आज हमारा हैप्पी बड्डे है । पूरे ३१ साल के हो गये आज । जीवन यात्रा में जन्मदिन का महत्व एक मील के पत्थर जैसा है । मील के पत्थर तो अब रहे नहीं । हमने तो जबसे होश संभाला है किलोमीटर के पत्थर ही देखे हैं । पहले होते होंगे मील के पत्थर । तो सिद्ध हुआ कि जीवन यात्रा में जन्मदिन का महत्व किलोमीटर के पत्थर जैसा है । हेंस प्रूव्ड ।
किलोमीटर का पत्थर आने पर हम अक्सर यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि यात्रा कितनी बची है । लेकिन जीवन यात्रा में यह सुविधा अभी उपलब्ध नहीं है । यहाँ सिर्फ़ पीछे मुड़कर देखा जा सकता है कि कितनी दूर निकल आये । फिर भी एक मोटा मोटा सा अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आधे से ज्यादा आ गये होंगे । पीछे ज्यादा कुछ छोड़ा नहीं है । पीछे वाले को बिना छोड़े जो आगे मिल रहा है उसे भी समेटने में लगे हैं । बड़े लालची हैं हम । बचपन को अभी भी कसकर पकड़ा हुआ है । जब तक सिर पर बड़ों का आशीर्वाद कायम है तो उम्र बढ़ने के क्या होता है ? पर अब छीनाझपटी का सा माहौल बनने लगा है । मित्र-राष्ट्र बचपन की रस्सी को हमारे हाथ से छीनने पर तुले हैं । इस बात को ऐसे समझा जाय कि तेंदुलकर शतक लगाकर मैदान से लौटे हों और कोई पत्रकार भाई पूछ लें कि उम्र को देखते हुए क्या वे क्रिकेट से सन्यास लेने पर विचार कर रहे हैं ? पर वे तेंदुलकर हैं, हम नहीं । वे जब तक चाहें खेल सकते हैं ।
वैसे सरकार यदि शादी-व्याह जैसी तमाम व्यक्तिगत बातों की तरह यदि बचपना छोड़ने की भी उम्र तय करना चाहती हो तो हमारी सलाह यही होगी कि चालीस तक तो बख्श ही दिया जाय । असल में लोग जल्दी बचपना छोड़ देते हैं । फिर शिकायत करते हैं कि बुढ़ापा आगया । अगर बचपन को ही चालीस पार करके छोड़ा जाय तो संभव है बुढ़ापा सौ के पार आये । और मरेंगे डेढ़ सौ के आस-पास ।
हम जब लेख लिखने लगते हैं तो भटक जाते हैं । इसीलिये कविता लिखकर फूट लेते हैं । ये लेख-फेक लिखना फुरसतिया जी जैसे लोगों को ही शोभा देता है ।
हाँ तो कौन सा पाठ पढ़ा रहे थे हम ? हाँ याद आया । हम कह रहे थे कि हमारी यह दो सौवीं पोस्ट ऐसे ही नहीं हो गयी । इससे पहले 199 लिख चुके हैं तब यह दो सौ वीं छप रही है ।
यूँ हमारे पास खाली समय फिलहाल नहीं के बराबर है । तदापि यह आप लोगों का प्यार का आकर्षण ही है जो बिना रस्सी के भी खिंचे चले आते हैं ।
स्वप्नलोक पर और चिट्ठाचर्चा पर आपका जो प्यार मिला उसने हमेशा उत्साह बढ़ाया । यह अलग बात है कि चिट्ठाचर्चा में शामिल होने को कुछ पवित्रात्माओं ने चमचागीरी का नाम देकर भी हमें सम्मानित किया । कई दिन तक खज़ाने की तलाशी लेते रहे कि जब चमचागीरी की है तो कुछ न कुछ फायदा भी किसी न किसी मद में हुआ होगा हमें । पर कुछ मिला नहीं अभी । शायद कभी रद्दी बेचते समय मिल जाय ।
चिट्ठाचर्चा ने अभी पिछले दिनों १००० का आंकड़ा छुआ । बड़ी खुशी हुई । अनूप जी ने चिट्ठाचर्चा के द्वारा जो काम हिन्दी ब्लॉगरों का उत्साह बढ़ाने में किया है उसके मैन-आवर्स निकालने लगें तो अवश्य ही कनफ्यूजिया जायें । हम तो यही कहेंगे कि अनूप जी के व्यक्तित्व का पासंग भी अभी ब्लॉग-जगत में कोई नहीं हुआ । बराबरी की तो खैर क्या कहें !