
अनुशासन मंत्री बन जाएं ।
पर अनुशासन में रहकर वे ,
शायद ही मंत्री बन पाएं ॥
शब्दों के मन्त्री के पद पर ,
अजीत वडनेरकर सोहेंगे ।
अर्थ अनर्थ करें शब्दों का ,
वे सबके मन को मोहेंगे ॥
दिनेश राय द्विवेदी जी भी ,
अपने विधि मन्त्री होंगे ।
कानूनी मसलों पर हमको ,
अपनी राय जरूरी देंगे ॥
अमर कुमार उठा मन्त्रालय ,
देखेंगे जब घुमा फिराकर ।
मन ही मन में सोचेंगे वे ,
गलती करदी इसको लाकर ॥
यह तो खाली मन्त्रालय है ,
इसमें भरा विभाग न कोई ।
मन्त्री बना विभाग न पाया ,
मेरी किस्मत ऐसी सोई ॥
किन्तु टिप्पणी ग्रोथ मन्त्री ,
उनको तुरत बना डालूँगा ।
होती खरी टिप्पणी इनकी ,
सबसे ज्यादा मैं ही लूँगा ॥
उडन तश्तरी के सुपुर्द हैं ,
आसमान के सभी मामले ।
ब्लॉगजगत की निगरानी हो ,
आसमान से ना हों हमले ॥
सफल रहे आलोक पुराणिक ,
अपना प्रिय मन्त्रालय लेकर ।
व्यंग्य विभाग उडाकर भागे ,
बिलागरों को झाँसा देकर ॥
झाड फूँक मन्त्री का पद तो ,
ले ही लेंगे अभिषेक ओझा
और दूसरा कोई इसका ,
उठा न सकता पूरा बोझा ॥
आम आदमी की मन्त्री जब ,
रीता भाभी बन जाएंगी ।
भरतलाल जो खबरें देगा ,
वे खबरें भी छप जाएंगी ॥
शिवकुमार मिश्रा जी गुरु हैं ,
उनको मन्त्रालय ना देंगे ।
हम तो बैठे मौज करेंगे ,
सारा काम वही देखेंगे ॥

मित्रगण